राहुल गांधी एक बेहद शर्मनाक व्यक्ति हैं. ये शब्द एक मध्यम स्तर के अमेरिकी राजनयिक के हैं, जिन्होंने अपने सहकर्मियों और नौकरशाहों को यह समझाने में काफी समय और प्रयास लगाया कि उत्तरी अमेरिका में सक्रिय खालिस्तान के समर्थक सरल हृदय वाले एक्टिविस्ट नहीं हैं. वे अमेरिकी गृहयुद्ध में कन्फेडरेसी का समर्थन करने वाले अगुवा लोगों की तरह हैं. भारत के लिए पैरवी करने वाले राजनयिक, भारतीय बहुलवाद के एक महान प्रशंसक, राहुल गांधी द्वारा अपने अमेरिकी दौरे पर यह दावा करके कि भारत में सिखों के लिए खतरा है, अलगाववादियों के झूठ को वैध बनाने की कोशिश करता देखकर हैरान थे. सिखों के लिए परिस्थितियाँ इतनी खराब हैं कि वे सार्वजनिक रूप से अपने धर्म के पवित्र प्रतीकों को पहने हुए नहीं देखे जा सकते.
यहां एक पैटर्न है. उनकी दादी और चाचा ने एक अनपढ़ धर्मगुरु को संरक्षण दिया जिसने पंजाब को लगभग तबाह कर दिया. उनके पिता की देखरेख में दिल्ली में सिखों के नरसंहार की इबारत लिखी गई. और अब राहुल गांधी ने सिखों की दो पीढ़ियों के बलिदानों का मजाक उड़ाया है जो अपने देश के लिए हत्यारे अलगाववादियों और उनके पिता द्वारा चलाए जा रहे नरसंहार वाले राज्य के खिलाफ खड़े थे. जब राहुल गांधी वॉशिंगटन, डीसी के एक सभागार में बेबाकी से बोल रहे थे, तो वर्दी में दसियों हज़ार सिख भारत की सीमाओं पर गश्त कर रहे थे. वे किसकी रक्षा कर रहे थे? एक ऐसे देश की जिसमें वे विलुप्त होने वाले हैं?
भारत में रहने वाला कोई भी व्यक्ति राहुल गांधी द्वारा सिख नागरिकों की स्थिति के बारे में कही गई बातों में सच्चाई का एक संकेत भी नहीं देख सकता. लेकिन उनके प्रदर्शन के कुछ ही घंटों के भीतर, उन्हें एक नामित आतंकवादी गुरपतवंत पन्नू द्वारा खालिस्तान के मुद्दे को बढ़ावा देने वाले के रूप में बताया जाने लगा, और सिख वर्चस्ववादी ठगों द्वारा प्रशंसा की गई, जिनके साथियों ने भारत के टुकड़े करने के उद्देश्य से हजारों सिख और गैर-सिख नागरिकों की हत्या की.
राजनयिक ने अविश्वसनीय रूप से पूछा, “उन्होंने ऐसा क्यों किया?”
इसके दो संभावित कारण हो सकते हैं. सरल-सहज उत्तर तो यह हो सकता है कि वह अपनी दादी और पिता द्वारा बहाए गए सिख खून का प्रायश्चित करने का असफल प्रयास कर रहे थे. लेकिन ऐसा करके वह खालिस्तान के पैरोकारों की सहायता कर रहे थे – जो उन सिखों के भारी बहुमत के जानी दुश्मन हैं, जो पंजाब में एक कट्टरपंथी सिख-वर्चस्ववादी राज्य बनाने के प्रोजेक्ट को अस्वीकार करते हैं.
यह राहुल गांधी के घमंड और अपने देशवासियों के प्रति उनकी अवमानना की हद है, कि वे मानते हैं कि भारत जैसे विविधतापूर्ण और विशाल देश को उनके परिवार की मनोवृत्ति के अधीन किया जा सकता है. अगर राहुल गांधी को अपनी दादी और पिता के किए पर बुरा लगता है, तो उनके पास प्रायश्चित करने के दूसरे तरीके भी हैं जो भारतीय सिखों को बदनाम करने के बजाय उनका सम्मान करेंगे.
वे सिख गुरुद्वारें में सेवा कर सकते हैं, वे अपने परिवार द्वारा किए गए कामों के लिए माफ़ी मांग सकते हैं, वे अपने परिवार के कलंकित नाम को त्याग सकते हैं, वे जन्म के संयोग से प्राप्त खुद न अर्जित किए गए विशेषाधिकारों को त्याग सकते हैं. और अगर वे फिर भी असंतुष्ट महसूस करते हैं, तो वे ‘इवान द टेरिबल’ के उदाहरण का अनुकरण कर सकते हैं और दिवंगत लोगों की निर्दोष आत्माओं के लिए प्रार्थना कर सकते हैं, या वे ओडिपस का अनुकरण कर सकते हैं और खुद को अंधा करके सार्वजनिक जीवन से हट सकते हैं.
राहुल गांधी ने जो किया, उसका दूसरा कारण शायद सच्चाई के ज़्यादा करीब है: वे मूर्ख हैं. यही कारण है कि वे अपने इर्द-गिर्द रहने वाले चापलूस दरबारियों की चापलूसी के शिकार हो जाते हैं. वे इस भ्रम में पूरी तरह से जकड़े हुए हैं कि वे हमारे समय के सिद्धार्थ और महात्मा हैं – जबकि सच तो यह है कि वे अनर्जित अधिकार के प्रतीक हैं, बौद्धिक रूप से खाली वंशानुगत तानाशाह. वे लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं, यह हमारी राजनीति की कमजोर अवस्था को दर्शाता है.
राहुल गांधी: अपने बारे में सबसे कम ज्ञान
भारत में कोई भी राजनेता – यहां तक कि नरेंद्र मोदी भी – राहुल गांधी से ज़्यादा आत्म-अज्ञानी नहीं है यानि कि उनको भी अपने बारे में राहुल गांधी से ज्यादा पता है. भारतीय सिखों की खतरे में पड़ी स्थिति पर उनके वक्तव्य के साथ-साथ उन्होंने यह दावा भी किया कि अगर आम चुनाव निष्पक्ष और लोकतांत्रिक होते, तो भाजपा इतनी सीटें नहीं जीत पाती.
जो कोई भी उनके इस झूठे तथ्य को गंभीरता से लेता है, उसे एक और बात पर विचार करना होगा: क्या भाजपा किसी भी रूप में सत्ता में बनी रहती अगर कांग्रेस में निष्पक्ष चुनाव और लोकतांत्रिक तरीके से काम करने की अनुमति होती? भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी में गांधी परिवार की सर्वोच्चता लोकतंत्र को पूरी तरह से खत्म करके संभव हुआ है. और यह इस वंश के अन्याय का ही परिणाम है जिसने मोदी को उच्च पद पर पहुंचाया.
मैं कभी-कभी सोचता हूं, क्या कभी इस परिवार को – माँ, बेटे, बेटी को – यह एहसास होता है कि वे लोकतंत्र के रक्षक नहीं हैं बल्कि निरंकुशता के सबसे आक्रामक उदाहरण हैं? क्या वे कभी इस बारे में सोचते हैं कि जिस पार्टी ने हमारे गणतंत्र को खड़ा किया है, उसमें आंतरिक लोकतंत्र को नष्ट करके उन्होंने भारत को क्या चोट पहुंचाई है? क्या उन्हें शर्म आती है? क्या वे शर्म महसूस करने में सक्षम भी हैं? क्या वे समर्थक, चाटुकार और ट्रोल जो उनका उत्साह बढ़ाते हैं, उनका बचाव करते हैं, और उनके आलोचकों को गाली देते हैं – क्या उन्हें शर्म आती है?
शशि थरूर बनाम राहुल गांधी
चाटुकारों और कैरियरिस्ट लोगों ने पार्टी पर परिवार के स्वामित्व को बनाए रखा है और इन लोगों ने परिवार व उसके आश्रितों के लिए खतरा माने जाने वाले योग्य कांग्रेसियों को सताया, उन्हें बाहर निकाला और उन्हें दबाया. बेशक, स्पष्ट रूप से उनका शिकार शशि थरूर हैं.
मैं थरूर का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं क्योंकि वे राहुल गांधी के साथ ही अमेरिका में थे. हालांकि, थरूर के भाषण और बातचीत अलग तरह की थी- ज्ञान से परिपूर्ण, हंसी-मजाक वाली, परिष्कृत और व्यावहारिक. राहुल गांधी के विपरीत, थरूर ने लोकतंत्र और बहुलवाद की रक्षा की, जिसने किसी भी नस्ल के जातीय-धार्मिक राष्ट्रवादियों को कोई जगह नहीं दी. अगर थरूर उस पद पर नहीं हैं जिस पर राहुल गांधी वर्तमान में बैठे हैं, तो इसका कारण यह है कि परिवार और उसके गुर्गों ने उन्हें सफल नहीं होने दिया.
घर पर, थरूर हिंदू राष्ट्रवादियों के हमलों से भारतीय बहुलवाद के सबसे सिद्धांतवादी रक्षक बने हुए हैं. लेकिन, मोदी के विरोध में, उन्होंने खुद को भारत के विरोधियों का हथियार बनने की अनुमति नहीं दी है. थरूर ने अक्सर धर्मतंत्र और निरंकुश सत्ता के प्रतिनिधियों की आलोचना की है, जिन्होंने भारत को पूरी तरह से बदनाम करने के लिए भाजपा सरकार के कमियों का हवाला दिया है.
थरूर ऐसा करने में सक्षम हैं क्योंकि उनके पास यह पहचानने की बुद्धि है कि जो लोग भारतीय एकता को बदनाम करने के लिए मोदी का सहारा लेते हैं, वे प्रबुद्ध मानवतावादी नहीं हैं. वे अज्ञानी जातीय-धार्मिक राष्ट्रवादी हैं जो भारत के किसी छोटे से कोने में, छोटे पैमाने पर और एक अलग बैनर के तहत हिंदुत्व के प्रोजेक्ट को दोहराने की अपनी स्वायत्त महत्वाकांक्षा का पीछा कर रहे हैं.
विदेशी धरती पर भारत के शत्रुओं की बखिया उधेड़ना भारत को मोदी से वापस पाने के प्रयास को दर्शाता है, क्योंकि यह देश के मतदाताओं को दिखाता है कि वह और उनकी पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में कमजोर नहीं हैं. दूसरी ओर, राहुल गांधी हर विदेशी यात्रा को यह दिखाने के अवसर के रूप में प्रयोग करते हैं कि मोदी ने विपक्ष को कमजोर करके सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत कर रखी है.
भारत के कुछ हिस्सों में, खासकर दिल्ली के चर्चित लोगों में, यह भ्रम फैल रहा है कि भारतीय राहुल गांधी के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. इस साल के आम चुनावों से पहले के महीनों में मैंने 13 राज्यों की यात्रा की. सैकड़ों मतदाताओं ने मुझसे मोदी के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की, लेकिन मुझे एक भी भारतीय ऐसा नहीं मिला जो राहुल गांधी के प्रति आकर्षित होने का दावा करता हो. कई लाखों मतदाता कांग्रेस की ओर मुड़े. लेकिन यह निर्विवाद सत्य है: राहुल गांधी ने इस साल अपनी पार्टी को लगातार तीसरी हार की ओर धकेला. अगर मोदी प्रधानमंत्री के रूप में एक और कार्यकाल पूरा कर रहे हैं, तो इसका कारण यह है कि मतदाताओं के सामने विकल्प राहुल गांधी और उनके परिवार के स्वामित्व वाली पार्टी थी.
विपक्ष के नेता के रूप में अपने कार्यकाल के बारह सप्ताह बीत जाने के बाद, यह स्पष्ट है कि वे किसी भी सार्वजनिक जिम्मेदारी वाले पद को संभालने के लिए अयोग्य हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका में, राहुल गांधी ने यह प्रदर्शित करने से कहीं अधिक किया कि वे मोदी से उद्धार करने वाले हैं. उन्होंने हमें एक बार फिर याद दिलाया कि वे और उनका परिवार भारत के लिए एक विपत्ति है.
(कपिल कोमिरेड्डी, जो मेलवोलेंट रिपब्लिक: ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ़ द न्यू इंडिया के लेखक हैं, वर्तमान में डॉ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर पर एक किताब पर काम कर रहे हैं. उन्हें एक्स और टेलीग्राम पर फॉलो करें. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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