यह एक पीढ़ीगत मुकाबला हो सकता था — जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार, अपने लंबे कार्यकाल के अंतिम दौर में, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव से मुकाबला करते हुए, जो महत्वाकांक्षी युवा चुनौतीकर्ता हैं और अभी भी अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन पिछले सप्ताह से, 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव ने एक परिचित ट्रेंड को दोहराना शुरू कर दिया है: राज्य चुनाव धीरे-धीरे राष्ट्रीय नेतृत्व की लड़ाई में बदलते जा रहे हैं — एक ऐसा ढांचा जो आमतौर पर सत्तारूढ़ एनडीए को फायदा देता है.
1 सितंबर को अपनी पखवाड़ा-लंबी वोटर अधिकार यात्रा खत्म होने के बाद राहुल गांधी का बिहार के चुनाव प्रचार से गायब रहना किसी से छिपा नहीं था. लेकिन इसने अनजाने में तेजस्वी को नीतीश के मुख्य चुनौतीकर्ता के रूप में उभरने का मौका दिया.
इससे पहले, मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ राहुल की यात्रा और कांग्रेस का तेजस्वी को इंडिया ब्लॉक के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में घोषित करने में हिचकिचाना, आरजेडी नेता को पीछे धकेल रहा था, जिससे वह एक ऐसे नाराज़ युवराज की तरह दिख रहे थे जो अपने समय का इंतज़ार कर रहा हो.
हालांकि राहुल का बिहार से लंबे समय तक दूर रहना, और 23 अक्टूबर को ब्लॉक द्वारा तेजस्वी को आधिकारिक रूप से मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के फैसले ने आखिरकार तेजस्वी को आत्मविश्वास के साथ चुनावी मैदान में उतरने की जगह दे दी.
28 अक्टूबर को ‘तेजस्वी प्रण’ नामक विपक्ष के घोषणापत्र के लॉन्च ने चुनाव प्रचार का पूरा ध्यान तेजस्वी पर केंद्रित कर दिया. इसके अगले दिन राहुल ने आखिरकार राज्य में अपनी चुनावी रैलियां शुरू कीं और दो सभाओं को संबोधित किया. फिर कथा बदल गई, और ध्यान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच की कलह पर चला गया.
और इसी वजह से बिहार चुनाव प्रचार में मोदी बनाम राहुल का यह जारी मुकाबला दिप्रिंट का ‘न्यूज़मेकर ऑफ द वीक’ बना है.
एक अवसर
राहुल के भाषणों में उनके पसंदीदा मुद्दे थे — प्रधानमंत्री मोदी, अडानी, अंबानी, क्रोनी पूंजीवाद. लेकिन उनके इस बयान ने कि मोदी वोट पाने के लिए हर तरह का नाटक करेंगे और मंच पर “नाचेंगे” भी, प्रधानमंत्री को एक बार फिर विपक्ष के निजी हमलों का शिकार दिखाने का मौका दे दिया.
अपने भाषण के एक हिस्से में राहुल ने दिल्ली के वसुदेव घाट पर यमुना के पास बनाए गए आर्टिफिशियल तालाब का ज़िक्र किया, जहां मोदी के छठ पूजा करने की उम्मीद थी. राहुल ने कहा:
“एक तरफ यमुना है, गंदे पानी के साथ. और दूसरी तरफ मोदी जी के लिए बनाया गया एक छोटा-सा तालाब, जिसमें साफ पानी है, पाइप से डाला गया. यही भारत की सच्चाई है.”
उन्होंने आगे कहा, “अगर मोदी जी को नाटक करना है, अगर उन्हें छठ पूजा का नाटक करना है, तो अचानक पानी आ जाएगा, कैमरे आ जाएँगे. उनके लिए साफ पानी और दस गज़ दूर असली भारत — गंदे पानी और बीमारी के साथ.”
हालाँकि भाषण की ट्रांसक्रिप्ट से साफ है कि राहुल गांधी ने धार्मिक अनुष्ठान को “नाटक” नहीं कहा, लेकिन प्रधानमंत्री पर छठ पूजा को राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए उनकी यह असावधानी मोदी को यह मौका दे गई कि वह बिहार के लोगों की आस्था वाले इस त्योहार का अपमान कह कर विपक्ष को घेरें.
गुरुवार की रैली में मोदी ने कहा:
“छठ सिर्फ भक्ति का प्रतीक नहीं है, यह समानता का भी प्रतीक है. इसी वजह से मेरी सरकार इस त्योहार के लिए UNESCO हेरिटेज टैग की कोशिश कर रही है. मैं सफर के दौरान छठ के गीत सुनता हूं. एक बार नागालैंड की एक लड़की द्वारा गाया गया छठ गीत सुनकर मैं भावुक हो गया था. लेकिन जब आपका यह बेटा छठ को उसका हक़ दिलाने में लगा हुआ है, तब कांग्रेस-राजद वाले इसे नाटक, नौटंकी कहकर इस पवित्र पर्व का अपमान कर रहे हैं. वोट पाने के लिए ये लोग कितनी नीचे तक गिर सकते हैं, यह देखिए. यह छठ का अपमान है, जिसे बिहार सदियों तक नहीं भूलेगा.”
मोदी Vs राहुल
संभावित चुनावी फायदा देखते हुए, बीजेपी इस मुद्दे को ज़िंदा रखने के लिए अन्य रास्ते भी अपना रही है. गुरुवार को पार्टी के राज्य नेतृत्व ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में लिखित शिकायत दी, जिसमें राहुल पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने “निजी, उपहासपूर्ण और भारत गणराज्य के सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले” बयान दिए.
कांग्रेस ने जवाब देते हुए याद दिलाया कि मई में बिहार में ही प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर हमला करते हुए “मुजरा” शब्द का इस्तेमाल किया था. मोदी ने कहा था, “मैं इंडिया ब्लॉक की उस योजना को नाकाम कर दूंगा, जिसके तहत वे SC, ST और OBC के अधिकार छीनकर मुसलमानों को देना चाहते हैं. वे भले गुलाम बने रहें और अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए मुजरा करें.”
इधर, तेजस्वी चुनाव को स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि नीतीश कुमार के खिलाफ बने एंटी-इनकंबेंसी माहौल का फायदा उठाया जा सके. नीतीश 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री हैं, सिर्फ नौ महीनों को छोड़कर जब जीतन राम मांझी ने थोड़े समय के लिए पद संभाला था.
इसके विपरीत, गैर-स्थानीय मुद्दों का हावी होना एनडीए के लिए फायदेमंद है. मोदी बनाम राहुल की राष्ट्रीय बहस में स्थानीय मुद्दे पीछे चले जाते हैं, जिससे सत्तारूढ़ गठबंधन का समर्थन और मजबूत होता है.
व्यक्त विचार निजी हैं.
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