भला हो क्वाड में आपसी सहयोग बढ़ाने के गंभीर प्रयासों का, वैश्विक भू-राजनीति में हिंद-प्रशांत क्षेत्र एक बार फिर चर्चा में आ गया. 24 मई 2022 की टोक्यो में क्वाड नेताओं की बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में कई तरह के मसलों पर विचार किया गया. 2018 में चीन ने टिप्पणी की थी की क्वाड तो समुद्र की लहरों के फेन की तरह बिखर जाएगा. लेकिन 2020 में उसने अपना विचार बदल दिया और इस समूह को ‘एशियाई नाटो’ नाम दिया. रूस ने भी क्वाड का विरोध किया. रणनीति के लिहाज से देखा जाए तो संयुक्त बयान में जिन कदमों का जिक्र किया गया है उसके पीछे की मंशा चीन की इस आशंका को पुष्ट करेगी कि बड़ी ताक़तें उसके खिलाफ लामबंद हो रही हैं. हालांकि चीन और रूस का जिक्र बयान में नहीं किया गया है, लेकिन जिन ताकतों का मुकाबला करने की जरूरत बताई गई है उससे उनकी मौजूदगी साफ दिखती है. खास करके चीन की, क्योंकि वैश्विक भू-राजनीतिक होड़ चीन की बढ़ती ताकत के कारण है.
प्रतिवादी पक्ष का मूल तर्क यह है कि चीन नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है और समुद्री क्षेत्र में वैश्विक गतिविधियों को खतरा पहुंचा रहा है. मुख्य चिंता यह है कि आर्थिक गतिविधियां बेरोकटोक जारी रहें. चिंता मुख्य रूप से संप्रभुता के दावों को लेकर असहमति से पैदा होती है. अधिकतर दावे साउथ चाइना सी और पूर्वी एशिया के समुद्र क्षेत्र से संबंधित हैं.
क्वाड की बैठक वाले दिन चीन और रूस ने जापान और दक्षिण कोरिया से जुड़े इलाकों में हवाई सैन्य अभ्यास किए. क्वाड को साफ संदेश दिया गया. रणनीतिक रूप से चीन की चिंता यह है कि उससे होड़ लगाने वाले देश अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के कई क्षेत्रों में आपस में मिलकर एकजुट हो रहे हैं. इस लेख जिस क्षेत्र से संबंधित है वह है सूचना की साझेदारी और उसकी उपयोगिता.
अवैध फिशिंग के अवैध धंधे से आगे
सूचना की साझेदारी के इस क्षेत्र को ‘इंडो-पैसिफिक पार्टनरशिप फॉर मेरिटाइम डोमेन अवेयरनेस’ (आइपीमडीए) नाम दिया गया. यह मानवीय तथा प्राकृतिक आपदाओं और मछली पकड़ने की अवैध कोशिशों को रोकने के लिए बनाया गया है. इसके पीछे विचार यह है कि हिंद महासागर, दक्षिण-पूर्व एशिया, और प्रशांत के द्वीपों में क्षेत्रीय सूचना ‘फ्यूजन’ केंद्रो को समेकित किया जाए. रणनीतिक प्रतियोगिता में सूचना का आदान-प्रदान मुख्य बात होती है. रणनीतिक दृष्टि से इसका बड़ा प्रभाव होता है क्योंकि जो समेकित क्षमता बनती है उसका उपयोग सैन्य मकसदों के लिए भी किया जा सकता है. हालांकि सूचना की साझेदारी की कुछ व्यवस्था पहले से मौजूद है लेकिन उस पर नया ज़ोर दिया जा रहा है.
आपदा और मानवीय राहत के कार्यों में सहयोग में अक्सर विभिन्न देशों की सैन्य व्यवस्थाओं का उपयोग किया जाता है और उनका साथ मिलकर काम करना जरूरी होता है. समेकित संचार व्यवस्था का आसानी से अलग-अलग उपयोग किया जा सकता है, और उसका राजनीतिक तथा सैन्य मकसदों के लिए भी उपयोग किया जा सकता है. लेकिन मछली पकड़ने की अवैध गतिविधियों से लड़ने के घोषित इरादों के अलावा ठोस कदमों की घोषणा नहीं की गई है.
टिकाऊ विकास के लक्ष्यों की जो सूची संयुक्त राष्ट्र ने तैयार की है उसके दूसरे लक्ष्यों में बेहिसाब मछली पकड़ने पर रोक लगाना भी शामिल है. पश्चिमी देशों से मिलने वाली खबरों से संकेत मिलता है कि चीन इन गतिविधियों में सबसे आगे है. लेकिन यह साबित करना मुश्किल है. इस तरह की गतिविधियों का जटिल हिस्सा यह है कि इनका संबंध समुद्र से संबंधित कानून के संयुक्त राष्ट्र समझौते (यूएनसीएलओएस) पर आधारित परस्पर विरोधी दावों से है. इस कानून के तहत बने विशेष आर्थिक ज़ोन (ईईजेड) देशों को इन जोनों में अपनी आर्थिक गतिविधियां चलाने के भौगोलिक अधिकार देते हैं.
यह समझना मुश्किल है कि क्वाड संयुक्त राष्ट्र के सहयोग के बिना अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने में पुलिस वाली भूमिका किस तरह निभा पाएगा. इसके अलावा, अमेरिका ने उपरोक्त कानून का अनुमोदन नहीं किया है लेकिन उसका कहना है कि वह इसे रस्मी अंतरराष्ट्रीय कानून की संहिता के रूप में मान्यता देता है. जेनेवा के एक निजी संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, अवैध रूप से मछली पकड़ने में चीन और रूस सबसे आगे हैं. जापान और दक्षिण कोरिया भी इस सूची में काफी ऊपर हैं. समझौते का उल्लंघन करने वालों में अमेरिका भी काफी आगे है. इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्वाड इस अवैध गतिविधि को रोकने के लिए क्या करता है.
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एक रणनीतिक पेंच
‘यूएनसीएलओएस’ कानून की धारा 73 कहती है कि समुद्रतटीय देश को अपने ‘ईईज़ेड’ में जैविक संसाधनों का पता लगाने, उनका उपयोग, संरक्षण और प्रबंधन करने का पूरा अधिकार है और वे इस समझौते के अनुरूप लागू किए गए कानूनों और नियमों का पालन करवाने के लिए जरूरी उपाय कर सकता है, मसलन बोर्डिंग, निरीक्षण, गिरफ्तारी और मुकदमा. यह धारा यह भी कहती है कि अगर सज़ा के बारे में आपसी समझौता नहीं हुआ है तो वह देश अपनी नौकाओं और चालकों को गिरफ्तारी से मुक्त कराने की कार्रवाई कर सकता है.
समुद्रतटीय देश को अवैध रूप से मछली पकड़ने की सटीक और फौरी सूचना मिले तो वह अपने अधिकारों की रक्षा करने की अपनी क्षमता बढ़ा सकता है. इस कानून को लागू करने में दूसरे देश की सहायता संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी के बिना नहीं ली जा सकती. इसलिए इन अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने की भूमिका निभाने का जो दावा क्वाड कर रहा है वह सवालों के घेरे में ही है. लेकिन मछली पकड़ने की गतिविधियों की आड़ में खुफिया और राजनीतिक गतिविधियों को लेकर क्वाड की चिंता जायज है.
‘ईईज़ेड’ में मछली पकड़ने वाली नौकाएं अगर प्रतिबंधित गतिविधियां चलाती हैं तो समुद्रतटीय देश को उनकी जांच करने के लिए उन पर बोर्डिंग कर सकता है. साउथ चाइना सी और पूर्वी एशिया में चीन के विवादित दावों के मद्देनजर वह ‘ईईज़ेड’ के कारण मिले बोर्डिंग तथा जांच अधिकारों का दावा कर सकता है. इस तरह के विवाद अभी हिंद-प्रशांत के हिंद महासागर क्षेत्र में नहीं हैं. छोटे देशों की वह क्षमता भी नहीं है कि वे समुद्रतटीय देश होने के कारण मिले अपने अधिकारों को लागू कर सकें, खासकर तब जब उल्लंघन करने वाला चीन जैसा देश हो. चीन की मछलीमार नौकाएं दुनियाभर में मौजूद हैं, खासकर उन समुद्रतटीय देशों के क्षेत्र में, जो चुनौती नहीं दे सकते. ऐसे कुछ देशों ने आवाज़ उठाई है लेकिन उनकी कौन सुनता है.
भारत की समुद्र तटीय सीमा करीब 7500 किमी लंबी है और उसके चलते संयुक्त राष्ट्र के कानून के अनुसार उसका ‘ईईज़ेड’ ज़ोन करीब 21.72 लाख वर्ग किमी का है. अपने संसाधनों पर भारत का दावा नौकायन की आज़ादी की मांग के हिसाब से होना चाहिए. भारत की चिंता मछली पकड़ने की अवैध गतिविधियों को लेकर ज्यादा नहीं है. बल्कि उसे अपने ‘ईईज़ेड’ में संसाधन का पूरा दोहन करने की चिंता होनी चाहिए.
क्वाड ने मछली पकड़ने की अवैध गतिविधियों को अपने एजेंडा में शामिल तो किया है मगर उसे पूरा करना मुश्किल है. लेकिन इन गतिविधियों की सूचनाओं के प्रसार के लिए स्थापित प्लेटफॉर्म रणनीतिक मकसद पूरा कर सकते हैं. इसके साथ इन्फ्रास्ट्रक्चर, साइबर सुरक्षा, अहम टेक्नोलॉजी, अन्तरिक्ष, आदि के क्षेत्र में सहयोग की पहल को जोड़ दिया जाए तो वह उल्लेखनीय होगा.
क्वाड देशों की ओर से जो राजनीतिक दबाव बनाया जा रहा है वह उम्मीद जगाता है. भारत ने शुरू में झिझक दिखाने के बाद रणनीतिक दांव लगा दिया है. लेकिन सब कुछ इस पर निर्भर होगा कि वास्तव में क्या कुछ हो पाता है. यह समय ही बताएगा.
(लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) डॉ. प्रकाश मेनन बेंगलुरु स्थित तक्षशिला संस्थान के स्ट्रैटजिक स्टडीज प्रोग्राम के डायरेक्टर हैं. वह राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के सैन्य सलाहकार भी रहे हैं. वह @prakashmenon51 पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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