पाकिस्तानी सेना हमेशा से ही भारत के विरुद्ध अपने संघर्ष मे लगे घावों को छिपाने के असफल प्रयास करती रही है. फिर भी 27 फ़रवरी को कश्मीर के आकाश मे हुई डॉगफाइट में भारतीय वायु सेना के एक मिग- 21 बाइसन द्वारा मार गिराए गये अपने एफ-16 विमान के सन्दर्भ में उसके द्वारा बुना जा रहा मायाजाल अपने आप मे अतुलनीय है. पहले दिन से ही प्रत्यक्षदर्शी गवाहों, सोशल मीडिया में उपलब्ध ढ़ेर सारी तस्वीरों और वीडियो को दबाने के लगातार प्रयास एक महीने बाद भी जारी हैं. आई एस पी आर द्वारा लगातार बदले जा रहे बयानों से पाक सेना की मजाकिया छवि जगजाहिर हो चुकी है.
अब अपनी इस गई हुई साख को बचाने के लिए पाकिस्तान ने एक अमेरिकी पत्रिका के तथाकथित रिपोर्ट का सहारा ढूंढ लिया है. यह वाकई में हैरत अंगेज़ बात है कि फॉरेन पॉलिसी जैसे नामी प्रकाशन ने भी पाकिस्तान की सुर मे सुर मिलाते हुए कहा है कि उसका कोई एफ-16 गायब नही है. यह खबर पाकिस्तान सेना और उसके कुख्यात जनरल अब्दुल गफूर (डी. जी, आई एस पी आर) के लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसी साबित हो रही है . आख़िर यह जनरल गफूर और उनकी टीम का ही कमाल है जिसने तक़रीबन एक महीने से इस पूरे मामले पर लीपापोती करने का हरसंभव प्रयास किया है. उन्होंने अपनी पूरी ताक़त इसी बात मे झोंक रखी है की 27 फ़रवरी को हुई डॉगफाइट मे एफ-16 को एक भारतीय विमान द्वारा मार गिराए जाने की जानकारी की कोई स्वतंत्र जांच पड़ताल ना हो सके.
हालांकि इस सच्चाई को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूतों के टुकड़े हमारी आंखो के सामने ही पड़े हैं पर सबूतों के इस गततर मे से सच्चाई खोज निकालना थोड़ा मुश्किल तो है. फिर भी, संयोगवश, इस सारे मामले मे लीपापोती करने के पाकिस्तानी सरकार के अथक प्रयासों का पहला संकेत हमें जनरल अब्दुल गफूर की ही तरफ से मिलता है. शायद इतनी बड़ी सच्चाई को दबाए रखने का दवाब कहें अथवा असल लड़ाई के पहले कुछ घंटो की अनिश्चितता का प्रभाव, इस मामले की कलाई तो डी. जी, आई एस पी आर द्वारा 27 फ़रवरी को दिए गये उनके पहले बयान से ही खुलती नज़र आ रही थी.
पाकिस्तान के लिए इस सच को छिपाए रखना अब दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा है. पर इस से भी अधिक शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि उसके इस छल और छद्म का असल शिकार उसके ही दो विश्वस्त – गिराए गये एफ-16 का टेल नंबर और उसको उड़ाने वाला जाबांज़ पायलट – हो रहें है जिन्होंने आख़िरी दम तक पाकिस्तान की सेवा की और अब इस तथ्य को छुपाने के लिए आधिकारिक दस्तावेज़ों से उनका नामोनिशान ही मिटाया जा रहा है. इस पूरे छल और छद्म के मायाजाल का मक़सद है पाकिस्तानी वायु सेना के मनोबल को कायम रखना. साथ ही साथ यह एक झूठी ख्याति दर्ज करने और भारत के नये तेवरों का सामना कर सकने की क़ाबलियत का ढोंग धारण करने का भी एक प्रयास दिखता है.
आए हम इस सारे मामले की पड़ताल पहले चरण से शुरू करतें हैं.
कैसे गिराया मिग 21 ने पाकिस्तानी एफ-16 को
यह पूरा मामला 27 फ़रवरी को करीब 10 बजे शुरू हुआ जब भारतीय वायुसेना के मिग 21 बाइसन विमान को उड़ा रहे विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमन ने पाकिस्तानी वायु सेना के एफ-16 विमानों के उस दस्ते पर आक्रमण किया जो भारतीय वायुसेना के एसयू 30-एम के आई विमानों से डॉगफाइट मे उलझा हुआ था. एफ-16 ने एस यू 30-एम के आई पर आई-120 एमरम बेयांड विज़ुअल रेंज वाले मिसाइल से हमला कर दिया था और सभी विमान आक्रमण और बचाव की आपाधापी में थे. इन्हीं महत्वपूर्ण क्षणों मे विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमन ने पूरी सावधानी से, बिना पहचान जाहिर किए एफ-16 के दस्ते तक पहुंच बनाई और उनमें से एक को व्यमपेल आर-73 मिसाइल से मार गिराया. इसी विमान के टुकड़े आज भी कश्मीर के नौशेरा सेक्टर मे स्थित लाम घाटी मे बिखरे पड़े हैं. यह अपने आप मे एक ऐतिहासिक पल था क्योंकि यह पहला अवसर था जब विश्व के किसी भी मिग 16 पायलट ने एफ-16 जैसे आधुनिक विमान को मार गिरने का कारनामा कर दिखाया था.
दुर्भाग्यवश इस पूरी लड़ाई के दौरान कुछ क्षणों के लिए मिग 21 पाकिस्तानी विमानों का पीछा करते हुए नियंत्रण रेखा के पार चला गया था और इस अद्भुत पराक्रम के पश्चात भारतीय वायु सीमा में वापस आ रहा यह विमान एक अन्य एफ-16 द्वारा दागे गये एमराम मिसाइल का शिकार बन गया. पायलट अभिनंदन ने सफलतापूर्वक अपने गिरते हुए विमान से एजेक्ट किया और पैराशूट की सहायता से नियंत्रण रेखा की दूसरी तरफ पाक अधिकृत कश्मीर मे हॉरेन कोटला गांव मे उतरे. यह स्थान नियंत्रण रेखा से तक़रीबन 4 किलोमीटर दूर है. यहां उन पर स्थानीय नागरिकों द्वारा निर्ममता से हमला किया गया और काफ़ी पिटाई के बाद एक नाटकीय अंदाज मे पाकिस्तानी सेना को सौंप दिया गया.
पाकिस्तान सेना की अधिकारियों ने उनके इस दुर्भाग्य का पूरा फ़ायदा उठाने की कोशिश की और तेज़ी से बदलते घटनाक्रम में अपना हाथ ऊंचा रखने की लालसा से कुछ ही मिनट के भीतर जिनीवा कन्वेंशन के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए उनके खून से लथपथ चेहरे की तस्वीरों को पूरी स्थानीय, अंतरराष्ट्रीय और सोशल मीडिया मे प्रसारित करना शुरू कर दिया.
यह साफ-साफ दिख रहा है कि सीधी लड़ाई मे मुंह की खाने के बाद पाकिस्तानी सेना के अफसरों ने आई एस पी आर को स्थिति नियंत्रण मे लाने के लिए आगे कर दिया था.
आई एस पी आर और गोएब्बल्स की रणनीति
इंटर सर्वीसेज़ पब्लिक रिलेशन्स, पाकिस्तानी सेना के मीडिया विंग का नाम है जो सेना की खबरों और जानकारी को आम जनता और पाकिस्तान के मीडिया के मध्य प्रसारित और संचालित करता है. इस साधारण से दिखने वाले नाम के पीछे पाकिस्तानी सेना के एक बड़े मायाजाल का संचालन होता है, जिसके तहत पाकिस्तानी सेना अपने रणनैतिक और सामरिक हितों की पूर्ति के लिए आई एस पी आर का उपयोग दी जाने वाली जानकारियों को तोड़ने मरोड़ने और उन्हें अपने मन माफिक ढालने के लिए करता है.
झूठ और छिपाव इस रणनीति के दो अहम पहलू हैं जो तनाव बढ़ाने और घटाने के काम आते हैं. आई एस पी आर पाकिस्तान के हाइब्रिड वॉर के सिद्धांत का एक अहम पहलू है और सेना द्वारा संचालित जटिल षडयंत्रों, राजनैतिक वर्चस्व की लड़ाई और ग़लत जानकारी फैलने मे महारत रखता है. यह सिर्फ़ पाकिस्तानी सेना के प्रति अपनी वफ़ादारी रखती है और उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि इन सारे कारनामों का देश (पाकिस्तान) पर क्या असर पड़ रहा है.
हालांकि आई एस पी आर किसी भी तथ्य को किसी भी अंदाज से तोड़ने और मरोड़ने के लिए कुख्यात है फिर भी इतिहास गवाह है कि बड़े से बड़े साजिश के रचेता भी अनगिनत अवसरों पर अपने ही बुने गये जाल मे फंस जाते हैं और मुंह की खाते हैं. इस ताज़ा मामले मे आई एस पी आर का कुछ यही हाल हो रहा है.
आई एस पी आर का बुना गया कथानक और उसके झोल
27 फ़रवरी को विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमन के विमान से एजेक्ट होने के साथ ही दो महत्वपूर्ण घटनाएं सामने आईं.
सर्वप्रथम, भारतीय वायुसेना ने समाचार एजेंसी एएनआई के ट्विटर हैंडल के माध्यम से यह जानकारी दी कि उसने लाम वॅली में एक पाकिस्तानी एफ-16 को मार गिराया है. साथ ही उसने यह भी स्वीकार किया कि उनका अपना एक मिग 21 विमान गायब है.
दूसरी तरफ जनरल अब्दुल गफूर, डी. जी.-आई एस पी आर और पाकिस्तानी सेना के अधिकारिक प्रवक्ता- ने अपनी एजेंसी के ट्विटर हैंडल पर यह जानकारी दी कि पाकिस्तानी वायु सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर मे भारतीय वायुसेना के दो विमानों को मार गिराया है. इनमें से एक का पायलट पाकिस्तानी आर्मी की गिरफ़्त में है और दो और पायलट अभी भी उसी क्षेत्र मे कहीं हैं. इससे पहले की इस जानकारी की कोई अधिकारिक पुष्टि हो पाती या भारतीय वायुसेना की तरफ से कोई जानकारी दी जा सके, सोशल मीडिया पर पाकिस्तान से संचालित हैंडल्स पर दो भारतीय विमानों के मार गिराए जाने और उनके पायलट्स के गिरफ्तार होने की चर्चा आग की तरह फैल गयी.
इस महत्वपूर्ण ट्वीट के करीब एक घंटे बाद एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए जनरल अब्दुल गफूर ने कहा कि एक और पायलट को गिरफ्तार कर लिया गया है. ‘हमारे सिपाहियों ने दो भारतीय पायलट्स को हिरासत मे लिया है. उनमे से एक ज़ख्मी है और उसे कंबाइंड मेडिकल हॉस्पिटल मे भरती किया गया है. इंशा-अल्लाह वह जल्द ही ठीक हो जाएगा.’ उन्होने फिर से इस बात को दुहराया कि एक पायलट उनकी हिरासत मे हैं. जनरल गफूर ने सभी को यह भी भरोसा दिलाया कि पाकिस्तानी वायु सेना का कोई भी एफ-16 गायब नहीं है और इसे मार गिराए जाने की खबर ग़लत है क्योंकि पाकिस्तान ने इस कार्यवाही मे कोई भी एफ-16 विमान इस्तेमाल ही नहीं किया है. मजेदार बात यह है कि उसी दिन पाकिस्तान के पी एम इमरान ख़ान ने भी दो भारतीय पायलट्स के हिरासत में होने की पुष्टि की.
इस के कुछ देर बाद आई एस पी आर के मुखिया ने सभी उपस्थित लोगों को बताया कि सैनिक अस्पताल में ले जाए गये पायलट की मौत हो चुकी थी.
उसी दिन शाम 6.29 पर इस मामले में किए गये अपने अंतिम ट्वीट मे जनरल गफूर ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान आर्मी की हिरासत मे सिर्फ़ एक भारतीय पायलट है जिसका नाम कमांडर अभिनंदन वर्थमन है.
जनरल गफूर के पहले और अंतिम ट्वीट के इस तकरीबन आठ घंटे के अंतराल मे सोशल मीडिया पर भारतीय और पाक समर्थकों के बीच एक दूसरे तरह का संघर्ष छिड़ चुका था और दोनो पक्षों से संबंधित लोगों ने अपने-अपने दावों की पुष्टि के लिए अनगिनत मेसेज, तस्वीरें और वीडियो पोस्ट कर डालीं. आई एस पी आर द्वारा अभिनंदन की मुश्किलों को जगजाहिर करने के अभियान ने इस वरचुअल वार में आग में घी का काम किया. उनका यह प्रयास समय बीतने के साथ और भी तीव्र हो गया था क्योंकि उनकी मुख्य चिंता इस बात को लेकर थी कि एफ-16 को मार गिराए जाने और इसके पायलट की मौत की खबरों से पाकिस्तानी जनता का ध्यान कैसे हटाया जा सके.
आख़िर क्यों कर रहा है पाकिस्तान सच छिपाने के इतने प्रयास?
1.सबसे अहम कारण है पाकिस्तानी सेना के मनोबल पर पाने वाला दुष्प्रभाव. खास कर तब जब अत्याधुनिक माने जाने वाले एफ-16 को भारतीय वायुसेना के एक ऐसे विमान – मिग 21 – द्वारा मार गिराया गया हो जिसे ज़्यादातर विशेषज्ञ एफ- 16 से एक पीढ़ी पुराना विमान मानते हैं. वैसे भी पाकिस्तान एक दिन पहले ही भारतीय वायुसेना के मिराज 2000 विमानों द्वारा बेधड़क बालाकोट मे की गयी बमबारी के सदमे मे था. इसी कारण से पाकिस्तानी वायु सेना की मनोदशा किसी भी कीमत पर – चाहे इसके लिए कितना भी झूठ बोलना पड़े – एफ-16 के हादसे की जानकारी को सात तालों मे बंद रखने वाली है.
2. दूसरा कारण यह है की दुर्भाग्य से पाकिस्तानी वायु सेना का एक पायलट – जिसने एफ-16 से एजेक्ट किया था – अपने ही लोगों द्वारा पी.ओ.के. के सब्ज़कोट इलाक़े में पीट-पीट कर मार दिया गया. उसे लोगों ने ग़लती से भारतीय वायुसेना का पायलट समझ लिया था. यही पायलट बाद में सी एम एच में मारा गया. इसकी मौत का कारण चाहे लोगों द्वारा की गयी पिटाई हो या एजेक्सन में होने वाली ग़लती, ये पाकिस्तान के लिए काफ़ी शर्म की बात है. दिन का अंत होते-होते आई एस पी आर को इस हादसे को छुपाने के लिए सिर्फ़ एक पायलट वाली कहानी गढ़नी पड़ी.
3. एक बड़ा कारण यह भी है कि पाकिस्तान ने कभी भी किसी भी लड़ाई मे अपने वास्तविक नुकसान को लेकर हमेशा दोमुहां रवैया अपनाया है. 1999 मे कारगिल युद्ध के दौरान मारे गये 1000 से भी ज़्यादा पाकिस्तानी सैनिकों की मौत की बात उसने कभी भी अधिकारिक तौर पर स्वीकार नही की. बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान हमेशा भारत के विरुद्ध सैनिक अक्षमता का शिकार रहा है. इसलिए सामरिक वर्चस्व के अपने तथाकथित ढोंग को बनाए रखने के लिए लगातार झूठ बोलते रहना उसकी आदत ही नहीं नियती भी बन चुकी है.
4. क्योंकि पाकिस्तान हर हाल मे भारत के विरुद्ध 27 फ़रवरी को किए गये ऑपरेशन के दौरान एफ-16 इस्तेमाल किए जाने के सच को छुपाना चाहता था. ऐसा करना उसके लिए मजबूरी है क्योंकि यह अमेरिका के साथ एफ-16 के एंड यूज़र एग्रीमेंट की खिलाफत है. इस समझौते में वह एआईएम- 120 सी-5 एमराम मिसाइल भी आती जो पाकिस्तान को सिर्फ़ आतंकवादी तत्वों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने के लिए दी गयी थी. मिग 21 के खिलाफ इसका प्रयोग इस समझौते का घोर उल्लंघन है.
5. क्योंकि जनरल अब्दुल गफूर के ताबड़तोड़ ट्वीटों और आकाशीय युद्ध के छह घंटे के अंदर किए गये संवाददाता सम्मेलन मे दी गयी जानकारियां काफ़ी हद तक उन्हें दी गयी जानकारियों के पीछे के सच की ओर संकेत करता है. इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि आज के डिजिटल युग मे पाकिस्तान आर्मी के तगड़े संचार तंत्र द्वारा दो भारतीय युद्धबंदियों के गिरफ्तार किए जाने की सही तस्वीर डी. जी.-आई एस पी आर के समक्ष पेश किए जाने मे चूक हुई होगी. खास कर तब जब उन्हें दो अलग- अलग स्थानों – हॉरेन कोटला और सब्ज़कोट – में दो अलग बटालियनों – मुजाहिद और नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री-द्वारा पकड़ा गया हो.
साफ है कि डी. जी.-आई एस पी आर सारे दिन झूठ बोल रहे थे और उनके दुर्भाग्य से खुद ही अपने बिछाए मिथ्यज़ाल मे फंस गये हैं.
जिस वक़्त तक आई एस पी आर की आला कमान को अपने गड़बड़झाले का एहसास होता तब तक शायद काफ़ी देर हो चुकी थी और सिर्फ़ एक पायलट वाली थियरी उनके काम नही आई. इसी घटनाक्रम ने भारतीय वायुसेना को भी एफ-16 और मिग-21 के गिराए जाने के बाद के हालत को समझने मे मदद की.
एफ-16 को मार गिराए जाने के प्रमाणों का विश्लेषण
आइए अब हम भारतीय वायुसेना द्वारा ओसनित और एफ-16 को मार गिराए जाने के प्रमाणों के सन्दर्भ मे दी गयी आधिकारिक जानकारी का विश्लेषण करते हैं.
अब यह बात पूरी तरह साबित हो चुकी है कि 27 फ़रवरी को पुंछ -नौशेरा सेक्टर मे की गयी पाकिस्तानी आकाशीय घुसपैठ मे एफ-16 विमान शामिल थे. इस तथ्य को रडार के रेकॉर्ड्स मे इंगित इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर, कई तरह के वीडियोज और नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ मौजूद सैनिक टुकड़ियों की आखों देखी गवाही से आसानी से साबित किया जा सकता है.
उस दिन के एयर सिचुएसन (आकाशिय अवस्थिति) के सन्दर्भ मे एलेक्ट्रोमॅग्नेटिक प्रमाण
हालांकि उस दिन ना तो भारतीय एवैक्स घटनास्थल पर मौजूद थे और ना ही उन्होंने दोनों तरफ के विमानों की इस भिड़ंत मे भारतीय वायुसेना के लड़ाकों को किसी तरह का दिशा-निर्देश दिया था फिर भी हमारे फ़ाल्कन एवैक्स विमानों मे लगे हुए शक्तिशाली आएसा रडार ने उस दिन के आकाशीय भिड़ंत से जुड़े हुए कुछ महत्वपूर्ण रडार सिगनेचर्स अंकित किए थे. इन फ़ाल्कन विमानों द्वारा एकट्ठा की गई जानकारी में 10000 फीट से 40000 फीट की उंचाई पर उड़ रहे पाकिस्तानी विमानों के एक बड़े -बेड़े के बारे मे सारी जानकारी दर्ज हैं. विभिन्न प्रकार के पाकिस्तानी विमानों द्वारा उत्सर्जित किए जा रहे एलेक्ट्रॉनिक उत्सर्जनों (रडार, नेविगेशनल एक्विपमेंट्स और अन्य प्रकार के कार्यरत सेंसर) के आधार पर उनकी पहचान की गयी और उन्हें अलग-अलग प्रकारों में बांटा गया.
इस सारी सूचना को एकत्र, सन्शोधित और इनका विश्लेषण करने के कार्य मे फ़ाल्कन विमानों मे लगे हुए शक्तिशाली एल्नित सिस्टम का प्रयोग किया गया. इस सूचना के आधार पर पाकिस्तानी बेड़े मे शामिल जे एफ- 17, एफ-16 और मिराज-3 विमानों की पहचान की गयी. इस बेड़े ने उत्तरी और दक्षिणी जम्मू – कश्मीर के तीन अलग-अलग ठिकानों को नियंत्रण रेखा के पास निशाने पर ले रखा था.
रडार और एल्नित सिगनेचर्स के परस्पर मिलाप से एफ-16 मे लगे ए पी जी – 68 वी9 के रडार सिग्नेचर्स का स्पष्ट संकेत मिलता है. डेटा एनालिसिस से लाम घाटी के उपर 10000 से 15000 फीट की उंचाई में ऐसे 4 बिंदु संकेतक मिले हैं जो एफ-16 की उपस्थिति निश्चित करते हैं. यह भी स्पष्ट होता है कि 27 फ़रवरी के हवाई हमले मे एफ-16 शामिल थे. इस तरह जनरल अब्दुल गफूर अपने के विरोधाभासी में किए गये छल और छद्म का पूर्ण खंडन हो जाता है. कुछ दिन बाद हीं भारतीय वायुसेना द्वारा कश्मीर के नौशेरा सेक्टर मे मिले एमराम मिसाइल, जो कि सिर्फ़ एफ-16 से दागे जा सकते हैं- के टुकड़ों का प्रदर्शन किया जाना इस झूठ के मायाजाल को काटने वाला अंतिम सबूत था.
अब तो पाकिस्तान ने भी लगभग मान ही लिया है कि एफ-16 लड़ाई मे शामिल हुए थे, भारतीय वायुसेना का इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम शुरुआत में इन 4 विमानों द्वारा नियंत्रण रेखा के परे घुसपैठ को पकड़ ही नही पाया था क्योंकि ये भारतीय वायुसेना के ज़मीन पर स्थित रडारों की पकड़ से बचने के लिए काफ़ी नीचे उड़ान भर रहे थे. इन विमानों की उपस्थिति का पता तब चला जब वे उत्तर मे पुंछ की तरफ बढ़े. यहां पर उन्होंने सू-30 एम के आई विमानों को अपना निशाना बनाने की कोशिश की. ठीक इसी वक़्त पुंछ के उत्तर- पश्चिम मे 40000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा 4 एफ-16 विमानों का एक और बेड़ा सू-30 एम के आई विमानों एफ-16 के को दूसरे बेड़े की तरफ धकेलने का प्रयास कर रहा था. एफ-16 के इसी दस्ते ने राजौरी के दक्षिण दिशा से आगे बढ़ते हुए सू-30 एम के आई विमानों पर लगभग 4-5 एमराम मिसाईलों से हमला किया.
भारतीय वायुसेना के अवाक्स ने तुरंत इस दुहरे ख़तरे को भांप लिया. एक ओर जहां ऊंचाई पर उड़ रहा एफ-16 का दस्ता सू-30 एम के आई विमानों को रोके हुए था वहीं दूसरी ओर निचली ऊंचाई वाला दस्ता श्रीनगर – आवंतिपुर की दिशा मे बेधड़क चला आ रहा था. इस दूसरे दस्ते को रोकने के लिए विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमन के नेतृत्व मे मिग 21 विमानों के एक जोड़े को तुरंत निर्देश जारी किए गये. मिग 21 के इस जोड़े से एफ-16 का दस्ता लगभग अनभिज्ञ ही था क्योंकि उनका सारा ध्यान सू-30 एम के आई पर लगा हुआ था. पर इस्लामाबाद के समीप उड़ान भर रहे पाकिस्तानी साब 2000 इरी आई एवैक्स विमान ने नौशेरा के पास इन मिग को देख लिया और तुरंत एफ-16 को इस बारे मे सचेत कर दिया.
भारतीय वायुसेना के ग्राउंड कंट्रोलर्स ने भी एफ-16 को रक्षात्मक भूमिका मे आते देख लिया और मिग्स को इस बारे मे सावधान कर दिया. विंग कमांडर कमांडर अभिनंदन वर्थमन के सहायक पायलट, जो थोड़ा पीछे थे, ने इस चेतावनी पर ध्यान देते हुए वापस मुड़ने का प्रयास किया परंतु अभिनंदन इसे अनसुना करते हुए आक्रमक मुद्रा मे आ चुके थे और उन्होंने एफ-16 के दस्ते की तरफ अपनी उड़ान जारी रखी.
इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम और फ़ाल्कन दोनो ही ने विंग कमांडर कमांडर अभिनंदन वर्थमन द्वारा उड़ाए जा रहे मिग 21 बाइसन को नियंत्रण रेखा के पार जाकर एफ-16 विमानों पर आर-73 मिसाइल से प्रहार करते हुए देखा. इनके रडार सिग्नेचर भी इसकी पुष्टि करते हैं. मिसाइल दागे जाते समय आर / टी पर उनके द्वारा की गयी कॉल को भी एक एवैक्स ने दर्ज किया है. अभिनंदन अपनी तरफ तेज़ी से मुड़ रहे एफ-16 विमान के करीब 8 से 10 किलो मीटर दूर थे.
एफ-16 उनपर सामने से आक्रमण करने की ताक में था और इस कारण उसके और आर-73 मिसाइल के बीच की दूरी तेज़ी से कम होती जा रही थी. आर-73 हवा से हवा मे मार करने वाला एक हीट सीकिंग मिसाइल है जो विमानों द्वारा उत्सर्जित उष्मा और ताप के आधार पर अपना शिकार तय करता है. इस अति – संवेदनशील मिसाइल मे ड्यूयल बैंड क्रियजेनिक कूल्ड सीकर लगा हुआ होता है जिसकी ऑफ बोरसाइट कैपेबिलिटी काफ़ी अधिक होती है. यह सीकर मिसाइल की उड़ान की मध्यरेखा की 40 डिग्री की परिधि मे अपने लक्ष्य को भेदने की क्षमता रखता है. इसमे न्यूनतम 300 मीटर से लेकर अधिकतम 300 किलो मीटर की दूरी तक़ निशाना लगाने की क्षमता होती है.
अभिनंदन ने आर-73 की मारक क्षमता और निशाना लगाने की क्षमता को भांप कर ही मिसाइल दागी थी. उनके पक्ष में एक और अतिरिक्त बात यह थी कि लगभग 15000 फीट की उंचाई पर उड़ रहा एफ-16 विमान 3500 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से उनकी तरफ बढ़ रहा था जिस कारण मिसाइल और उसके निशाने के बीच की दूरी लगातार कम होती जा रही थी. इन हालत मे मिसाइल 20 सेकेंड से भी कम समय मे अपने निशाने को भेद सकती थी. निशाने के संपर्क मे आते हीं आर-73 मे लगा हुआ प्रॉक्सिमिटी फ्यूज़ क्रियाशील हो जाता है और इसके 7.4 किलो ग्राम वजन वाले वॉरहेड से काफ़ी मात्रा मे विस्फोटकों और तीव्र गति से उड़ने वाले छर्रों (श्रॅप्नेल) की बौछार होने लगती है. इस विस्फोट की चपेट के एफ-16 का लगभग पूरा आगे का भाग आ गया होगा और इस कारण पायलट के बुरी तरह ज़ख्मी होने और जलने की संभावना बढ़ जाती है. इस के बाद यह चोटिल विमान तेज़ी से ज़मीन की तरफ गिरने लगता है और पायलट अपने क्षतिग्रस्त विमान से एजेक्ट कर जाता है. ऐसा ही घटनाक्रम 27 फ़रवरी को कई सारे प्रत्यक्षदर्शियों ने अपनी आंखों से देखा था.
एफ-16 विमान को नष्ट किए जाने की यह वारदात फ़ाल्कन विमान की पकड़ मे भी आई थी. 8 सेकेंड्स के भीतर लिए गये दो अलग-अलग तस्वीरों से इसकी पुष्टि होती है. पहली तस्वीर मे एफ-16 को इंगित करता बिंदु संकेतक (ब्लिप) स्थिर और स्पष्ट है, दूसरी तस्वीर से यह पूरी तरह गायब ही हो जाता है.
एफ-16 विमान को नष्ट किए जाने की पुष्टि करने वाला इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर्स की रिकॉर्डिंग पर आधारित यह पहला ठोस सबूत है, पर आख़िरी नही.
इसी तथ्य की पुष्टि थेल्स जी एस- 100 लो लेवल टार्गेटिंग रडार (एल.एल टी. आर.) भी करता है. यह रडार भारतीय वायुसेना के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम का एक अभिन्न अंग है और उस क्षेत्र मे इस तैनात भी किया गया है. जी एस -100 एक निम्न-उच्चता वाला आएसा रडार है और 180 किलो मीटर की दूरी तक़ काफ़ी निचली उंचाई पर उड़ रहे लक्ष्यों के सटीक पकड़ की क्षमता रखता है. सारी घटनाओं के बाद इस रडार के डेटा का विश्लेषण करने पर जी एस 100 मिग 21 को तेज़ी से एफ-16 की ओर बढ़ता दर्शाता है. इस वक़्त दोनो ही विमान 15 से 25 हज़ार फीट के बीच उड़ान भर रहे थे.
मिसाइल लांच किए जाने और एफ-16 को इंगित करने वाले ब्लिप के गायब होने के मध्य के समय और स्थान परिवर्तन को इस रडार ने काफ़ी बारीकी के साथ अंकित किया है और इसमे दर्ज किया डेटा फ़ाल्कन विमान के डेटा से काफ़ी हद तक समानता रखता है. एफ-16 को गिराए जाने का यह दूसरा ठोस प्रमाण है.
इसी एल.एल टी. आर ने एक और एफ-16 विमान का डेटा अंकित किया है. पहले एफ-16 विमान पर मिसाइल दागने के बाद विंग कमांडर अभिनंदन उत्तर पश्चिम की दिशा मे मुड़े और तभी यह दूसरा एफ-16 उनपर झपट पड़ा. साब एयरईएए एवैक्स विमान द्वारा निर्देशित इस विमान ने काफ़ी सटीकता से अपने श्रेणी- 3 आक्रमण को श्रेणी- 4 आक्रमण में बदला और मिग 21 को मार गिराने के लिए एमराम मिसाइल से प्रहार कर दिया. पहले एफ-16 विमान को गिराए जाने के करीब 1 मिनट बाद एल.एल टी. आर ने मिग 21 के ब्लिप को रडार से गायब होते अंकित किया है. इसी तथ्य की पुष्टि विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमन ने पाकिस्तान से अपने प्रत्यावर्तन के बाद की गयी सैन्य पूछ-ताछ में भी की है.
भारतीय सेना द्वारा देखा और अंकित किया गया आंखों देखा घटनाक्रम
नियंत्रण रेखा के दोनो तरफ पहाड़ों के बीच की स्थिति इस तरह की है कि 27 फ़रवरी को हुए हवाई युद्ध को इसके दोनो तरफ बने सैन्य ठिकानों से साफ-साफ देखा जा सकता था. दोनों ही जेट विमान ऐसी उंचाई पर उड़ रहे थे कि वे नंगी आंखों से स्पष्ट देखे जा सकते थे.
मिग 21 द्वारा दागी गयी मिसाइल से चोटिल एफ-16 को अलग-अलग स्थानों पर बनी दो भारतीय चौकियों ने तेज़ी से गिरते हुए देखा और उसके समीप एक पैराशूट भी नीचे जा रहा था. दोनों ही चौकियों ने अपने अनुमान मे यह दर्शाया है कि नष्ट किए गये विमान का मलबा पी.ओ.के. के भींबर सेक्टर मे नियंत्रण रेखा से 7-8 किलोमीटर अंदर सब्ज़कोट के पास गिरा होगा.
इसके करीब 40-50 सेकेंड बाद इन्ही दो चौकियों ने मिग 21 को भी नीचे गिरते देखा और इस बार अनुमान लगाया कि विमान से एजेक्ट करने के बाद उनका पैराशूट पी.ओ.के. के टांदर क्षेत्र की आस-पास लैंड करेगा. ओसनित के आधार पर यह इलाक़ा हरण कोटला, जहां पर विमान के गिरे हुए मलबे की सुस्पष्ट तस्वीरें सोशल मीडिया पर डाली गयीं है, गांव के पास ही है.
इन गिरते हुए विमानों (और पैराशूटों) को देखे जाने का समय और स्थान एल.एल टी. आर. और एवैक्स द्वारा दर्ज किए गये इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर्स के काफ़ी हद तक मिलता जुलता है. यह मिग 21 द्वारा एफ-16 को मार गिराए जाने का एक और अकट्य प्रमाण है.
इसके बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तान की नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के जवानों के बीच 11.45 पर हुए वार्तालाप को भी रेकॉर्ड किया है. इसमे वे स्पष्ट तौर पर दो परिंदो(विमानों) और दो परिन्देवालों (पाइलट्स ) का ज़िक्र कर रहे हैं. इनमें से एक को पकड़ लेने के बात भी इसी रिकॉर्डिंग में हैं.
पहला पैराशूट सब्ज़कोट के आस-पास और दूसरा पैराशूट टांदर के आस-पास गिरता हुआ देखा गया था. एफ-16 और मिग-21 के गिरे हुए अलग-अलग मलबों के बीच इस तरह करीब 6 से 7 किलो मीटर का अंतर रहा होगा.
12.42 पर इंटेरसेप्ट किए गये एक और वार्तालाप मे 7, नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री का एक और जवान खुले आम तौर पर टांदर एरिया मे 658 मुजाहिद बटालियन के सिपाहियों द्वारा एक दूसरे पायलट को पकड़े जाने की बात कर रहा है. यह पायलट निश्चित तौर पर अभिनंदन ही थे क्योंकि सोशल मीडिया पर डाली गयी कई तस्वीरों मे उन्हें मुजाहिद बटालियन के जवानों के साथ देखा जा सकता है. उस वक़्त तक नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के पास पहले से हीं एक पायलट हिरासत मे था. 15.20 बजे दर्ज किए गये एक और इंटेरसेप्ट से यह जानकारी मिलती है कि एक पायलट हिरासत मे है और दूसरे पायलट को सैन्य अस्पताल ले जाया गया है
यह वार्तालाप स्पष्ट तौर पर संकेत देती है कि पाकिस्तान सेना की हिरासत मे उस वक़्त दूसरा पायलट भी था. इसी बात के संकेत हमें डी. जी.-आई एस पी आर द्वारा दी रही जानकारी मे भी मिलती है.
अब सवाल यह है कि अगर इन दो पाइलट्स मे से एक मुजाहिद बटालियन द्वारा पकड़ा गया अभिनंदन था तो नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री बटालियन की हिरासत मे आया दूसरा पायलट कौन था? यह और कोई नहीं बल्कि नष्ट किए गये एफ-16 का पायलट ही हो सकता है.
इसके अलावा शुरुआत मे स्थानीय नागरिकों द्वारा बनाए गये वीडियो मे भी दो पाइलट्स के पकड़े जाने की बात है. भारतीय सेना द्वारा देखा गया घटनाक्रम और दो पैराशूटों के नीचे उतरने का वीडियो साफ तौर पर यह संकेत देता है कि पाकिस्तान का एफ-16 जेट विमान उस दिन मार गिराया गया था.
दो मलबों और तीन पैराशूटों की कहानी – ओसनित डेटा के विश्लेषण का सार
सोशल मीडिया पर उपलब्ध वीडियोज, तस्वीरों और संदेशों के भंडार का अगर विश्लेषण किया जाए तो एक बड़ा ही रोचक ओसनित डेटा उभर कर सामने आता है. हवाई युद्ध और उसके बाद विमानों के नीचे गिरने से संबंधित करीब 10 भिन्न वीडियोज का विश्लेषण करने पर कम से कम दो इस तरह के वीडियो सामने आते हैं जिनमें दो अलग-अलग विमानों को नीचे गिरता देखा जा सकता है. यह उनके तेज़ी से ज़मीन पर गिरने की अलग-अलग प्रक्षेप पथ (ट्रजेक्टरी) और उनके द्वारा आसमान मे छोड़े गये धुएं के विश्लेषण के आधार पर जाना जा सकता है.
स्पष्ट है कि 27 फ़रवरी को पी.ओ.के. के भींबेर सेक्टर में दो अलग-अलग स्थानों पर दो भिन्न विमान गिरे थे.
अभिनंदन के विमान की गिरने की जगह के भू-स्थैनिक (जिओ-स्पेशियल) जानकारों की राय और स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर वह स्थान टांदर क्षेत्र का हरण कोटला गांव ही मालूम पड़ता है. मिग 21 के मलबे के गिरने के स्थान को आधार बनाते हुए अगर हम पिछले घटनाक्रम का विश्लेषण करें तो एफ-16 के गिरने के स्थान का पता लगाया जा सकता है.
आरंभ मे मिग 21 के मलबे की सोशल मीडिया पर दिख रहीं अनगिनत तस्वीरों और वीडियोज के आधार पर कुछ लोगों ने ग़लती से इस मलबे में दिख रहे मिग 21 में लगने वाले आर- 25 इंजन को एफ-16 मे लगने वाले जेनरल इलेक्ट्रिक का इंजन बताना शुरू कर दिया था. पर जल्द ही विमानन विशेषज्ञों द्वारा इस तरह की थियरी का खंडन किए जाने से जल्द ही यह भ्रम दूर हो गया था.
फिर भी यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पाकिस्तानी सेना ने मिग 21 के गिरने के स्थान से उसके मलबे को हटाने और दूसरे जगह पर शिफ्ट करने मे इतनी जल्दिबाजी और तत्परता क्यूं दिखाई? यह कार्य लगभग 15.00 बजे किया गया और ट्विटर पर पोस्ट किए गये एक वीडियो से इस बारे मे कुछ अहम सुराग मिलते हैं.
मिग 21 के क्षतिग्रस्त टुकड़ों को उठाते वक़्त एक जगह पर नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री का एक जवान एक ऐसे टुकड़े के साथ दिखता है जो बहुत ही चिकनी (स्मूथ फिनिश) वाले पैनल जैसा दिखता है. भारतीय वायुसेना ने स्पष्ट तौर पर कहाँ है कि यह मिग 21 का पार्ट नही है.
अगर हम एक बार फिर से रेडियो इंटेरसेप्ट्स और सोशल मीडिया मे उपलब्ध तस्वीरों को याद करें तो मिग 21 के गिरने की जगह पर मुजाहिद बटालियन की जगह नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के जवानों का तैनात होना चौंकाने वाला है. स्पष्ट है कि यह स्थान मिग 21 की क्रैश साइट नहीं है बल्कि दूसरे विमान के गिरने की जगह है. इस से यह संभावना भी बलवती हो जाती है कि स्मूथ फिनिश वाला यह पैनल एफ-16 का कोई पुर्जा को सकता है.
उसी दिन सोशल मीडिया पर पी.ओ.के. के भींबर हल्के की एक और तस्वीर पोस्ट की गयी थी. इस तस्वीर मे साफ तौर पर एक पुर्जा दिख रहा है जो एफ-16 का अंग लगता है. भूरे/ हल्के भूरे रंग का यह को मुफलेज पैनल सिर्फ़ पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे एफ-16 मे ही लगाया जाता है.
ये दो तस्वीरें, जो किसी तरह पाकिस्तानी सेना द्वारा एफ-16 के क्रैश साइट की नाकाबंदी से बाहर निकालने मे कामयाब रहीं, इस बात के पर्याप्त सुराग देते हैं कि आर-73 मिसाइल से टकराने के बाद एफ-16 विमान के परखच्चे उड़ गये थे और इसका मलबा भी उसी इलाक़े मे उसी तरह फैला हुआ है जैसा कि मिग-21 के मामले दे दिखता है.
आइए अब हम सोशल मीडिया पर पोस्ट उन वीडियोज का विश्लेषण करते हैं जो क्रैश साइट के निकट रहने वाले प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा दिए गये बयान पर आधारित हैं. इन में से कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने साक्षात्कार के दौरान बताया कि उन्होंने कम से कम तीन अलग पैराशूटों को हवा मे तैरते हुए देखा है. ये बयान भारतीय जवानों के द्वारा वर्णित उन दृश्यों से मेल खातें हैं जिनमे उन्होंने दोनों विमानों के क्रैश होते समय अलग-अलग पैराशूटों को अलग-अलग स्थानों पर देखा था.
विभिन्न प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर निम्नाकित पहलू सामने आते हैं. आइए हम उनमें से कुछ का विश्लेषण करते हैं :-
1.निश्चित तौर पर उस दिन आकाश मे एक से अधिक पैराशूट दिखाई दिए थे. यह कई सारे वीडियोज मे बड़ी सहजता के साथ देखा जा सकता है. इस से यह भी स्पष्ट होता है कि एक से अधिक पायलटों ने अपने विमान से एजेक्ट किया था.
2.पाक के नागरिकों ने अभिनंदन को पकड़ा और उन्हे पाकिस्तान आर्मी के हवाले किया. इस दौरान अभिनंदन ने लड़ने और भागने की कोशिश भी की. यह तथ्य तो आई एस पी आर और पाकिस्तानी मीडिया द्वारा सोशल साइट्स पर डाले गये कई तरह के वीडियोज और तस्वीरों से पुष्ट होता ही है.
3. साफ तौर पर एक गवाह यह कहता पाया जाता है कि उन्होने भारतीय वायुसेना के ईक सिख पायलट को पकड़ा है. लगता है कि उस प्रत्यक्षदर्शी ने ग़लती से अभिनंदन – जो कि अपने हेल्मेट के नीचे टोपी पहने हुए थे- को सिख पटका पहने हुए समझ लिया था. पटका पहने हुए इस विराट मूंछों वाले व्यक्ति को देख कर किसी को भी उसके सिख होने की ग़लतफहमी हो सकती है.
4.कई प्रत्यक्षदर्शियों का दावा है कि उन्होंने भारतीय रंगो वाला पैराशूट गिरते देखा था. यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण विवरण है जो सोशल मीडिया के कई वीडियोज मे देखा गया है. इसका अगर गहन विश्लेषण करें तो एक चौंका देने वाला सुराग मिलता है. पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 मे एसस एजेक्सन सिस्टम लगा हुआ है जिसके सी- 9 कोड वाले पैराशूट मे 4 कलर होते हैं – सफेद, नारंगी, जंगली हरा तथा बालू जैसा भूरा रंग.कोई भी व्यक्ति अगर इस पैराशूट को थोड़ी दूरी से देखेगा तो इसके रंगो की भारतीय झंडे के रंगो से समानता के कारण इंडियन पैराशूट हीं समझेगा.
ज़्यादा संभावना इसी बात की है कि जिस तरह स्थानीय नागरिकों ने अभिनंदन को पीटने की कोशिश की थी उसी तरह उन्होने एफ-16 से एजेक्टेड पैराशूट को भी इंडियन पैराशूट समझ लिया और इसी ग़लतफहमी मे उसके बुरी तरह ज़ख्मी पायलट को भी और ज़्यादा ज़ख्मी कर दिया होगा. बुरी तरह ज़ख्मी इसी पायलट को पाकिस्तानी आर्मी के सी एम एच अस्पताल ले जाया गया – जैसा कि जेनरल गफ़ूर ने बताया था – और वहां अपने गहरे जख़्मो की वजह से उसने दमतोड़ दिया होगा. पी.ओ.के. के प्रत्यक्षदर्शी ने भी अपने आंखों देखे घटनाक्रम के विवरण मे दूसरे पायलट को अस्पताल ले जाए जाने का ज़िक्र किया है.
जब हम चित्रों और आकारों के बीच तुलनात्मक अध्ययन करने वाले एक सॉफ्टवेयर का उपयोग कर पाकिस्तानी वीडियोज मे दिखाए जा रहे पैराशूट की सी-9 पैराशूट से तुलना करते हैं तो एक रोचक परिणाम सामने आता है. इस से यह साबित हो जाता है कि एफ-16 पैराशूट लगभग उसी समय ज़मीन पर गिरा जब अभिनंदन ने अपने विमान से एजेक्ट किया.
क्यों नही पहचान सके पाकिस्तानी अपने ही पायलट को?
इस के लिए हम एक बार फिर से हवाई युद्ध के विवरण मे वापस जाना पड़ेगा- इसका जवाब उसी पल मे छिपा हुआ है जब अभिनंदन ने एफ-16 की तरफ अपना आर-73 मिसाइल दागा था. अभिनंदन ने वापस आने के बाद भारतीय वायुसेना को दिए गये अपने विवरण मे यह बताया है कि उसने आर-73 मिसाइल तब दागी जब एफ-16 वापस मूड कर उसके सामने आने वाला था और उसका अग्रणी भाग मिग -21 के सामने करने वाला था. इस से उसे पीछे से वार किये जाने के भय से मुक्ति मिलती. इसका अर्थ यह भी है कि आर-73 मिसाइल ओर एफ-16, अपनी 3500 किलो मीटर की तीव्र गति के साथ, एक ही समय में एक दूसरे की तरफ बढ़ रहे थे. इसी कारण जब आर-73 का वारहेड विस्फोट होने के प्रॉक्सिमिटी रेंज मे पहुंचा तब भी पाकिस्तानी पायलट विस्फोट होने की दिशा मे ही बढ़ रहा था.
अब हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि आर-73 मिसाइल कैसे फटा होगा. आर-73 मे एक लंबा रॉड जैसा 7.4 किलोग्राम वजन वाला वॉरहेड लगा होता है. इसमें एक प्रॉक्सिमिटी फ्यूज़ भी लगा होता है जो लक्ष्य से एक पूर्व निर्धारित दूरी (जहां से वह अधिकतम नुकसान पहुंचा सके) पर फटता है. चूंकि यह एक हवा से हवा मे मार करने वाली मिसाइल है अतः इसका निशाना अक्सर कोई विमान ही होता है. जब यह फटता है तो इसमें भरा विस्फोटक इसमें भरे रॉड को तीव्र दवाब के साथ बाहर की तरफ एक फैलते हुए गोले के आकार में धकेलता है.
विस्फोट के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली दवाब की तिरंगे सभी रॉडस पर एक समान दवाब डालती हैं. यह रॉडस कुछ इस तरह लचीली बनाई जाती हैं कि इनके बाहर निकालने के क्रम मे ना तो वो टूटे ना उन्हें जोड़े रखने वाले वेलडिंग पायंट्स को कोई नुकसान पहुंचता है. विस्फोट की गति भी लगभग 10000 मीटर प्रति सेकेंड के आस-पास ही रहती है जिससे की यह रॉडस अपने वेलडिंग जायंट्स पर मूड जाती हैं. एक मध्यवर्ती बिंदु पर यह रिंग एक बेलनाकार दायरे के अंदर आरी-तिरछी (ज़िग- जॅग) आकर धारण कर लेती है. लक्ष्य से टकराने के समय यह रिंग पूर्णतः वृताकर हो जाती है.
जब यह तेज़ी से फैलती हुई रिंग अपने लक्ष्य, किसी विमान, से टकराती है तो परिणामस्वरूप होने वाला आघात छर्रों से भरे वॉरहेड की तुलना मे काफ़ी अधिक होता है. इसके पीछे निहित वैज्ञानिक कारण यह है कि रिंग की कार्य करने की क्षमता 1 और की गति से कम होती है जब की छर्रों की 1 /आर 2 की गति से.
इस वॉरहेड का लक्ष्य बनने वाले विमान का जो हिस्सा इस मिसाइल के सामने आता है उसमे यह सीधी पैठ बना लेता है. इसकी चपेट में ना सिर्फ़ बाहरी परत बल्कि उसके नीचे का ठोस ढांचा, अंदर लगे हुए केबल्स और प्लमबिंग (यदि है तो) सभी आ जाते हैं और वृताकर रॉड उन्हे सीधे काटते हुए अंदर धंस जाती है. इस के कारण विमान का समुचा ढांचा ही ध्वस्त हो जाता है और अगर ऐसा नहीं भी हो पता है फिर भी विमान को उड़ाने के लिए आवश्यक सिस्टम तो पूरी तरह बर्बाद हो ही जाता है. इसका प्रभाव तभी तक रहता है जब तक रिंग टूट नही जाती. इसी कारण मिसाइल की मारक क्षमता को बढ़ने के लिए एक ही वॉरहेड मे रॉड की कई परतों का प्रयोग किया जाता है.
अब वर्तमान मामले मे जब आर-73 का वॉरहेड फटा होगा तो इसमे से 1000 मीटर प्रति सेकेंड की रफ़्तार वाले रिंग्स बाहर की तरफ निकलते हुए फैल गये होंगे. चूंकि एफ-16 की रफ़्तार 3500 किलोमीटर प्रति घंटे की थी तो यह धमाके की तरफ 972 मी/से की रफ़्तार से बढ़ रहा होगा.
अब अगर हम मान लें कि प्रोक्सिमिटी फ्यूज़ 300 मीटर की दूरी पर क्रियाशील हुआ होगा तब भी विस्फोट के प्रभाव मे आने, लपटों के फैलने और तीव्र गति से बाहर की तरफ फैलने वाले छर्रों के निकलने तथा उनके तेज़ी से अपने तरफ बढ़ रहे एफ-16 से टकराने के बीच शायद ही 1 या 2 सेकेंड से अधिक का वक़्त लगा होगा.
इसका अर्थ यह भी है कि एफ-16 का अधिकतर अग्रणी हिस्सा विस्फोट से उत्पन्न शॉकवेव से पहले ही गुजर चुका होगा और इसको हुआ अधिकतर नुकसान इससे निकले छर्रों से हुआ होगा ना कि विस्फोटक के प्रभाव से.
इस से यह स्पष्ट है कि पायलट विस्फोट से उत्पन्न होने वाली उष्मा और लपटों के प्रभाव से तो बच गया होगा पर विस्फोट के विस्फोट उत्पन्न छर्रों के चपेट मे आ गया होगा. इस कारण उसके शरीर का उपरी भाग बुरी तरह चोटिल हो गया होगा. पायलट द्वारा पहने गये फ्लाइयिंग हेल्मेट ने प्राणघाती चोट से तो उसे बचा लिया होगा परंतु चेहरे, गर्दन और छाती के आस-पास के अंग मे गहरी चोट लगी होगी.
इसके विपरीत अभिनंदन की मिग-21 को लगी एमराम मिसाइल उसके दाहिनी तरफ से आई थी. इस कारण मिग 21 का पिछला हिस्सा ही अधिक क्षतिग्रस्त हुआ. सोशल मीडिया पर मलबे की दिखाई जा रहीं तस्वीरों से इसकी पुष्टि भी होती है.
इसी कारण से जब पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 के पायलट ने विमान से एजेक्ट किया होगा तो काफ़ी हद तक संभव है कि उसके बदन के उपरी हिस्से एवं चेहरे के आस-पास गंभीर चोटें होंगी. शायद अपनी चोटों के कारण वह होश भी खो बैठा हो. जब इस पायलट ने पैराशूट के सहारे पी ओ के मे लैंड किया होगा तो वहां के स्थानीय नागरिकों को उसके बदन पर पाकिस्तानी वायुसेना के परंपरागत वेश-भूषा और दूसरे निशानों का कोई चिन्ह नहीं मिला होगा. इनमे से ज़्यादातर तीव्र गति से टकराने वाले छर्रों के कारण बुरी तरह से फट/टूट गये होंगे.
उसकी पोशाक पर ऐसा कोई निशान भी नही बचा होगा जो पाकिस्तानी वायुसेना पायलट के रूप मे उसका नाम अथवा पहचान उजागर कर सके. इसी कारण से स्थानिय लोगों ने भारतीय रंग वाले पैराशूट के आधार पर उसे भारतीय पायलट समझ लिया होगा और नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री रेजीमेंट के जवानों को सौंपने से पहले उन्होने उसकी और पिटाई कर दी हो, जैसा कि वो अभिनंदन के साथ करना चाहते थे.
हालांकि यह विवरण पूरी तरह परिस्थितिजन्य प्रमाणों पर आधारित है फिर भी सभी उपलब्ध सबूत इसी बात की तरफ इशारा कर रहें हैं कि एक पाकिस्तानी पायलट को भीड़ ने पकड़ कर गलतफहमी के कारण पीट दिया और बाद में उसे सैन्य अस्पताल ले जाया गया. आई एस पी आर द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार उसी अस्पताल मे अपने गहरे ज़ख़्मों के कारण उसने दम तोड़ दिया.
आख़िर मार गिराए गये विमान का पायलट था कौन?
दक्षिणी जम्मू और कश्मीर के आसमान मे 27 फ़रवरी को हुए हवाई युद्ध के करीब एक सप्ताह बाद 6 मार्च 2019 को पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने पाकिस्तानी संसद मे उन दो पाइलट्स के नाम उजागर किए जिन्होने मिग- 21 को मार गिरने का काम किया था. उनके नाम हैं :- स्क्वाड्रन लीडर हसन सिद्दीकी और विंग कमांडर नौमन अली ख़ान.
उनके इस बयान को इसके पीछे छिपे संदेश को मद्देनजर बारीकी से देखा जाना चाहिए. संसद के अन्य सदस्यों को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कहा, ‘यहां मैं एक स्पष्टीकरण देना चाहता हूँ. बिलावाल (भुट्टो) ने पहले ही हसन सिद्दीकी के प्रति आभार प्रकट किया है. वे वास्तव में एक कौमी हीरो हैं, पर मैं यह स्पष्ट कर दूं कि उस दिन दो भारतीय विमान गिराए गये थे. दूसरे विमान को विंग कमांडर नौमन अली ख़ान ने मार गिराया है.’ उन्होने संसद से दूसरे पायलट को भी उसका श्रेय देने के लिए आग्रह किया.
प्रश्न यह है कि बिलावाल भुट्टो और दूसरे अन्य सांसदों ने अपेक्षाकृत कम आयु वाले हसन सिद्दीकी की ही तारीफ क्यूँ की? कैसे उसके द्वारा किया गया कारनामा नौमन अली ख़ान से ज़्यादा मायने रखता है?
एक और सवाल यह भी है कि क्यों मार्च के पहले हफ्ते मे पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख ने हरेक एयर बेस का दौरा किया? खास तौर पर उन ठिकानों को तवज्जो क्यूं दी गयी जहां एफ-16 की तैनाती है?
हाल ही मे जारी किए गये एक प्रोपेगंडा वीडियो मे पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख एयर मार्शल मुजाहिद अनवार ख़ान को नौमन अली ख़ान से मुलाकात करते हुए और उनका धन्यवाद करते हुए देखा जा सकता है. पर हवाई युद्ध के बाद से हसन सिद्दीकी का ऐसा कोई वीडियो सामने क्यूं नही आया है? आख़िर क्यों आई एस पी आर के सहयोगी संगठनों द्वारा भारतीय वायुसेना के विमान को मार गिराने के बाद अपने बेस पर वापस लौटे हसन सिद्दीकी का नकली वीडियो सोशल मीडिया पर डाला जा रहा है? इस वीडियो मे दिखने वाला पायलट कहीं से भी हसन सिद्दीकी की तरह नही दिखता.
मेरा अपना संदेह यह है कि हसन सिद्दीकी ही वह पायलट थे जिन्हे विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमन ने 27 फ़रवरी को मार गिराया था. मेरे सिद्धांत की पुष्टि इस बात से होती है कि जहां एक ओर पाकिस्तानी संसद हसन सिद्दीकी के हेरोईज़म की खुल कर तारीफ कर रहा है वही आई एस पी आर उनके बारे मे नकली जानकारी भर प्रदान कर रहा है.
अगर मेरा शक़ ग़लत भी है तो भी यह तथ्य अपनी जगह कायम रहेगा कि एक अनाम एफ-16 पायलट ने पाकिस्तानी वायु सेना और अपने देश के लिए अपना बलिदान कर दिया.
दुर्भाग्यवश पाकिस्तान आर्मी और आई एस पी आर के लिए यह कोई नई बात नही है. जो संस्थाएं अपने हज़ारों सैनिको की मौत को बिना एक बूंद आंसू के छुपा सकती है उसके लिए एक पायलट और एक पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 के टेल नंबर को छिपाना कौन सी बड़ी बात है. पर इस सारी लीपापोती से यह प्रमाण नष्ट नही हो जाता कि एक ज़बांज पायलट और एक आधुनिक विमान, जिन्होने अपने आख़िरी लम्हे तक पाकिस्तान देश की सेवा की उनका अब कोई नामलेवा भी नही है.
और यह खेल अभी भी जारी है…..
एफ-16 को गिराए जाने वाले दिन की शुरुआती उठापटक से उबरने के बाद आई एस पी आर और आई एस आई दोनों इस बात को सुनिश्चित करने मे लग गये हैं कि किस तरह पाकिस्तानी वायुसेना की छवि को फिर से बहाल किया जा सके. उन्होने मिग 21 के मलबे से जुड़े प्रमाणों मे हेर-फेर करने के अथक प्रयास किए हैं. उन्होंने अपने संसाधनों को इस लिए भी झोंक रखा है कि अंतरराष्ट्रीय माध्यमों से वो भारतीय वायुसेना द्वारा एफ-16 को मार गिराए जाने के हर दावे को झूठा बता सकें. यह सारा प्रयास उसी तरह का है जिस तरह का प्रयास वे बालाकोट एयर स्ट्राइक के प्रमाणों को झुठलाने के लिए कर रहें हैं. बालाकोट के मामले मे उन्होने दुनिया भर के भू-स्थानिक विशेषज्ञों को अपने मायाजाल का अंग बना लिया है. एफ- 16 के बारे मे वे ऐसा ही भ्रम विदेशी प्रकाशनों की सहायता से फैलाना चाहते हैं.
हालांकि इस विषय में किसी भी तरह की स्वतंत्र परिचर्चा का स्वागत किया जाना चाहिए फिर भी भारतीय वायुसेना को ऐसे आलेखों के प्रति सावधान रहना चाहिए जो ग़लत जानकारी और फर्जी डेटा पर आधारित हों. फॉरिन पॉलिसी मे प्रकाशित लारा सेलिग्मन का आर्टिकल एक ऐसा ही अधकचरा प्रयास है. मिस सेलिग्मन ने यह दावा किया कि दो अनाम अमेरिकी अधिकारियों ने अमेरिकी सरकार से मिली जानकारी के आधार पर इस बात की पुष्टि की है कि पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा कोई भी एफ-16 गायब नही है. यह जानकारी अमेरिकी सरकार द्वारा 27 फ़रवरी के बाद एफ-16 विमानों की गिनती पर आधारित थी. इस तरह की गिनती अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के साथ किए गये एंड यूज़र एग्रीमेंट का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए की गयी थी.
फॉरेन पॉलिसी मे छापे गये इस आलेख के बाद भारतीय मीडिया मे एक तूफान सा आ गया क्योंकि इसमें दी गयी जानकारी भारतीय वायुसेना के लिए काफ़ी शर्मनाक थी. हालांकि भारतीय वायुसेना ने अपनी तरफ से रडार सिग्नेचर्स और रेडियो इंटरसेप्ट पर आधारित सुसपष्ट सबूतों के साथ इसका खंडन कर दिया है, फिर भी भारतीय सुरक्षा संस्थाओं को इस मिग 21 बनाम एफ-16 के खेल में आई एस पी आर द्वारा रची गयी साजिश साफ-साफ दिखाई दे रही है.
अंत मे यह आलेख एक झूठ का पुलिंदा ही साबित हुआ. अमेरिकी सरकार ने इस बात का खंडन कर दिया की उन्होने एफ-16 विमानों की ऐसी कोई गिनती की भी है. इस तरह के झूठे आलेख को प्रकाशित करने वाली पत्रिका भी शर्मसार है और मिस सेलिग्मन की तेज़ी के साथ गिरती विश्वसनीयता के बारे मे तो जितना भी कहा कम ही है.
पर इस आलेख के प्रकाशित होते ही जनरल गफ़ूर ने आक्रामक रुख़ अपना लिया था और इसे आई एस पी आर एवं पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा एफ-16 के बारे मे दिए गये बयान की पुष्टि माना था. यह बिल्कुल साफ है कि इस तरह का कथानक ना सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय मीडिया और वैश्विक राजनैतिक संस्थानों को बरगलाने के लिए किया जा रहा है, अपितु इसके निशाने पर पाकिस्तान के अपने घरेलू संबुद्ध वर्ग का वह हिस्सा भी है जिसके अंदर 27 फ़रवरी को हुए हवाई युद्ध की सच्चाई जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही है.
आई एस पी आर की मुश्किलें फिर भी कम होने का नाम नहीं ले रहीं हैं, हाल ही मे डी जी, आई एस पी आर को यह तथ्य स्वीकार करने पर बाध्य होना पड़ा कि 27 फ़रवरी को पाकिस्तानी वायुसेना ने एफ-16 का इस्तेमाल किया था. इसके साथ ही उनके अनेक झूठों मे से एक का पर्दाफाश हो गया.
अपनी लाज बचाने के अंतिम प्रयास के तहत जेनरल गफ़ूर ने एक और ट्वीट मे यह जानकारी दी कि मिग 21 से कोई मिसाइल दागी ही नही गयी थी और इसके सारे मिसाइल मलबे वाली जगह से बरामद कर लिए गये हैं.
उनके द्वारा जारी की गयी तस्वीर को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि सबसे दाहिनी ओर वाली आर-73 मिसाइल दागी गयी थी और इस तस्वीर मे पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 को मार मिसाइल के अवशेष ही दिख रहें हैं.
लीजिए, जनरल साहेब, आपका एक और झूठ पकड़ा गया. इस बारे में किया गया एक अत्यंत ही सुविचारित ट्वीट आई एस पी आर द्वारा भारत के खिलाफ चलाए जा रहे कुप्रचार वाले अभियान के बारे मे सटीक टिप्पणी करता है.
झूठ का यह महल आई एस पी आर को सर छिपाने के लिए जगह नही प्रदान कर सकता. एक दिन यह भरभराकर उसी के उपर गिरेगा और बाकी लोग हँसेंगे.अब इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमन ने मिग 21 विमान उड़ाते हुए एक पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 विमान को मार गिराया था.
अब गेंद पाकिस्तान के पाले में है कि वो यह साबित करे कि उसने कोई विमान नहीं खोया है.
जैसा कि जाने-माने विमानन विशेजन जगन पिल्लरी सेती ने लिखा है ‘पाकिस्तान ने एक बार भारतीय दावे को झुठलाने के लिए अपने सभी मिराज विमानों की परेड करवाई थी, ऐसा ही कुछ वह एफ-16 के मामले मे क्यूं नहीं कर रहा.’
पर हम कर भी क्या सकते हैं? बजाए इसके कि हम इस विषय मे आई एस पी आर की अगली चाल (अगले झूठ) का इंतजार करें.
(लेखक पूर्व फाइटर पायलट है और उसे मिराज़ 2000 और मिग 21 एयरक्राफ्ट उड़ाने का व्यापक अनुभव है. वे 1991 में हुए भारत पाकिस्तान के कारगिल युद्ध के हिस्सा रहे हैं. वह आर्मी के विषयों पर लिखते रहे हैं. उनका एयर वार इन सीरिया पर लिखे लेख को 2017 में पेरिस एयरशो में सबसे अच्छे सैन्य लेख का पुरस्कार भी मिला है. )
(यह लेख Medium में प्रकाशित किया जा चुका है, मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)