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Thursday, 14 November, 2024
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राजनीतिक स्टार्ट-अप के लिए ममता जैसा साहस, NTR जैसी करिश्माई शख्सियत और केजरीवाल जैसी स्मार्ट सोच चाहिए

आप और टीएमसी जैसे स्टार्ट-अप लोकतांत्रिक मुकाबले को और धारदार बनाते हैं. उनमें लड़ने की भावना और विरोध करने ऊर्जा बहुतायत में है.

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राजनीति में एक सफल स्टार्ट-अप बनाना निश्चित रूप से सफल बिजनेस खड़ा करने की तुलना में कहीं अधिक कठिन है. इसमें काफी एंट्री बैरियर हैं यानि कि इसे स्टार्ट करना काफी मुश्किल है. इस फील्ड में लंबे समय से कब्ज़ा जमाए बैठी हुई मज़बूत पार्टियां उनके एरिया में घुसने का साहस करने वालों को खत्म करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखतीं. मीडिया भी इन नए छोटे खिलाड़ियों का मज़ाक उड़ाता रहता है. इसीलिए, 2011 के इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन के आधार पर 2012 में बनी आम आदमी पार्टी के लिए, दिल्ली और पंजाब में सरकारें बनाना और केवल एक दशक में एक राष्ट्रीय पार्टी बनना, छोटी बात नहीं है.

यही कारण है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जेल जाने, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया के भी एक साल जेल में रहने और पार्टी के खुद को दोराहे पर खड़ा पाए जाने के बाद भी आम आदमी पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए अभी भी बेहद परेशान करने वाली बनी हुई है.

भाजपा के लिए कांग्रेस से निपटना आसान है. 2019 के लोकसभा चुनावों में जिन 180 से अधिक सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधे आमने-सामने की लड़ाई थी, उस पर कांग्रेस ने केवल 15 सीटें जीतीं. इस प्रकार कांग्रेस बनाम भाजपा कोई मुकाबला नहीं है. लेकिन बीजेपी बनाम आप या बीजेपी बनाम तृणमूल कांग्रेस? इतना आसान नहीं. AAP ने 2015 और 2020 में हुए विधानसभा चुनावों में दिल्ली में एक बार नहीं बल्कि दो बार भाजपा का सफाया कर दिया है. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में टीएमसी ने भाजपा के तीखे हमले का सामना किया लेकिन 2021 में, दिल्ली स्थित राजनीतिक एक्सपर्ट्स की टिप्पणियों और एग्ज़िट पोल में बताए गए आंकड़ों विपरीत, मोदी की सेना को पछाड़ दिया.

AAP बीजेपी के लिए खतरा क्यों है?

आज जहां आम आदमी पार्टी अपने मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी का विरोध कर रही है, वहीं भाजपा ने भी विरोध करके इस विरोध का जवाब देने की कोशिश की. भाजपा सड़कों पर है और केजरीवाल के इस्तीफे की मांग कर रही है और जेल से प्रशासनिक निर्देश जारी करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अदालत में यहां तक तर्क दिया कि तथाकथित “आबकारी घोटाले” में न केवल केजरीवाल “किंगपिन” हैं, बल्कि पूरी AAP दोषी है. ईडी के वकील अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया: “आम आदमी पार्टी एक लाभार्थी है जो एक कंपनी के रूप में है. कंपनी के संचालन के लिए जिम्मेदार हर व्यक्ति, जिम्मेदार है.”

ज़ाहिर है, भाजपा तब तक आराम नहीं करेगी जब तक केजरीवाल को पूरी तरह से खामोश नहीं कर दिया जाता और उनकी उपस्थिति को चुनाव प्रचार और आम तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र से पूरी तरह खत्म नहीं कर दिया जाता. भाजपा पार्टी की भ्रष्टाचार विरोधी मूल पहचान पर प्रहार करके आम आदमी पार्टी को हमेशा के लिए खत्म करना चाहती है. सवाल उठता है: शक्तिशाली भाजपा के लिए आम आदमी पार्टी इतना बड़ा और घातक खतरा क्यों है?

कई कारण: पहला, जिस शहरी मध्यम वर्ग ने मोदी को सत्ता तक पहुंचाया, वह शुरू में अन्ना हजारे आंदोलन के दौरान केजरीवाल की ओर आकर्षित हुआ था. मोदी के मध्यवर्गीय समर्थक कभी केजरीवाल के मूल वोटर थे. वास्तव में, केजरीवाल का उदय मोदी के उद्भव के साथ हुआ और एक तरह से, केजरीवाल ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी मंच तैयार किया, जिस पर मोदी ने तुरंत कब्ज़ा कर लिया. हालांकि, मोदी के विपरीत, केजरीवाल के पास अपने आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर के कैंपेन में बदलने के लिए राष्ट्रव्यापी संघ परिवार जैसे किसी संगठन का अभाव था. लेकिन AAP और केजरीवाल भाजपा के शहरी मध्यम वर्ग के वोट बैंक पर कब्जा करने के लिए काफी उपयुक्त है.


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दूसरा, AAP एक क्षेत्र-विहीन, धर्म-विहीन, वंश-विहीन, जाति-विहीन शहर-आधारित पार्टी है, जिसका नेतृत्व आईआईटी से पढ़े अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं. इसमें कांग्रेस के कथित पुरानी दुनिया के जन्म-आधारित विशेषाधिकारों और भाजपा की विभाजनकारी नफरत-आधारित राजनीति से निराश युवाओं के विशाल वर्ग को आकर्षित करने की क्षमता है. केजरीवाल खुद की भी उम्र केवल 55 वर्ष है और 42 वर्ष की आतिशी सिंह व केवल 35 वर्ष के राघव चड्ढा जैसे अन्य लोग उनसे भी छोटे हैं. कांग्रेस के विपरीत युवाओं में आम आदमी के प्रति आकर्षण इसे भविष्य में भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बना सकता है.

तीसरा, आप ने किसी भी क्षेत्र में जड़ें नहीं जमा रखी हैं, जो इसकी ताकत और कमजोरी दोनों है. बंगाल में, भाजपा का टीएमसी जैसी स्थानीय रूप से जड़ें जमाने वाली पार्टी से कोई मुकाबला नहीं है, जो भाषा, संस्कृति, धर्म और स्थानीय कनेक्टिविटी में ‘बोहिरागोटो’ (बाहरी लोगों) से आगे निकल सकती है. आप के पास कोई क्षेत्रीय गढ़ नहीं है और शायद केजरीवाल ने गुजरात में सीटों पर चुनाव लड़ने या वाराणसी में मोदी को चुनौती देने में खुद को आगे बढ़ाया. लेकिन अगर आप लगातार लेकिन निश्चित रूप से एक संगठन का निर्माण कर सकती है, सत्ता का विकेंद्रीकरण कर सकती है और एक व्यापक दूसरी पंक्ति बना सकती है, तो अपनी स्वच्छ राजनीति, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दे के साथ पार्टी में अखिल भारतीय अपील की काफी संभावनाएं हैं.

चौथा, केजरीवाल के स्कूलों और हेल्थकेयर डिलीवरी के एजेंडे ने एक नया राजनीतिक नैरेटिव तैयार किया है जिसके जरिे भाजपा की पिच पर नहीं खेला जा सकता है. यह कोई कांग्रेस नहीं है जो बीजेपी से आगे निकलने की कोशिश कर रही है. AAP केवल भाजपा के धार्मिक आधार को नजरअंदाज या उसका समर्थन करती है. सरकारी स्कूल और मोहल्ला क्लिनिक मॉडल एक आउट-ऑफ़-द-बॉक्स पिच है जिसका भाजपा के एजेंडा सेटिंग से कोई लेना-देना नहीं है. टीएमसी ने भी अपने महिला सशक्तीकरण मॉडल के साथ इसे सफलतापूर्वक मैनेज किया है, लोकसभा में अपनी 40 प्रतिशत से अधिक महिला सांसदों को प्रतिनिधित्व दिया है और कई कल्याणकारी योजनाएं पेश की हैं. इस तरह की पहल से भाजपा की हवा निकल जाती है क्योंकि वे राष्ट्रवाद और धर्म पर भाजपा के राजनीतिक नैरेटिव को दरकिनार कर देते हैं.

AAP का प्रयोग ख़त्म नहीं हुआ है

स्टार्ट-अप के लिए दृढ़ता और धैर्य की आवश्यकता होती है. भारत में सबसे शानदार राजनीतिक शुरुआत तेलुगु देशम पार्टी ने की थी, जिसका गठन 1982 में अभिनेता से नेता बने एनटी रामाराव ने किया था. उनके करिश्मे की बदौलत पार्टी ने एक साल से भी कम समय में 1983 में बड़ी चुनावी जीत हासिल की. हालांकि, टीडीपी समय के साथ खुद को फिर से स्थापित करने में असमर्थ रही है. अहोम गण परिषद 1980 के दशक में छात्र नेताओं द्वारा गठित एक और स्टार्ट-अप था, जिसने असम में अप्रवासी-विरोधी विरोध प्रदर्शन शुरू किया था, लेकिन यह भी तेजी से मूल धारा से गायब हो गया. अब तक का सबसे सफल स्टार्ट-अप टीएमसी है. ममता बनर्जी ने 1991-2011 के बीच दो दशकों तक लगातार वाम मोर्चा से लड़ाई लड़ी. इसके बाद उन्होंने 2011 में अपने दम पर चुनाव जीता और तब से सत्ता में लगातार बनी हुई हैं.

यह सोचना ग़लत होगा कि केजरीवाल के जेल जाने का मतलब है कि आम आदमी पार्टी का प्रयोग ख़त्म हो गया है. घिसी-पिटी भाजपा-कांग्रेस की जोड़ी से विकल्प की चाहत हमेशा बनी रहेगी. नए युवा और बुद्धिमान मतदाता तीसरी ताकत के प्रति आकर्षित हो सकते हैं और उसके प्रति सहानुभूति का भाव हो सकता है, विशेषकर नए सत्ता-विरोधी युवा नेताओं के प्रति, जिनके बारे में माना जाता है कि केंद्र द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जाता है.

स्टार्ट-अप के लिए ममता बनर्जी जैसा साहस, एनटीआर जैसा करिश्माई व्यक्तित्व और केजरीवाल जैसी स्मार्ट सोच की आवश्यकता होती है. राजनीतिक स्टार्ट-अप उसी-पुरानी व्यवस्था में बहुत आवश्यक व्यवधान लाते हैं और मौजूदा यथास्थिति को चुनौती देते हैं. राजनीतिक स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इसका समर्थन भी किया जाना चाहिए. यही कारण है कि भारत संभवतः विपक्ष-मुक्त भारत नहीं बन पाएगा (अभी भी नहीं) जिसका सपना भाजपा देखती है.

उनसे प्यार करें या नफरत करें, आप और टीएमसी जैसे राजनीतिक स्टार्ट-अप लोकतांत्रिक मुकाबले को और धारदार बनाते हैं. उनमें लड़ने की भावना और विरोध करने की ऊर्जा काफी है. इन जुझारू खिलाड़ियों की मौत की रिपोर्ट्स बेहद बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

(लेखिका अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की सांसद (राज्यसभा) हैं. उनका एक्स हैंडल @sagarikaghose है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)


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