प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को, एलएसी की स्थिति पर हुई सर्वदलीय बैठक में दावा किया कि भारत की सीमाओं पर कोई अतिक्रमण नहीं हुआ, और भारत की किसी भी चौकी पर, चीन का कब्जा नहीं हुआ है. उनका ये मुखर बयान भारत के रक्षा हल्क़ों में कोलाहल के बीच आया है, जिसके मुताबिक़ चीन ने पैंगॉन्ग झील के, फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच के इलाके पर कब्जा कर लिया है, जिसमें हाल तक दोनों देशों की ओर से गश्त की जाती थी.
लेकिन दिल्ली में मीटिंग के कुछ समय बाद ही चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ज़ाओ लिजियान ने जोर देकर कहा कि गलवान घाटी एलएसी के चीन की तरफ स्थित है, और ये भारत था जिसने अतिक्रमण करके यथास्थिति को तोड़ा था.
भारत-चीन के बीच टकराव को सिर्फ एक कूटनीतिक झड़प के रूप में देखना अदूरदर्शिता ही होगी. कुछ ही समय के बाद है जब ये टकराव घरेलू स्तर पर, ऊंट की पीठ पर आखिरी तिनका साबित होगा. यहां पर ऊंट से मुराद नरेंद्र मोदी सरकार है.
संकट से पीछा छुड़ाना
शुक्रवार को हुई बैठक में सभी विपक्षी दलों के मुखिया, एक मत नज़र आए. उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि वो सरकार और सशस्त्र बलों के साथ खड़े हैं. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, मोदी सरकार की सख्त आलोचक बनी रहीं.
उनकी मांग थी कि सरकार देश को आश्वासन दे, कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी मूल पॉजिशन में वापस आ जाएगा. उन्होंने राष्ट्र को संबोधित करने में सुस्ती दिखाने पर, मोदी सरकार की आलोचना की और आरोप लगाया कि सरकार देश को ‘संकट के अहम पहलुओं पर अभी भी अंधेरे में’ रख रही है. गलवान घाटी पर चीनी विदेश मंत्रालय के दावे के बाद, उनकी आलोचना सही साबित हो जाती है.
ऐसा लगता है कि मोदी सरकार इस हालिया कूटनीतिक संकट से पीछा छुड़ाना चाह रही है, जो ना सिर्फ चीन, बल्कि नेपाल के साथ भी खड़ा हो गया है. भारत के पड़ोसी अचानक सीमाओं की रेखाएं फिर से खींचने लगे हैं और उस ज़मीन पर दावा कर रहे हैं, जो भारत का स्वायत्त हिस्सा रही थी. देश के अंदर, चीन और नेपाल दोनों से निपटने में मोदी सरकार ग़ैर-ज़िम्मेदार प्रतीत होने लगी है.
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एक वर्ष में अचानक पूर्ण बदलाव
एलएसी पर पिछले 53 वर्षों में अब तक कि सबसे खराब झड़पें देखी जा रही हैं और मोदी सरकार को 20 सैनिकों के मौत के नतीजे दिखने शुरू हो गए हैं जिन्होंने भारत की सम्प्रभुता की रक्षा में अपने प्राणों की बलि चढ़ा दी.
और अब एक आम धारणा बन रही है कि भारत इस बारे में कुछ करता हुआ नहीं दिख रहा है ख़ासकर जब आप देखें, कि क़रीब एक साल पहले मोदी ने क्या किया था.
2019 में, भारत ने मोदी सरकार का ‘56 इंच का सीना’ देखा, जब प्रधानमंत्री ने अपनी बात पर अमल करते हुए पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में घुसकर पुलवामा में आतंकी हमले में मारे गए 40 जवानों की मौत का बदला लिया.
पाकिस्तान में पकड़े जाने के बाद विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की भारत वापसी, एक ऐसा भावुक क्षण था, जो हर भारतवासी के दिमाग में बस गया और लोकसभा चुनावों में मोदी को, एक ज़बर्दस्त जीत के साथ सत्ता में वापस ले आया. मोदी को ऐसा इंसान बताया गया जिसका मुक्का लोहे का था.
लेकिन 2020 पिछले साल से बिल्कुल अलग लग रहा है, जब चीन एकतरफ़ा तौर पर एलएसी की यथास्थिति को बदल रहा है.
ये सही है कि 6 दशक पुराने संवेदनशील सीमा विवाद को बढ़ाना व्यावहारिक नहीं था लेकिन ये देखते हुए कि कोरोनावायरस संकट से खराब ढंग से निपटने के लिए चीन आलोचनाओं का शिकार हो रहा था, भारत एक कड़ा रुख अपनाते हुए चीन से स्पष्ट रूप से कह सकता था कि वो गलवान घाटी में अतिक्रमण ना करे. उसकी बजाय मोदी सरकार ने ये कहकर कि चीन ने हमारी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं किया है, ऐसा कर दिया जैसे भारत की ही गलती हो.
चीनी सरकार ने साफतौर से इस बयान का फायदा उठाते हुए अपने सरकारी बयानों में भारतीय सेना पर उनके इलाके में घुसने का आरोप लगा दिया है.
सर्वदलीय बैठक एक औपचारिकता
मोदी की सर्वदलीय बैठक के बाद चीन के बयानों से लगता है कि ये सारी कवायद महज विपक्ष को खामोश करने के लिए की गई थी. बावजूद इसके आलोचनात्मक आवाज़ें बढ़ती हुई ही लग रही हैं, ख़ासकर वो, जो दिग्गजों की ओर से उठ रही हैं जिन्हें लगता है कि भारत की सम्प्रभुता की रक्षा कर रहे 20 जवानों की जानें बेकार चली गई हैं क्योंकि मोदी सरकार के मुलायम रुख के कारण चीनी अब गलवान घाटी पर अपना दावा ठोक रहे हैं.
I served my country ?? thru #IndianArmy over 4 decades. For what? Just 1 goal. To defend territorial integrity, borders & sovereignty of #India. I'm shattered 2 see India quietly accepting #China changing status of #LAC in #EasternLadakh. What a sad day 4 every soldier like me ☹️
— Lt Gen Rameshwar Roy (@LtGen_Roy) June 19, 2020
दरअसल अतीत में मोदी ने चीन के साथ कांग्रेस की कूटनीतिक नाकामियों का खूब मुद्दा बनाया था और उससे लगातार कहते रहे थे कि अपनी ‘लाल आंख’ दिखाए और चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए.
2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के आईटी सेल ने उनके इस भाषण का वीडियो खूब वायरल किया था. आज ये वीडियो वापस आकर उसी काम को ना करने के लिए मोदी सरकार का पीछा कर रहा है.
मोदी के पास विपक्ष का समर्थन सिवाय कांग्रेस के
विपक्ष में बैठी किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए सीमा सुरक्षा, बाहरी खतरे और विदेश नीति जैसे मुद्दों को लेकर सरकार पर हमला करना जरा मुश्किल काम होता है. कांग्रेस ये जोखिम उठाती नज़र आ रही है. हालांकि समय ही बताएगा कि इससे पार्टी को क्या फायदा होता है.
विपक्षी दलों में अकेली कांग्रेस है जो कूटनीतिक मोर्चे पर नाकामी के लिए पीएम या सरकार की आलोचना से पीछे हटती नहीं दिख रही है. पार्टी ये दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही कि मोदी सरकार को भारत के सैनिकों की बिल्कुल चिंता नहीं है.
निहत्थे सैनिकों को सीमा पर भेजने के लिए राहुल गांधी द्वारा सरकार पर सवाल खड़े करने के बाद सोशल मीडिया पर #बीजेपीबिट्रेज़जवान्स खूब ट्रेंड किया.
हालांकि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दावा किया कि सैनिकों के पास हथियार थे लेकिन चीन के साथ पुराने समझौतों की वजह से उन्होंने फायर नहीं किए. लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) एचएस पनाग ने स्पष्ट किया कि अगर सैनिकों की जान या इलाके पर ख़तरा हो तो कमांडर हथियार चला सकते हैं.
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Article 6 of 1996 Agreement! These agreements apply to border management snd not while dealing with a tactical military situation. Lastly when lives of soldiers or security of post/territory threatened, Cdr on the spot can use all weapons at his disposal including Artillery. pic.twitter.com/6J4KD33nhg
— Lt Gen H S Panag(R) (@rwac48) June 18, 2020
सर्वदलीय बैठक ने मोदी सरकार के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है ख़ासकर जब वो इसका बिल्कुल उलट करना चाहती थी. मई के पहले हफ्ते में जब चीनी अतिक्रमण की पहली ख़बर आई तब से देश सच्चाई जानना चाह रहा है. लेकिन 6 हफ्ते से अधिक समय, और 20 मौतों के बाद ही सरकार एक सर्वदलीय बैठक आयोजित कर पाई और उसमें भी जवाब से ज़्यादा सवाल बाकी रह गए.
(लेखक एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)
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Our prime minister is on right path & he will conquer the battle field of China.