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Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतIPL और टी-20 क्रांति के कारण आए यादव, पटेल, गिल, हुडा, मावी, चहल जैसे खिलाड़ी

IPL और टी-20 क्रांति के कारण आए यादव, पटेल, गिल, हुडा, मावी, चहल जैसे खिलाड़ी

भारत में किसान या पशु पालने वाले परिवारों जैसे जाट पाटीदार, अहीर, गुर्जर और अन्य ओबीसी परिवारों के ज्यादा से ज्यादा क्रिकेटर्स दिखने लगे हैं.

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भारत में क्रिकेट अंग्रेज लेकर आए और इसके शुरुआती खिलाड़ी अंग्रेज साहब, राजा, नवाब, जमींदार और अमीर बिजनेसमैन, मुख्य रूप से पारसी लोग थे. आजादी के बाद वक्त बदला. अंग्रेज और राजा-नवाब रहे नहीं. इस दौर में क्रिकेट का चेहरा बदला और दूसरे तरह के इलीट और साहब लोग इसमें आए. ये मुख्य रूप से शहरी, उच्च वर्गीय और उच्चवर्णीय लोग थे, जिनके पास कई दिन तक चलने वाले क्रिकेट मैच खेलने की फुर्सत थी और जिमखाना जैसे क्लबों के मैदान थे. टीम सेलेक्टर्स की नजर भी महानगरों के इन मैदानों से आगे नहीं जाती थी.

लेकिन ये दौर खत्म हो गया है. क्रिकेट आम लोगों का खेल बन चुका है और इसके साथ ही भारतीय टीम भी बदल गई है. सूर्य कुमार यादव इस दौर का सबसे बड़ा सितारा है. मेरा तर्क है इस बदलाव में सबसे बड़ी भूमिका आईपीएल और टी-20 क्रिकेट की है, जिसने न सिर्फ खेल को बदल दिया है, बल्कि कॉम्पटीशन बढ़ने के कारण, सेलेक्टर्स के लिए चुनने के मौके बढ़ा दिए हैं.

टेस्ट क्रिकेट के उबाऊ और थकाऊ फॉर्मेट के कारण एक समय क्रिकेट के दर्शक घट रहे थे. वन डे क्रिकेट और फिर टी-20 के कारण दर्शक न सिर्फ मैदान में लौटे हैं, बल्कि मोबाइल और टीवी पर भी लोग खूब क्रिकेट देख रहे हैं. पिछले साल आईपीएल के दौरान, मुंबई इंडियंस और चेन्नई सुपर किंग्स के बीच हुए मैच को 83 लाख लोगों ने ओटीटी पर देखा. आईपीएल मैच की टीवी व्यूअरशिप एक बार तो 20 करोड़ तक हो चुकी है. दर्शकों की भारी संख्या ने क्रिकेट को बदल दिया है. सुस्त खिलाड़ियों के लिए टिकना अब मुश्किल हो रहा है.

अभी की भारत-श्रीलंका सीरीज में यादव, पटेल, गिल, हुडा, मावी, चहल और मलिक जैसे खिलाड़ी हैं. ऐसे सरनेम कुछ दशक पहले तक भारत की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में सुनाई नहीं देते थे. बड़े घरों से आने वाले खिलाड़ियों से भरी रहने वाली भारतीय टीम में इस समय रईस परिवारों का कोई खिलाड़ी नहीं है. कैप्टन पांड्या भी साधारण परिवार से आते हैं.


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क्रिकेट के सामंत और श्रीमंत

क्रिकेट के खास से आम बनने से खेल की लोकप्रियता बढ़ी है और इसके साथ ही विज्ञापन और बिजनेस भी बड़ा हुआ है. वरना एक समय था जब क्रिकेट में राजाओं और नवाबों की बहार थी. वही खेलते थे और कम लोग देखते थे. वह दौर नवाब मंसूर अली खान पटौदी, के.एस. रंजीतसिंहजी, दलीप सिंहजी, महाराजा ऑफ विजयनगरम विज्जी, पोरबंदर के महाराजा नटवरसिंहजी, पटियाला के महाराज भूपिंदर सिंह, बांसवाड़ा के राजा हनुमंत सिंह, यजुवेंद्र सिंह जैसे लोगों का था. 1932 में भारतीय टीम जब पहली बार टेस्ट सीरीज खेलने इंग्लैंड गई तो ये नियम तय हुआ कि राज परिवारों का ही कोई आदमी कैप्टन होगा. इसलिए टीम की कप्तानी पोरबंदर के राजा को सौंपी गई, हालांकि उनको खेलना कम ही आता था.

वह टेस्ट क्रिकेट का दौर था. न ज्यादा दमखम की जरूरत थी, न भाग दौड़ होती थी. जीतने का कोई दबाव भी सेलेक्टर्स पर नहीं होता था. और फिर अगर कोई बड़े राजा साहब खेलना चाहते थे तो मना कौन करता!

आजादी के बाद हालात कुछ बेहतर हुए. राजाओं और नवाबों की दखल कम हुई. इसी दौर में क्रिकेट में शहरी और खासकर ब्राह्मण जाति के खिलाड़ियों का असर बढ़ा. ऐसा खास करके बैटिंग में हुआ. लेखक एस. आनंद ने पुराने दौर की भारतीय टीम की सामाजिक संरचना का अध्ययन किया है. उन्होंने लिखा है कि – “1960 से लेकर 1990 के दशक तक भारतीय टेस्ट टीम में औसत 6 ब्राह्मण खिलाड़ी होते थे. ये संख्या कई बार 9 तक चली जाती थी.” क्रिकेट इतिहासकार और प्रशासक रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब में लिखा है कि – “1950 के दशक से लेकर 1980 के दशक तक दक्षिण भारतीय और मुंबई के ब्राह्मणों का भारतीय टीम में दबदबा रहा. यही नहीं, वे क्रिकेट के प्रशासक भी रहे.”

नेशनल लॉ स्कूल यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु के दो ग्रेजुएट्स शुभम जैन और गौरव भवनानी ने 2018 के अपने रिसर्च पेपर में लिखा है कि “रिसर्च किए जाने के समय तक भारत की ओर से खेल चुके 289 टेस्ट क्रिकेटर्स में सिर्फ चार दलित थे.” पेपर में इस बात का भी अध्ययन किया गया है कि राष्ट्रीय स्तर के लगभग आधे क्रिकेटर छह शहरों- मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद और कोलकाता से आ रहे हैं. इस रिसर्च पेपर में दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट में एक समय अश्वेत खिलाड़ियों के न होने की समस्या और उसे दूर करने के लिए लाए गए डायवर्सिटी प्रोग्राम का भी जिक्र है. इस शोध पत्र के कुछ अंश यहां पढ़े जा सकते हैं.

देखा जाए तो भारतीय क्रिकेट में खास सामाजिक समूहों के वर्चस्व और वंचित समूहों की अनुपस्थिति पर कई देसी-विदेशी लेखक और पत्रकार लिख चुके हैं. इस बारे में लिखने वाले कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं, उनके नाम पर क्लिक करके आप उन लेखों और रिपोर्ट को पढ़ सकते हैं –Richard Cashman, Ashis Nandy, Andrew Stevenson, Kieran Lobo, Ramachandra Guha, Suresh Menon, Amrit Dhillon, Arvind Swaminathan)

अतीत में भारतीय क्रिकेट में डायवर्सिटी के अभाव पर जितना लिखा जा चुका है, उसके बाद मेरे लिखने के लिए खास कुछ नहीं है. बल्कि मैं एक नई बात कहना चाहता हूं. मेरा मानना है कि टेस्ट क्रिकेट का असर कम होने के साथ ही वह दौर बीत चुका है. टी 20 और आईपीएल के आने के बाद क्रिकेट बदल चुका है. खिलाड़ी भी अब कई सामाजिक समूहों और इलाकों से आ रहे हैं. पत्रकार सागर चौधरी इसे क्रिकेट में आई मूक क्रांति या साइलेंट रिवोल्यूशन कहते हैं. हालांकि अब मध्यवर्ती जातियों से कई क्रिकेटर आ रहे हैं. एससी और एसटी के क्रिकेटर अभी भी कम या नहीं के बराबर है. लेकिन बदलाव तो हुआ है.

ये बदलाव तीन प्रमुख कारणों से आया है.

1. फॉर्मेट में आया बदलाव: टेस्ट क्रिकेट से वनडे और टी 20 की यात्रा में क्रिकेट ही नहीं, क्रिकेटर भी बदल गए. क्रिकेट अब रिलेक्स्ड गेम नहीं रहा. एक दौर था जब बैट्समैन घंटों आराम से सुस्त रफ्तार से रन बनाते थे और अपने रिकॉर्ड बेहतर करते थे. अक्सर उन्हें उस बात से भी फर्क नहीं पड़ता था कि टीम जीत रही है या मैच ड्रॉ हो रहा है. नए फॉर्मेट में ये नहीं चल सकता. फिटनेस अब बहुत महत्वपूर्ण है. अगर कोई बैट्समैन अच्छा फील्डर नहीं है तो उसके लिए पहले की तरह टीम में बने रहना आसान नहीं है. मैदान पर रन देने वाले फील्डर टी 20 का मैच हरवा सकते हैं. यही नहीं, खेल में प्रतियोगिता बढ़ी है. जीतना महत्वपूर्ण हो गया है. अगर कोई खिलाड़ी लगातार खराब खेल रहा है तो चाहे वह कितना भी महान खिलाड़ी हो, उसके लिए टीम में जगह बनाना मुश्किल हो सकता है. इस वजह से टीम में नए-नए खिलाड़ियों के लिए जगह बन पा रही है.

2. क्रिकेट का खास से आम बनना – क्रिकेट अब उन रईसों का खेल नहीं रहा जो पांच-छह दिनों तक खेलते थे या खेल देखते थे. फटाफट क्रिकेट ने खेल को लोकप्रिय बना दिया है. टीवी और मोबाइल की वजह से करोड़ों लोग क्रिकेट देख रहे हैं. आईपीएल से खिलाड़ियों का दायरा भी बढ़ा है. लोगों की नजर ज्यादा खिलाड़ियों के खेल पर पड़ रही है. अगर किसी खिलाड़ी ने आईपीएल में लगातार अच्छा परफॉर्म किया तो उसकी अनदेखी करना मुश्किल हो रहा है. संजू सैमसन के मामले में ये हुआ है. उसे टीम में लिया जाए, इसके लिए सोशल मीडिया में लगातार लिखा और बोला गया. जरूरी नहीं है कि सलेक्टर्स सोशल मीडिया की राय से प्रभावित हों. लेकिन इस बारे में चर्चा तो होती ही है.

क्रिकेट का विस्तार: पहले ज्यादातर खिलाड़ी चंद शहरों से आ रहे थे. आईपीएल के कारण क्रिकेट का दायरा बड़ा हो गया है. आईपीएल टीम अपने इलाकों से खिलाड़ी लेकर आ रहे हैं. इससे क्रिकेटर्स का कैचमेंट एरिया बड़ा हुआ है. ये क्रिकेट के लिए अच्छा है.

(दिलीप मंडल इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के पूर्व प्रबंध संपादक हैं, और उन्होंने मीडिया और समाजशास्त्र पर किताबें लिखी हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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