अल्ताफ हुसैन से पाकिस्तान सरकार थर्र-थर्र कांपती है. उसका परिवार आगरा से 1947 में कराची चला गया था. पर उनके दिल के किसी कोने में आगरा बसा रहा. वे मुहाजिरों यानी देश के बंटवारे के वक्त सरहद के उस पार चले गए उर्दू भाषी मुसलमानों के एक छात्र नेता हैं. अल्ताफ हुसैन को मंगलवार को लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया. वे ब्रिटेन में 1992 से निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं. वहां रहते हुए भी वे मुहाजिरों के हक के लिए लड़ रहे हैं. वे मुत्ताहिदा कौमी पार्टी (एमक्यूएम) के सदर हैं. उन पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप हैं. पाकिस्तान के मुहाजिर अल्ताफ हुसैन पर जान निसार करते हैं.
मैं तो हूं आगरा वाला
चेन स्मोकर अल्ताफ हुसैन से साल 2004 में इस लेखक की राजधानी में मुलाकात हुई थी. वे एक मीडिया संस्थान ( हिन्दुस्तान टाइम्स) की तरफ से आयोजित एक सम्मेलन में भाग लेने आए थे. वह उनकी पहली और अंतिम यात्रा थी. उसके बाद वे कभी भारत नहीं आए. उऩके साथ उनके बहुत से साथी भी आए थे. सम्मेलन का फोकस भारत-पाकिस्तान रिश्ते था. काला चश्मा पहने हुए अल्ताफ हुसैन खासमखास लोगों के बीच में भी कुछ हटकर लग रहे थे. हम तुरंत उऩके पास पहुंचे. अपना परिचय दिया. बड़ी ही गर्मजोशी से उन्होंने हमें अपने पास बैठने के लिए कहा. गुफ्तगू का सिलसिला चालू होने से पहले उन्होंने बैंसन एंड हेजेस सिगरेट का पैकेट जेब से निकाला. बातचीत शुरू होते की कहने लगे, ‘यार, मैं आपसे दूर कहां हूं. आगरा वाला हूं. मेरे ना मालूम कितने पुरखे आगरा की मिट्टी में दफ़्न हैं. वालिद साहब रेलवे में थे. राजा की मंडी में घर था. शायद ही कोई दिन गुजरता हो जब यूपी या आगरा का घर में जिक्र ना होता हो. हम 1947 में ही तो सरहद के उस पार चले गए थे. इतने कम समय में आपको लगता है कि मैं अपने पुरखों की जड़ों से दूर हो जाऊंगा. दादा मोहम्मद रमजान आगरा के प्रमुख मुफ्ती थे.’
खुंदक खाते पंजाबी पाक सेना से
अल्ताफ हुसैन ने 1980 में एमक्यूएम पार्टी की स्थापना की. इसका कराची के शहरी इलाकों के साथ-साथ सिंध सूबे में मजबूत आधार है. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में एमक्यूएम हमेशा एक ताकत बनकर उभरती रही है. अल्ताफ हुसैन अपने देश पंजाबी मुसलमानों और पंजाबी मुसलमानों से भरी हुई फौज पर तबीयत से बरसते हैं. उन्होंने कहा था- ‘पंजाबी और सिंधी मुसलमान हम मुहाजिरों को मारते हैं और जरूरत पड़ने पर हमारे ऊपर गंभीर आरोप भी लगाने से बाज नहीं आते. पाकिस्तानी फौज तो हमें मारने का कोई मौका नहीं छोड़ती है.’
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गलत था देश का बंटवारा
अब अल्ताफ हुसैन के अंदर का नेता जाग चुका था. वे तकरीर करने के अंदाज में बोल रहे थे. उनकी आवाज तेज हो गई थी. हमने पूछ ही लिया- ‘ क्या भारत का बंटवारा नहीं होना चाहिए था ?’ अल्ताफ कहने लगे, ‘बिल्कुल नहीं. बंटवारा ना होता तो मुसलमानों की भारत में हैसियत बेहतर होती.’ हमने उनसे पूछा था कैसे सुधरे भारत-पाक के संबंध ? अल्ताफ साहब बताने लगे कि ‘मैं चाहता हूं कि दोनों देशों के अवाम को सरहद के आर-पार आवाजाही करने में कोई दिक्कत ना हो. वे एक-दूसरे के मुल्क में मजे-मजे में आ जा सकें. अगर हम यह कर पाए तो भारत-पाकिस्तान अमन से रह सकेंगे.’ वे बोलते जा रहे थे. ‘मैं जब दोनों देशों के अवाम के इधर-उधर आवाजाही को आसान करने की बात कर रहा हूं. तो मैं बात कर रहा हूं इंडिया के पार्टिशन की वजह से बंटे खानदानों की. उन्हें बंटवारे ने कहीं का नहीं छोड़ा. वे बंटवारे की वजह से नुकसान में रहे. हम मुहाजिरों को पाकिस्तान में दोयम दर्जे का इंसान माना जाता है.’
अल्ताफ हुसैन के साथ वार्तालाप जारी था. अब अल्ताफ हुसैन की तीसरी सिगरेट अपने अंतिम मुकाम पर थी. हमने उनसे आग्रह किया कि लंच के साथ भी इंसाफ कर लेते हैं. तब बात करने का मजा और बढ़ जाएगा. उन्हें हमारा प्रस्ताव पसंद आया. हम दोनों अपनी प्लेट्स में पसंदीदा डिशेज रखने लगे. उन्हें दाल दिखी. ‘अरे, ये कौन सी दाल है ?’ उन्होंने होटल स्टाफ से पूछा. उसने बताया, ‘अरहर की दाल है.’ यह सुनते ही अल्ताफ के चेहरे पर खुशी के भाव आ गए. ‘अरहर की दाल पसंद करता हूं. लंदन में अरहर की दाल खाता हूं. देखते हैं यहां की अरहर की दाल का स्वाद कैसा है.’
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इस बीच, पाकिस्तान सरकार उनसे इसलिए खासतौर पर खफा है, क्योंकि अल्ताफ हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, नाटो और यहां तक की भारत से मदद मांगनी शुरू कर दी है. ताकि मुहाजिरों को उनके हक मिलते रहे. मुहाजिर अरबी शब्द है. इसका अर्थ अप्रवासी. यानी जो किसी दूसरी जगह से आकर बसे हों. वे पूरी दुनिया में पाकिस्तान के मुहाजिर विरोधी चेहरे को बेनकाब करने में लगे हुए हैं. उनका एक मात्र एजेंडा पाकिस्तान सरकार की करतूतों को दुनिया के सामने लाना है. कुछ साल पहले जब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र में राग कश्मीर छेड़ रहे थे. तब अल्ताफ हुसैन के बहुत से साथी संयुक्त राष्ट्र सभागार के बाहर मुहाजिरों पर पाकिस्तान सरकार के जुल्मों-सितम के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे.
अल्ताफ हुसैन को 81 साल की कैद
पाकिस्तान की एक कोर्ट अल्ताफ हुसैन को राष्ट्र विरोधी तकरीरें करने के आरोप में 81 सालों की सजा सुना चुकी है. हालांकि, उनके पाकिस्तान वापस जाने की कोई संभावना नहीं है. बहरहाल, इतना अवश्य है कि पाकिस्तान सरकार एक बार फिर से ब्रिटेन सरकार से आग्रह करेगी कि वह अल्ताफ हुसैन को उसे सौंप दे.
(वरिष्ठ पत्रकार और गांधी जी दिल्ली पुस्तक के लेखक हैं )