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Monday, 25 November, 2024
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पाकिस्तान का सबसे पुराना अखबार डॉन, लड़ रहा है अपने वजूद की लड़ाई

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पाकिस्तान में सेना का तख़्तापलट करने का इतिहास लम्बा है। सेंसरशिप और सेना के हस्तक्षेप के चलते पत्रकारों और न्यूज़ एजेंसियों पर हमले होना एक आम बात है।

पाकिस्तान का सबसे पुराना और सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला अंग्रेजी अखबार डॉन, जिसकी शुरुआत मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा की गयी थी, इस वक़्त अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है क्योंकि इस समय पाकिस्तान में मीडिया की आज़ादी पर खतरा है । ऐसा पहेली बार नहीं है इससे पहले भी कई बार पाकिस्तान में (1958-1971, 1977-1988, 1999-2008) सैन्य शासन लग चुका है। जनरल मुहम्मद जिया उल हक ने अपने आप को राष्ट्रपति घोषित कर लिया था और प्रेस की आज़ादी को ख़त्म कर दिया था ।

पिछले कुछ दिनों से छप रही खबरों के मुताबिक ऐसा प्रतीत होता है की पाकिस्तानी अखबार डॉन में खबरों और संपादकीय को छापने को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हालांकि, मई के मध्य के बाद से, सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान के कई शहरों और कस्बों में तैनात अधिकारियों ने डॉन के वितरण को कई क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों तक पहुंच ना पाए इसके लिए भरसक प्रयास किये गए है।

इस सन्दर्भ में पाकिस्तान से कई नामी हस्तियों में अपनी प्रतिक्रिया ट्विटर के जरिये दी है ।

पाकिस्तानी नेता मुशाहिद हुसैन सईद ने ट्वीट कर लिखा कि “कायदे-ए-आज़म” मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा स्थापित डॉन ,समाचार पत्र जो स्वतंत्रता आंदोलन की अगुआई में था, अब ‘आधिकारिक रूप से प्रमाणित सत्य’ नहीं बोलने पाने के दबाव में है! संविधान के अनुच्छेद 19 के लिए खड़े होने के लिए अपने बहादुर सीईओ, हमीद हारून और संपादक को सलाम!

पाकिस्तानी सीनेट में विपक्ष की नेता शेरी रहमान (पीपीपी) ने ट्वीट किया की “मैं दृढ़ता से मानती हूं कि यह हर व्यक्ति का अधिकार है कि वह अपनी पसंद के समाचार पत्र को ख़रीदे और पढ़ सके, और नागरिकों की पहुंच को जबरन इनकार करने का कोई भी प्रयास संविधान के अनुच्छेद 19 का एक स्पष्ट उल्लंघन है। सरकार को चिन्हित कर इस पर कार्रवाई करनी चाहिए।”

सईद तलत हुसैन ने 28 मई को ट्वीट किया था कि “समाचार ने आज मेरे नियमित कॉलम को प्रकाशित नहीं किया क्योंकि मैंने संपादकीय कर्मचारियों द्वारा दिए गए लेख में बदलावों को शामिल करने से इंकार कर दिया था। विडंबना यह है कि लेख अन्य चीजों के साथ, पाकिस्तान में व्यवस्थित सेंसरशिप और हेरफेर का एक मोटा जाल है।”

कुछ महीनें पहले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने देश के सबसे पुराने अंग्रेजी दैनिक डॉन को एक इंटरव्यू देकर दुनिया भर में सनसनी फैला दी थी। नवाज शरीफ के कबूलनामे के बाद पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत किरकिरी हो गयी थी ।

पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के 2008 में हुए मुबंई हमलों पर दिए बयान को प्रकाशित करने के बाद द डॉन पर पाबन्दी लगाई गई है। इंटरव्यू में नवाज शरीफ ने कहा था कि मुंबई हमले के पीछे पाकिस्तान और यहां के ही आतंकियों का हाथ था।

पाकिस्तान पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देशों में से एक है, जहां पर पत्रकार हमले से अपहरण और हत्या के खतरे का सामना करते हैं। इस संदर्भ में देखे तो पाकिस्तानी पत्रकार गुल बुखारी का अपहरण करके कुछ ही देर में उनको छोड़ दिया गया क्योंकि गुल बुखारी भी पाकिस्तानी सेना की आलोचक है ।

पिछले कुछ महीने से डॉन अख़बार का वितरण पाकिस्तान भर में मुख्य शहरों और कस्बों में दैनिक बाधाओं को झेल रहा है। मंगलवार को डॉन के प्रबंधन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि, “हमारे नियमित ग्राहकों को डॉन की प्रतियां देने का प्रयास करते समय हॉकर्स और बिक्री एजेंटों को निरंतर उत्पीड़न हो रहा है।”

1 अप्रैल को पाकिस्तान के कई भागो में जीओ टीवी के प्रसारण पर रोक लगा दी गयी थी ।

समाचार प्रबंधन का कहना है कि किसी भी अखबार को उसके रीडर्स तक ना पहुंचे देना संविधान के अनुच्छेद 19 का उलंघन है ।

इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) ने पाकिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता को ख़त्म करने के लिए जो उपाय अपनाये जा रहे है इस पर चिंता व्यक्त की है।

वियना स्थित नेटवर्क का कहना है कि इस तरह के वातावरण में इस चुनाव में लोगो तक सही जानकारी पहुंचना बहुत ही कठिन कार्य है ।

प्रधानमंत्री ,मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त, सीनेट अध्यक्ष और सीनेट में विपक्ष के नेता को भेजे गए पत्र में इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट ने कहा कि प्रेस को 25 जुलाई के आम चुनाव से पहले कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है उदाहरण के लिए पत्रकारों को शारीरिक धमकी, अपहरण और यातना, और समाचार चैनलों के प्रसारण रोकना ।

आईपीआई कार्यकारी निदेशक बारबरा ट्रियोनफी ने पत्र में यह कहा कि “ये कार्रवाइयां लोगों को समाचार और सूचना प्राप्त करने के मौलिक अधिकार से वंचित करती हैं और सार्वजनिक हित के मामलों, विशेष रूप से नागरिक मामलों में सेना की भूमिका के बारे में सुचना प्राप्त करने से रोकती है ।

रिपोर्टर्स विथाउट बॉर्डर्स ने पाकिस्तान को 139 वे स्थान पर रखा है।

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