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Tuesday, 24 December, 2024
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पाकिस्तानी जनरलों पर अवामी अदालत में मुकदमा- इमरान खान की सियासी पारी सिमटने की शुरुआत

पीडीएम के पंजाब के गुजरांवाला और सिंध के कराची महानगर में 16 और 18 अक्टूबर में एक के बाद एक लगातार दो रैलियां करने से सत्तासीन सरकार का आत्मविश्वास डगमगा गया है.

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ग्लासगो (स्कॉटलैंड) : पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की सियासी पारी गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है. 11 राजनीतिक दलों के नवगठित सशक्त गठजोड़, जिसे पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) नाम दिया गया है, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की मौजूदा सरकार के लिए गंभीर खतरा बन गया है. इस गठजोड़ में लिबरल सेंटर-राइट पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) (पीएमएलएन), सेंटर लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और कंजटरवेटिव राइट-विंग देवबंदी जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम-फजलुर रहमान (जेयूआई-एफ) जैसी कद्दावर पार्टियां शामिल हैं.

पीडीएम के पंजाब के गुजरांवाला और सिंध के कराची महानगर में 16 और 18 अक्टूबर में एक के बाद एक लगातार दो रैलियां करने से सत्तासीन सरकार का आत्मविश्वास डगमगा गया है. विपक्ष को अचानक मिले भारी जनसमर्थन से परेशान कैबिनेट ने हड़बड़ाहट में इसके सबके पीछे छिपे ‘भारतीय’ एजेंडे को जिम्मेदार बताने की कोशिश शुरू कर दी है. हालांकि, पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठानों द्वारा अक्सर अपने बचाव के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस फॉर्मूले पर लोग अब भरोसा करते नजर नहीं आ रहे.

2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या के लंबे अंतराल के बाद पाकिस्तानी मतदाता एक बार फिर पूर्व में नजरअंदाज किए गए राजनीतिक गठजोड़ के प्रति संवेदनशील नजर आ रहा है जिसने न केवल खुद को मजबूती से फिर खड़ा किया है बल्कि आम जनता की नब्ज को भी पहचाना है. पीडीएम आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को लेकर उनकी गंभीर चिंताओं की एक सशक्त आवाज बन रहा है जिससे जूझती जनता को इमरान खान की तरफ से बस एक ही संदेश मिलता रहा है कि ‘आपने घबराना नहीं है.’

देश की जीडीपी नकारात्मक स्तर से 0.4 प्रतिशत से नीचे फिसलने से लगा आर्थिक झटका, बलूच विद्रोह, पश्तून असंतोष और सिंध में राष्ट्रवाद बढ़ने से निपटने में राजनीतिक नाकामी सामने आने के साथ तथाकथित ‘कश्मीर मसले’ पर अंतरराष्ट्रीय राजनयिक समर्थन जुटाने में विफलता, बुनियादी जरूरत की चीजों के दाम 20-50 प्रतिशत तक बढ़ने और साथ ही ये खुलासा होने कि चीनी और आटे की कीमतों में हेराफेरी के पीछे किसी और का नहीं बल्कि इमरान खान के करीबी विश्वासपात्र जहांगीर तरीन (जिन्हें इमरान का एटीएम तक कहा जाता है) का हाथ है, आदि कुछ ऐसे स्पष्ट फैक्टर हैं, जिन्होंने गुस्से की आग में घी का काम किया है. इस विरोध में केवल विपक्ष ही शामिल नहीं है बल्कि सबसे महत्वपूर्ण है कि यह भावना व्यापक आबादी के बीच भड़क चुकी है.

मेरा मानना है कि पीडीएम का गठन तब तक नहीं हो सकता था जब तक कि आईएसआई सहित पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान के एक हिस्से ने अपनी सहमति और स्वीकृति की मुहर न लगाई हो. इससे पहले 1988 में जब बेनजीर भुट्टो सत्ता में आई थीं आईएसआई प्रमुख हमीद गुल ने एक टेलीविज़न साक्षात्कार में स्वीकारा था कि उन्होंने पीपीपी की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के खिलाफ नौ दलों का गठबंधन बनाने में मदद की थी. इसका नाम इस्लामी जम्मूरी इतेहाद (आईजेआई) था और उसका नेतृत्व करने वाला कोई और नहीं पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवाज शरीफ थे.

इसी तरह, इससे पहले 1977 में एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) असगर खान, जिन्होंने सैन्य प्रतिष्ठान से संबंध बना रखे थे, ने कथित तौर पर जुल्फिकार अली भुट्टों की सेंटर-लेफ्ट सरकार के खिलाफ एक मजबूत दक्षिणपंथी रुढ़िवादी गठजोड़ पाकिस्तान नेशनल एलायंस (पीएनए) का गठन किया था. दोनों ही मौकों पर इन आंदोलनों को क्रमशः आईएसआई और पेट्रो-डॉलर से वित्तपोषण मिला. मुझे इस पर कोई आश्चर्य नहीं होगा कि इमरान विरोधी अभियान चलाने के लिए गुपचुप तरीक से चीनी युआन पीडीएम के खजाने में भेजे जा रहे हों.

पीटीआई के सत्ता में आने के बाद से 2015 में शुरू हुई सभी सीपीईसी परियोजनाओं को देरी का सामना करना पड़ रहा है. सितंबर 2019 में तो पाकिस्तानी मीडिया ने यह कहकर अलार्म बजा दिया था कि व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार के मामलों के बीच 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर वाली सीपीईसी परियोजना बंद की जा सकती है! ग्वादर बंदरगाह, कराची-सुक्कर मोटर मार्ग, डेरा इस्माइल खान से लेकर बलूचिस्तान वेस्टर्न रूट तक सारा काम ठप पड़ा है जबकि खाड़ी तक निर्बाध पहुंच के लिहाज से यह सारे प्रोजेक्ट चीन के लिए बेहद अहम हैं.


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एक से अधिक मौकों पर चीनी नेतृत्व सीपीईसी परियोजनाओं में देरी पर चिंता जता चुका है. और अभी हाल ही में एक प्रेशिडेंशियल डिक्री की वजह की वजह से पीटीआई सरकार को विवाद और शत्रुता का सामना करना पड़ा जिसके तहत चीन के लिए हिंद महासागर में सिंध और बलूचिस्तान से संबंधित द्वीपों पर पूर्ण नियंत्रण करने का रास्ता खुलता है. कहा जा रहा है कि यह डिक्री ताबूत में अंतिम कील साबित हो सकती है.

जम्मू-कश्मीर को तथाकथित विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समर्थन जुटाने में पाकिस्तान की नाकामी पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान के साथ-साथ चीन के लिए समान चिंता का कारण है. दशकों से चीन तथाकथित इस्लामिक दुनिया (खाड़ी और भूमध्यसागरीय देश) के साथ संबंध स्थापित करने के लिए पाक को एक माध्यम के तौर पर देखता रहा है. पाकिस्तान ने चीन-सऊदी संबंधों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई भी है. हालांकि, जबसे इमरान खान ने पाकिस्तान को इस्लामिक समुदाय के संगठन (ओआईसी) से अलग-थलग कर दिया है, इमरान खान सरकार की जगह में किसी सक्षम व्यक्ति के सत्तासीन होने में ही चीन का हित सधता है.

वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान के अलग-थलग होने के साथ-साथ यूएनएचआरसी और आईओसी को कश्मीर पर विशेष सत्र बुलाने के लिए राजी करने में नाकामी ने सैन्य प्रतिष्ठान और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा भी कुछ लोगों की नजरें टेढ़ी कर दीं. यही वजह है कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आपसी संबंध सुधारने के लिए सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने पिछले दरवाजे से उन्हीं विपक्षी नेताओं से मिलने की पहल की जिन्हें 2018 के आम चुनाव में (कथित चुनावी गड़बड़ी के जरिये) हराने में उनकी अहम भूमिका रही थी. हालांकि, यह प्रयास उल्टा पड़ गया और घटनाक्रम मीडिया में लीक होने से पीएमएल (एन) और पीपीपी की शर्मिंदगी का सबब भी बना.

‘ये जो दहशतगर्दी है, इसके पीछे वर्दी है का नारा वजीरिस्तान स्थित पश्तून तहाफुज मूवमेंट (पीटीएम) ने कुछ साल पहले ही उठाया था, जो हर स्पीकर के संबोधन से लेकर स्टेडियम में सैकड़ों-हजारों की तादात में जुटे लोगों में जोश भरने के लिए लगातार गूंजता रहा.

पीटीएम नेता मोहसिन डावर ने उस समय वास्तव में पाकिस्तान के दबे-कुचले लोगों के बीच आमधारणा बना चुकी उस भावना का ही प्रतिनिधित्व किया जब 16 अक्टूबर को नवाज शरीफ के भाषण के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यदि तीन बार के प्रधानमंत्री देश के जनरलों पर गड़बड़ियों का आरोप लगा रहे हैं तो इमरान खान को सेना प्रमुख कमर बाजवा के इस्तीफे की मांग करनी चाहिए. डावर ने सवाल उठाया कि आखिर एहसान-उल्लाह एहसान उस घर से कैसे भाग सकता है जिसमें उसे गिरफ्तार करके रखा गया था. उन्होंने मांग की कि 1948 के बाद से हुए अपराधों और जिसमें अलोकतांत्रिक ताकतें शामिल रही हैं, की जांच के लिए एक ‘ट्रुथ कमीशन’ बनाया जाए. उन्होंने कहा कि सेना और आईएसआई पाकिस्तान में शक्तियों का वास्तविक केंद्र रहे हैं. उत्साही भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने ऐलान किया, ‘यह आंदोलन नागरिकों के वर्चस्व की शुरुआत है.’

अब अर्थव्यवस्था की बदहाली, जीवन स्तर में लगातार आ रही गिरावट और कूटनीतिक स्तर पर देश के अलग-थगल पड़ने को लेकर स्पष्ट रूप से पाकिस्तानी जनरलों और खुफिया सेवाओं को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा है. पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जनरलों को अवामी अदालत (जनता की अदालत) के कठघरे में खड़ा करने की कोशिश हो रही है.

पीडीएम शीर्ष राजनेताओं को एक ऐसा समूह है जिसमें इमरान खान और पाकिस्तान के आर्थिक और राजनीतिक मामलों के संचालन में सैन्य दखल के खिलाफ असंतोष और नफरत के अलावा कुछ भी समान नहीं है. इसलिए, आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य केवल यही है कि प्रधानमंत्री को पद से हटा दिया जाए, संस्थागत मंजूरी के साथ मध्यावधि चुनाव कराए जाएं और जल्द से जल्द एक राष्ट्रीय सरकार गठित हो जो कि सेना के प्रभाव से ‘मुक्त’ हो.

हालांकि, एक असंतुष्ट आबादी के बीच यह उथल-पुथल एक सामाजिक (अराजक) आवेग को हवा दे रही है जो एक लोकप्रिय क्रांति से बस कुछ ही दूर हो सकती है. नतीजा, यह बलूच, सिंधी, पश्तून और पीओजेके तथा गिलगिट बालटिस्तान के लोगों के लिए फासीवादी शासन के चंगुल से मुक्ति पाने का एक बड़ा अवसर बन सकता है जिसने सात दशकों तक उनका दमन का किया है और खून चूसने वाले सैन्य अधिकारियों को बढ़ावा दिया है.

(डिस्क्लेमर : डॉ. अमजद अयूब मिर्जा एक लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. पीओके के मीरपुर के रहने वाले हैं ब्रिटेन में निर्वासन में रहते हैं.)

एएनआई

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1 टिप्पणी

  1. Why the print always need report from some reporte not living in Pakistan. Why always.
    Is there no reporter can report for the print and living in Pakistan at the same time

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