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Friday, 26 April, 2024
होममत-विमतनक्शे बदल रहे नेपाल, पाकिस्तान से निपटने का एक मात्र उपाय है कि भारत क्षेत्रीय ब्लॉक पर नई रणनीति अपनाए

नक्शे बदल रहे नेपाल, पाकिस्तान से निपटने का एक मात्र उपाय है कि भारत क्षेत्रीय ब्लॉक पर नई रणनीति अपनाए

पहले नेपाल, अब पाकिस्तान ने भारत के साथ विवादित क्षेत्रों को अपने-अपने देशों के हिस्से के रूप में दिखाते हुए एकतरफा रूप से अपने राजनीतिक नक्शे बदल दिए हैं.

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एक तरफ जहां भारत घातक कोरोनावायरस से जंग लड़ रहा है और 20 लाख से अधिक पॉजिटिव मामले आ चुके हैं. वहीं भारत का दूसरा दुश्मन सीमा पर नजर आ रहा है वह है- नए नक्शे.

जबकि नक्शा प्रॉपगेंडा और कार्टोग्राफिक युद्ध दुनिया के लिए नया नहीं हैं, दुनिया के इस विशेष हिस्से के लिए यह अप्रत्याशित जरूरत है.

आज, न केवल हमारे आस-पास के पड़ोसी देशों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें अब भारत की चौकस नजर की परवाह नहीं है, बल्कि पाकिस्तान और नेपाल जैसे देश भी अपने राजनीतिक नक्शे बदल रहे हैं, क्योंकि वे नई दिल्ली को पूरी तरह से बेबस देख रहे हैं. इसका जवाब अब भारत को रीजनल ब्लॉक्स में फिर से अपनी ऊर्जा को बढ़ा कर देना होगा.

यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि भारत 20 जनवरी से आठवीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों में से एक बनने के लिए तैयार है, जो बस दो साल के लिए होगा.


यह भी पढ़ें: यूएनएससी में कश्मीर मुद्दे पर चर्चा का पाकिस्तान का प्रस्ताव फिर गिरा, चीन दे रहा था साथ: भारतीय राजनयिक


अस्थिर सीमाएं

1947 में जब भारत ने 200 साल के ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता हासिल की थी. उस समय भारतीय सीमा एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा थी. उसके बाद बनी सरकारों ने ब्रिटेन द्वारा निर्धारित नक्शे के कारण इस क्षेत्र को मिले घावों को दूर करने के उपायों से परहेज किया.

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फिर भी, चुनौतियों के बावजूद भारत ने एक क्षेत्रीय ‘बिग ब्रदर’ की भूमिका निभाई और अपने सभी ‘छोटे भाइयों’ को एक स्थिर संविधान से निर्देशित अपने लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के साथ काफी कुशलता से गले लगाया. खासकर ऐसे समय जब लगभग हर किसी को एक निहित शासन की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था.

भारत की वह छवि आज मिटने लगी है.

पहले नेपाल, अब पाकिस्तान ने भारत के साथ विवादित क्षेत्रों को अपने-अपने देशों के हिस्से के रूप में दिखाते हुए एकतरफा रूप से अपने राजनीतिक नक्शे बदल दिए हैं.

मई में, नेपाल ने पूरे 335 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के पूरे कालापानी क्षेत्र पर दावा किया. यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसे काठमांडू और नई दिल्ली दोनों ने विवादित के रूप में मान्यता दी है.

इस सप्ताह की शुरुआत में, पाकिस्तान ने एक कदम आगे बढ़कर न केवल उन क्षेत्रों पर दावा किया, जो भारत के साथ विवादित हैं, वे अपने नए नक्शे में गुजरात के जूनागढ़ के एक निश्चित हिस्से पर भी अपना हक जमा रहे हैं.

राजनीति की मैपिंग

कुछ लोग इन पड़ोसी देशों के नक्शा-निर्माण को कुछ हद तक ‘चीनी खेल’ कह सकते हैं और कुछ भारत को उकसाने का एक बचकाना कदम भी कह सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि दक्षिण एशिया में इस कार्टोग्राफिक युद्ध को किसने शुरू किया?

पिछले साल 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 और 35 ए के हटाए जाने के बाद भारत ने 2 नवंबर को एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया, जिसमें जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में दिखाया गया- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख.

यह हमारे पड़ोसियों, विशेष रूप से नेपाल द्वारा एकतरफा कार्रवाई के रूप में देखा गया, जिसने इस कदम का विरोध किया और कालापानी सीमा मुद्दे पर एक प्रस्ताव की भी बात कही.

जीयोपॉलिटिक्स दुनिया में कोई नई बात नहीं है. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कार्टोग्राफिक लड़ाई या नक्शे का प्रोपगेंडा भी चरम पर था जिसने युद्ध के थियेटर को आकार देने में मदद की.

द रिवेंज ऑफ जियोग्राफी: व्हाट्स द मैप टेल्स अस अबाउट कमिंग कनफ्लिक्टस में लेखक रॉबर्ट कपलान बताते हैं कि भारत को अपने रणनीतिक निर्णयों में कैसे सावधानी बरतने की जरूरत है, क्योंकि यह कठिन क्षेत्रों से घिरा हुआ है जो इपलोड, एक्सप्लोड और संतुलन को बनाए रखने के लिए आगाह करता है. यह क्षेत्र ज्यादातर नक्शे के रोमांच से बचाया गया था. लेकिन अब और नहीं.

स्थानीय लाओ, रणनीति में भी

मोदी सरकार को अब अपने एक्ट को एक साथ लाने और कुछ क्षेत्रीय सेटअप को बढ़ावा देने की जरूरत है, जो इन देशों को एक साथ बांधेंगे, जैसे कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) और बंगाल की खाड़ी बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए पहल ( बिम्सटेक). भारत क्षेत्रीय दोषों की उपेक्षा कर बीजिंग को जमीन नहीं दे सकता.

पाकिस्तान के कारण सार्क में नई जान फूंकने के लिए मोदी सरकार के मतभेद ने भारत को गरीबी उन्मूलन में सहयोग करने के लिए कमजोर और अनिच्छुक बना दिया है, जो उप-क्षेत्र में एकमात्र सबसे बड़ी चुनौती थी जो अब जारी है.

सार्क और बिम्सटेक मेजर बाइडिंग फैक्टर हैं. लेकिन इसके बजाय, मोदी सरकार ने क्षेत्रीय फ्रेमवर्क की तुलना में रणनीतिक समूहों जैसे कि भारत-प्रशांत और चतुर्भुज सुरक्षा संवाद को प्राथमिकता देने के लिए चुना.

पाकिस्तान बिम्सटेक का सदस्य नहीं है, लेकिन फिर भी इस उप-क्षेत्रीय संगठन में जबरदस्त क्षमता है.

वास्तव में, बदलते राजनीतिक नक्शों की तब तक बहुत कम या कोई प्रासंगिकता नहीं हो सकती है. जब तक कि इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त न हो. लेकिन इसका प्रभाव तब पड़ता है जब गूगल मैप्स सीमाओं को परिभाषित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिन्हें अरबों उपयोगकर्ता अनुसरण करते हैं. नेपाल ने हाल ही में कहा कि वह अपना नया राजनीतिक नक्शा गूगल को भी भेजेगा.


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भारत अपने पड़ोसियों के साथ एक निरंतर संवाद स्थापित करने का जोखिम को दूसरी बार खोने का जोखिम नहीं उठा सकता है. यह देखना चाहिए कि अगला सार्क शिखर सम्मेलन तत्काल आयोजित किया जाना चाहिए. इसे रोकने का कोई मतलब नहीं है. हालांकि, कुछ लोग यह कह सकते हैं कि सार्क अपने वादे को पूरा करने के लिए बहुत कमजोर था, फिर भी नई दिल्ली के लिए उस मंच को अपनाने में रुचि लेनी चाहिए, तब जब पाकिस्तान इसकी अगली कुर्सी है.

यह न केवल पड़ोसियों के बीच बढ़ती बर्फ को पिघलाएगा, बल्कि नई दिल्ली को उस रणनीतिक क्वांटम छलांग को लेने में भी मदद करेगा.

(यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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1 टिप्पणी

  1. nepal aur india ko imandari ke milk baithakar wartalap ke jariya apani wastbik sima rekha ko kayam karna chahiya, agar bat nahi banane par britis gov. ko vi isme samil kiya jasakta hai.

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