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शुक्रवार, 25 अप्रैल, 2025
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पहलगाम हमला: पाकिस्तान अगर युद्ध चाहता है, तो चलिए उसे दिखा देते हैं कि असली जंग क्या होती है

भारत को पाकिस्तान को यह दिखाने की ज़रूरत है कि आतंकवाद की कीमत चुकानी पड़ती है. वह भारतीय नागरिकों की हत्या करके बच निकलने की उम्मीद नहीं कर सकता.

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क्या नरेंद्र मोदी के पास पहलगाम आतंकी हमले का कोई जवाबी कदम उठाने के अलावा कोई विकल्प है? मुझे नहीं लगता कि है. उन्हें कार्रवाई करनी ही होगी.

लेकिन आइए इसे एक-एक करके समझते हैं.

पहला, वह किसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई करेंगे? जवाब होना चाहिए पाकिस्तान. भारत में हुए हर बड़े आतंकी हमले, खासकर जम्मू-कश्मीर में, की जड़ें पाकिस्तान में होती हैं. भले ही पाकिस्तानी सैनिक या एजेंट सीधे तौर पर शामिल न हों—हालांकि 26/11 के आतंकवादी वास्तव में सभी पाकिस्तानी थे—हमला करने वाला समूह हमेशा पाकिस्तान समर्थित होता है या उसका मुख्यालय पाकिस्तान में होता है. उसके सदस्य पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित और वित्तपोषित होते हैं.

तो यह तय करना आसान है कि किसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई करनी है: पाकिस्तान.

दूसरा: क्या हमें यह पता है कि पहलगाम हमले के पीछे पाकिस्तान की सरकार/स्थापना थी? हाल के वर्षों में, जो देश आतंकवाद को समर्थन देते हैं, वे अक्सर यह दावा करके बच निकलते हैं कि हिंसा के लिए गैर-राज्य अभिनेता जिम्मेदार थे.

पाकिस्तान के मामले में, यह एक झूठ है. और वैसे भी, पाकिस्तान स्टेट क्या है? क्या यह सरकार है? क्या यह सेना है? क्या यह आईएसआई है? या फिर वे दर्जनों आतंकवादी समूह हैं जिन्हें पाकिस्तान प्रशिक्षित करता है, वित्तपोषित करता है और बनाए रखता है?

“यह मैंने नहीं किया” वाला बहाना पाकिस्तान ने इतनी बार इस्तेमाल किया है कि अब यह मज़ाक भी नहीं लगता. जब करगिल घुसपैठ का पता चला था, तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा था कि उनकी सरकार को कुछ भी पता नहीं था और इसके पीछे सेना थी.

शायद यह सच भी हो, लेकिन इससे बात बस यही साबित होती है: पाकिस्तान में राज्य की परिभाषा और शक्ति कैसे चलाई जाती है, यह इतना उलझा हुआ है कि वहां गैर-राज्य अभिनेता का क्या मतलब है, यह समझने में समय बर्बाद करने का कोई फायदा नहीं.

अगर हिंसा की शुरुआत पाकिस्तान से हुई है, तो फिर पाकिस्तान ही जिम्मेदार है.

26/11 का गलत आकलन

तीसरा: अगर बदले के लिए इतना स्पष्ट लक्ष्य है, तो भारत को आगे क्यों नहीं बढ़ना चाहिए?

क्योंकि हम अक्सर इससे पीछे हट जाते हैं.

26/11 मुंबई हमले के बाद, मनमोहन सिंह सरकार ने बदले की मांग कर रही गुस्साई आवाज़ों को यह कहकर नजरअंदाज कर दिया कि युद्ध किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं होगा, भारत के लिए भी नहीं. इस सोच का पश्चिमी देशों ने भी जोरदार समर्थन किया, जो परमाणु टकराव की आशंका से डरे हुए थे.

उस समय इस संयम को दूरदर्शी नेतृत्व की मिसाल बताया गया. लेकिन अब पीछे मुड़कर देखें, तो यह एक भयंकर गलत आकलन लगता है. मुंबई हमले की साजिश रचने वालों में से किसी को भी सज़ा नहीं मिली. हम सबने वो डरावनी रिकॉर्डिंग सुनी हैं, जिनमें पाकिस्तानी हैंडलर्स आतंकवादियों को और अधिक आम नागरिकों को मारने का निर्देश दे रहे थे.

और सरकार के उस ‘दूरदर्शी संयम’ के कारण, वे हैंडलर्स आज भी खुले घूम रहे हैं और शायद अपने खूनी मिशन की सफलता पर अब भी हंस रहे हैं.

किसी को जवाबदेह नहीं ठहराया गया. बाकी आतंकवादियों के लिए यह संदेश गया: भारत कुछ नहीं करेगा.

चार: क्या दुनिया हमें बदला लेने देगी? खैर, जब अमेरिका खुद किसी भी आतंकी हमले को बिना सज़ा के नहीं छोड़ता और उसके अपराधियों को ढूंढकर खत्म कर देता है, तो क्या वाकई दुनिया हमें रोक सकती है?

और अगर विश्व जनमत इतना शक्तिशाली है, तो वह पाकिस्तान को भारत पर आतंकी हमले करने से क्यों नहीं रोकता?

इसके अलावा, अगर हमारा जवाब छोटा, तेज़ और प्रभावशाली हो, तो यह खत्म हो जाएगा इससे पहले कि विश्व जनमत प्रतिक्रिया दे सके.

2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक प्रभावी थी या नहीं (यह इस पर निर्भर करता है कि आप किस संस्करण को मानते हैं), लेकिन हमने विश्व जनमत की परवाह किए बिना सैन्य जवाब देने में सफलता पाई थी.

हम ऐसा दोबारा आसानी से कर सकते हैं.

ट्रंप की अमेरिका यात्रा का कोई विरोध नहीं होगा

पांच: यहां ट्रंप फैक्टर को भी ध्यान में रखना होगा. अब तक, अमेरिकी विदेश नीति आम तौर पर द्विदलीय रही है, भले ही अलग-अलग सरकारों की प्राथमिकताएं अलग रही हों.

अब वह सहमति टूट चुकी है—इतनी हद तक कि यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या नाटो (NATO) खुद भी टिक पाएगा. हमें पता है कि डॉनल्ड ट्रंप को पाकिस्तान में कोई रुचि नहीं है और वह इस्लामाबाद के प्रायोजकों यानी बीजिंग के प्रति खुले तौर पर शत्रुतापूर्ण हैं. हमें यह भी पता है कि जब आप व्यापार को समीकरण से बाहर कर देते हैं, तो ट्रंप मोटे तौर पर भारत समर्थक हैं.

यह हमें पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का एक आदर्श मौका देता है. ट्रंप बिल क्लिंटन नहीं हैं, जिन्होंने करगिल युद्ध के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को आधी रात को फोन करके पीछे हटने को कहा था. ट्रंप के व्हाइट हाउस सहयोगी और कैबिनेट सदस्य वे नहीं हैं जिन्होंने मुंबई हमलों के बाद मनमोहन सिंह से जवाबी कार्रवाई से बचने की अपील की थी.

पाकिस्तान के खिलाफ कोई भी ऐसा कदम जो अमेरिका के हितों के खिलाफ न हो, ट्रंप की ओर से किसी विरोध का सामना नहीं करेगा.

अगर भारत इस मौके का फायदा नहीं उठाता, तो यह पागलपन होगा.

छठा: मनमोहन सिंह को विश्वास था कि भारत और पाकिस्तान की समस्याएं बातचीत के ज़रिए सुलझाई जा सकती हैं. जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने इस भोली भ्रांति को बढ़ावा दिया और मनमोहन सिंह को चक्कर में डालते रहे. वर्तमान में दिल्ली में यह आम सहमति बन चुकी है कि समय-समय पर तनाव कम करने के लिए बातचीत में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन जितनी भी बातचीत कर ली जाए, वह मूल समस्या को हल नहीं कर सकती.

इसके बजाय, हमने दबाव और—जैसा कि पाकिस्तान कहता है—पाकिस्तान के भीतर गुप्त अभियानों पर भरोसा किया है.

गुप्त अभियानों की दिक्कत यह है कि इसमें दोनों पक्ष खेल सकते हैं. और यह साफ़ हो चुका है, विशेषकर पहलगाम में निर्दोष नागरिकों के नरसंहार के बाद, कि पाकिस्तान हमसे कहीं अधिक बेरहम और खून का प्यासा बनने को तैयार है.

कुछ लोगों ने पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के भड़काऊ भाषणों को बलोच अलगाववादियों द्वारा पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर किए गए हमलों से जोड़ा है. जब एक यात्री ट्रेन को हाईजैक किया गया, तो पाकिस्तान ने भारत को दोषी ठहराया और जवाबी कार्रवाई की धमकी दी. हो सकता है कि पहलगाम में बेबस नागरिकों की हत्या वही जवाबी कार्रवाई हो.

मैं यह नहीं कहता कि गुप्त अभियान पाकिस्तान सेना को परेशान करने का प्रभावी तरीका नहीं हैं. लेकिन जब इस पैमाने पर हमला होता है, तो न बातचीत और न ही तोड़फोड़ काफ़ी होती है.

हमें सैन्य ताक़त का एक उदाहरणात्मक प्रदर्शन करना होगा.

पुलवामा जैसी प्रतिक्रिया क्यों मायने रखती है?

सात: नरेंद्र मोदी इतने राजनीतिक रूप से चतुर हैं कि उन्हें पता है कि किसी भी आतंकी हमले के बाद सरकार के पास प्रतिक्रिया देने के दो रास्ते होते हैं. पहला रास्ता यह है कि सुरक्षा विफलता की रट लगाते रहो और अपने ही लोगों को बर्खास्त कर दो. मनमोहन सिंह ने 26/11 के बाद यही रास्ता चुना था. गृह मंत्री शिवराज पाटिल को हटाया गया. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को भी. आखिरकार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन, जिनकी विफलताएं अहम थीं, उन्हें भी हटना पड़ा.

यह तरीका ऊंचे आदर्शों वाला और नैतिक लगता है, लेकिन राजनीतिक रूप से यह आत्मघाती होता है, क्योंकि आप जनता के गुस्से का इस्तेमाल पाकिस्तान को सज़ा देने के बजाय खुद पर वार करने के लिए करते हैं.

अब मनमोहन सिंह के रवैये की तुलना कीजिए पुलवामा नरसंहार के बाद मोदी के रवैये से. उसमें भी भारी सुरक्षा और खुफिया विफलताएं थीं. लेकिन मोदी ने उन पर चर्चा करने के बजाय सीधे पाकिस्तान पर वार किया. बालाकोट स्ट्राइक की सफलता पर बहस हो सकती है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इसने जनता के मूड को पूरी तरह बदल दिया. भले ही एक भारतीय विमान गिरा दिया गया और उसका पायलट पकड़ा गया, मोदी ने उसे अपने फायदे में बदल दिया—पाकिस्तान से पायलट को रिहा करवाया और इसे अपनी व्यक्तिगत जीत के रूप में पेश किया. चुनाव सर्वे ने बताया कि मोदी की कार्रवाई से बीजेपी को ‘बालाकोट बंप’ मिला, जो 2019 के आम चुनाव में भारी जीत में तब्दील हुआ.

इन सबके मद्देनज़र, क्या नरेंद्र मोदी के पास पलटवार न करने का कोई विकल्प है? उनके समर्थक उनसे जवाब की उम्मीद कर रहे हैं और पूरा देश बदले की मांग कर रहा है.

सबसे अहम बात यह है कि एक मजबूत सैन्य पलटवार न केवल राजनीतिक रूप से चतुराई होगी, बल्कि यह नैतिक रूप से भी सही कदम होगा. भारत को पाकिस्तान को यह दिखाना होगा कि आतंकवाद की कीमत चुकानी पड़ती है. वह भारतीय नागरिकों की हत्या कर के यूं ही नहीं बच सकता.

और पाकिस्तान पर पलटवार का एक और मकसद भी होगा. साफ है कि आतंकवादियों का एक एजेंडा भारत में हिंदू-मुस्लिम विभाजन को और गहरा करना था. इसलिए उन्होंने कथित तौर पर लोगों से उनका धर्म पूछकर गोली मारी.

किस हद तक यह काम कर रहा है—यह भी दिख रहा है. सोशल मीडिया पर बीजेपी-आरएसएस समर्थक मुसलमानों को दोष दे रहे हैं और सेक्युलरिज़्म पर हमला कर रहे हैं.

हमें यह साफ करना होगा कि यह हिंदू या मुसलमानों के बारे में नहीं है. यह पाकिस्तान और उसके भारत के खिलाफ जारी अंतहीन युद्ध के बारे में है.

तो आइए दुश्मन की पहचान करें और उसे इसकी कीमत चुकवाएं. अगर उसे अंतहीन युद्ध चाहिए, तो इस्लामाबाद को दिखाएं कि भारत क्या कर सकता है. अब वक्त आ गया है.

वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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