वैसे तो यह दिख रहा है कि भाजपा शिखर पर है. विपक्ष ने घुटने टेक दिए हैं. केंद्र की सरकार पर कोई नकारात्मक बात चस्पाँ नहीं हो पा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि बेदाग बनी हुई है.
केंद्र सरकार मुफ्त अनाज बांटने और किसानों के खाते में नकदी जमा करने के कार्यक्रम जारी रख सकती है. फिर भी प्रधानमंत्री मोदी ‘रेवड़ी’ बांटने की संस्कृति को देश के विकास के लिए खतरनाक बता सकते हैं. उनकी सरकार तो गरीब कल्याण और किसान सम्मान की खातिर मुफ्त दे रही है. दूसरी पार्टियां जो दे रही हैं वह ‘रेवड़ी’ है. मोदी के मंत्रिमंडल और उनकी पार्टी में वंशवादी भरे पड़े हैं, मगर मोदी विपक्ष दलों को वंशवादी राजनीति करने के लिए आड़े हाथों ले सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी देश के बड़े नेताओं के सामने इस बात का खंडन कर सकते हैं कि चीनी सेना ने भारतीय इलाके में कोई घुसपैठ नहीं की है, वे कह सकते हैं कि ‘किसी ने हमारे इलाके में अतिक्रमण नहीं किया है…’, फिर भी वे राष्ट्रीय सुरक्षा के मसलों पर विपकशी नेताओं को बचाव की मुद्रा अपनाने को मजबूर कर सकते हैं. वे जादू की ऐसी छड़ी घुमा सकते हैं कि नोटबंदी, किसानों की आय दोगुनी करने के वादे, अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर का करने के इरादे, 100 ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने के मंसूबे आदि बहुचर्चित मुद्दे भी जनता की याददाश्त से छूमंतर गायब हो जाते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विपक्ष की कोई भी आलोचना उन पर चिपक नहीं पाती, क्योंकि अधिकतर भारतीय यही मानते हैं कि वे कुछ गलत कर ही नहीं सकते और विपक्ष कोई सही बात कर नहीं सकता. इसलिए भाजपा में मोदी के सहयोगी उनकी तारीफ़ों का फायदा उठाते हुए तनावमुक्त रहते हैं. बल्कि वे शायद जरूरत से ज्यादा आत्मतुष्ट हो रहे हैं. वरना क्या कारण है कि भाजपा नेतृत्व को अपने पार्टी में उभर रहीं दरारें क्यों नहीं नज़र आ रही हैं? और राज्यों में जो कुछ हो रहा है उससे भी वे बेफिक्र हैं? यहां तक कि केंद्र में भी संगठन के मामलों में दिशाहीनता जैसी दिख रही है.
सुर्खियां क्या कहती हैं
पिछले सप्ताह के अंत में की प्रमुख खबरों पर नज़र डालिए. सबसे पहली खबर : केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अपनी बेटी पर कथित ‘अवैध बार’ चलाने के आरोप पर उठे राजनीतिक बवंडर का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा नेताओं का इस पर क्या जवाब है? खामोशी! पूरे शनिवार, किसी मंत्री या वरिष्ठ भाजपा नेता ने कुछ नहीं कहा. सरकार या पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई. ईरानी के आलोचक सोशल मीडिया पर छाये रहे लेकिन पार्टी का विख्यात ‘आइटी सेल’ निर्देश की प्रतीक्षा करता रहा. ईरानी को अकेले ही अपना बचाव करना पड़ा, अपने निवास पर प्रेस कनफरेंस करके आरोपों का खंडन करना पड़ा. जल्दी ही उनके सहयोगियों को उनका समर्थन करना पड़ेगा. लेकिन ईरानी का बचाव करने के लिए उनका तुरंत सामने न आना उन्हें जरूर निराश कर गया होगा. अगर उन्हें ईरानी के जवाब को लेकर कोई शंका थी तो वे चुप्पी साधने की जगह उनसे सीधे पूछ सकते थे.
वैसे, शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ने विपक्ष से अपील की कि वह एक युवती द्वारा ‘अपने सपने को पूरा करने’ की ‘साहसिक’ कोशिश को बदनाम करने की कोशिश न करें. ताजिंदर पाल सिंह बग्गा और वनती श्रीनिवासन जैसी नेताओं ने ईरानी के पक्षा में ट्वीट किया लेकिन भाजपा के बड़े नेता और मंत्रीगण चुप ही रहे. भाजपा ने ईरानी के खंडन को अपने अधिकृत ट्वीटर हैंडल पर तथा कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कानूनी नोटिस को अपने अधिकृत व्हाट्सएप ग्रुप पर पोस्ट किया. संदेश साफ है— यह लड़ाई स्मृति ईरानी को खुद लड़नी पड़ेगी.
दूसरी खबर— मेघालय के भाजपा उपाध्यक्ष बर्नार्ड आर. मरक के द्वारा चलाए जा रहे एक ‘वेश्यालय’ से छह बच्चों को मुक्त कराया गया, 73 लोग गिरफ्तार किए गए.
भगोड़े मरक ने एनडीए के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा पर आरोप लगाया कि उन्होंने “राजनीतिक बदला” चुकाने के लिए उनके फार्महाउस पर छापा मरवाने के लिए ‘पुलिस का इस्तेमाल’ किया.
मेघालय की सरकार में शामिल भाजपा ने मरक का बचाव करने के फैसला किया. रविवार को जारी किए गए बयान में मेघालय भाजपा ने कहा कि उसके उपाध्यक्ष पर ‘अनुचित तरीके से आरोप लगाया गया और उन्हें बदनाम किया गया’.
भाजपा ने कहा कि लगता है कि वे राजनीतिक बदले के शिकार हुए हैं. यानी उसने उसी सरकार की निंदा की जिसमें वह शामिल है. गौरतलब है कि 2017 में इन्हीं मरक साहब ने प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल की तीसरी वर्षगांठ का जश्न मनाने के लिए ‘बिची (चावल की शराब) पार्टी‘ करने की योजना बनाई थी जिसका पार्टी सहयोगियों ने विरोध किया था और मरक को तब जिला पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. यही नहीं, मरक ने वादा किया था कि भाजपा अगर राज्य में सत्ता में आई तो गोमांस की कीमत कम की जाएगी. उसके बाद से वे पार्टी संगठन में सीढ़ियां चढ़ने लगे थे.
तीसरी खबर: महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील ने कहा कि भाजपा ने एकनाथ शिंदे को ‘भारी मन’ से मुख्यमंत्री बनाया.
आखिर, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने उद्धव ठाकरे की एमवीए सरकार को गिराने की इतनी कवायद उप-मुख्यमंत्री बनने के लिए तो नहीं की. पार्टी आलाकमान ने जब शिंदे को गद्दी सौंपने का फैसला किया था तब फडनवीस ने सार्वजनिक बयान दिया था कि वे सरकार में शामिल नहीं होंगे. बाद में उन्होंने घटनाक्रम का खुलासा भी किया था. उन्होंने बताया कि नागपुर में गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने उन्हें सरकार में शामिल होने के लिए कहा था.
‘इकोनॉमिक्स टाइम्स’ ने फडनवीस का यह बयान छापा कि ‘मैंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी से बात की और उसके बाद उनके निर्देशों का पालन करने का फैसला किया. ‘उन्होंने नड्डा का ‘आदेश’ और शाह का ‘निर्देश’ प्रधानमंत्री के कहने पर माना. इस तरह एक अनिच्छुक मुख्यमंत्री उद्धव की जगह एक अनिच्छुक वास्तविक मुख्यमंत्री (इस मामले में उप-मुख्यमंत्री) को गद्दी पर बैठा दिया गया. आश्चर्य नहीं कि एक महीने से दो सदस्यीय मंत्रिमंडल ही भाजपा-शिवसेना की पूरी सरकार चला रहा है.
वैसे, यह भी एक सिलसिला है. भाजपा आलाकंन के वफ़ादारों की अंदरूनी मंडली से बाहर का कोई नेता जब सरकार बनाता है तब उसे अपनी टीम बनाने के लिए हफ्तों तक जद्दोजहद करनी पड़ती है. मार्च 2020 में मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने जब कांग्रेस सरकार का तख़्ता पलट दिया आता तब उन्हें अपनी टीम के लिए 25 दिन तक इंतजार करना पड़ा था.
2019 में, बी.एस. येदीयुरप्पा कर्नाटक में कांग्रेस -जेडीएस की सरकार को हरा कर सत्ता में आए थे तब उन्हें अपनी टीम बनाने से पहले तीन सप्ताह तक एक सदस्यीय मंत्रिमंडल से काम चलाना पड़ा था और उसके बाद मंत्रियों में विभागों का बंटवारा करने के लिए एक सप्ताह और इंतजार करना पड़ा था.
पिछले सप्ताहांत की चौथी खबर: अपने बेटे की उम्मेदवारी की घोषणा करने के बाद येदियुरपा ने गेंद भाजपा के पाले में डाल दी.
गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर किए गए और फिर पार्टी में किनारे कर दिए गए येदियुरप्पा ने अपने क्षेत्र शिकारीपुरा से अपने बेटे विजयेंद्र को चुनाव में उतारने की घोषणा करके येदियुरप्पा ने चुनावी राजनीति से लगभग संन्यास लेने की घोषणा कर दी है. इसकी नौबत इसलिए आई कि आलाकमान ने मई में विधान परिषद का सदस्य बनाए जाने की विजयेंद्र की मांग की अनदेखी कर दी थी. इस डर से कि उनके बेटे को विधानसभा चुनाव में भी कहीं टिकट न मिले, येदियुरप्पा ने शुक्रवार को उन्हें शिकारीपुरा से उम्मीदवार बनाने की घोषणा की और अगले ही दिन इसका फैसला भाजपा नेतृत्व पर छोड़ने की बात की. जाहिर है, वे बिना लड़े हार नहीं मानेंगे.
कई राज्यों में अंदरूनी कलह
अब कुछ दिन पीछे की बात. आप पाएंगे कि उत्तर प्रदेश से आने वाली सुर्खियां योगी आदित्यनाथ के प्रदेश की बड़ी कहानी कहती हैं. उप-मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग) अमित मोहन प्रसाद को पत्र लिखकर सवाल किया कि उनकी अनुपस्थिति में डॉक्टरों के तबादले कैसे कर दिए गए? यह पत्र सोशल मीडिया में भी पहुंच गया, जिससे मुख्यमंत्री परेशान हुए. पाठक अमित शाह के करीबी बताए जाते हैं जबकि उप-मुख्यमंत्री के कोपभाजन बने प्रसाद योगी के विश्वासपात्र माने जाते हैं. प्रसाद उस ‘टीम-9’ में शामिल हैं जो हर सुबह मुख्यमंत्री के निवास पर उस दिन के लिए सरकार का एजेंडा तय करने के लिए बैठक करती है.
इसके बाद, जल शक्ति विभाग के जूनियर मंत्री दिनेश खटीक ने अमित शाह को पत्र लिखकर शिकायत की कि उनके अधिकारी उनके आदेशों पर इसलिए अमल नहीं करते क्योंकि वे एक दलित हैं और उन्हें कोई काम नहीं दिया गया है. यह अपने ऊपर के बॉस, कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह पर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी हैं, परोक्ष हमला भी था. खटीक का पत्र भी सोशल मीडिया में पहुंच गया. राजनीति में उतारने से पहले कांग्रेस सिंह नाम से जाने गए स्वतंत्र देव सिंह शाह के पिछलग्गू थे लेकिन सरकार में शामिल किए जाने के बाद योगी के करीब हो गए.
उधर शिवराज सिंह के आलोचकों की संख्या बढ़ती जा रही है. सबसे नई आलोचक हैं उमा भारती, जिन्होंने इस बार उनकी शराब को लेकर उन पर हमला बोला है. दो सप्ताह पहले भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने यह कहकर चौहान सरकार को शर्मसार कर दी था कि सरकाई अधिकारी भाजपा के लिए काम कर रहे हैं.
पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि कई राज्यों में भाजपा के अंदर कलह की खबरें निरंतर आती रहती हैं.
प्रधानमंत्री मोदी से अपनी चुनावी ताकत पाने वाली और चाणक्य माने जा रहे अमित शाह की सीधी देखरेख में चलने वाली भाजपा अब अव्यवस्था की शिकार हुई नज़र आ रही है. सत्ताधारी दल में दो खेमे प्रमुख रूप से उभर रहे हैं— एक खेमा वह है जिसे आलाकमान का वरदहस्त हासिल है, दूसरा वह है जो इस वरदहस्त से वंचित है. दोनों खेमों के बीच अविश्वास की खाई चौड़ी ही होती जा रही है.
(डीके सिंह दिप्रिंट के राजनीतिक संपादक हैं. वह @dksingh73 पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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