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Friday, 28 June, 2024
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CBSE में जो सुधार किए गए उनसे NTA भी सबक ले सकती है

सीबीएसई के देश भर में 16 से ज़्यादा पूर्ण क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जिनमें स्थायी कर्मचारी काम करते हैं. ये क्षेत्रीय कार्यालय परीक्षा के हर पहलू पर नज़र रखते हैं, परिवहन से लेकर परीक्षा केंद्रों के चयन, संरक्षकों, निरीक्षकों और मूल्यांकन तक.

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परीक्षाओं पर से भरोसा जब टूटता है तब राष्ट्र का भविष्य भी बिखरने लगता है. भारत इस कठोर हकीकत को भुगत रहा है क्योंकि ‘पेपर लीक’ (परीक्षा से पहले प्रश्नपत्र का खुलासा हो जाने) के मामले परेशानी पैदा करने वाली तेजी के साथ बढ़ रहे हैं. पिछले कुछ सप्ताहों में जो कुछ घटा है वह बिल्कुल अभूतपूर्व है. गुजरात से लेकर बिहार तक जिस तरह ‘पेपर लीक’ हुए हैं, और इसके साथ प्रतिष्ठित प्रवेश परीक्षाएं जिस तरह रद्द की गई हैं उससे डॉक्टर बनने या दूसरी नौकरियों की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों का भविष्य सीधा प्रभावित होगा.

मुझे 2018 में सीबीएसई के ‘पेपर लीक’ के अनुभव की याद आती है, जब मैं स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग का सेक्रेटरी था. उस समय गलती सीबीएसई की नहीं थी लेकिन सारा गुस्सा उसके अध्यक्ष पर बरसा था. सारी प्रतिकूलताओं के बावजूद मैंने उस समय सीबीएसई की अध्यक्ष का बचाव किया और एक ऐसी व्यवस्था लागू करने की कोशिश की, जो आज तक कसौटी पर खरी उतर रही है, और उसके बाद से उसमें पेपर लीक का कोई मामला नहीं हुआ है.

बहुत सारे लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) आज जितनी प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करती है, पहले उनमें से अधिकतर का आयोजन सीबीएसई करती थी, और अच्छी तरह से करती थी. एक अलग एजेंसी बनाने का फैसला 2017 में किया गया. इस एजेंसी का नेतृत्व बेदाग साख वाले अधिकारियों के हाथों में सौंपा गया. उनमें विनीत जोशी, और सुबोध कुमार सिंह तक शामिल थे जिन्हें पिछले दिनों एनटीए के महानिदेशक पद से हटा दिया गया.

ऐसे में असली सवाल यह उठता है कि अधिकारी जब इतने बेदाग साख वाले थे तब पेपर लीक का मामला क्यों हुआ? मुझे अच्छी तरह याद है कि 2018 में तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा मंत्री प्रकाश जावडेकर विवाद को ‘शांत करने’ के लिए सीबीएसई की अध्यक्ष को बरखास्त करने के पक्ष में थे. लेकिन मैं किसी तरह उन्हें यह समझाने में सफल रहा कि ऐसा करने से पूरे संगठन का मनोबल गिर जाएगा.

समस्या की जड़ क्या है

आज, संबंधित अधिकारी की ज़िम्मेदारी तय किए बिना एक आसान रास्ता चुन लिया गया है. वर्तमान शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पेपर लीक का समय से पहले ही खंडन करने के बाद सिर्फ “नैतिक उत्तरदायित्व” कबूल करके बच निकले हैं. मेरा अनुभव कहता है कि सभी सरकारें समस्या की जड़ को समझने की कोशिश किए बिना ऐसे ही आसान रास्ते चुना करती हैं.

चाहे यह 2014 का कोयला सेक्टर का संकट हो, जब मैंने भारत सरकार में कोयला सचिव का पदभार संभाला था, या 2018 का पेपर लीक संकट रहा हो, मेरी कोशिश यही रहती थी की समस्या के मूल कारणों का पता लगाओ और गहरी समझ तथा गहरे विश्लेषण के साथ समाधान तैयार करो. यह चाल दोनों मामलों में कारगर साबित हुई. कोयला संकट हल कर लिया गया, और 2018 के बाद से अब तक सीबीएसई में पेपर लीक का कोई मामला नहीं हुआ है.

वैसे, वर्तमान संकट की सीबीआइ जांच शुरू हो गई है ताकि यह पता तय किया जा सके कि ईईए पेपर लीक के लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं. रोकथाम के उपाय बताने की सीबीआइ की क्षमता पर मुझे संदेह है. वह अधिकारियों की धर-पकड़ पर ज़ोर देकर उनमें से अधिकतर का मनोबल गिरा सकती है. यह नजारा मैं कोयला सचिव के अपने कार्यकाल में देख चुका हूं. सीबीआइ की कार्रवाइयों के नतीजे आज भी देखे जा सकते हैं. कई ईमानदार अधिकारी आज भी भुगत रहे हैं. लेकिन देखने वालों को तो यह नाटक पसंद है.

सरकार ने ‘इसरो’ के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक कमिटी गठित की है, जिसे भविष्य में ऐसी गड़बड़ियों को रोकने के उपायों की सिफ़ारिश करने का काम सौंपा गया है. सरकारें किसी भी संकट के जवाब में प्रायः ऐसे ही कदम उठाती हैं लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि यह कमिटी ऐसे मामलों को रोकने का ठोस फॉर्मूला प्रस्तुत करेगी. वैसे, यह एक विडंबना ही है कि एनटीए बोर्ड (जिसके अध्यक्ष यूपीएससी के एक पूर्व अध्यक्ष हैं और इसके सदस्यों में आइआइटी के कई निदेशक शामिल हैं) के सदस्यों ने वर्तमान प्रक्रियाओं पर सबसे पहले क्यों नहीं नजर डाली.

सीबीएसई ने क्या सही किया

अंततः हमें यह तो शायद पता लग जाएगा कि लीक क्यों हुए और इनके लिए कौन जिम्मेदार हैं, लेकिन यह जांच करना उपयुक्त होगा सीबीएसई ने 2018 में ‘लीक-प्रूफ’ व्यवस्था कैसे लागू की, जो आज भी असरदार है और यह भी देखें कि यह एनटीए के लिए इसमें कोई सबक तो नहीं छिपा है.

2018 के दुर्भाग्यपूर्ण पेपर लीक के बाद सीबीएसई ने परीक्षा की पूरी प्रक्रिया की जांच की ताकि सभी संभावित खामियों को दूर किया जा सके. इस गहन आंतरिक जांच में निम्नलिखित कदम उठाए गए—

  • सुरक्षा प्रक्रिया की समीक्षा की गई ताकि परीक्षार्थियों को प्रश्नपत्र बिना किसी गड़बड़ी के मिलें.
  • प्रश्नपत्रों को छापाखानों से परीक्षा केंद्रों तक पहुंचाने, उनके भंडारण, निकासी और वितरण की प्रक्रियाओं, और परीक्षार्थियों की कॉपियों के संकलन, उन्हें परीक्षा केंद्रों से आकलन केंद्रों तक पहुंचाने की व्यवस्था में चूक की संभावनाओं का पता लगाया गया.
  • मानवीय हस्तक्षेप को कम करने के लिए टेक्नोलॉजी के उपयोग पर पर विचार किया गया.
    विस्तृत विश्लेषण से खामियां उजागर हुईं. लेकिन ये खामियां सीबीएसई के बाहर की व्यवस्थाओं की थीं. सीबीएसई के अंदर सर्वोच्च ईमानदारी बरती गई. निम्नलिलखित उपाय लागू किए गए—
समय और तेज़ी का अध्ययन :

परीक्षा की पूरी प्रक्रिया का अध्ययन किया गया और हर मिनट पर की जाने वाली कार्रवाई का समय और गति के अध्ययन के खाके में रेकॉर्ड दर्ज किया गया.

परीक्षा से संबंधित उपनियमों का संशोधन:

खामियों के आधार पर परीक्षा उपनियमों में व्यापक बदलाव किए गए.

सीबीएसई की गोपनीयता की व्यवस्था:
  • परीक्षा कंट्रोलर और सुरक्षा अधिकारी के चयन में गोपनीयता की मजबूत व्यवस्था कायम रखी गई.
  • परीक्षाएं आयोजित करने वाली अधिकतर संस्थाएं इस व्यवस्था को लागू नहीं करतीं, इसलिए सभी गोपनीय मामले खुली फाइलों में दर्ज होते हैं और मंजूरी के लिए उन्हें विभिन्न चरणों से पास किया जाता है.
  • सीबीएसई में ‘सीक्रेट यूनिट’ को कई अधिकार दिए गए हैं और प्रक्रिया की गोपनीयता का पूरा पालन किया जाता है.
गोपनीयता की व्यवस्था पर अध्यक्ष और परीक्षा कंट्रोलर के दस्तखत:
  • पाया गया कि एक पूर्व अध्यक्ष ने प्रश्नपत्रों की सुरक्षा और गोपनीयता के सभी पहलुओं का टीवी पर खुलासा कर दिया था.

चूंकि सीबीएसई में सुरक्षा और गोपनीयता की कई व्यवस्थाएं उसकी अपनी हैं इसलिए सभी अध्यक्षों और कंट्रोलरों को आजीवन गोपनीयता के दस्तावेज़ पर दस्तखत करना पड़ता है.

प्रश्नपत्रों के मामले : निम्नलिखित विषयों पर फैसले किए गए–
  • प्रश्नपत्रों की संख्या
  • परीक्षा के स्वरूप में परिवर्तन (जिन्हें पहले ही घोषित किया जाता है) करके प्रश्नपत्रों के पूर्वानुमानों को बदल दिया जाता है.
  • प्रश्नपत्र तैयार करने वालों और मॉडरेटरों के समूह की समीक्षा
  • प्रश्नपत्र तैयार करने वालों और मॉडरेटरों की क्षमता में वृद्धि
  • प्रश्नपत्रों की सुरक्षा के हर पहलू की समीक्षा और उनमें परिवर्तन
  • आन्सर शीट्स आदि की सुरक्षा के हर पहलू की समीक्षा और उनमें परिवर्तन
  • प्रश्नपत्रों और आन्सर शीट्स की विशिष्ट पैकेजिंग, और उसमें अगर छेड़छाड़ हुई हो तो यह पता लगाना कि किस परीक्षा केंद्र में किस प्रश्नपत्र के साथ छेड़छाड़ हुई.

एनटीए द्वारा आयोजित परीक्षाओं की विभिन्न प्रक्रियाओं की जांच के लिए गठित की गई कमिटी को निम्नलिखित कदमों पर भी गौर करना चाहिए जो सीबीएसई ने 2018 के बाद उठाए :

  1. बाहरी केंद्रों की पहचान; जो कि असली मुद्दा है
  • पहले, परीक्षा केंद्र इस आधार पर तय किए जाते थे कि केंद्र की पेशकश कौन कर रहा है. सुधारों के बाद, परीक्षा केंद्रों के चयन की वैधानिक शर्तें तय की गईं.
  • ‘सेल्फ सेंटर’ (छात्रों के अपने ही स्कूल में बनाए गए परीक्षा केंद्र) की व्यवस्था खत्म की गई. पाया गया कि सुधारों के पहले ऐसे ‘सेल्फ सेंटर’ वाले निजी स्कूलों के नतीजे शानदार होते थे लेकिन सुधारों के बाद उनके नतीजे का स्तर गिरा.
  • केवल दूरदराज़ वाले जवाहर नवोदय विद्यालयों को ‘सेल्फ सेंटर’ बनाने की अनुमति दी गई.
  • अधिकतर परीक्षा केंद्र निजी स्कूलों में बनाए जाते थे. परीक्षा केंद्रों की गहरी समीक्षा की गई और फैसला किया गया कि सबसे पहले सभी केंद्रीय शिक्षा संस्थानों—केंद्रीय विद्यालयों और जवाहर नवोदय विद्यालयों को परीक्षा केंद्र बनाने के बाद निजी स्कूलों की पृष्ठभूमि और परीक्षाएं कराने के उनके रेकॉर्ड की गहरी जांच के बाद उनका चयन किया जाएगा.
  • प्रश्नपत्रों के कस्टोडियन का चयन करने के लिए वित्त मंत्रालय से संपर्क किया गया और के मुख्यालयों के साथ ‘एमओयू’ (सहमति पत्र) पर दस्तखत किए गए. इससे पहले सीबीएसई केवल संबंधित शाखा कार्यालयों के साथ ‘एमओयू’ पर दस्तखत करती थी. भंडारण के सभी केंद्रों को वित्त मंत्रालय से पत्र भेजा जाने लगा ताकि परीक्षाओं की शुद्धता बनी रहे.
  • भंडारण के केंद्रों के चयन की वैधानिक शर्तें तय की गईं. सीसीटीवी कैमरे, अनुभवी और वरिष्ठ मैनेजरों, आसान पहुंच, स्ट्रॉंग रूम जैसी बुनियादी सुविधाओं को भंडारण के केंद्रों के चयन की शर्तों में शामिल किया गया.
  • जिस स्कूल को परीक्षा केंद्र बनाया गया है उसके परिसर में स्थित बैंक शाखा को उस केंद्र का कस्टोडियन नहीं बनाया जाएगा. ऐसे विशेष निर्देश जारी किए गए.
2. प्रश्नपत्रों की डेलीवरी
  • इनके परिवहन की पूरी प्रक्रिया की वास्तविक समयबद्ध सूचना रखी गई.
3. बाहरी भागीदारों की पहचान
  • केंद्रों के सुपरिंटेंडेंटों, निरीक्षकों और पर्यवेक्षकों आदि के चयन और नियुक्ति के लिए वैधानिक ‘एसओपी’ और शर्तें तय की गईं.
  • हर एक परीक्षा से पहले हर एक राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक सभी मसलों को निबटाते हैं.
  • हर एक जिले के डीएम और एसपी को उनके इलाके के परीक्षा केंद्रों की अग्रिम सूचना भेजी जाती है.
 4. परीक्षाओं का पैटर्न
  • परीक्षाओं के स्वरूपों और उनके बारे में पूर्वानुमान को खारिज करने वाले तत्व को शामिल करने की प्रक्रियाओं की पूरी समीक्षा की गई.
5. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
  • टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग किया गया. लेकिन एनटीए की तरह सीबीएसई अपना सॉफ्टवेयर तैयार करने के लिए तीसरे पक्ष पर निर्भर नहीं रहती. सीबीएसई में विशेषज्ञों की अपनी टीम है जो संवेदनशील सॉफ्टवेयर तैयार करती है. इस टीम में स्थायी कर्मचारी शामिल हैं.
  • परीक्षा वाले दिन भंडारों की तस्वीरें हासिल की जाती हैं जिन पर समय/ स्थान लिखा होता है.
  • प्रश्नपत्रों का एक भी पैकेज जरा भी खराब पाया जाएगा तो ऑब्जर्वर और केंद्र सुपरिंटेंडेंट सूचना भेजेंगे और फिर नया प्रश्नपत्र ऑनलाइन भेजने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.
  • जिन विषयों में परीक्षार्थियों की संख्या बहुत ज्यादा होगी उन्हें छोड़कर बाकी सभी प्रश्नपत्र एनक्रिप्शन-डिक्रिप्शन प्रक्रिया के जरिए तुरंत ऑनलाइन भेजे जाते हैं. ये प्रश्नपत्र ऑब्जर्वर की निगरानी में स्कूल में ही तेज गति वाले प्रिंटरों से छापे जाते हैं.
  • तय समय से पांच मिनट पहले भी प्रश्नपत्र का पैकेज खोलने वाले शिक्षकों/प्रिंसिपलों के खिलाफ उसी दिन कार्रवाई की जाती है. यह सारी निगरानी टेक्नोलॉजी की मदद से हरेक केंद्र से तुरंत मिलने वाली सूचना के आधार पर की जाती है.
6. गलतियों की कीमत
  • हर एक भागीदार को ‘एसओपी’ जारी किया जाता है. क्या करना है और क्या नहीं करना है यह पूरी तरह साफ बता दिया जाता है.
  • एक भी गलती करने वाले निजी स्कूल की मान्यता रद्द की जा सकती है, और सरकारी कर्मचारी के खिलाफ फौरन सख्त कार्रवाई की जा सकती है.
7. परीक्षाओं की फंडिंग
  • सीबीएसई परीक्षाओं के लिए भारी सब्सिडी दे रही थी जिससे परीक्षाओं की साख पर असर पड़ सकता था.
  • परीक्षा की फीस बढ़ाई गई ताकि इसकी व्यवस्था, सुरक्षा आदि में सुधार किया जा सके.
  • एनटीए को भी अपनी भारी लागत पर विचार करना चाहिए.
8. सीबीएसई को हासिल बढ़त
  • सीबीएसई के अपने स्थायी कर्मचारी हैं, जिन्हें काफी पारदर्शी और ढांचागत प्रक्रिया के जरिए नियुक्त किया गया है. एनटीए मुख्यतः कंसल्टेंटों की मदद से काम करती है.
  • इसलिए सीबीएसई से संबद्ध स्कूलों का अपने परीक्षा केंद्रों पर पूरा नियंत्रण रहता है. इसके विपरीत एनटीए का कोई नियंत्रण नहीं रहता.
  • सीबीएसई के पास परीक्षाओं के लिए काफी व्यवस्थित उपनियम मौजूद हैं जिन्हें अदालतों ने भी मान्य किया है. ऐसी व्यवस्था एनटीए में नहीं है, ‘एसओपी’ तो शायद ही है.
  • पूरे देश में सीबीएसई के 16 पूर्ण क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिनमें इसके स्थायी कर्मचारी काम करते हैं. ये क्षेत्रीय कार्यालय परीक्षाओं के हर एक पहलू की निगरानी करते हैं जिनमें परिवहन से लेकर परीक्षा केंद्रों के चयन, कस्टोडियनों, निरीक्षकों, आकलन आदि की प्रक्रियाएं शामिल हैं. एनटीए का कोई क्षेत्रीय कार्यालय नहीं है, बावजूद इसके कि यह सीबीएसई से कहीं ज्यादा परीक्षाएं आयोजित करती है.
  • एनटीए में गोपनीयता और परीक्षाओं के कंट्रोलर की व्यवस्था नहीं है.
  • एनटीए में सीबीएसई की तरह अपनी टेक क्षमता नहीं है. इसके हर काम के लिए एक वेंडर रखा जाता है.
  • एनटीए का गठन हर एक विश्वविद्यालय को अपनी विशिष्ट प्रवेश परीक्षा व्यवस्था तैयार करने में मदद देने के लिए नहीं किया गया था.
  • एनटीए का गठन सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक प्रवेश परीक्षा की व्यवस्था बनाने के लिए किया गया था. ऐसे संस्थान इन परीक्षाओं के नतीजों का उपयोग कर सकते हैं.

हमारी आदत है कि हम कई बार गलती करने वाले की पहचान करने से पहले ही लोगों को सजा देने पर ज़ोर देने लगते हैं. लेकिन व्यवस्था में सुधार से ही बात बन सकती है, जैसा कि सीबीएसई के पूर्व अध्यक्ष ने किया, जिन्हें वैसे तो बर्खास्त किया जा सकता था. विडंबना यह है कि एनटीए द्वारा आयोजित परीक्षाओं में भरोसा दूसरी सभी परीक्षाओं पर संदेह से उपजा था— सीबीएसई पर भरोसा नहीं किया जा सकता, राज्यों के बोर्डों और सरकारों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, विश्वविद्यालयों पर भरोसा नहीं किया जा सकता. लेकिन एक केंद्रीय एजेंसी द्वारा आयोजित परीक्षाओं पर भरोसा किया जा सकता है. लेकिन यह भरोसा आज टूट गया है, लाखों छात्रों का जीवन बर्बाद हो गया है, जो यही साबित कर रहा है कि आसन जितना ऊंचा होता है, उससे गिरना उतना ही दर्दनाक होता है.

(लेखक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं और भारत सरकार में सेक्रेटरी रहे हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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