‘मुझे डर लगता है’ ‘किससे?’ ‘ख़ुशी से’
ख़ुशी का डर, जिसे चेरोफोबिया भी कहते हैं, इमरान ख़ान की पाकिस्तान सरकार उसी की शिकार है. हालांकि इनके मामले में जो चीज़ इन्हें सबसे ज़्यादा डराती है, वो है इनके लोगों की ख़ुशी. अगर आप पाकिस्तान में हैं और इंटरनेट पर, कोई ऐसी चीज़ है जो आपको ख़ुश करती है, या आपकी तफ़रीह का ज़रिया है, तो होशियार हो जाएं- बेहूदगी, बेहयाई, और मज़हब के मुताबिक़ न होने की बिना पर, इन्हें जल्द ही आपसे ले लिया जाएगा.
सोशल मीडिया एप टिकटॉक पर सबसे ताज़ा पाबंदी, दरअसल अश्लीलता के भेष में, सेंसरशिप और सियासी मुख़ालफ़त को ख़ामोश करने का मिला जुला क़दम है. बैन करने की इस मुहिम को वज़ीरे आज़म इमरान ख़ान ख़ुद चला रहे हैं, जिनका मानना है कि टिकटॉक जैसे एप, समाज के मूल्यों को नुक़सान पहुंचा रहे हैं, और इन्हें ब्लॉक कर देना चाहिए. हालांकि पहुंचाए गए नुक़सान को एप से जोड़ने वाली कोई रिसर्च, या डेटा तो सामने नहीं आया है, लेकिन लोगों को बस एक पवित्र इंसान बनने की, हुकूमत की परिकल्पना में क़ैद किया जा रहा है. पता नहीं कितने लोग ग़ैर-टिकटॉक दिनों में गुमराह हुए होंगे.
यह भी पढ़ें: पाकिस्तान में ‘मोदी का जो यार है, वो गद्दार है’ के नारे की धूम
टिकटॉक धर्म के लिए मनोरंजन नहीं
बैन के साथ ही पाकिस्तान अमेरिका और भारत के साथ मिलकर, अपने बेस्ट फ्रैंड चीन के ख़िलाफ खड़ा हो गया है. बैन से किसी को ताज्जुब नहीं हुआ, क्योंकि पिछले कुछ महीनों से टिकटॉक को लेकर एक तूफान उठा हुआ था- लाहौर हाईकोर्ट में दाख़िल एक पिटीशन में कहा गया कि एप पोर्नोग्राफी को बढ़ावा दे रहा था, जबकि दूसरे में शिकायत की गई थी कि बाइट-डांस की मिल्कियत वाला ये चीनी सोशल मीडिया एप, समाज में अश्लीलता फैला रहा था. पाकिस्तान तहरीके इंसाफ के एक एमपी ने तो टिकटॉक पर पाबंदी लगाने के लिए, पंजाब असेंबली में एक प्रस्ताव भी पेश कर दिया. अपनी तल्ख़ टिप्पणियों से, अक्सर इमरान ख़ान सरकार की आलोचना करने वाले टिकटॉक स्टार सऊद बट्ट को, लाहौर पुलिस ने एक बार गिरफ्तार करके उनकी पिटाई भी की थी. उन्हें अभी भी परेशान किया जा रहा है.
ज़िया-उल-हक़ की तानाशाही के दौरान मीडिया ने, जिस पर सख़्त सेंसरशिप बिठा दी गई थी, उस वक़्त के हालात पर टिप्पणी करने के लिए, जिन्हें मुल्क के सबसे अंधेरे दौर के तौर पर याद किया जाता है, मज़ाक़ और सियासी तंज़ का सहारा लिया. पाकिस्तान टेलीवीज़न पर दिखाए गया एक तंज़िया सीरियल आंगन टेढ़ा ऐसी ही थीम पर था. इसके अहम किरदारों ने फौजी रूल, उसकी चुनावी प्रक्रिया और 1980 के दौरान के बहुत से सामाजिक-सियासी मुद्दों का ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया. कुछ जाना पहचाना सा लगता है? तब की तरह आज भी, शासक मज़ाक़ में डूबी हुई आलोचना पर फौरन सक्रिय हो जाते हैं.
वज़ीरे आज़म इमरान ख़ान को लगता है कि ये हॉलीवुड का बॉलीवुड पर असर था, जिसने भारत में फैमिली सिस्टम को तबाह कर दिया, और रेप कल्चर को बढ़ावा दिया. लेकिन पिछले दो साल से, पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर पाबंदी है- तो फिर पूरे मुल्क में रेप मामलों में आए उछाल को आप क्या कहेंगे? ख़ासकर ऐसे में, जब पाकिस्तान का नेशनल ड्रामा सीरियल एर्तुग्रुल है, जिसकी सिफारिश ख़ुद पीएम ने की है. इन सवालों का कोई जवाब नहीं है, क्योंकि इनका जवाब देने के लिए उस सिस्टम को सुधारना होगा, जहां रेप मामलों में जुर्म साबित होने की दर, सिर्फ 3 प्रतिशत है. लेकिन ख़ासकर सरकारों के लिए, सरेआम फांसी और बलात्कारियों को नामर्द बनाने के, आम लोगों के जज़्बात के साथ बह जाना आसान होता है. फिलहाल के लिए टिक-टॉकिंग के 14 सेकंड्स कम कर दिए गए हैं, जो कि एक आसान विकल्प है.
सच्चाई ये है कि लोग एक बिस्किट का विज्ञापन जिसमें एक डांस नंबर है, या पीटीवी पर योगा पैंट्स पहने वर्ज़िश करती महिला को देखकर, जितने परेशान होते हैं, उतने मुल्क भर में हो रहे रेप मामलों से नहीं होते. एक पाकिस्तानी वेब सीरीज़ चुड़ैल्स से हर कोई परेशान हो जाता है, चूंकि उसमें पिताओं की हिंसा और समलैंगिकता जैसे विषयों पर बात की जाती है- इससे पाकिस्तान बेचैन हो जाता है. रिपब्ल्कि की बुनियाद शो के एक वायरल सीन से हिल जाती है, जहां एक महिला सीईओ सेक्सुअल फेवर्स देकर टॉप पर पहुंचने की बात करती है. चुड़ैल्स उस वक़्त सही साबित हो गईं, जब उन्होंने कहा था ‘मर्द को दर्द होगा’.
यह भी पढ़ें: क्या वो 18 की है? पाकिस्तानी क़ानून कैसे नाबालिग़ों के जबरन धर्मांतरण को क़ानूनी जामा पहना देता है
एसआरके और सलमान हुए बेरोज़गार
पीएम ख़ान 30 साल पहले के बॉलीवुड के ज़बर्दस्त प्रशंसक रहे हैं, लेकिन ये 2020 है, और पाकिस्तानी दर्शक जो बॉलीवुड देखते हुए बड़े हुए हैं, उन्हें अपनी फिल्मी सलाहियतें दिखाने के लिए टिकटॉक मिल जाता है. उनके अंदर के शाहरुख़ खान्स, खलनायक्स, और तेरे नाम के सलमान ख़ान्स, पाकिस्तानी टिकटॉकर्स के बीच कुछ पॉपुलर थीम्स हैं.
छोटा किंग, जिसे टिकटॉक के शाहरुख़ ख़ान के के तौर पर भी जाना जाता है, ख़ासतौर से एसआरके की नक़ल करता है. वो डॉन से लेकर दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, परदेस, बाज़ीगर और फिर दीवाना तक की झलक दिखाता है. हमने छोटा किंग को ऐसे बहुमुखी अभिनेता के रूप में देखा है, जिसकी ख़ुद एसआरके भी तमन्ना करते.
संजय दत्त और माधुरी दीक्षित स्टारर खलनायक के चाहने वालों का एक अलग बेस है. 1993 की इस फिल्म के डायलॉग्स और गाने देखकर, छोटे बड़े सभी टिकटॉकर्स मशहूर गानों पर ठुमकते हैं: चोली के पीछे क्या है, नायक नहीं खलनायक हूं मैं, और पालकी में होके सवार चली मैं. लगभग परफेक्ट संजय दत्त के दिखने, और माधुरी के डांस की नक़ल करना, कोई आसान काम नहीं है.
तेरे नाम से सलमान ख़ान का बीच की मांग वाला हेयरस्टाइल, और उसके साथ एक नाकाम आशिक़ वाला हुलिया, और दुखभरे गाने गाना, किसी कमज़ोर दिल वाले का काम नहीं है. टिकटॉकर्स और उनके चाहने वालों को, इन छोटे वीडियो नाटकों में कोई अश्लीलता नहीं दिखी. लेकिन पूछना सरकार से चाहिए, जो लोगों को ख़ुश होते हुए नहीं देखना चाहती.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(लेखिका पाकिस्तान में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उसका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. विचार उनके निजी हैं.)
यह भी पढ़ें: इमरान खान की सरकार में क्या कोई सचमुच टिंडर के लेफ्ट स्वाइप से भड़क गया है