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Thursday, 26 December, 2024
होममत-विमतचीन-अमेरिका विभाजन के दोनों पलड़ों में भारत को होगा फायदा, शीत युद्ध में छिपे हैं आगे की राह के संकेत

चीन-अमेरिका विभाजन के दोनों पलड़ों में भारत को होगा फायदा, शीत युद्ध में छिपे हैं आगे की राह के संकेत

भारत का सामरिक संतुलन पश्चिम पर टिका है और आर्थिक संतुलन चीन की ओर केंद्रित है. लेकिन बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण के लिए इसे और भी बहुत कुछ चाहिए.

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वैश्विक रणनीतिक परिदृश्य पर गठजोड़ की राजनीति की एक बड़ी छाया अमेरिका और चीन के नेतृत्व वाले प्रतिद्वंद्वी समूहों के कई व्यक्तिगत साझे प्रयासों में स्पष्ट नजर आ रही है. 30 देशों के सैन्य गठबंधन नाटो ने 29 जून को अपनी नई रणनीतिक अवधारणा सामने रखी. इसमें पहली बार चीन नाटो के निशाने पर नजर आया—इसमें कहा गया है कि बीजिंग की महत्वाकांक्षाएं और दादागिरी वाली नीतियां ‘उसके हितों, सुरक्षा और मूल्यों के लिए चुनौती बनी हुई हैं.’ नाटो ने चीन और रूस के बीच गहराती रणनीतिक साझेदारी के साथ-साथ यह भी रेखांकित किया कि उनकी तरफ से कैसे सीमा-विहीन समंदरों में नेविगेशन की स्वतंत्रता सहित नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को धूमिल करने के परस्पर ठोस प्रयास किए जा रहे हैं.

चीन के बारे में नाटो की रणनीतिक चिंताएं इंडो-पैसिफिक से जुड़ी हैं, जिसे भू-रणनीतिक अवधारणा माना जाता है. चीन की समुद्री ताकत बढ़ने और एक विस्तृत पश्चिमी सैन्य गुट के नेतृत्व की अमेरिकी क्षमता के साथ तमाम तरह के टकराव की आशंका बढ़ी है और नाटो देश सामूहिक रूप से अपने किसी भी सदस्य की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. ऐसा लगता है कि ये अपरिहार्यता भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय होनी चाहिए.

यूक्रेन में जारी युद्ध पुराने यूरोपीय राजनीतिक टकराव की ही अगली कड़ी जैसा है. अब यूरो-अटलांटिक और एशिया के परस्पर जुड़ने और खुद को एक बड़ी सुरक्षा चिंता के तौर पर दर्शाने में मुश्किल होने की संभावना बढ़ गई है. ऐसा इंडो-पैसिफिक में तेजी से बढ़ा है. ये चिंताएं आम तौर पर बेचैनी, अनिश्चितता और किसी के हितों की रक्षा जरूरतों संबंधी धारणाओं पर आधारित हैं. रणनीतिक तर्क ऐसे ही दृष्टिकोणों से मजबूत होते हैं और राजनीतिक रुख को आकार देते हैं.


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बहुध्रुवीय संरचना को भारत का समर्थन

अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिम और चीन के बीच व्यापक वैश्विक विवाद में भारत का राजनीतिक रुख तय करने वाले रणनीतिक तर्क का उद्देश्य भारत-प्रशांत में शांति को बढ़ावा देना होना चाहिए. इसलिए साझे हितों पर आधारित विभिन्न प्रकार की रणनीतिक भागीदारी सहभागी संरचना के तौर पर अपनाई गई है. संदर्भ और हित ही सहभागिता वाले प्रयासों की रूपरेखा निर्धारित करते हैं.

इसलिए, भारत के हित वैश्विक राजनीतिक विभाजन के दोनों पलड़ों में निहित हैं, जो कि पश्चिम के साथ भारत की नजदीकी बनाम चीनी-प्रभुत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ), ब्रिक्स और आरआईसी में इसकी मौजूदगी से स्पष्ट भी है. अगर संरचनात्मक तौर पर बात करें तो भारत का सामरिक संतुलन अब पश्चिम पर टिका है और उसका आर्थिक संतुलन चीन की ओर केंद्रित है. यह असंगति भारत के इस विश्वास को दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था पर आधारित होनी चाहिए.

एकध्रुवीय और द्विध्रुवीय दोनों संरचनाएं भारतीय हितों के प्रतिकूल हैं क्योंकि ये स्वतंत्र निर्णय लेने की इसकी क्षमता के लिए खतरा पैदा करती हैं. दोनों ही संरचनाओं का मतलब है कमजोरों पर मजबूत ताकतों का वर्चस्व. इससे विश्व व्यवस्था का अराजक चरित्र गहराता है. इनमें ऐसे युद्ध भड़काने की क्षमता है जो परमाणु हथियारों की छाया से बच नहीं सकते. हालांकि, विश्व में शांति बनाए रखने के लिए जिम्मेदार सर्वोच्च अंतरराष्ट्रीय निकाय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद वीटो पॉवर से लैस द्विध्रुवी ब्लॉक में बंटा हुआ. इसने सुरक्षा परिषद को महत्वपूर्ण सुरक्षा मसलों को लेकर इनके परस्पर विवाद निपटाने के लिहाज से बेमानी बना दिया है.


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गुटनिरपेक्षता की जरूरत!

जाहिर तौर पर कमजोर सुरक्षा प्रणालियों के साथ दुनिया गहराते टकराव की स्थिति की ओर बढ़ रही है. भारत को ऐसे घटनाक्रमों से निपटने के लिए एकध्रुवीय और द्विध्रुवी संरचनाएं और अधिक सशक्त होने की प्रवृत्ति पर काबू पाने के उद्देश्य से सहभागी प्रयासों पर आधारित कदम उठाने चाहिए. गुटनिरपेक्ष आंदोलन पूर्व में शीत युद्ध के दौरान इस तरह की कोशिश का नतीजा था. समकालीन वैश्विक राजनीति के मद्देनजर भारत के सामने सबसे बड़ा रणनीतिक सवाल यही है कि क्या गुटनिरपेक्षता को एक राजनीतिक रुख के तौर पर फिर से अपनाने की आवश्यकता है.

फॉरेन अफेयर्स के लिए हाल में लिखे एक लेख में भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने समकालीन अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में गुटनिरपेक्षता की जरूरत को रेखांकित किया, जो विफल या खत्म हो रहा है. उन्होंने शीत युद्ध की शुरुआत के साथ विभाजित दुनिया को लेकर एक समानांतर रेखा को दर्शाया, जो एशिया में तेजी से बदलते स्थानीय शक्ति संतुलन से वर्णित होती थी. गुटनिरपेक्षता की राह अपनाने को कुछ हद तक स्वाभाविक करार देते हुए उन्होंने कहा कि यह ज्यादा पक्षों को एकजुट कर सकती है. भारत के समक्ष अपने गुटनिरपेक्ष मंच को सक्रिय करने का अवसर उभर सकता है.

हालांकि, हिमालयी क्षेत्र में जारी भारत के क्षेत्रीय विवाद गुटनिरपेक्षता अपनाने की दिशा में किसी भी कदम को जटिल बना सकते हैं. चीन विवाद को एक द्विपक्षीय मसले के तौर पर देखता है जो वैश्विक मंच पर किसी अन्य सहभागी को प्रभावित नहीं करता. 2020 में लद्दाख में बीजिंग की सैन्य घुसपैठ के बाद भारत ने चीनी रवैये पर असहमति जताई और दो-टूक कहा कि ऐसी गतिविधियां बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं. हालांकि, दोनों देशों के आर्थिक संबंध बरकरार हैं और मौजूदा राजनीतिक संरचना के दायरे में बढ़ भी रहे हैं.

चीन का दबदबा

चीन पर कोविड-19 की उत्पत्ति का कलंक लगने के बाद यूक्रेन युद्ध भी अमेरिकी नेतृत्व में तमाम देशों के एकीकरण की वजह बना है. ये देश रूस-चीन गठजोड़ के खिलाफ अपने हितों की रक्षा का प्रयास कर रहे हैं. चीन एक ऐसे भारत को तरजीह देगा जो गुटनिरपेक्ष है, यदि वह एशिया में दबदबा बढ़ाने के उसके प्रयासों में मददगार हो और फिर उसे कम से कम एक द्विध्रुवी ब्लॉक के नेता के तौर पर उभार सके. प्राथमिकता के मामले में रूस भी चीन जैसा ही रुख अपनाएगा, लेकिन कारण कुछ अलग होंगे.

भारत के गुटनिरपेक्ष बनने से चीन को मिलने वाले फायदे के संदर्भ में हमें उन बड़े खतरों के प्रति सचेत रहना होगा जो चीनी-प्रभुत्व वाली क्षेत्रीय व्यवस्था में छिपे हैं. साथ ही इस वादे को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि भारत उन देशों के एक बड़े समूह का नेतृत्व कर सकता है जिन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है और जिनके हित वैश्विक द्विध्रुवीय सामरिक टकराव की भेंट चढ़ सकते हैं. संभवत: अब समय आ गया है कि भारत गुटनिरपेक्षता को अपने राजनीतिक रुख के तौर पर अपनाने के बारे में सोचे और यह आकलन करे कि उसे कितना समर्थन मिल सकता है. यदि पर्याप्त समर्थन मिलता है तो इस राह पर कदम बढ़ाना फायदेमंद ही होगा.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज के डायरेक्टर हैं; वे नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट के पूर्व सैन्य सलाहकार भी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी है)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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