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Friday, 27 December, 2024
होममत-विमतजो युद्ध भारत के मतलब का नहीं उसमें शामिल होने का दबाव डालने का किसी को हक़ नहीं 

जो युद्ध भारत के मतलब का नहीं उसमें शामिल होने का दबाव डालने का किसी को हक़ नहीं 

अमेरिका भारत की चिंताओं को दूर करे और भारत पर उंगली उठाने से पहले उन उपदेशों पर खुद अमल करे जो वह दूसरों को देता है. रणनीतिक स्वायत्तता कई कारणों से भारत के हित में है

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यूनाइटेड सर्विस इन्स्टीट्यूशन ऑफ इंडिया ने भारत-अमेरिका रक्षा संबंध के मसले पर हाल में दिल्ली में हुए एक सम्मेलन किया, जिसमें भाषण देते हुए अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेट्टी ने दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति की तारीफ की मगर साथ में असंतोष पैदा करने वाला यह बयान भी दे दिया कि “समय जब संघर्ष का हो तब रणनीतिक स्वायत्तता नाम की कोई चीज नहीं रह जाती”. 

जाहिर है, उनके निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा थी जिस पर यूक्रेन समेत कुछ यूरोपीय देशों ने सख्त टिप्पणी की थी. गार्सेट्टी ने रूस-यूक्रेन युद्ध की तुलना चीन-भारत के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बने हालात से की और कहा कि “हम सब जानते हैं कि इस दुनिया में हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं” इसलिए “अब किसी भी युद्ध से हम अछूते नहीं रह सकते”. 

इससे ये दो महत्वपूर्ण पहलू उभरते हैं—‘रणनीतिक स्वायत्तता’ और ‘युद्ध या लड़ाई’. 

रणनीतिक स्वायत्तता

रणनीतिक स्वायत्तता की अवधारणा का संबंध खासकर राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के मामलों में बाहरी प्रभावों से मुक्त होकर फैसले करने की किसी देश की क्षमता से होता है. भारत-अमेरिका संबंधों के मामले में रणनीतिक स्वायत्तता काफी महत्वपूर्ण हो जाती है, खासकर तब जब कोई लड़ाई चल रही हो या भू-राजनीतिक तनाव बढ़ गया हो. रणनीतिक स्वायत्तता कई कारणों से भारत के हित में है, यह भारत-अमेरिका संबंध के संदर्भ में कभीकभार चुनौती प्रस्तुत कर सकता है लेकिन आम तौर पर इससे इस रिश्ते को चोट नहीं पहुंचती. रणनीतिक स्वायत्तता भू-राजनीति के व्यापक संदर्भ में भारत के लिए किस तरह फायदेमंद है, इस पर हम यहां बारीकी से विचार कर रहे हैं.

भारत का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य : भारत शुरू से, खासकर शीतयुद्ध वाले दौर में, गुटनिरपेक्षता और रणनीतिक स्वायत्तता की नीति पर चलता रहा है. यह रवैया खेमेबंदी की राजनीति और महाशक्तियों के दांवपेच से मुक्त रहने की नीति से उपजा. युक्रेन युद्ध इसी दांवपेच का खेल है जिसमें ‘नाटो’ की साझी ताकत और रूस एक-दूसरे से भिड़े हुए हैं. 

मौजूदा भू-रणनीतिक वास्तविकताएं : आज जो भू-राजनीतिक परिदृश्य है उसमें भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देते हुए अमेरिका समेत कई देशों के साथ साझीदारी और गठबंधन करता रहा है. यह संतुलन भारत को अपने हित को आगे बढ़ाते हुए अंतरराष्ट्रीय साझीदारों के साझा लक्ष्यों के लिए सहयोग देने का मौका प्रदान करता है. 

भारत-अमेरिका संबंध : भारत और अमेरिका के रिश्ते में पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय विस्तार हुआ है. इसके पीछे साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर साझा सरोकारों का हाथ रहा है. लेकिन फैसले करने के मामले में भारत ने अपनी स्वायत्तता बनाए रखी है, खासकर रक्षा सामग्री की खरीद, क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीति, और कूटनीतिक संबंधों के बारे फैसले करने में.   

युद्ध के प्रभाव : युद्ध या तनाव में वृद्धि के दौरान रणनीतिक स्वायत्तता को लेकर भारत का रुख खास तौर  से प्रासंगिक हो जाता है. वह अमेरिका और दूसरे देशों के साथ अपनी साझीदारी को तवज्जो तो देता है लेकिन अपने राष्ट्रीय हितों और रणनीतिक आकलनों के आधार पर स्वतंत्र फैसले करने के अपने संप्रभु अधिकार को प्राथमिकता देता है.  

मतभेदों का निबटारा : करीबी संबंध के बावजूद भारत और अमेरिका कुछ वैश्विक मसलों या क्षेत्रीय संघर्षों के बारे में अलग-अलग नजरिया रखते हैं. उदाहरण के लिए, रूस के साथ भारत का प्राचीन रक्षा संबंध. रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता उसे कई सहयोगी देशों के साथ सहयोग बनाए रखते हुए इन मतभेदों का निबटारा करने की गुंजाइश बनाती है. 

नजरिया : रणनीतिक स्वायत्तता की अवधारणा ही भविष्य में भारत-अमेरिका संबंधों को स्वरूप प्रदान करती रहेगी. दोनों देश प्रतिरक्षा, आर्थिक तथा तकनीकी मामलों में आपसी सहयोग को और मजबूत बनाते हुए संप्रभुता के मामले में आपसी सम्मान और अपने रणनीतिक समीकरणों में स्वतंत्रता के महत्व को स्वीकार करते हैं. कभीकभार अड़चनें पैदा हो सकती हैं लेकिन उन्हें आपसी सम्मान की भावना से बर्दाश्त किया जा सकता है. 

सहयोग के क्षेत्र : भारत और अमेरिका प्रतिरक्षा और सुरक्षा, आतंकवाद के विरोध, व्यापार तथा निवेश, टेक्नोलॉजी, और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में विस्तृत सहयोग करते हैं. रणनीतिक स्वायत्तता भारत को अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को पूरा करते हुए अमेरिका के साथ गहरे संबंध बनाने की छूट देती है. 

 चुनौतियां और मतभेद : भारत और अमेरिका के रिश्ते में कभीकभार चुनौतियां और मतभेद उभरते रहते हैं, मसलन कुछ वैश्विक मसलों को लेकर उनके विचारों में भिन्नता होती है या रूस के साथ भारत के रक्षा संबंधों को ही लें. लेकिन रणनीतिक स्वायत्तता भारत को अपने मूल हितों पर कोई समझौता किए बिना इन मतभेदों को निबटाने की गुंजाइश बनाती है. 

द्विपक्षीय समझौते : दोनों देशों ने ऐसे प्रमुख समझौते किए हैं जिनमें भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को स्वीकार करते हुए आपसी सहयोग को और मजबूत बनाने की बात शामिल है. ये समझौते आंतरिक कार्रवाई को मजबूत बनाते हैं और एक ऐसी अहम क्षेत्रीय ताकत के रूप में भारत की भूमिका को मान्यता देते हैं जिसकी अपनी रणनीतिक जरूरतें हैं. 

संघर्ष बनाम युद्ध 

संघर्ष का मतलब व्यक्तियों, समूहों, या देशों के बीच मतभेद, विरोध या तनाव है. इसके अंतर्गत कई तरह के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, या भूमि संबंधी विवादों को भी शामिल किया जा सकता है. ये मामूली विवादों से लेकर छिटपुट झड़पों या गंभी टकरावों के रूप में हो सकते हैं जिनमें हिंसा और सशस्त्र मुक़ाबले के रूप में भी हो सकते हैं. संघर्ष स्थानीय हो सकते हैं, विशेष मसलों या क्षेत्रों को लेकर, या उनका दायरा व्यापक हो सकता है जिसमें कई पक्ष या देश शामिल हो सकते हैं जिन्हें वार्ताओं, मध्यस्थता के जरिए सुलझाया जा सकता है या कुछ मामले गंभीर हिंसा और युद्ध का रूप ले सकते हैं. 

इसके विपरीत, युद्ध खास तरह का संघर्ष होता है जो देशों या बड़े सशस्त्र समूहों के बीच संगठित और लंबी  सशस्त्र लड़ाई के रूप में होता है. युद्ध में अक्सर एक या ज्यादा पक्षों की ओर से दुश्मनी का औपचारिक ऐलान किया जाता है, जिसके बाद बाकायदा युद्ध शुरू होता है. इनमें दूसरी तरह के संघर्षों के मुक़ाबले ज्यादा भारी हिंसा, मौतें, और विनाश होता है. युद्ध लंबे चलते हैं, महीनों से लेकर वर्षों तक; इनमें सैन्य रणनीति और कार्रवाई के कई चरण चलते हैं. युद्ध अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और परंपराओं के अनुसार चलता है, जिसमें युद्धबंदियों और नागरिकों के अलावा कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल को लेकर भी कई नियमों का पालन करना पड़ता है.   

इस नजरिए से इजरायल और हमास के बीच संघर्ष चल रहा है, जबकि यूक्रेन में जो कार्रवाई चल रही है उसे युद्ध जैसी स्थिति कहा जा सकता है. एडवर्ड लॉरेंज ने सबसे पहले कहा था कि आपस में जुड़ी हुई इस दुनिया में कहीं भी युद्ध होता है तो उसका सभी देशों पर दूसरे या तीसरे स्तर का असर पड़ता है. एडवर्ड ने इसे ‘बटरफ्लाई इफेक्ट’ कहा है. देखने वाली बात यह है कि क्या इन घटनाओं से भारत के मूल मूल्यों और हितों पर असर पड़ता है. अगर किसी संघर्ष या युद्ध से हमारे मूल हित प्रभावित होते हैं तो हमें उसमें जरूर शामिल होना चाहिए. वरना किसी को हम पर ऐसे किसी युद्ध में शामिल होने का दबाव डालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जो हमारे मतलब का नहीं है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर के इस बयान के पीछे यही मंशा थी कि “यूरोप (पश्चिम) को अपनी इस मानसिकता को छोड़ना होगा कि उसकी समस्याएं सारी दुनिया की समस्याएं हैं, कि दुनिया की समस्याएं यूरोप की समस्याएं नहीं हैं.” 

भारत दशकों से पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित छद्म युद्ध को झेल रहा है. इसी महीने, सुरक्षा बलों को आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों में अपने करीब एक दर्जन सैनिकों को गंवाना पड़ा है और कई घायल हुए हैं. फिर भी अमेरिका पाकिस्तान को सैन्य सहायता और समर्थन देता जा रहा है. समय आ गया है कि वह भारत की चिंताओं को दूर करे और पाकिस्तान पर भारी दबाव बनाकर साबित करे कि वह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक जंग के प्रति प्रतिबद्ध है, न कि अपने दांव खेल रहा है. भारत पर उंगली उठाने से पहले अमेरिका उन उपदेशों पर खुद अमल करे जो वह दूसरों को देता है.

(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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