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Monday, 23 December, 2024
होममत-विमत'धरना गुरू' बनने के लिए चाहिए होता है हौसला जो UP में दूसरे किसी राजनीतिक दल में नहीं दिखता

‘धरना गुरू’ बनने के लिए चाहिए होता है हौसला जो UP में दूसरे किसी राजनीतिक दल में नहीं दिखता

आप सड़क पर से गुजर रहे 10 लोगों में सर्वे करा लीजिए और 10 में से 8 लोग उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का नाम अजय कुमार लल्लू है बता देंगे लेकिन सपा, बसपा व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का नाम भी नहीं बता पाएंगे.

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पिछले दिनों आपकी हिंदी वेबसाइट के मत विमत काॅलम में एक लेख देखा जिसका शीर्षक था ‘यूपी कांग्रेस में भगदड़ धरना गुरू बनकर रह गए हैं प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू’ इस लेख में एकतरफा टिप्पणी थी. किसी भी सही विश्लेषण के लिए सबसे जरूरी होती है निरपेक्ष सोचने की क्षमता और इसलिए मैं तथ्यों की रोशनी में आपको दिखाने की कोशिश करूंगा कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस की मिट्टी पलट दी गई है, समय लगेगा, खराब मौसम भी गुजरेगा पर यूपी में नई कांग्रेस की फसल जरूर उगेगी.

आप सड़क पर से गुजर रहे 10 लोगों में सर्वे करा लीजिए और 10 में से 8 लोग उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का नाम अजय कुमार लल्लू है बता देंगे लेकिन सपा, बसपा व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का नाम भी नहीं बता पाएंगे, ये छाप छोड़ी है अजय कुमार लल्लू ने देश के सबसे बड़े राज्य के निवासियों के दिलों दिमाग पर अपने धरना प्रदर्शन एवं संघर्षों के कारण. जिस कांग्रेस पर बंद कमरे में बैठकर राजनीति करने का ठप्पा लग चुका था, वहीं कांग्रेस पर अब हर जिले में कार्यकर्ता जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर लड़ रहा है और सरकार द्वारा जेल भेजा जा रहा है, मुकदमों से प्रताड़ित किया जा रहा है.

अजय कुमार लल्लू ने प्रदेश के कार्यकर्ताओं एवं नागरिकों में हक की लड़ाई लड़ने और उसके लिए जेल भी जाने का हौसला पैदा किया, और उनका सबसे बड़ा योगदान यह है कि उन्होंने कार्यकर्ताओं में सरकारी दमन का डर खत्म कर दिया. आखरी बार कितने साल पहले किसी भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष 25 दिन जेल में गुजार कर आया है, जनता की हक की लड़ाई लड़ने के दौरान. दूसरे विपक्षी दलों में कौन सा ऐसा प्रदेश अध्यक्ष है जो इतनी हिम्मत रखता हो.


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अजय लल्लू के कार्यकाल में जो नेता पार्टी छोड़कर गए हैं उन्होंने छोड़ने से पहले या दूसरी पार्टी ज्वाइन करने के बाद यही आरोप लगाया कि संगठन उनको नजरंदाज कर रहा था. उनमें से ज्यादातर के पूर्व में दूसरे राजनीतिक दलों से संबंधों का संदर्भ लेकर इस आरोप को खारिज भी किया सकता है पर बात यहां नैतिकता की है. बिना विचारधारा की राजनीति अनैतिक होती है और बिना विचारधारा के प्रति समर्पण के, संगठन की राजनीति असंभव है तो सोचिए उन लोगों का विचारधारा के प्रति कितना समर्पण रहा होगा कि जिन्होंने आरोप लगाने के दिन ही दूसरे विपक्षी दल को ज्वाइन कर लिया.

दूसरी ओर प्रदेश में कई कांग्रेसी ऐसे मिल सकते हैं जो पिछले 40 साल से संगठन में है और वर्तमान में खुद को नजरंदाज किया हुआ पाते हैं लेकिन विचारधारा के प्रति उनका समर्पण और कांग्रेस के प्रति उनका अपनत्व है कि वह किसी और दल में जाने की सोच भी नहीं सकते हैं क्योंकि उनको पता है कि वो सच की लड़ाई लड़ रहे हैं, वो भारत की आज़ादी की लड़ाई के मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं, वो जिस तरह की आबो-हवा में पले बढ़े उसके वजूद को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं, आने वाली पीढ़ी के बेहतर भविष्य के लिए लड़ रहे हैं और जब कोई बोल तक नहीं पा रहा है उस वक्त सिर्फ कांग्रेस लड़ रही है.

अप्रत्याशित परिणाम के लिए अप्रत्याशित रणनीति और श्रम की आवश्यकता होती है और पूर्व स्थापित व्यवस्था से अप्रत्याशित परिणाम की अपेक्षा करना अनुचित होता इसलिए संगठन में ऊपर से नीचे तक बदलाव किए गए जो कि उनका अधिकार भी है. संगठन निर्माण में यथास्थिति को तोड़ा गया है और यथासंभव हर कमेटी में प्रतिभावान लोगों को मौका दिया गया है. संगठन बनाना और खड़ा करना एक सतत प्रक्रिया है और यह उस वक्त और कठिन हो जाता है जब पार्टी के पास संसाधनों की नितांत कमी हो. उत्तर प्रदेश मे कांग्रेस कार्यालय ज्यादातर जिलों में किराए पर है, पूरे प्रदेश में पार्टी का आम कार्यकर्ता अपने खर्चों पर संगठन का प्रचार प्रसार कर रहा है, तब भी इन सब के पश्चात कांग्रेस ही एकमात्र विपक्षी दल थी जो प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ सड़क से लेकर सदन तक लड़ रही थी. गेहूं और धान की सरकारी खरीद के मुद्दे से लेकर बिजली के स्मार्ट मीटर तक के मुद्दे कांग्रेस उठा रही है.

निश्चित तौर पर कुछ कमियां रह गई होंगी पर व्यवस्था परिवर्तन करके नई व्यवस्था को स्थापित करने में समय लगता है. राजनीति में बदलाव को पचाने में भी लोगों को समय लगता है. प्रियंका जी व अजय लल्लू के नेतृत्व में मुझे उम्मीद है कि यूपी में पार्टी फिर उठ खड़ी होगी.

(लेखकर यूपी कांग्रेस से जुड़े हैं और ये उनके निजी विचार हैं)

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