आइए इस हफ्ते राजनीति से विराम लें और अपना ध्यान किसी और अधिक निराशाजनक चीज़ पर लगाएं: कोविड-19. जैसे-जैसे मामले बढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे यह नहीं कहा जा सकता कि कोविड वायरस पहले की बात थी.
और जैसा कि कोविड एक धीरे-धीरे वापसी कर रहा है, वैसे ही गलत धारणाएं और अफवाहें भी फैल रही हैं जो कि पुराने महामारी के दिनों की याद दिलाती हैं.
यहां एक और बात है जिसके बारे में मैं लोगों को खूब चर्चा करते हुए देखता हूं- क्या कोविड वैक्सीन आपको मार सकती है?
हंसिए मत. यह एक गंभीर प्रश्न है. क्योंकि यह नजरिया जुबानी काफी तेजी से फैल रहा है और मामलों की बढ़ती संख्या के कारण यह दो महीने पहले की तुलना में अब अधिक मायने रखता है.
जो लोग आपको वैक्सीन न लगवाने के लिए कहते हैं या कहते हैं कि वैक्सीन से उनके दोस्तों की मौत हो गई, वे आमतौर पर पागल नहीं हैं. वे अमेरिका के एंटी-वैक्सर्स या भारत में हमारे पास अपेक्षाकृत कुछ सिरफिरों की तरह नहीं हैं जिन्होंने अपने कोविड शॉट्स लेने से इनकार कर दिया है. वे पूरी तरह से तार्किक लोग हैं और वे टीके के बारे में अपनी शंकाओं को ऐसे शब्दों में बताते हैं जो जरूरी नहीं कि बेतुका लगे.
वे पूछते हैं कि ऐसा क्यों है कि इतने सारे युवा जिनमें ज्यादातर स्वस्थ लोग शामिल हैं, वे अचानक दिल के दौरे से मर रहे हैं? यह सवाल हमेशा हम में से अधिकांश के अंदर कहीं न कहीं छू जाता है क्योंकि हम सभी किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो बाहरी रूप से स्वस्थ लग रहा था जब तक कि वह (और यह लगभग हमेशा ‘पुरुष’) अचानक गिर गया और दिल का दौरा पड़ने से उसकी मृत्यु हो गई.
अब तक, एक तरह से तर्कसंगत है. दिल के दौरे में लगातार होने वाली वृद्धि चिंताजनक है. लेकिन तब तर्क अजीब हो जाता है. वे सभी युवा (अच्छे, युवा) अपने समय से पहले कैसे मर सकते थे जब तक कि उन सभी ने कुछ ऐसा नहीं लिया जिससे उनके दिल ने अचानक काम करना बंद कर दिया? और वह ऐसा क्या था जो उन सब में समान था?
उन्हें वैक्सीन लगाया गया था. इसलिए कोविड के टीके ने उन्हें मार डाला. क्या यह स्पष्ट नहीं है?
ठीक है, वास्तव में नहीं, ऐसा नहीं है. क्योंकि इनमें से लगभग सभी लोगों में एक बात और भी समान थी: वे सभी कोविड से संक्रमित थे.
क्या इस बात की अधिक संभावना नहीं है कि कोविड के लंबे से मध्यम अवधि के प्रभावों में से एक यह है कि यह हृदय को उन तरीकों से कमजोर करता है जिन्हें हम अभी तक पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं? और यह कि जिन लोगों को कोविड हुआ है (यानी लगभग हम सभी को) उन्हें अपने दिल के बारे में अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है?
स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने हालिया साक्षात्कारों में यही लाइन ली है. उन्होंने एनडीटीवी को बताया, “हमने बहुत सारे युवा कलाकारों, एथलीटों, खिलाड़ियों को देखा…परफॉर्म करते वक्त मंच पर ही उनकी मौत हो गई. हम सभी ने देखा और विभिन्न स्थानों से रिपोर्ट्स आने लगीं.”
मंडाविया ने अगला तार्किक कदम उठाया. उन्होंने कहा, “सरकार ने कोविड के साथ युवा लोगों में हाल ही में दिल के दौरे के बीच की कड़ी का पता लगाने के लिए रिसर्च शुरू किया है,” उन्होंने कहा, “और परिणाम दो-तीन महीनों में आने की उम्मीद है.”
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फर्जी इलाज
जब हमारे सामने दिल के दौरों की बाढ़ सी आ गई है जो कि पहले से ही रिसर्च का विषय है, तो इतने सारे लोग टीके को दोष क्यों देना चाहते हैं?
मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हम इसके बारे में कुछ कर सकते हैं. अगर कोविड का होना हमें दिल के दौरे के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है, तो बस ठीक है. हमारे आसपास (लगभग) सभी को कोविड था. चीजों को बदलने के लिए हम कुछ नहीं कर सकते. लेकिन अगर हम टीकों को दोष देते हैं, तो शायद हम तीसरा बूस्टर शॉट नहीं ले कर खुद को बचा सकते हैं जो हमें अब तक लेना चाहिए था. हमें लग सकता है कि सब कुछ नियंत्रण में है और विश्वास कर सकते हैं कि वैक्सीन लेने से इनकार करके हम अपनी सुरक्षा के लिए कुछ कर रहे हैं.
यह काफी क्रेजी है. लेकिन कोविड हम सभी को थोड़ा क्रेज़ी बनाता है. महामारी का दौर इतना दर्दनाक था, मौत और वीरानी से भरा हुआ था कि हममें से अधिकांश के दिमाग में यह अब भी बना हुआ है. हम भूल जाते हैं कि उस वक्त कितनी ज्यादा घबराहट और गलत सूचनाएं फैलाई जा रही थीं. बोगस ‘इलाज’ और ‘प्रिवेंटिव’ दवाओं के बारे में वे लोग बता रहे थे जिन्हें इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी.
अमेरिका में, तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रिवेंटिव उपाय के तौर पर प्रचार करके हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन जैसी मलेरिया-रोधी दवाओं की पैनिक-बाइंग को बढ़ावा दिया. दोनों दवाएं कोविड के खिलाफ अप्रभावी थीं और इसका पता तब चला जब ट्रंप, उनकी पत्नी और उनके बेटे सभी को इसे लेने के बावजूद कोविड हो गया.
यहां तक कि जिन डॉक्टरों को अधिक जिम्मेदार होना चाहिए था, उन्होंने भी कहा कि पैरासाइटिक इंफेक्शन का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा आइवरमेक्टिन काफी प्रभावी इलाज है. लेकिन ऐसा नहीं था. और अभी भी कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि यह किसी भी तरह का कोविड इलाज है, यह केवल सनकी और राजनीति से प्रेरित एंटी-वैक्सर्स के द्वारा कहा जाता है.
सनकपन को हावी न होने दें
जबकि यह सब बेकार की बात फैलाई जा रही थी, एक प्रभावी दवा जो कोविड से लड़ सकती थी, रोगियों को देने से मना किया जा रहा था. अमेरिका में प्रतिक्रियावादी राजनेताओं ने वैक्सीन के खिलाफ अभियान चलाया. और भारत में, सरकार की एंटी कोविड टीम की अयोग्यता के कारण पर्याप्त टीके उपलब्ध नहीं हो पाए.
हम अब अपने वैक्सीन अभियान की सफलता के बारे में शेखी बघारते हैं लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि यह तभी सफल हुआ जब स्वास्थ्य मंत्री को बर्खास्त कर दिया गया और सरकार ने डॉ. डेथ-टाइप ‘टास्क फोर्स’ के आंकड़ों को दरकिनार कर दिया, जो हमें यह बताने के लिए हर दिन टीवी पर दिखाई देते थे कि मास्क न लगाना हमारी अपनी गलती थी.
बरखा दत्त की पुरस्कार विजेता टू हेल एंड बैक: ह्यूमन्स ऑफ कोविड इसकी पूरी कहानी कहती है. सरकार ने 10 जनवरी 2021 को 1.1 करोड़ शॉट्स के लिए सीरम इंस्टीट्यूट को वैक्सीन के लिए अपना पहला ऑर्डर दिया था. यह बहुत कम था. यह दिल्ली की वयस्क आबादी के लिए भी पहला शॉट प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं था. सीरम इंस्टीट्यूट के पास दूसरा ऑर्डर भी सिर्फ एक करोड़ डोज का था.
सीरम इंस्टीट्यूट, ब्रिटिश एस्ट्राजेनेका वैक्सीन (भारत में कोविशील्ड कहा जाता है) बना रहा था और अधिक शॉट्स की आपूर्ति कर सकता था लेकिन सरकार ने उसका ऑर्डर नहीं दिया. जहां तक स्वदेशी कोवैक्सिन की बात है, तो इसे प्रोडक्शन के लेवल तक पहुंचने में समय लगा, जैसा कि राजनेताओं ने दावा किया था.
नतीजतन, टीके खत्म हो गए. केंद्र सरकार ने झूठ बोला और खराब वितरण के लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहराया. राज्य सरकारों ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए लड़ाई लड़ी और जब तक सरकार कि कोविड टीम में फेरबदल नहीं किया गया और टीकाकरण कार्यक्रम ठीक से शुरू नहीं हो गया, तब तक राज्यों ने संघर्ष किया और सबके लिए फ्री-फॉर-ऑल लागू किया गया.
यह बताना असंभव है कि अगर पहले और लोगों को टीका लगाया गया होता तो कितने लोगों की जान बचाई जा सकती थी. लेकिन जो बात स्पष्ट है, वह यह है कि आज हम कोविड के फिर से उभरने को लेकर कम चिंतित हैं, भले ही मामलों की संख्या बढ़ रही हो, क्योंकि हममें से अधिकांश का टीकाकरण हो चुका है.
इसलिए इन दावों से भ्रमित न हों कि टीका आपको मार डालेगा. यदि आपने पहले से ऐसा नहीं किया है तो अपना बूस्टर लें. हम पहले भी एक बार इस तरह के पागलपन से गुजर चुके हैं. और इससे लोगों की मौत हुई. याद रखें कि इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि कोविशील्ड या कोवैक्सिन से दिल का दौरा पड़ता है.
पागलपन को फिर से हावी न होने दें. और केवल अपनी अज्ञानता के कारण नई कोविड लहर न फैलने दें.
हमारा जीवन इस पर निर्भर हो सकता है.
(वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार और टॉक शो होस्ट हैं. उनका ट्विटर हैंडल @virsanghvi है.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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