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बुधवार, 11 जून, 2025
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2005 में रामविलास पासवान ने लालू के साथ जो किया, वही 2025 में नीतीश को चिराग से डर सता सकता है

क्या होगा, अगर नीतीश कुमार 43 या उससे भी कम सीटें जीतते हैं? चिराग पासवान बिहार में बीजेपी के सपनों को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

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एक केंद्रीय मंत्री आखिर क्यों विधानसभा चुनाव लड़ना चाहेंगे, जब उनकी पार्टी राज्य में हाशिए पर है और मुख्यमंत्री की कुर्सी भी दूर की कौड़ी लगती है? बिहार की सियासत में अब यही सवाल पूछा जा रहा है, क्योंकि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री मिनिस्टर चिराग पासवान ने रविवार को ऐलान किया कि वे आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. यह कोई मामूली राजनीतिक दिखावा नहीं है. जिस तरह उन्होंने अपने पिता रामविलास पासवान की मौत और अपने चाचा व अन्य सांसदों की बगावत के बाद अपनी पार्टी को संभाला और फिर से उभरे, वह उनकी सूझबूझ का संकेत है. 42 साल के चिराग पासवान के पास अनुभव और समझदारी दोनों है.

तो फिर वे क्या सोच रहे हैं? जब कुछ हफ्ते पहले मैंने उनसे चुनाव लड़ने की अटकलों पर पूछा गया तो उन्होंने टालमटोल वाला जवाब दिया. उन्होंने कहा कि उनके पार्टी सहयोगियों को लगता है कि उनके चुनाव लड़ने से पार्टी को मजबूती मिलेगी. यह बात ठीक लगती है, लेकिन पूरी तरह से भरोसेमंद नहीं है. बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) पहले से ही काफी भीड़भाड़ वाला है. भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) करीब सौ-सौ सीटों पर चुनाव लड़ने वाले हैं. ऐसे में 243 सदस्यीय विधानसभा में बची हुई 35-40 सीटें बाकी एनडीए सहयोगियों के लिए ही रहेंगी. इसमें चिराग पासवान की पार्टी के साथ जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी शामिल हैं. पासवान को इन बची हुई सीटों में से बड़ा हिस्सा जरूर मिलेगा, लेकिन यह इतना नहीं है कि वे बड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पालें और खुद चुनाव मैदान में उतरें.

एलजेपी ने कहा है कि पासवान आरक्षित नहीं, बल्कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ेंगे. वे अपने छह प्रतिशत पासवान वोटबैंक से आगे जाकर पार्टी का आधार बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन मामला सिर्फ इतना भर नहीं है. इस पूरी कहानी को समझने के लिए 20 साल पीछे जाना होगा, जिसके कारण जब नीतीश कुमार को चिराग पासवान की बिहार में सियासी चालों से सतर्क होंगे.

फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान ने लालू यादव के परिवार के 15 साल के शासन को खत्म कर दिया. उस समय की सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की तीन सहयोगी पार्टियों—एलजेपी, कांग्रेस और लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी)—ने अलग-अलग चुनाव लड़ा. पासवान सीनियर ने आरजेडी के खिलाफ उम्मीदवार उतारे, लेकिन कांग्रेस के खिलाफ नहीं. आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, एलजेपी को 29 सीटें मिलीं और कांग्रेस को 10. अगर ये तीनों एक साथ आते, तो छोटे दलों के समर्थन से लालू-राबड़ी का 15 साल पुराना शासन जारी रह सकता था. एनडीए को 92 सीटें मिलीं. बहुमत का आंकड़ा 122 था, ऐसे में रामविलास पासवान किंगमेकर बनकर उभरे.

उन्होंने ऐलान किया कि वे “ना तो सांप्रदायिक बीजेपी के साथ जाएंगे और ना ही भ्रष्ट और जातिवादी आरजेडी के साथ.”

उन्होंने कहा कि वे एक मुस्लिम मुख्यमंत्री का समर्थन करेंगे. उन्हें पता था कि लालू इसके लिए राज़ी नहीं होंगे. रामविलास पासवान ने एक नया चुनाव कराने के लिए हालात बना दिए, जिसके बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और लालू यादव का शासन खत्म हो गया.

अभी क्या हो रहा है

कट टू 2020. खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताकर चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार पर सीधा हमला बोला. उन्होंने उन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे जहां जेडीयू चुनाव लड़ रही थी. लेकिन बीजेपी के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारे, ठीक वैसे ही जैसे उनके पिता ने 20 साल पहले कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारे थे. एलजेपी को 2020 में सिर्फ एक सीट मिली, लेकिन जेडीयू के तीन दर्जन से ज्यादा उम्मीदवारों की हार में उसकी बड़ी भूमिका रही. जेडीयू सिर्फ 43 सीटों पर सिमट गई और बीजेपी 74 सीटों के साथ बड़ी पार्टी बनकर उभरी. हालांकि, नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे.

अब, 2025 में, प्रधानमंत्री मोदी के स्वयंभू हनुमान केंद्र सरकार में मंत्री हैं. पासवान और कुमार दोनों एनडीए में हैं. चिराग पासवान कई बार सार्वजनिक मंचों से मुख्यमंत्री की तारीफ कर चुके हैं. लेकिन यह नीतीश कुमार के लिए भरोसा देने वाला नहीं है. सिर्फ पिछले हफ्ते ही पासवान ने बिहार के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर मुजफ्फरपुर में एक 9 साल की दलित बच्ची के साथ गैंगरेप और हत्या को लेकर राज्य प्रशासन पर निशाना साधा.

चिराग पासवान ने लिखा, “यह भयावह अपराध न केवल एक मासूम जान की बर्बर हत्या है, बल्कि बिहार में क़ानून-व्यवस्था, सामाजिक चेतना और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की गहरी विफलता को भी उजागर करता है.”

नीतीश कुमार को शायद विपक्ष से भी अपने प्रशासन पर इतनी तीखी टिप्पणी की उम्मीद नहीं रही होगी.

तो, चिराग पासवान आखिर कर क्या रहे हैं? चुनाव लड़ने की उनकी घोषणा सीट बंटवारे की बातचीत से पहले आई है. 2020 में एलजेपी को 32 सीटों पर जेडीयू से ज़्यादा वोट मिले थे. जाहिर है, पासवान इन सीटों और उससे भी ज़्यादा पर दावा ठोकेंगे. नीतीश कुमार के लिए दबदबा बनाए रखना मुश्किल होगा. उनकी पार्टी की 2020 में हिट रेट बेहद खराब रही थी—115 में से सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी. वहीं बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया था—110 में से 74 सीटें. तो अगर चिराग की मांगें मानी जाएं, तो किसे सीटें छोड़नी होंगी? जाहिर है, नीतीश कुमार को. यह हो भी सकता है और नहीं भी, क्योंकि इस चुनाव में एनडीए के लिए नीतीश कुमार की उपयोगिता बहुत अहम है. लेकिन सीट बंटवारा तो बस शुरुआत है.

एक ऐसे हालात की कल्पना करें जब 2025 के चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी 43 से भी कम विधायकों पर सिमट जाए, बीजेपी अपना 2020 वाला प्रदर्शन दोहराए, और चिराग पासवान की पार्टी को लगभग 20 सीटें मिल जाएं. अपने दिवंगत पिता की तरह चिराग पासवान किंगमेकर बनकर उभरेंगे. यह तो तय ही है कि एलजेपी प्रमुख नीतीश कुमार का राज खत्म करना चाहेंगे, जैसे उनके पिता ने कभी लालू यादव का किया था.

इस काल्पनिक स्थिति में, नीतीश कुमार जाहिर तौर पर लालू यादव के खेमे में वापस जाने की धमकी देंगे, अगर गणित बनता है और लालू उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने को तैयार हों. हालांकि इसमें कई “अगर” हैं. और अगर लालू यादव तैयार नहीं हुए, तो बीजेपी, पासवान के समर्थन से, बिहार में अपना मुख्यमंत्री बनाने का पुराना सपना पूरा करना चाहेगी. यह मत भूलिए कि 2025 का नीतीश कुमार वह स्थिति में नहीं होंगे कि बीजेपी अगर हमला बोले तो अपने विधायकों को एकजुट रख सकें। जेडीयू के ज़्यादातर वरिष्ठ नेता बीजेपी के साथ काम कर रहे हैं.

अगर चिराग पासवान के पास वह नंबर भी हो जाएं जिससे विपक्षी महागठबंधन को बहुमत मिल जाए, तो क्या? आखिरकार, पासवान ने तेजस्वी से ‘भाईचारे’ का रिश्ता भी बनाए रखा है. कोई कह सकता है कि पासवान समुदाय आमतौर पर आरजेडी के कोर वोटबैंक से टकराव में रहा है, इसलिए चिराग एनडीए में ज़्यादा फिट बैठते हैं. उनके पास केंद्र में मंत्री पद भी है. लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है. कम से कम बीजेपी के वार्ताकार तो यही बात नीतीश कुमार से कहेंगे अगर चिराग किंगमेकर बनते हैं.

इन सभी संभावनाओं के बारे में सोचिए. अगर बिहारी नेता यह मानें कि बिहार की सियासत में मोदी के हनुमान की पूंछ में आग लगी है, तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता.

डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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