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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमततो क्या अब प्राचीन गौरव और आधुनिक विज्ञान के बीच लड़े जायेंगे आने वाले चुनाव?

तो क्या अब प्राचीन गौरव और आधुनिक विज्ञान के बीच लड़े जायेंगे आने वाले चुनाव?

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ट्रम्प के संदिग्ध रूसी हथकंडे और 2016 अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए कथित हैकिंग हमले पर रिपोर्टिंग एवलिन वॉ के नजरिये से बहुत अलग नहीं है|

ब्रिटिश लेखक एवलिन वॉ ने शायद आज की पत्रकारिता की स्थिति को पहले से ही भांप लिया था जब उन्होंने अपना हास्यप्रद उपन्यास स्कूप लिखा था।

लगभग 80 साल पहले 1938 में लिखे गये इस उपन्यास ने इंग्लैंड में पत्रकारिता के घमंडी और नासमझ पक्ष को बेनकाब करने की मांग की थी|

यह काल्पनिक युद्ध में बरबाद हुए एक पूर्वी अफ्रीकी देश ‘इश्माएलिया गणराज्य’ पर केन्द्रित है और सनसनीखेज एवं तथाकथित ‘अनन्य कहानियों’ (एक्सक्लूसिव स्टोरीज़) के लिए फ्लीट स्ट्रीट की भूख को चित्रित करने का प्रयास करता है|

राष्ट्रवादियों और देशभक्तों ने, विद्रोहियों और क्रांतिकारियों ने, रूसी बोल्शेविक्स और शासकों ने ऐसी अतिकाल्पनिक अशांति पैदा की  किसी को नहीं पता कि कौन किससे किसके लिए लड़ रहा है| फिर भी, देश से अनभिज्ञ और ‘युद्द पत्रकारिता’ में अनुभवहीन एक संवाददाता ‘द डेली बीस्ट’ के लिए रिपोर्ट लिखता है जो इंग्लैंड में सुर्खियाँ बनाता है।

100 से अधिक संवाददाता एक देश में गृह-युद्ध पर विह्वलता से रिपोर्टिंग करने के लिए इकठ्ठा हुए थे जबकि उनमें से किसी को भी इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था|

मैं एक केबल का उद्धरण देना चाहूँगा, जो उपन्यास में संवाददाता अपने संपादक को भेजता है, विदेशी युद्ध संवाददाताओं की गौरवशाली परंपरा में प्रकाशित करने का उनका पहला गर्वीला क्षण:

“बहुत कुछ नहीं हुआ है सिवाय राष्ट्रपति के, जिन्हें उनके ही महल में रूसी यहूदी, जो किसी काम का नहीं है, और बेनिटो नामक अश्वेत मुखिया के नेतृत्व में जून्टा क्रांतिकरियों द्वारा कैद कर लिया गया है| वे कहते हैं कि जब उनके बच्चे उन्हें देखने की कोशिश करते हैं तब वह नशे में हैं लेकिन दाई माँ इसे सबसे असामान्य सुन्दर बसंत ऋतु के गिल्टी प्लेग का प्रकोप कहती है|”

संपादक ने तुरंत उसे बर्खास्त कर दिया, लेकिन क्या पत्रकारिता में सुधार आया?

वॉ ने यह उपन्यास तब लिखा था जब फर्जी खबरों, पोस्ट-ट्रुथ(सच्चाई के बाद) और साइबर उपद्रव पर कोई बहस नहीं होती थी| ये सब मोबाइल फ़ोन और सोशल मीडिया की वैश्विक अराजकता के आगमन के बाद शुरू हुआ|

ट्रम्प के संदिग्ध रूसी हथकंडे और 2016 अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के लिए कथित हैकिंग हमले पर रिपोर्टिंग इस परिदृश्य से बहुत अलग नहीं है|

झूठ फ़ैलाने और बदनाम करने, मानहानिकारक मेल लिखने, 24×7 ट्रोल करने, इतिहास के तथ्यों से छेड़छाड़ करने और यहाँ तक कि पौराणिक कथाओं को फिर से लिखने, फोटोशॉप करने व मुख्यधारा के तथाकथित समाचारपत्रों और टीवी चैनलों को गलत जानकारी देने के लिए विशिष्ट रूप से तैयार की गयीं मोटा पैसा पाने वाली साइबर सेल्स अब अरबों डॉलर का एक वैश्विक उद्योग है|

लेकिन और भी मजेदार और चौंकाने वाली बात यह है कि भाजपा के बड़े नेता इन साइबर गिरोहों को भी पौराणिक कथाओं के मिथक के रूप में अपने बेतुके दावों के साथ पीछे छोड़ देते हैं : “सीता का जन्म टेस्ट ट्यूब में हुआ था” ; “महाभारत में संजय ने इंटरनेट और सभी प्रकार के रिमोट उपकरणों का इस्तेमाल किया था” ; “गौमूत्र कैंसर का इलाज कर सकता है” ; “राम के समय में उन्नत विमानन प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया था, उदाहरण के लिए पुष्पक विमान” ; “अनुवांशिकी और मूल कोशिका प्रौद्योगिकी इतनी उन्नत थी कि 100 कौरव एक माँ, गांधारी से पैदा हो सकते हैं” ; “गणेश का हाथी का सिर प्लास्टिक सर्जरी और अंग प्रत्यारोपण का एक शानदार कमाल था” ; “गुरुत्वाकर्षण न्यूटन से हजारों साल पहले ज्ञात हो गया था”, इत्यादि।

महाकाव्यों के लेखकों को ही नहीं, बल्कि इसहाक असिमोव और आर्थर सी क्लार्क जैसे महान विज्ञान-साहित्यकारों को भी यह रचनात्मक बकवास शर्मिंदा कर देगी।

सच में, यहाँ तक कि वाघ के लिए भी, इश्माइलिया गणराज्य से कहीं ज्यादा यह पूरी तरह से अपरिचित क्षेत्र होगा। लेकिन निश्चित रूप से स्कूप के लिए उन्होंने कुछ उत्तर कथाओं को लिखने के लिए पर्याप्त सामग्री प्राप्त की होगी, और शिव और नागों पर अधारित अमिश के उपन्यासों से ज्यादा लिख देते।

इतिहास के रूप में पौराणिक कथाएं, धर्मग्रन्थ के रूप में वास्तविक दार्शनिक शास्त्र, विज्ञान के रूप में वैदिक ज्ञान, राम सेतु के रूप में समुद्र के अन्दर की  शानदार वास्तुकला का उदाहरण हैं, और अयोध्या के इतिहास है जिसका निर्धारण ,उत्खनन इतिहासकारों के बजाय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा होगा। यह सब यह दिखाता है कि भोले भाले लोग कुछ भी मान सकते हैं और इस आधार पर मतदान भी कर सकते हैं।

यदि पुराने दिनों में भारत एक महान महाशक्ति था, तो लोग ये मानते हैं कि यह फिर से हो सकता है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की निरपेक्ष सदस्यता या पूरी गरीबी में रहने वाली आबादी के विशाल वर्ग के बावजूद।

विदेशी डिग्री और डॉक्टरेट के साथ अत्यधिक शिक्षित लोग, उच्च स्थानों में विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्ति, और समाज में आर्थिक रूप से सम्पन्न अच्छे वर्गों के लोग, चरम कर्कशता  के साथ यह तर्क देते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के राजनीतिक-दार्शनिक मार्गदर्शन के तहत नरेंद्र मोदी और बीजेपी के शासन के नेतृत्व में, भारत की प्राचीन महिमा को बहाल कर रहे हैं।

इसलिए, अगला चुनाव बीजेपी और विपक्ष के ‘महागठबंधन’ के बीच या नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच, फासीवाद और उदार लोकतंत्र के बीच, हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता के बीच नहीं है। वास्तव में यह प्रतियोगिता महान प्राचीन महिमा और आधुनिक पूंजीवादी या समाजवादी अपघटन के बलों के बीच में होगी। यह एक युद्ध होगा प्राचीन इतिहास और आधुनिक सभ्यता के बीच।

मोदी और मोहन भागवत को भरोसा है कि प्राचीन इतिहास और ज्ञान प्रबल होगा जो  पुनर्जागरण की नेहरूवादी निरंतरता को ध्वस्त कर देगा.

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आरएसएस सम्मेलन में भाग लेने और उन्हें संबोधित करने का फैसला किया है। वह वर्तमान के लिए प्रासंगिक रहना चाहते है। वैसे भी भविष्य अप्रासंगिक है।

Read in English : Next polls will be fought between ancient glories & modern science. Apt ‘Scoop’ sequel?

 

 

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