ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी अंदरूनी असमंजस और कशमकश जनता के बीच सुलझाने का फैसला लिया है. वह सार्वजनिक सभाओं में लोगों से कई सवाल पूछ रहे हैं: क्या मुझे चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं? क्या मैं अच्छी या बुरी सरकार चला रहा हूं? क्या यह सरकार चलती रहनी चाहिए? क्या मामा को दोबारा सीएम बनना चाहिए?
भीड़ भी अपनी प्रतिक्रिया “मामा, मामा” के नारे के रूप में सुनाई देती है. चौहान के ये सारे प्रश्न उनके अंदरूनी अंतर्विरोध थोड़ा असहाय, हताश और थोड़ी-थोड़ी चुनौती की भावनाओं को दर्शाते हुए प्रतीत होते हैं. उनका असली इशारा नई दिल्ली में अपने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहयोगियों की तरफ है जो फैसले ले रहे हैं. पार्टी आलाकमान उन्हें पांचवां कार्यकाल देने के मूड में नहीं है. इसीलिए वह लोगों से कह रहे हैं कि वो ही आलाकमान को बताएं कि वे किसे चाहते हैं.
चौहान जरूर हैरान होंगे. उनकी गलती क्या है? वह महज 64 वर्ष के हैं. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की उम्र 79 वर्ष थी जब आलाकमान ने 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें दरकिनार कर दिया था. 2005 से लगभग 17 वर्षों तक चले चौहान के चार कार्यकाल काफी हद तक दाग-मुक्त रहे हैं. यदि जीतने की क्षमता ही मानदंड है, तो राज्य का कोई भी भाजपा राजनेता पॉपुलैरिटी के मामले में उनके करीब आने का दावा नहीं कर सकता है. उससे बड़ी बात ये है कि, पिछड़े वर्ग की राजनीति पर केंद्रित जाति जनगणना पर मौजूदा बहस को देखते हुए, 10 भाजपा मुख्यमंत्रियों में से एकमात्र ओबीसी नेता हैं चौहान, जो एक और जनादेश पाने के लिए एक आदर्श चेहरा होते.
तो, भाजपा आलाकमान के यह कहने से इनकार करने की क्या वजह है कि अगर पार्टी सत्ता बरकरार रखती है तो चौहान मुख्यमंत्री बने रहेंगे? नए, युवा नेतृत्व को विकसित करने की आवश्यकता के बारे में तर्क चौहान के संबंध में उतना ठोस नहीं लगता.
नये नेतृत्व को देखो
सबसे पहले, अगर भाजपा नेताओं के लिए 75 साल की सीमा की बात करें, तो चौहान के पास अभी भी कम से कम एक दशक की राजनीति बची हुई है. वैसे भी, वह सीमा वरिष्ठ नेताओं के चुनिंदा समूह के लिए थी. अब जब 73 साल की उम्र में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2029 तक शासन के लिए अपना एजेंडा बता दिया है, तो अनौपचारिक आयु सीमा भी बेमानी हो गई है. अब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री, वसुंधरा राजे और रमन सिंह जो 70 वर्ष के हैं एक और कार्यकाल के लिए उचित रूप से दावा कर सकते हैं, यह देखते हुए कि वे अपने-अपने राज्यों में भाजपा के एकमात्र जन नेता हैं.
दूसरा, भाजपा जिस वैकल्पिक नेतृत्व का निर्माण कर रही है उस पर गौर करें. इसके उम्मीदवारों की दूसरी सूची हाईकमान की अब तक की पसंदों की एक झलक पेश करती है- नरेंद्र सिंह तोमर, 66, प्रह्लाद पटेल, 63, फग्गन सिंह कुलस्ते, 64, और कैलाश विजयवर्गीय, 67.
अगर उम्र ही मानदंड है तो उनमें से किसी को चौहान से बेहतर क्या बनाता है? यदि यह प्रशासनिक कौशल के बारे में है, तो पहले तीन के विभागों के बारे में सोचें जो सभी केंद्रीय मंत्री हैं. क्या आप कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री के रूप में तोमर द्वारा लिए गए आखिरी महत्वपूर्ण निर्णय को याद कर सकते हैं? आखिरी बार उन्होंने सुर्खियां बटोरीं – यानी, विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पार्टी का टिकट मिलने से पहले – जब वह कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के साथ बातचीत में केंद्र का चेहरा थे. प्रह्लाद सिंह पटेल, जो पर्यटन और संस्कृति मंत्रालयों का स्वतंत्र प्रभार संभाल रहे थे, को जुलाई 2021 में पदावनत कर दिया गया और जल शक्ति और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के मंत्रालयों में कनिष्ठ मंत्री बना दिया गया. कुलस्ते, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में राज्य मंत्री थे और उन्हें मोदी सरकार में भी जगह मिली, लेकिन बिना प्रमोशन के. जहां तक इन नेताओं की पोपुलैरिटी का सवाल है, यह अधिक से अधिक उनके निर्वाचन क्षेत्रों तक ही सीमित है.
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नया चेहरा कौन होना चाहिए
अगर बीजेपी आलाकमान मध्य प्रदेश में किसी नए चेहरे को आगे बढ़ाने को लेकर गंभीर है तो उनके पास एक विकल्प है-ज्योतिरादित्य सिंधिया. वह 52 वर्ष के हैं और अपने चंबल-ग्वालियर क्षेत्र से परे युवाओं के बीच अपील रखने वाले एक प्रखर राजनीतिज्ञ हैं. सिंधिया की प्रशासनिक कुशलता को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पहचाना था और उन्हें पदोन्नत कर विद्युत मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा था. इसकी तुलना में, मोदी कैबिनेट में सिंधिया का वर्तमान पोर्टफोलियो-नागरिक उड्डयन-एयर इंडिया के बिना दिखावे के लिये ही महत्वपूर्ण है.
आलाकमान ने तोमर को मैदान में उतारा है, जिनकी सिंधिया के साथ प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है और उन्हें भाजपा की चुनाव प्रबंधन समिति का संयोजक भी बनाया गया है.
इसलिए चौहान पार्टी आलाकमान के असली उद्देश्य के बारे में हैरान होंगे. और राजे और रमन सिंह भी ऐसे ही होंगे. इन राज्यों में इन दोनों के अलावा भाजपा के पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो अपने विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों से परे वोट हासिल कर सके. फिर भी, आलाकमान किसी भी कीमत पर उनको फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिये तैयार नहीं दिखता . उनकी सक्रिय भागीदारी के बिना, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा की हालिया जन आशीर्वाद यात्राएं और परिवर्तन यात्राएं भी फ्लॉप हो गई. इसमें बहुत कम भीड़ उपस्थित थी और पार्टी कार्यकर्ता और नेता खुले में लड़ रहे थे.
यहां तक कि पार्टी के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह ने जयपुर में एक कोर ग्रुप की बैठक में नेताओं को यात्राओं के माध्यम से गति पैदा करने में विफलता के लिए काफी खरी-खोटी सुनाई.
निश्चित रूप से, पीएम मोदी को अपने समकालीनों को कमजोर करके कुछ हासिल नहीं करना है. वह एक अलग लीग में हैं. जब भाजपा के हितों की बात आती है, तो प्रधानमंत्री कुछ भी करने को तैयार होते हैं. यहां तक कि पार्टी के विद्रोहियों को फोन करके उनसे विनती भी करते हैं, भले ही वे कितने भी महत्वहीन क्यों न हों. तो फिर वह चौहान और राजे को सार्वजनिक तौर पर इतना कमजोर क्यों होने देंगे? इसका जवाब किसी के पास नहीं है. लेकिन एक बात पक्की है. विधानसभा चुनाव के बाद चौहान, राजे और रमन सिंह के रास्ते से हटने से नई भाजपा के उदय में मदद मिलेगी – जैसे नया भारत, नया संसद भवन, नए आपराधिक कानून और कई अन्य नई चीजें. अगस्त 2019 में, मैंने अपने पॉलिटिकली करेक्ट कॉलम में बताया था कि 52 भाजपा नेता जो वाजपेयी की अंतिम मंत्रिपरिषद में थे, मौजूद थे. उनमें से, केवल छह ने मोदी 2.0 मंत्रिपरिषद में जगह बनाई थी – राजनाथ सिंह, रविशंकर प्रसाद, प्रह्लाद पटेल, संतोष गंगवार, श्रीपाद येसो नाइक और फग्गन कुलस्ते.
इनमें से, प्रसाद और गंगवार को 2021 में मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया था. नाइक, जो आयुष मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री थे, को भी पदावनत कर दिया गया और उसी वर्ष बंदरगाह, जहाजरानी और जल मार्ग राज्य मंत्री बना दिया गया. पटेल को 2021 में पदावनत कर दिया गया और अब उन्हें विधानसभा चुनाव में उतारा गया है.
वाजपेयी सरकार में कनिष्ठ मंत्री कुलस्ते 2016 से मोदी सरकार में अलग-अलग विभागों के साथ एक ही पद पर बिना पदोन्नति के बने रहे हैं. उन्हें भी विधानसभा चुनाव में उतारा गया है.
यदि पटेल और कुलस्ते को राज्य की राजनीति में बने रहने के लिए कहा जाता है और भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्ता बरकरार रखती है, तो मोदी मंत्रिमंडल में वाजपेयी मंत्रिमंडल से केवल एक ही नेता बचेगें और वो हैं – राजनाथ सिंह.
संभवतः. इस लिहाज से केंद्र में यह पूरी तरह से नई बीजेपी सरकार होगी. भाजपा के 10 मुख्यमंत्रियों में से केवल चौहान ही वाजपेयी युग के हैं. वाजपेयी युग के मजबूत मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से केवल राजे और रमन सिंह ही बचे हैं. तो, एक तरह से, आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा में वाजपेयी युग के अवशेष अंततः नेताओं की एक नई पीढ़ी के लिए रास्ता बनाते दिखेंगे – वे लोग जिनके लिए सब कुछ पीएम मोदी और शाह ही होंगे.
1980 के दशक में असरानी द्वारा लक्ष्मण सिल्वेनिया विज्ञापन पिच को याद करें: “पूरे घर के बदल डालूंगा?” मोदी-शाह मई 2024 में बीजेपी में इसे हासिल करते नजर आते हैं.
(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)
(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
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