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Sunday, 22 December, 2024
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महिलाओं और छात्राओं की शिक्षा की दिशा में नई शिक्षा नीति मील का पत्थर साबित हो सकती है

नई शिक्षा नीति में जेन्डर – समावेशी कोष की स्थापना एक नया और क्रांतिकारी कदम है. लेकिन ये प्रावधान स्त्रियों के लिए तय किये गए सामाजिक मापदंडों और घरेलू कार्यों के बोझ से मुक्त करवा कर क्या उन्हें विद्या के मंदिरों तक ले जा पाएंगे?

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मानव के सर्वांगीण विकास का मूल शिक्षा है. एक न्यायसंगत और समावेशी समाज के निर्माण और राष्ट्र के विकास के लिए भी शिक्षा आवश्यक है. इसी को ध्यान में रखते हुए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बालिकाओं और महिलाओं की शिक्षा में भागेदारी बढ़ाने के लिए कुछ प्रावधान किये गए हैं जिसमें जेन्डर – समावेशी कोष (पैरा 6.8 एन ई पी 2020 ) की स्थापना एक नया और क्रांतिकारी कदम है. लेकिन ये प्रावधान स्त्रियों के लिए तय किये गए सामाजिक मापदंडों और घरेलू कार्यों के बोझ से मुक्त करवा कर क्या उन्हें विद्या के मंदिरों तक ले जा पाएंगे?

इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने पूरी ईमानदारी से उन समस्याओं और बाधाओं को पहचाना है जो लड़कियों की शिक्षा के रास्ते में आती हैं. यह सकारात्मक संकेत है कि राष्ट्रीय शिक्षा के नीतिगत प्रावधान महिलाओं की शिक्षा में भागेदारी को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. शिक्षा नीति की प्रस्तावना में ही भारत की विदुषी नारियों गार्गी और मैत्रेयी का उल्लेख प्राचीन काल में शिक्षा के क्षेत्र में नारियों की सशक्त उपस्थिति को तो दर्शाता ही है साथ ही भविष्य में उनकी बढ़ती हुई सहभागिता की ओर सुखद संकेत देता है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी ) 2020 शिक्षा के सभी स्तरों प्री-स्कूल से लेकर माध्यमिक और उच्च शिक्षा तक सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से वंचित समूहों (एसईडीजी) की एक समान सहभागिता सुनिश्चित करने पर जोर देती है. सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों की व्याख्या करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उन्हें अनेक श्रेणियों में बांटा गया है (पैरा 6.2 ). इन श्रेणियों को लिंग (महिला व ट्रांस जेन्डर व्यक्ति), सामाजिक – सांस्कृतिक पहचान (अनुसूचित जाति, जनजाति, ओ बी सी, अल्पसंख्यक वर्ग), भौगोलिक पहचान (जैसे गांव, कस्बे आदि के विद्यार्थी), विशेष आवश्यकता (जैसे सीखने की अक्षमता सहित), सामाजिक- आर्थिक परिस्थिति (जैसे प्रवासी समुदाय, निम्न आय वाले परिवार, असहाय परिस्थिति में रहने वाले बच्चे, बाल तस्करी के शिकार बच्चे या उनके बच्चे, अनाथ बच्चे जिनमें शहरों में भीख मांगने वाले व शहरी गरीब भी शामिल हैं) आदि के आधार पर वर्गीकृत किया गया है.


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सुरक्षा, बुनियादी सुविधाओं की कमी  

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह अनुभव किया गया है कि सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े हुए ये जो भी समूह हैं उनमें सभी में आधी संख्या महिलाओं की है. इसलिए एसईडीजी वर्ग के लिए जो भी योजनाएं और नीतियां राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रस्तावित की गई हैं उनमें विशेष रूप से इन समूहों की महिलाओं की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है (पैरा 6.7).
बालिकाओं, महिलाओं की शिक्षा के रास्ते में आने वाली बाधाओं और समस्याओं पर नई शिक्षा नीति में विचार किया गया है और उनको दूर करने के लिए अनेक उपाय भी किये हैं. सबसे पहले तो बालिकाओं की शिक्षा में भागेदारी बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जेन्डर समावेशी (इन्क्लूशन) फंड की व्यवस्था की गई है (अध्याय 6).

यह जेंडर समावेशी कोष राज्यों के लिए उपलब्ध करवाया जाएगा जिससे उनको ऐसी नीतियों, योजनाओं, कार्यक्रमों आदि को लागू करने में सहायता मिलेगी जिससे महिलाओं को विद्यालय परिसर में अधिक सुरक्षापूर्ण और स्वस्थ वातावरण मिल सके. जैसे परिसर में महिलाओं के लिए शौचालय स्थापित करना, उन्हें स्वच्छता और सेनिटेशन से संबंधित अन्य सुविधाएं प्रदान करना, स्कूल आने जाने के लिए साइकिल देना, फीस इत्यादि ना भर पाने की स्थिति में उनके अभिभावकों को सशर्त नगद हस्तांतरण करना ताकि गरीबी के कारण उन्हें स्कूल छोड़ने पर मजबूर ना होना पड़े.

लक्षित छात्रवृति, परिवहन के लिए साइकिल देना, माता –पिता को पढ़ाई में मदद के लिए कुछ शर्तों पर नगद पैसा देना आदि योजनाओं के अनेक सकारात्मक परिणाम भी मिलते हैं. जैसे यह देखा गया है कि छात्राएं यदि समूहों में पैदल या साइकिल से विद्यालय जाती हैं तो यह उनकी सुरक्षा की दृष्टि से भी अच्छा है और उनके अभिभावकों में भी सुरक्षा का भाव उत्पन्न करता है. समाज में बालिकाओं के प्रति हिंसा और अपराध की घटनाओं को देखते हुए उनकी सुरक्षा उनके अभिभावकों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता है और यदि उनकी सुरक्षा के लिए समुचित कदम उठाए जाएं तो विद्यालयों में बालिकाओं का नामांकन भी बढ़ेगा.

एक अनुदानित महिला विद्यालय में लगभग तीस वर्षों से अध्यापन कार्य में लगे हुए होने से मेरे स्वयं के व्यावहारिक अनुभव हैं कि सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्ग की छात्राएं और सामान्य वर्ग की भी गरीब छात्राएं पढ़ना तो चाहती हैं लेकिन उन्हें अनेक अभावों का सामना करना पड़ता है. इनमें से प्रमुख हैं, माता-पिता की खराब आर्थिक स्थिति के कारण समय पर फीस ना दे पाना, पाठ्यपुस्तकें, यूनिफॉर्म, गरम स्वेटर, जूते, ना खरीद पाना, नियमित रूप से महाविद्यालय आने जाने के लिए किराये की व्यवस्था ना कर पाना, खेती आदि कार्यों में, घर में कार्यों में लगे होने से रोज महाविद्यालय आने का समय ना मिल पाना आदि.

अपने पढ़ाई के खर्च को पूरा करने के लिए उनमें से कुछ छात्राएं कार्य भी करती हैं जैसे ट्यूशन पढ़ाना, सिलाई करना, शॉपिंग मॉल या दुकानों में नौकरी करना आदि. लेकिन अनेक कठिनाइयों के बाद भी उनमें पढ़ने की जिजीविषा होती है. कई अवसरों पर अध्यापक व्यक्तिगत तौर पर उनकी मदद करते हैं लेकिन यदि विशविद्यालयों और महाविद्यालयों को जेंडर समावेशी फंड में निर्धारित राशि उपलब्ध होगी तो मदद का दायरा बढ़ाया जा सकेगा क्योंकि सभी छात्राओं को छात्रवृत्ति प्राप्त नहीं हो सकती.


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आर्थिक विकास

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों में छात्रों के लिए मुफ़्त छात्रावासों का निर्माण किया जाएगा जिनमें बालिकाओं की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाएगा.

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों जो कि बालिका शिक्षा के लिए भारत सरकार की पहले से ही एक योजना है, उनका और अधिक विस्तार किया जाएगा (पैरा 6.9). निश्चित रूप से ग्रामीण अंचलों, पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों, दूर दराज के इलाकों में जहां विद्यालयों की कमी है, विशेष तौर पर बालिका/महिला विद्यालयों और छात्रावासों की वहां इस योजना के अच्छे परिणाम सामने आएंगे और बालिकाओं का नामांकन बढ़ेगा. इसके अलावा यदि विद्यालय सहशिक्षा वाले हैं तो उनमें बालिकाओं के लिए अलग टॉयलेट और अन्य बुनियादी सुविधाओं का होना भी उनकी सुरक्षा को बढ़ाता है और उनके नामांकन पर असर डालता है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अध्याय तीन में भी बालिकाओं के लिए सुरक्षित छात्रावास और यातायात के साधनों को उपलब्ध कराने की घोषणा की गई है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अध्याय 6 के इन नीतिगत प्रावधानों के अलावा जो प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा से संबंधित हैं, इनके अलावा अध्याय 14 में भी अनेक घोषणाएं हैं जो उच्च शिक्षा से संबंधित है. जैसे अध्याय 14 में गया है कि एसईडीजी वर्ग की शिक्षा के लिए समुचित सरकारी निधि का निर्धारण किया जाएगा, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित छात्रों को और अधिक वित्तीय सहायता और छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाएंगी. यह भी ध्यान रखा जाएगा कि उच्चतर शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में लिंग-संतुलन को बढ़ावा दिया जाए, अनेक साधनों और माध्यमों से संकाय –सदस्यों, परामर्शदाताओं, विद्यार्थियों आदि सभी को जेंडर के प्रति संवेदनशील बनाया जाए, परिसर में भेदभाव और उत्पीड़न के लिए बने हुए नियमों को सख्ती से लागू किया जाए आदि. ये सभी व्यवस्थाएं उच्चतर शिक्षा संस्थानों में महिला विद्यार्थियों के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करेंगी.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक ऐकडेमिक क्रेडिट बैंक (ए बी सी ) की भी स्थापना करती है जो अलग अलग मान्यता प्राप्त संस्थानों से प्राप्त क्रेडिट को एकत्रित करेगा और विद्यार्थी उस क्रेडिट का उपयोग करके किसी भी उच्चतर शिक्षा संस्थान से डिग्री प्राप्त कर सकेंगे (अध्याय 14). वैसे ये व्यवस्था सभी विद्यार्थियों के लिए की गई है ना कि केवल एसईडीजी वर्ग के लिए या महिलाओं के लिए. लेकिन महिलाओं को इसका सर्वाधिक लाभ होगा क्योंकि विवाह, पारिवारिक आदि कारणों से उनकी गतिशीलता (मोबिलिटी) बहुत अधिक रहती है. उपरोक्त के अतिरिक्त उच्चतर शिक्षा में आगमन और निकास (एंट्री और एग्जिट) के अनेक विकल्पों वाला प्रावधान भी महिलाओं के लिए उपयोगी है जिससे उन्हें विभिन्न स्तरों पर सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री के अनेक विकल्प उपलब्ध हो जाएंगे. अनेक वे व्यक्तिगत और पारिवारिक कारण जो उच्च शिक्षा और शोध के क्षेत्र में महिलाओं की भागेदारी को कम कर देते हैं उनको दूर करने की दिशा में ये बदलाव मील का पत्थर साबित हो सकते हैं.


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ऐसा प्रतीत होता है कि नई शिक्षा नीति 2020 में प्रस्तावित अधिक छात्रवृत्तियां, महिला छात्रावासों का विस्तार, अलग से जेन्डर समावेशी फंड, क्रेडिट ट्रांसफर, अधिक सुरक्षित स्कूल/ विश्वविद्यालय परिसर आदि अनेक कदम मिलकर बालिकाओं और महिलाओं को एक बड़ी संख्या में विद्यालयों तक लाने में कामयाब हो पाएंगे. इस प्रकार महिलाओं की शिक्षा में भागेदारी को बढ़ाने हेतु नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहुत विस्तृत आयाम हैं. शिक्षा के सभी स्तरों में लिंग संतुलन, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों की महिलाओं की गुणवत्तापरक शिक्षा, शिक्षण परिसरों में महिलाओं की सुरक्षा आदि के प्रति यह नीति जागरूक और संवेदनशील है. अब प्रतीक्षा है तो इसके अतिशीघ्र क्रियान्वयन की.

(लेखिका डॉक्टर सुमन मिश्रा नारी शिक्षा निकेतन महाविद्यालय लखनऊ में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

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