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Saturday, 22 February, 2025
होममत-विमतनेशनल इंट्रेस्टट्रंप ने परमाणु हथियारों को फिर महान बना दिया, सहयोगियों पर ताने कसने, सौदे से नए WMD की होड़ शुरू होगी

ट्रंप ने परमाणु हथियारों को फिर महान बना दिया, सहयोगियों पर ताने कसने, सौदे से नए WMD की होड़ शुरू होगी

मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण पर ध्यान दीजिए; केवल यूक्रेन और गाज़ा ही ऐसे मसले नहीं हैं जो भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं. हकीकत यह है कि ट्रंप ने परमाणु अप्रसार के विचार की हत्या करके उसे दफन कर दिया है. परमाणु हथियार फिर से युद्ध-प्रतिरोधक बन गए हैं.

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डोनाल्ड ट्रंप जबकि यूक्रेन को टी-90 टैंक के नीचे दबा देने पर आमादा हैं, ‘नाटो’ के अपने सहयोगी डेनमार्क से ग्रीनलैंड छीन लेने की धमकी दे रहे हैं और यूरोपीय लोगों को यह कहकर शब्दशः रोने पर मज़बूर कर रहे हैं कि उन्हें बेलगाम व्लादिमीर पुतिन का अपने ही बूते सामना करना पड़ेगा, तब यह कुछ सवाल उठाने का वक्त है.

पहला सवाल वह है जो हमने इस कॉलम में उस हफ्ते उठाया था जब 26 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर हमला शुरू किया गया था. यूक्रेन ने रूस, यूरोप और अमेरिका से सुरक्षा की गारंटी मिलने के बाद 1994 में परमाणु हथियारों के अपने भंडार को त्याग दिया था. आज वह ज़रूर पछता रहा होगा. इन तीन में से पहले देश रूस ने उस पर हमला कर दिया, दूसरा पक्ष यूरोप बचने का ठिकाना खोजने लगा और सस्ता रूसी तेल गंवाने का अफसोस करने लगा और जब पुतिन के टैंक कीव की सीमा पर दौड़ रहे थे तब तीसरा पक्ष अमेरिका बेबस होकर देखता रहा.

यह कहानी अब आगे बढ़ चुकी है. तीसरा पक्ष अब चाहता है कि यूक्रेन या तो अपनी आधी खनिज संपदा उसे दे देने का सौदा करे, या अपनी कुल ज़मीन का पांचवां भाग छोड़ दे, ‘नाटो’ का सदस्य बनने या किसी दूसरी तरह की सुरक्षा गारंटी हासिल करने की बात भूल जाए.

भारत में ‘शोले’ फिल्म के एक अरब से ज्यादा फैन्स को यह गब्बर सिंह वाला सौदा लग सकता है. अपनी क्रूरता में यह किसी मोहल्ले के दादा, या कोलकाता के किसी ‘पाड़ा मस्तान’, या मुंबई की किसी झोपड़पट्टी के ‘भाई’ या ‘कालीन भईया’, या मिर्ज़ापुर या हिंदी पट्टी की किसी जगह के माफिया की ओर से रखी गई शर्त जैसी लगती है.

ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले महीने में केवल अपने सहयोगियों को निशाना बनाया है जबकि प्रतिद्वंद्वियों को राहत दी है. उन्होंने रूस को सीधे-सीधे और चीन को परोक्ष रूप से पर्याप्त संकेत दिया है कि उसे अपना प्रभाव-क्षेत्र बनाए रखने का अधिकार है.

इस नई ट्रंपवादी विश्वदृष्टि का सिद्धांत यह है कि हर किसी को अपने भरोसे रहना होगा. इसका मतलब है: जिसकी लाठी, उसकी भैंस. ट्रंप के उस वीडियो को देखिए जिसमें वे यूरोप/नाटो को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि उनकी सुरक्षा अमेरिका का सिरदर्द नहीं है क्योंकि “हम दोनों को एक बड़ा और सुंदर महासागर अलग कर रहा है”.

जिस भी देश का भू-राजनीति में और खासकर यूरोप तथा चीन के इर्दगिर्द कुछ भी दांव पर लगा है वह इस सब को बड़ी चिंता भरी नज़र से देख रहा है. इन देशों में भारत भी शामिल है, चाहे भाजपा खेमा यूरोप और कथित वामपंथी रुझान की हैसियत घटाए जाने पर जश्न क्यों न मना रहा हो. अच्छी बात यह है कि भारत का राजनीतिक और रणनीतिक नेतृत्व अपने समर्थकों से कहीं ज्यादा स्मार्ट है.


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अब यह नई दुनिया किस तरह काम करेगी? अखबार ‘न्यू यॉर्क टाइम्स’ में थॉमस फ्रीडमैन ने लिखा है कि ट्रंप ग्रीनलैंड ले जाएंगे, शी जिनपिंग ताइवान ले जाएंगे और पुतिन बाल्टिक्स का कुछ हिस्सा ले जाएंगे. मैं इसमें जॉर्जिया का बड़ा हिस्सा भी जोड़ सकता हूं.

यूरोप के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका के सभी मित्रदेश उससे सिल रहीं सुरक्षा गारंटियों की समीक्षा करेंगे. क्या होगा जब ट्रंप जापान से कहेंगे कि मुझे ओकिनावा या हिरोशिमा दे दो, या ऑस्ट्रेलिया से यह कहें कि अमेरिका से सुरक्षा गारंटी की कीमत के रूप में अपने खनिज संसाधन का पांचवां हिस्सा हमें दे दो.

मैंने कनाडा का नाम तक नहीं लिया है क्योंकि उसके सामने चुनौतियां एकदम अलग तरह की हैं. अब सवाल यह नहीं है कि ट्रंप इन धमकियों पर अमल करेंगे या नहीं. सवाल यह है कि संप्रभुतासंपन्न देश इन धमकियों को महज़ लफ्फाजी कहकर खारिज नहीं कर सकते. भरोसा तोड़ा गया है. अगर ट्रंप ‘सुरक्षा शुल्क’ या आपसे आपकी ज़मीन की मांग कर सकते हैं तो आगे यह भी मांग की जा सकती है कि हमारे गुलाम बन जाओ और हमें नज़राना पेश करो, या चीन या रूस के रहम पर रहो. इससे एक अहम सवाल उठ खड़ा होता है.

मैं उस व्यक्ति के रूप में बोल रहा हूं जो परमाणु हथियारों पर बहस में ‘इस’ पक्ष का है. इस बहस के ‘उस’ पक्ष में वे भारतीय शांतिवादी नहीं हैं जिन्होंने परमाणु हथियारों का वैचारिक या नैतिक आधार पर विरोध किया. मैं चाहे जितना भी असहमत रहा हूं, वह बहस का एक मुद्दा था. यहां ‘उस’ पक्ष में परमाणु अप्रसार की पक्षधर वह मजबूत अमेरिकी लॉबी थी जिसने भारत पर लगातार दबाव बनाए रखा कि वह परमाणु हथियार न बनाए.

1987-97 वाले दशक में उन्हें भारत में आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक कमज़ोरी दिखी, जिसका वे फायदा उठा सकते थे. उस दौरान भारत में कई कमजोर और अस्थिर सरकारें सत्ता में आईं, जो मानो दिहाड़ी पर काम कर रही थीं. तभी इस मजबूत लॉबी को यह यकीन हो गया था कि पंजाब और कश्मीर में अपने चरम पर पहुंची बगावत से जूझ रहे भारत पर यह दबाव बनाया जा सकता है कि वह परमाणु शक्ति बनने का अपना सपना भूल जाए. इस लॉबी के तर्क परमाणु शक्तियों के अहंकार और ईस्ट कोस्ट की उदारवादी नैतिकता से उपजे थे. उस समय हम अक्सर यह सलाह सुना करते थे : परमाणु हथियारों की सीमा बांधो, उन्हें वापस लो और खत्म करो.

वह दौर ऐसा भी था जब भारत-पाकिस्तान युद्ध के आसार पैदा हो गए थे और हमें चेतावनी दी जाती थी कि जरा सोचो, तुम दोनों के पास परमाणु हथियार होंगे और तुम दोनों गुत्थमगुत्था हो गए तब क्या होगा! या कहा जाता था कि क्या तुम्हारा अगला युद्ध परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से किए गए सांप्रदायिक दंगे जैसा होगा? इसलिए, समझने की कोशिश करो कि तुम्हारी भलाई किसमें है, ‘अपनी औकात में रहो’. परमाणु अप्रसार के मुद्दे पर होने वाले किसी सम्मेलन में पाकिस्तान में अमेरिका के एक पूर्व राजदूत को यह कहते हुए भी सुना गया था कि ‘परमाणु हमले के खतरे की चिंता मत करो, हमारा दमकल तैयार है’. अगर उनका ई-मेल आइडी अभी भी मेरे पास मौजूद हो तो मैं उन्हें यह लिखने की सोच सकता हूं कि अपना यह दमकल वे कैलीफोर्निया में की गई घेराबंदी वाली जगह पर भेजने के बारे में विचार करें.


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वह दशक ऐसा भी था जब हमारी ज़िंदगी में ‘सीटीबीटी’ (व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि) नामक एक और मुहावरा दाखिल कराया गया था. अमेरिका से कई उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भारत आए उसे यह समझाने के लिए वह इस संधि पर दस्तखत कर दे, जबकि खुद अमेरिका ने इसे मंजूरी नहीं दी थी. यह दोहरा, तिहरा मानदंड ट्रंप की देन नहीं थी. उस काफी बदनाम मुहावरे का प्रयोग करते हुए यह भी कहा जा सकता है कि ट्रंप तो इसका इस्तेमाल सिर्फ संप्रभुता के एवज में किराया वसूलने के लिए कर रहे हैं. प्रख्यात संपादक और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में शानदार कॉलम ‘रियर व्यू’ लिखने वाले दिवंगत इंदर मल्होत्रा उन अमेरिकी कट्टरपंथियों को ‘परमाणु अप्रसार लॉबी के अयातुल्लाह’ कहा करते थे.

भारतीय नेताओं ने अडिग रहने की सलाहियत दिखाई. यह सिलसिला नेहरू से लेकर तब तक चला जब तक कि इंदिरा गांधी ने 1974 में एक परमाणु परीक्षण करके और इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण-2 करके इसे खत्म नहीं कर दिया. वैसे, शुरू में ही होमी भाभा और विक्रम साराभाई ने इस विचार से असहमति जता दी थी कि परमाणु हथियार का इस्तेमाल युद्ध रोकने या शांति के लिए किया जा सकता है. हमारे ये नेता चाहे जितने भी ताकतवर रहे हों, हम सब तथा हमारी भावी पीढ़ी उनके प्रति सदा आभारी रहेगी. क्या उनमें यह दूरदर्शिता थी कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब सुरक्षा की कोई गारंटी काम नहीं आएगी? उन्होंने इसकी परवाह ही नहीं की, वह मजबूत और भविष्यदर्शी थे.

उत्तरी कोरिया के ताकतवर नेता किम जोंग उन आज यूक्रेन और यूरोप की हालत पर दिल खोलकर हंस रहे होंगे. वे सोच रहे होंगे कि अगर उन्होंने अमेरिकी अतिक्रमण के जवाब में दक्षिण कोरिया या जापान पर परमाणु हमला करने की चेतावनी न दी होती तो क्या अमेरिका उन्हें सलामत रहने देता? ईरान इस सब पर गहरी नज़र रखे हुए है. अगर इराक के पास ‘WMD‘ (जनसंहार के हथियार) होते तो क्या बुश सीनियर या जूनियर ने उस पर हमला किया होता? उसकी मिसाइलों को अमेरिका तक पहुंचने की ज़रूरत नहीं थी, इज़रायल या सऊदी अरब के लिए वास्तविक खतरा पेश करना ही काफी होता.

मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण पर ध्यान दीजिए; केवल यूक्रेन और गाज़ा ही ऐसे मसले नहीं हैं जो भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं. यह एक हकीकत है कि ट्रंप ने परमाणु अप्रसार के विचार की हत्या करके उसे दफन कर दिया है. परमाणु हथियार फिर से युद्ध-प्रतिरोधक बन गए हैं. मध्य-पूर्व में ईरान, सऊदी अरब और क्या पता अज़रबैजान और मिस्र भी इनके बारे में सोच रहे हों और दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये भी. अगर आप टोक्यो, कैनबरा, जकार्ता, मनीला में नेतृत्व संभाल रहे होते तब क्या सोचते? परमाणु हथियार आज ‘लो-टेक’ विकल्प और काफी सस्ते युद्ध-प्रतिरोधक बन गए हैं. अगर पाकिस्तान उन्हें 1980 वाले दशक में ही बना सकता था, तो आज तो कोई भी देश उन्हें बना सकता है. वास्तव में, पाकिस्तान तो अपने परमाणु हथियार भंडार का पुनर्मूल्यांकन करना चाहेगा और उम्मा को इसके बारे में ताज़ा जानकारी देना चाहेगा.

डोनाल्ड ट्रंप आगे अपनी दिशा बदलें या न बदलें, हमें नहीं मालूम वे अमेरिका के लिए क्या हासिल कर पाएंगे. हम केवल उनकी पहली उपलब्धि गिना सकते हैं, जो यह है कि उन्होंने परमाणु हथियारों को फिर से महान बना दिया है.

(नेशनल इंट्रेस्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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