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Saturday, 25 October, 2025
होममत-विमतनेशनल इंट्रेस्टडीपफेक ऑन ड्यूटी: जब मैंने AI से ऑपरेशन सिंदूर के साइटेशन पढ़ने के लिए कहा

डीपफेक ऑन ड्यूटी: जब मैंने AI से ऑपरेशन सिंदूर के साइटेशन पढ़ने के लिए कहा

21 अक्टूबर को चर्चा उठी कि सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के लिए वीरता पुरस्कार पाने वालों की पूरी सूची उनके सिटेशन के साथ जारी कर दी है. मैंने सच्चाई जानने के लिए ‘एआई’ को काम पर लगाया और फिर मैं अंक कभी न खत्म होने वाले उलझे सिलसिले में फंस गया.

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इस लेख को आप एक विचार, या युद्ध पर बनी फिल्म की पटकथा, या सूचनाओं से भरी तथा गंभीरता से लिखी गई एक खबर के रूप पढ़ सकते हैं, लेकिन मैं सारे रहस्य को खत्म करते हुए आपसे यही आग्रह करूंगा कि आप ऐसा कुछ भी न करें. यह एक वैचारिक लेख है और इसका सार एक शब्द में यह है कि सावधान! या इसे दो शब्दों में इस तरह भी कह सकते हैं: खरीदार होशियार!

स्वतंत्रता दिवस पर ऑपरेशन सिंदूर के लिए वीरता पुरस्कारों की घोषणा की गई. 15 वीर चक्र, 58 सेना मेडल, 26 वायुसेना मेडल और पांच नौसेना मेडल के साथ 290 ‘मेनशन-इन-डिस्पैचेज’ की घोषणा की गई, लेकिन इसमें सिटेशन (प्रशस्ति पत्रों) वाला अध्याय गायब था.

और यह इंतज़ार 21 अक्चूबर की रात को खत्म हुआ, जब पत्रकारों के बीच यह चर्चा उठी कि भारत सरकार ने अलंकरणों की पूरी सूची प्रशस्ति पत्रों के साथ जारी कर दी है.

यह एक महत्वपूर्ण खबर थी, तो मैंने महिला क्रिकेट विश्व कप का मैच देखना छोड़ दिया क्योंकि यह याद आया कि हमारे डिफेंस एडिटर स्नेहेश एलेक्स फिलिप चीन में हैं और वह सेना के मामलों पर बात करने का उपयुक्त समय नहीं था. वे जहां थे वहां रात के ढाई बज रहे होंगे, फिर भी मैंने उन्हें फोन कर दिया. हम लोग सरकारी अधिसूचना वाला लिंक नहीं खोल पाए. मुझे लगा, सरकारी इंटरनेट का यही हाल है.

सो, मैंने दूसरा सबसे बेहतर रास्ता अपनाया, ‘एआई’ टूल को काम पर लगाया और उस ‘ग्रोक’ ने गज़ट में दर्ज सारे प्रशस्ति पत्र पढ़ डाले और मेरे सामने पेश कर दिया. इसने मुझे मानो ऐसे चक्रव्यूह में पहुंचा दिया, जहां में गहरे-से-गहरा धंसता चला गया. यह एक अविश्वसनीय कहानी बन गई और मैं हैरान था कि भारतीय मीडिया में किसी ने इसे क्यों नहीं उठाया, लेकिन इससे कुछ सवाल उभरे. सरकार अपने प्रशस्ति पत्रों में इतनी सारी जानकारियां कबसे जारी करने लगी? मैंने फिलिप से बात की और उन्हें कुछ प्रमुख बातें बताई. क्या यह सब असली है? फिलिप ने अच्छी सलाह दी कि सबका स्क्रीनशॉट ले लीजिए. मैंने देखा, सारे स्क्रीनशॉट कुल मिलकर तीन मीटर लंबे हो गए.


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‘ग्रोक’ ने मेरे सामने जो प्रशस्ति पत्र प्रस्तुत किए उनमें से कुछ सबसे मजेदार उदाहरण ये हैं—

  • वीर चक्र विजेता आठ फाइटर पायलटों ने अपना मिशन बहादुरी के साथ पूरा किया, लेकिन वायुसेना मेडल विजेताओं समेत कई पायलट अपने विमान के साथ लौट आए हालांकि, पास में फटती मिसाइलों से उनके विमानों कुछ क्षति भी पहुंची. “पास में होते विस्फोटों के कारण विमान को हुई क्षति के बावजूद” और “कई मिसाइलों के निशाने पर होने के बावजूद” जैसे वाक्यों का बार-बार प्रयोग किया गया है. एक युवा फ्लाइट लेफ्टिनेंट शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल को धता बताते हुए कई मिसाइलों से बचकर निकल गया और उसके “तेज़ सोच ने वापसी के दौरान हवा में विमानों की टक्कर से बचाया”.
  • S-400 के स्क्वाड्रन की कमान संभाल रहे ग्रुप कैप्टन के साहस का उल्लेख इसलिए किया जाता है कि उसके “सटीक सोच और संकल्प ने एक तबाही से बचा लिया”.
  • अब मरणोपरांत वायुसेना मेडल से सम्मानित ‘कॉर्पोरल’ सुरेन्द्र कुमार की बात, जो S-400 की एक बैटरी में टेक्निशियन थे. वे हमले में क्षतिग्रस्त रडार की मरम्मत कर रहे थे कि एक छर्रे से घायल होने के बाद शहीद हो गए.
  • करीब आधा दर्जन पुरस्कार थलसेना के उन अफसरों और दूसरे सैनिकों को दिए गए, जो दुश्मन के इलाके में दूर अंदर तक जाकर कार्रवाई कर रहे थे, जिनमें से कुछ तो बहावलपुर और मुरीदके के पास से भारतीय वायुसेना के हमलावरों को दिशानिर्देश दे रहे थे.
  • एक पायलट ने विमानभेदी तोपों और MANPAD मिसाइलों के हमलों के बीच मुरीदके पर बमबारी की. दूसरे पाइलट ने आतंकवादियों के अड्डों के लिए साजोसामान ले जा रहे एक काफिले पर हमला किया. तीसरे पायलट ने आतंकवादियों के बंकरों पर सटीक हमला करने के लिए दोस्ताना हमले से बचते हुए काफी नीची उड़ान भरी. तीनों पायलट के नाम बताए गए हैं.
  • वायुसेना के जिन कर्मियों को सम्मानित किया गया है उनमें एक को युद्ध में क्षतिग्रस्त S-400 की मरम्मत करने, एक को मिसाइल से सीधे हमले में बच जाने, एक पायलट को पेड़ जितनी ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए हमला करने, एक स्क्वाड्रन लीडर को भारी ‘जी-लोड’ के बावजूद ‘एक टर्निंग डॉगफाइट’ में पीएएफ के मिराज विमान को मार गिराने के लिए पुरस्कृत किया गया है. कई कर्मियों को क्षतिग्रस्त रोहिणी रडारों या हमले के दौरान आकाश बैटरियों की मरम्मत करने के लिए अलंकृत किया गया है.
  •  बताया गया है कि ‘मेनशन-इन-डिस्पैचेज़’ में शामिल लगभग सभी नामों को गोपनीयता की वजह से संपादित कर दिया गया है. कुछ टेक्निशियनों ने तोपों के हमलों के बीच जेट विमानों को तैयार किया या उनकी मरम्मत की, “एक महिला कंट्रोलर ने लड़खड़ाते राफेल विमान को ज़ीरो विजीबिलिटी क्षेत्र में पहुंचाया”.
  • ‘मेनशन-इन-डिस्पैचेज़’ में शामिल कई सेनाधिकारी वे हैं जिन्होंने एक्सकैलीबर स्मार्ट शेल्स के साथ स्पेशलाइज्ड आर्टिलरी को दूसरे कमांड से स्थानांतरित किया.
  •  मैं अपने इन सबूतों का समापन नौसेना मेडल से सम्मानित, कमांडर प्रिया देसाई (जिनका कमीशन नंबर दिया गया है) के उदाहरण के साथ करूंगा जिन्होंने कलवरी पनडुब्बी (स्कोर्पीन) स्क्वाड्रन का कमांड करते हुए पाकिस्तानी अगोस्टा-बी का पीछा करके उसे परेशान कर दिया.

लेकिन अब तक मुझे पक्का यकीन हो गया कि यह सब फर्ज़ी है. सबके साथ लाल निशान लगे थे. आमने-सामने दिखने वाला कोई ‘डॉगफाइट’ कभी नहीं हुआ. ऐसा कोई दावा नहीं किया गया कि थलसेना या स्पेशल फोर्स ने सीमा पार जाकर हमला किया. क्या सरकार जेट विमानों, रडारों, या मिसाइल बैटरियों, खासकर S-400 मिसाइलों के क्षतिग्रस्त होने की बात करेगी? क्या भारतीय नौसेना में कोई महिला कमांडर पनडुब्बी स्क्वाड्रन का नेतृत्व कर रही है? सरकार पुरस्कृत होने वाले कुछ ही नामों की घोषणा क्यों करेगी और ज़्यादातर नामों को संपादित क्यों कर देगी?

न्यूज़रूम के हमारे जिस बीते दौर को बहुत भद्र दौर नहीं कहा जा सकता उसमें बेहद सख्त समाचार संपादकों से हमने पहला सबक यही सीखा था कि जो खबर बहुत सच्ची नज़र आ रही हो उसे सच्ची मत मानना. इसलिए रिपोर्टरों को अपना खोजी यंत्र हमेशा सक्रिय रखना होगा, लेकिन जब सर्वशक्तिशाली ‘एआई’ ही आपके साथ खिलवाड़ करे तब क्या? वह भी इस सफाई से सजधजकर फर्जीवाड़ा करे कि एक पत्रकार भी धोखे में आ जाए तब क्या हो?

बहरहाल, सुबह में गज़ट का लिंक खुल गया और हमने पाया कि वीर चक्र से सम्मानित 15 सैनिकों के अलावा कोई प्रशस्ति पत्र नहीं जारी किया गया है. वैसे, ‘मेनशन-इन-डिस्पैचेज़’ में शामिल नामों समेत दूसरे सभी सम्मानित नामों को सूचीबद्ध किया गया था, किसी को संपादित नहीं किया गया. इसके अलावा, गौरतलब है कि वायुसेना मेडल से आईएएफ के एनसीओ सुरेन्द्र कुमार को मरणोपरांत सम्मानित किया गया है, लेकिन उनके साथ सूचीबद्ध दूसरे सुरेन्द्र कुमार मेडिकल अटेंडेंट हैं (जिन्हें मरणोपरांत नहीं सम्मानित किया गया है).

इसके बाद मैंने ‘ग्रोक’ से पूछा कि गज़ट में मुझे कमांडर प्रिया देसाई का नाम नहीं मिला. तुम उनके बारे में बता सकते हो? उसका जवाब था कि ‘गड़बड़ के लिए माफी चाहता हूं’, किसी प्रिया देसाई का नाम नहीं है; यह नाम ‘गलती से आ गया होगा’. उसने संशोधन करने के लिए मुझे धन्यवाद कहा.

मैंने ‘कॉर्पोरल’ सुरेन्द्र कुमार को लेकर सवाल पूछा और सबूत मांगा. एआई ने अपने दावे के साथ प्रशस्ति पत्र पेश किया, उसने S-400 को लेकर अपने दावे की पुष्टि की, लेकिन उसकी भाषा इतनी सरकारी थी कि मैंने आईएएफ से पुष्टि करने को कहा. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई प्रशस्ति पत्र नहीं जारी किया गया है.

इसके बाद मैंने ‘ग्रोक’ से कहा कि सुरेन्द्र कुमार एक मेडिकल अटेंडेंट थे और वे ‘कॉर्पोरल’ से ऊपर सार्जेंट के पद पर थे. उसने तुरंत अफसोस ज़ाहिर किया और सही जानकारी दी कि कुमार और उनके साथियों को ऊधमपुर में एक मेडिकल चौकी पर हमले के दौरान साहसपूर्ण बचाव कार्य के लिए सम्मानित किया गया.

अब हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं:

एक तो यह कि एआई तेज़ है, बल्कि कुछ ज्यादा ही तेज़तर्रार है. यह आपको तथ्य उपलब्ध कराने का वादा करता है, लेकिन आपकी ज़रूरत के मुताबिक सजाधजा के नैरेटिव गढ़ सकता है. वह चाहता है कि उस पर ध्यान दिया जाए. ध्यान, खर्च किया गया समय एक आमदनी ही है, लेकिन यह चाहे जितना भी तेज़तर्रार हो, यह पत्रकारों की जगह नहीं ले सकता.

दूसरे, एआई प्रोपेगेंडा, दुष्प्रचार और सूचना के साथ खिलवाड़ को नए स्तर पर ले जा रहा है. हम ट्विटर पर अपनी खीझ ज़ाहिर करते हैं कि हमारे कमांडोनुमा टीवी चैनलों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या-क्या कारनामे किए और इसे हम ‘व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी’ की करतूत बताकर इसका मखौल उड़ाते हैं. अब ‘ग्रोक’ से जो यह आमना-सामना हुआ वह यही संदेश दे रहा है कि अभी तो तुमने ‘कुछ भी नहीं देखा है’.

तीसरे, एआई को आसानी से शिकार बनाया जा सकता है— सभी सनसनीखेज, तथ्यों के तौर पर पेश की गईं ‘यकीन न होने वाली तमाम हसीन बातें’ जिन्हें, पाकिस्तान चाहेगा कि आप यकीन कर लें. जैसे यह कि S-400 पर हमला किया गया, भारतीय वायुसेना के कई विमानों को मार गिराया गया, हवाई अड्डे नाकाम कर दिए गए और इसने यह भी विस्तार से बताया है कि तोपों तथा विशेष साजोसामान को किस तरह नुकसान पहुंचाया गया जिनका ज़िक्र हमारी सरकार ने अपने प्रशस्ति पत्रों में नहीं किया है.

ये बातें आपको भारतीय मीडिया में नहीं मिलेंगी. तो ‘ग्रोक’ ने इन्हें कहां से ढूंढ निकाला है? इस लेख का कुल सार यह है कि ‘ग्रोक’ के साथ इस तरह का खेल किया गया है कि वह आपको ऐसा नैरेटिव पेश करे जिसमें उन मिर्च-मसालों का तड़का लगा हो जिन पर पाकिस्तान में बातें होती हैं और इसे विश्वसनीय बनाने के लिए इसके साथ भारतीय सैनिकों की तारीफ के पुल आसमान तक बांध दिए गए हों. एआई ने लड़ाई को नया आयाम दे दिया है. अब ‘फिफ्थ जेनरेशन’ वाली लड़ाई (5GW) जबकि एक हकीकत के रूप में सामने है, हम इस नए आयाम को ‘सिक्स्थ जेनरेशन वारफेयर’ नाम दे सकते हैं.

(नेशनल इंट्रेस्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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