आज के स्कूली बच्चे काफी स्मार्ट हैं. न भी हों तो वे आपको बता सकते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में ‘एमएडी’ सिद्धांत का क्या मतलब होता है. इसका पूरा रूप है— ‘म्यूचुअली एश्योर्ड डिस्ट्रक्शन’, आपसी तबाही की मुकम्मल सहमति. यानी कोई देश अगर दूसरे देश पर एक परमाणु हथियार से हमला करता है तो उसका जवाब तीन परमाणु हथियारों के हमले से दिया जाएगा. चूंकि दोनों लड़ाकू देशों को पक्का विश्वास है कि दोनों तबाह हो जाएंगे इसलिए वे शांति बनाए रखते हैं. यही है ‘एमएडी’ सिद्धांत. इसकी बदौलत बड़ी ताकतों में 75 साल से शांति कायम है. यह और बात है कि व्लादिमीर पुतिन अब आजमा रहे हैं कि इस संयम को कहां तक खींचा जा सकता है.
लेकिन जरा देखिए कि यह ‘एमएडी’ सिद्धांत भारतीय राजनीति में किस रूप में उभर रहा है.
करीब दो साल पहले इस स्तंभ में हमने बताया था कि मोदी-शाह की भाजपा जिन्हें पसंद नहीं करती उनके खिलाफ वह ‘तीन तरह के हथियारों से’ आक्रमण की रणनीति को कितनी सफाई से लागू कर रही है. यह ‘तीन तरह के हथियार’ हैं—1. पुलिस, जांच/टैक्स एजेंसियां और ईडी (प्रवर्तन निदेशालय), इन सभी को हम ‘एजेंसियां’ कह सकते हैं; 2. फ्रैंडली टीवी चैनल; और 3. सोशल मीडिया पर जोरदार ऑपरेशन.
आपके कब्जे में कोई एजेंसी है तो कोई आरोप उछाल दीजिए, चाहे वह कितना भी मनमाना या काल्पनिक क्यों न हो; आपके फ्रैंडली रावण की तरह दस सिरों से बोलने वाले टीवी चैनल प्राइम टाइम पर आरोपित व्यक्ति को बदनाम करने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे; और इसके बाद कम-से-कम 72 घंटे तक सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर और हैशटैग पर उसे चोर, कातिल, बलात्कारी, आतंकवादी, दाऊद का गुर्गा, आइएसआइ एजेंट, घूसखोर, और न जाने क्या-क्या नहीं घोषित किया जाता रहेगा. यह सब बहुत समय तक चलता रहा लेकिन अब नहीं चल पा रहा है.
न हो तो ममता बनर्जी को देखिए, जिनके भतीजे और संभावित उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी मुश्किल में घिरी हैं. या महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे को देखिए, जिन्हें इस तीन तरफा आक्रमण को तब झेलना पड़ा जब उनके बेटे और युवा मंत्री के खिलाफ अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की हत्या की साजिश में शामिल होने का मनमाना आरोप थोपा गया, क्योंकि वे किसी अभिनेत्री को लेकर राजपूत के साथ किसी काल्पनिक झगड़े में उलझे थे. भाजपा समर्थक प्राइम टाइम योद्धाओं और सोशल मीडिया ने लंबे समय तक यह मुहिम चलाई. यही नहीं, महाराष्ट्र में राज्य के दो मंत्री तो कुछ समय से जेल में बंद हैं.
आखिर यह सब बदलना ही था. ऐसा लगता है कि किसी ने गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों को नींद से जगा कर याद दिलाया कि अगर केंद्र सरकार अपनी एजेंसियों का इस्तेमाल करके उन्हें धमका, डरा, और कैद कर सकती है तो वे भी ऐसा कर सकते हैं. आखिर, संवैधानिक व्यवस्था कहती है कि कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकारों के नियंत्रण में होता है. सो, जवाबी हमले की कार्रवाई दो साल पहले धीरे-धीरे शुरू हुई और अब यह एक शक्ल ले चुकी है और आगे और मजबूत होने वाली है. यानी ‘पिक्चर अभी शुरू हुई है’.
यह कहना मुश्किल है कि इसका इलहाम सबसे पहले किसे हुआ, लेकिन इस चाल के लिए पुराने खिलाड़ी शरद पवार को श्रेय दिया जा सकता है. हालांकि पश्चिम बंगाल ने कुछ हद तक प्रतिकार का संकेत तो पहले ही दिया था मगर महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) नामक गठबंधन ने ठोस जवाब देने की शुरुआत की.
अगस्त 2020 में, जब यह मनमाने ढंग से प्रचारित कर दिया गया कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत खुदकशी नहीं बल्कि कत्ल के कारण हुई है, और जूनियर ठाकरे को उस साजिश में शामिल बता दिया गया तब यह मामला सीबीआइ को सौंप दिया गया. ‘तीन तरफा’ युद्ध का मुकम्मल रूप सामने आने लगा था. इस युद्ध की थलसेना, नौसेना, वायुसेना के रूप में कोई एक ‘एजेंसी’, तमाम दोस्ताना टीवी चैनल और सोशल मीडिया उस आंतरिक एकजुटता के साथ हमलावर हो रहे थे, जिस एकजुटता की अपनी सेनाओं में कमी आज पुतिन को यूक्रेन युद्ध में खल रही है. लेकिन राज्य सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर प्रतिकार के कुछ पहले संकेत उभरे.
अपने कुछ युवा रिपोर्टरों— मानसी फड़के (मुंबई), श्रेयशी डे (कोलकाता), इशाद्रिता लाहिड़ी और रेवती कृष्णन (नई दिल्ली)—की मदद से मैंने इस प्रतिकार का संक्षिप्त ब्योरा तैयार किया है. इसकी शुरुआत हम महाराष्ट्र से कर रहे हैं.
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राजपूत की मौत के मामले को जब सीबीआइ को सौंप दिया गया तब राज्य सरकार ने राज्य में मामलों की जांच सीबीआइ से कराने की आम सहमति वापस ले ली. जल्दी ही दूसरे गैर-भाजपा शासित राज्यों ने भी यही किया. एमवीए सरकार ने उस टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी को सीधा निशाना बनाया, जो राजपूत मामले में सबसे ज्यादा शोर मचा रहे थे. उन्हें कई आरोपों के तहत गिरफ्तार कर लिया गया.
- अंबानी के निवास ‘एंटीला’ के मामले में केंद्र ने राज्य की पुलिस पर विफल होने का आरोप लगाकर उस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को सौंप दी. राज्य सरकार ने इसका जवाब दादरा व नागर हवेली के सांसद मोहन डेलकर की मौत और उसमें भाजपा की ‘भूमिका’ की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन करके दिया.
- यह टकराव और तेज हुआ. पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी रश्मि शुक्ल द्वारा फोन की निगरानी रखे जाने का आरोप लगाते हुए पोस्टिंग व तबादले में राज्य के अधिकारियों और मंत्रियों द्वारा रिश्वतख़ोरी के आरोपों की जांच की मांग की. राज्य सरकार ने शुक्ल पर अवैध फोन टैपिंग का आरोप लगाया. महीने के शुरू में राज्य पुलिस ने शुक्ल के खिलाफ 700 पेज का आरोपपत्र दर्ज किया.
- सीबीआइ और ईडी (एजेंसियों) ने जब एमवीए के मंत्रियों अनिल देशमुख और नवाब मालिक पर निशाना साधा तो राज्य पुलिस ने केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को कुछ दिनों तक जेल में डाल दिया. उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने कथित रूप से उद्धव को थप्पड़ मारने की धमकी दी थी. कुछ दिनों बाद उनके विधायक बेटे नीतेश को शिवसेना के एक सदस्य की शिकायत पर हत्या का एक मामला दायर कर दिया गया.
- सबसे ताजा मामला भाजपा समर्थक सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा को मुख्यमंत्री के निवास के आगे हनुमान चालीसा का पाठ करने की धमकी देने और देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए जाने का है.
इस बीच, महाराष्ट्र में शाहरुख खान के बेटे की बेमानी गिरफ्तारी और उसके अलावा भी और भी बहुत कुछ हुआ है. लेकिन यह प्रवृत्ति एक ही राज्य में सीमित नहीं है. पश्चिम बंगाल पर भी नज़र डाल लें—
- भाजपा सांसद अर्जुन सिंह (दिनेश त्रिवेदी को हराने वाले) पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत आरोप दर्ज किया गया है कि उन्होंने भाटपाड़ा नैहाटी सहकारिता बैंक के अध्यक्ष के नाते फर्जी कामों के ठेके के लिए कर्ज जारी किए.
- सितंबर 2020 में, पश्चिम बंगाल सीआइडी ने तृणमूल कांग्रेस विधायक सत्यजित विश्वास की 2019 में हुई हत्या के मामले में भाजपा सांसद जगन्नाथ सरकार के खिलाफ आरोप दर्ज किया. बाद में एक पूरक आरोपपत्र में तत्कालीन भाजपा उपाध्यक्ष मुकुल राय को भी ‘सहयोगी साजिशकर्ता’ बताकर आरोप दर्ज किया गया.
- सितंबर 2021 में, राज्य सीआइडी ने विपक्ष के नेता शुभेन्दु अधिकारी (जिन्होंने ममता बनर्जी को विधानसभा चुनाव में हराया था) को अपने बॉडीगार्ड सुब्रत चक्रवर्ती की ‘हत्या’ के आरोप में उनकी पत्नी की शिकायत पर समन भेजा. उनके खिलाफ आइपीसी की धारा 302 (कत्ल) और 120बी (साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
- इससे पहले भी हलचल हुई थी. मार्च 2018 में पश्चिम बंगाल पुलिस ‘बच्चों की तस्करी’ के मामले में वरिष्ठ भाजपा नेता (और राज्य पार्टी प्रभारी) कैलाश विजयवर्गीय से पूछताछ करने गई थी. फरवरी 2019 में राज्य पुलिस ने सीबीआइ के वरिष्ठ अधिकारी पंकज श्रीवास्तव के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया था.
- 5 अप्रैल 2021 को अभिषेक बनर्जी ने समाचार चैनल ‘टाइम्स नाउ’ और ईडी के खिलाफ मामला दायर किया कि वे उन्हें बदनाम करने की ‘साजिश’ कर रहे हैं. पुलिस ने ईडी के अधिकारियों को तीन बार समन भेजा.
- मई 2021 में कोलकाता पुलिस ने भाजपा नेता राकेश सिंह के खिलाफ ‘कोकीन’ के मामले में आरोप दर्ज किया. एक और भाजपा पदाधिकारी पामेला गोस्वामी को ड्रग्स के मामले में जेल भेजा, जिन्हें 292 दिनों के बाद जमानत मिली.
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राजस्थान में कांग्रेस की नींद कुछ देर से टूटी, जब अशोक गहलोत सरकार 2020 में दलबदल के कारण गिरने के कगार पर पहुंच गई थी. पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) ने ‘कांग्रेस विधायकों को दलबदल के लिए प्रलोभन देने’ के आरोप में भाजपा के दो पदाधिकारियों पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया. बाद में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर भी इसी तरह के आरोप दर्ज किए गए, हालांकि बाद में उन्हें वापस ले लिया गया.
भाजपा के एक नेता जितेंद्र गोठवाल पर खुदकशी के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया क्योंकि एक महिला डॉक्टर ने यह आरोप लगाते हुए आत्महत्या की थी कि उनके ऊपर एक मरीज की मौत का गलत आरोप लगाया गया था. अप्रैल 2022 में, ‘न्यूज़ 18’ के एंकर अमन चोपड़ा के खिलाफ कथित देशद्रोह और समुदायों के बीच दुश्मनी पैदा करने के आरोप में एफआइआर दर्ज किया गया. तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना से भी ऐसे मामलों के उदाहरण सामने आ रहे हैं.
ताजातरीन मामला पंजाब की ‘आप’ सरकार का है जिसने कांग्रेस नेता अलका लांबा, भाजपा नेता तेजिंदर पाल सिंह, और ‘आप’ के बागी नेता और कवि कुमार विश्वास के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाया. यह ज़ोरआजमाइश जब अपने चरम पर पहुंचेगी तब जाहिर है हमारा ‘फुल मनोरंजन’ होगा. इसकी वजह यह है कि सभी राज्यों की पुलिस अपने एफआइआर और आरोपपत्रों में मनगढ़ंत किस्से लिखने में माहिर है ही, पंजाब पुलिस की रचनात्मकता का मुक़ाबला शायद ही कोई पुलिस करे.
गैर-भाजपा राज्य सरकारें अब उन्हीं मारक हथियारों का इस्तेमाल करने लगी हैं जिनका इस्तेमाल केंद्र सरकार उनके खिलाफ करती रही है. इसलिए ‘एमएडी’ सिद्धांत भारत की संघीय राजनीति में विकास की ओर अग्रसर है. तुम हमारे एक आदमी को जेल भेजोगे, हम तुम्हारे दो आदमियों को जेल भेजेंगे. यह भी एक तरह का ‘एमएडी’ है— ‘म्यूचुअली एश्योर्ड डिटेन्शन’ यानी आपसी गिरफ्तारी को लेकर मुकम्मल सहमति.
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