एक समय एक संत थे, जो आलीशान कार फ़रारी चलाया करते थे. उसके बाद एक ‘फकीर’ आए, फिर एक ‘चायवाला’ आया, जो मेबाख ब्रांड का 1.4 लाख रुपये का धूपचश्मा पहनता है. भारत में फैशन की राजनीति या राजनीति वालों के फैशन, और उस पर चर्चाओं के तेवर 2014 के बाद से, जबसे नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, बहुत बदल गए हैं.
जवाहरलाल नेहरू की अचकन या ‘नेहरू जैकेट’ हो, या इंदिरा गांधी की सादी मगर वायवीय किस्म की साड़ी, अथवा लाल बहादुर शास्त्री की सदाबहार धोती, चाहे जयललिता की शिफोन तथा सूती साड़ी, सब पर खूब सार्वजनिक चर्चाएं हो चुकी हैं.
लेकिन वेशभूषा को लेकर मोदी की पसंद में कुछ ऐसी बात है कि जब भी वे महंगे और फैशनेबल कपड़े आदि पहनते हैं तो उनका बचाव करने के लिए लोग खड़े हो जाते हैं. उनके बदले कोई और हो तो लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं, मसलन राहुल गांधी ने बरबेरी ब्रांड का जैकेट पहना तो उनका मखौल उड़ाया गया.
मैं कोई फैशन एक्सपर्ट नहीं हूं इसलिए मैं इस मामले के राजनीतिक पहलू पर ही बात करूंगी. यहां मुद्दा यह नहीं है कि मोदी ‘क्या’ पहनते हैं बल्कि यह है कि मोदी इस तरह वेशभूषा ‘क्यों’ अपनाते हैं जिसके पीछे राजनीतिक किस्म का इरादा छुपा होता है.
प्रतीक बन चुके पहनावे पर कब्ज़ा
नरेंद्र मोदी एक फैशनेबल शख्स हैं लेकिन वे जो तड़क-भड़क वाले कपड़े पहनते हैं उसकी कहानी यहीं खत्म नहीं होती. ऐसा लगता है कि उनका जन्म कैमरे के लिए हीं हुआ और उनमें इसको लेकर कतई संकोच नहीं है. उन्हें भगवा वस्त्र में जंगल के बाहर खड़े होकर फोटो खिंचवाने से लेकर केदारनाथ के प्रांगण में बाघ के छाल वाले रंग की शॉल इस तरह ओढ़ कर चलते हुए देखा जाता है जिस तरह सुपरमॉडल रैम्प पर चलती हैं और उनका पल्लू ज़मीन पर लोटता रहता है. मोदी अपनी ‘पावर ड्रेसिंग’ से कई तरह के राजनीतिक संदेश दे चुके हैं.
मोदी खुद को जिस तरह पेश करते हैं वह, अपने पहनावे पर विवाद से उनका पहला सामना होने के बाद अपने व्यक्तित्व को लेकर उनके रुख के बारे में बहुत कुछ कहता है. ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी’ नाम की महीन कढ़ाई करके खास उनके लिए बनाए गए सूट पर कई लोगों ने शिकायत की थी कि लोगों को अपनी ‘चायवाले’ की पहचान से प्रभावित करके सत्ता में आए प्रधानमंत्री विलासिता कर रहे हैं. बताया गया था कि वह सूट 10 लाख रुपये का था.
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उस सूट के खिलाफ जो प्रचार हुआ उससे विचलित हुए बिना मोदी जल्दी ही पूरी शानोशौकत वाली सजधज में नज़र आए. अब वे जब भी किसी सार्वजनिक आयोजन में प्रकट होते हैं तब पहनावे का चुनाव काफी सोच-समझ कर करते हैं. गोवा में 2016 में एक बातचीत में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि मोदी ‘कभी भी एक कपड़ा दूसरी बार नहीं पहनते हैं’ कि आपको सबूत चाहिए तो गूगल पर उनकी तस्वीरें देख लीजिए. मैंने वाकई यह किया. उनके बयान ने मुझे जयललिता की याद दिला दी, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे कोई साड़ी दोबारा नहीं पहनती थीं और इस तरह उनके पास 10,500 साड़ियां जमा हो गई थीं.
मोदी के केदारनाथ दौरे की भी खूब चर्चा रही थी. उन्हें एक दिन में दो अलग पहनावे में देखा गया था. एक तो उन्हें एक गुफा में सफ़ेद चादर पर भगवा वस्त्र पहने हुए ध्यान करते देखा गया था. इसके बाद वे टैगोर की तरह ‘जोब्बा’ में दिखे थे जिसमें कमर पर स्वामी विवेकानंद की तरह भगवा कमरबंद बंधा था. टैगोर और विवेकानंद पश्चिम बंगाल के थे, और ‘संयोग से’ अगले ही दिन वहां 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होने वाले थे.
अब हम यह देखेंगे कि मोदी ने विशेष प्रतीक बन चुके पहनावों को किस तरह हथिया लिया है. उदाहरण के लिए, ‘नेहरू जैकेट’ को लें जिसे अब ‘मोदी जैकेट’ कहा जाने लगा है. चरखे के साथ खादी वस्त्र में बैठे कृशकाय बापू की तस्वीर की जगह कड़क कलफ लगे कुरते में चरखा चलाते मोदी की तस्वीर आ गई है. अपने कपड़ों के जरिए मोदी ने खुद को भारत के उन इतिहास-पुरुषों के साथ खड़ा कर लिया है, जिनकी निंदा करने से वे थकते नहीं. उनकी भाजपा ने तमाम विज्ञापन अभियानों से गांधी की तस्वीर को हटाकर उनके चश्मे को लगा दिया है.
ढोंग क्यों करना?
पिछले दिनों सूर्यग्रहण देखने के लिए मोदी ने मेबाख ब्रांड का धूपचश्मा पहनकर खुद को एक ‘महत्वाकांक्षी’ फैशनपरस्त के रूप में पेश कर दिया है. बढ़िया कपड़े पहनना और अच्छा दिखना कौन नहीं चाहेगा? मोदी चाहते हैं कि भारत के युवा उन्हें ऐसा ही मानें. और वे ऐसा मानते भी हैं. उनके कई पक्के भक्तों ने महंगा धूपचश्मा पहनने पर उनका बचाव किया.
ऐसा लगता है कि मोदी बड़े राजनीतिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर इस तरह की विवादास्पद पसंद किया करते हैं. उन्हें मालूम है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया उनकी इस तरह की छवि को उछालेगा और यह उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में स्थापित करेगा, जो समकालिक और आधुनिक वेशभूषा में रहता है. वास्तव में, ट्वीटर पर अपने सरकारी हैंडल के जरिए एक ट्वीटर यूजर को जवाब देते हुए मोदी ने उसे कहा कि वह मजे से उनकी तस्वीरों के ‘मेमे’ बनाए.
नेताओं के पहनावे आदि को लेकर भारत में हाल तक जो कल्पना की जाती रही है, उससे यह एकदम विपरीत है. बरबेरी जैकेट पहनने के लिए राहुल गांधी की लगातार आलोचना की जाती रही है और वे इसे हर जाड़े में जरूर पहना करते थे हालांकि अब उसे छोड़कर वे केजरीवाल स्टाइल स्वेटर पहनने लगे हैं.
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पारंपरिक धारणा यही रही है कि नेताओं को सादगी से रहते हुए समाज की सेवा करनी चाहिए. लेकिन हम सब जानते हैं कि हमारे आज के नेता, खासकर अपने देश के नेता और कुछ भले हों दिखावे से मुक्त और सादगीपसंद तो नहीं ही हैं. और मोदी ने इस मुलम्मे को टार-टार कर दिया है, जिसके लिए कई लोग उन्हें और ज्यादा पसंद करते हैं. मोदी ढोंग से परहेज करते हैं. अपनी ‘महंगी’ फैशनपरस्ती, जो उनकी छवि को जाहिर तौर बेहतर बनाती है, को लेकर उनमें कोई झिझक नहीं है. अपने परिवार से उनका एकदम अलगाव उनके पक्ष में जाता है. ऐसा न होता तो उनकी यह विलासिता ‘भ्रष्टाचार’ माना जा सकता था, जिसका आरोप वे ‘गांधी परिवार’ पर लगाते रहते हैं.
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(लेखिका एक राजनीतिक प्रेक्षक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)