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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतमुनव्वर फारुकी कोई खूंखार अपराधी नहीं, उसे जमानत देने से मना करने का उद्देश्य मुस्लिमों को सबक सिखाना है

मुनव्वर फारुकी कोई खूंखार अपराधी नहीं, उसे जमानत देने से मना करने का उद्देश्य मुस्लिमों को सबक सिखाना है

मुनव्वर फारुकी के मामले में जो कुछ भी हो रहा है वह जानबूझकर तंग किए जाने का स्पष्ट मामला है लेकिन यहां उद्देश्य एक समुदाय विशेष को परेशान करना है, न कि किसी व्यक्ति मात्र को.

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मुनव्वर फारुकी को हिंदू देवताओं का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए था, यदि उन्होंने ऐसा किया है. ऐसा करना आपत्तिजनक है. उन्होंने क्या सोचा था? वो भी एक ऐसे ‘राष्ट्र’ में जो धर्मनिरपेक्ष से हिंदू बनने की राह पर है.

लेकिन एक ऐसे राष्ट्र में जहां बातचीत में हर दूसरे व्यक्ति का दूसरा शब्द मां-बहन की गालियों वाला हो, ये हैरानी वाली बात नहीं है कि हम रोज़मर्रा की अश्लीलता का बुरा नहीं मानते? इसके बजाय, हम अपनी सोच से असंगत लगती फिल्मों, टीवी शो, स्टैंड-अप एक्ट, गाने और पेंटिंग पर अतिरंजित प्रतिक्रिया देते हैं, उन्हें अपमानजनक करार देते हैं.

मुनव्वर फारुकी के मामले में जो कुछ भी हो रहा है वह जानबूझकर तंग किए जाने का स्पष्ट मामला है लेकिन यहां उद्देश्य एक समुदाय विशेष को परेशान करना है, न कि किसी व्यक्ति मात्र को.


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मुनव्वर होने के कारण जमानत से इनकार

कथित रूप से आपत्तिजनक चुटकुले सुनाने के कारण उन्हें गिरफ्तार किए जाने पर किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए. कानून अपना काम करेगा. मुद्दा उन्हें किसी खूंखार अपराधी की तरह हिरासत में रखे जाने का है. ये ऐसे देश में हो रहा है जहां बलात्कार और हत्या के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे लोगों को भी जमानत मिल जाती है. चिन्मयानंद और मनु शर्मा के उदाहरण सामने हैं. लेकिन मुनव्वर पिछले 25 दिनों से जेल में हैं. किस लिए? ‘मेरा पिया घर आया ओ रामजी ’ गाने के बोल पर हंसाने की कोशिश के लिए?

निश्चय ही, एक मुस्लिम स्तंभकार (जिसने शार्ली हेब्दो में पैगंबर मोहम्मद के कैरिकेचर पर आपत्ति जताई थी) का फारुकी जैसों का बचाव करना पाखंडपूर्ण लग सकता है. हालांकि, ये याद दिलाया जाना चाहिए कि मुसलमानों ने पैगंबर के कैरिकेचर की सख्त आलोचना की थी लेकिन कार्टूनों के नाम पर की गई हत्याओं को कभी स्वीकार नहीं किया.

आप तर्क दे सकते हैं, मुनव्वर ने पिछले साल चुटकुले सुनाए और भावनाएं आहत की और खुद ही ‘मुसीबत मोल ली’. लेकिन जमानत उनका मौलिक कानूनी अधिकार है और उनके खिलाफ मामला गैर-ज़मानती अपराध का नहीं है. यदि वह कानून का पालन नहीं कर रहे (धार्मिक भावनाएं आहत करने का), तो उन्हें 25 दिनों से हिरासत में रखे जाने का बचाव करके आप भी वैसा ही कर रहे हैं. यह एक संदेश देने, मिसाल के तौर पर उन्हें सबक सिखाने का प्रयास है– ‘हिंदू भावनाओं’ से या फिर हिंदुत्व से खिलवाड़ मत करना.

मुनव्वर फारुकी जैसों को सबक सिखाने की मिसाल का इस्तेमाल हिंदुत्व के आक्रोश को बनाए रखने के लिए किया जाता है.

मुनव्वर फारुकी को ज़मानत से वंचित करने का मनोरंजन उद्योग पर खौफनाक असर पड़ना तय है. तांडव के खिलाफ मचे हंगामे का भी ऐसा ही प्रभाव होने वाला है. पहले राजनीतिक कब्जा किया गया (आज हर पार्टी नरम हिंदुत्व का पालन कर रही है. आज आप किसी नेता द्वारा रामायण को पौराणिक कथा मात्र कहे जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते जैसे रामसेतु विवाद के दौरान टीआर बालू ने कहा था). उसके बाद, मीडिया पर कब्जा किया गया. उसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार या असहिष्णुता की बात करने वालों को निशाना बनाकर विस्तृत बॉलीवुड इंडस्ट्री को चुप कराया गया. अब, ओटीटी प्लेटफार्मों, कॉमेडियनों की बारी है. कोशिश ये है कि कोई भी हिंदुत्व या सरकार के खिलाफ किसी सार्वजनिक मंच पर आवाज़ नहीं उठा सके.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा मुसलमानों को हदों के भीतर रखे जाने का विचार, बहुसंख्यक समुदाय के भीतर पैदा की गई असुरक्षा की भावना के अनुरूप है कि उन्हें निशाना बनाया जाता है और अल्पसंख्यक उनका गलत फायदा उठा रहे हैं.

मुनव्वर फारुकी ‘हिंदू खतरे में हैं ’ वाली दुष्प्रचार मशीनरी में ईंधन की तरह इस्तेमाल होने वाले एक अन्य शख्स मात्र हैं. हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में वेब सीरीज तांडव के निर्देशक अली अब्बास ज़फ़र को भी पुलिस ने तलब किया है. ये एक तयशुदा पैटर्न है– मुसलमानों से आहत हिंदू भावनाएं. इसमें ‘लव जिहाद’ वाली बात भी जोड़ दें तो आपके सामने ‘अल्पसंख्यकों के धौंस जमाने और बहुसंख्यकों पर हावी होने’ के विचार पर केंद्रित पूरा तमाशा मौजूद है.


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सबक सिखाने की कवायद

मुनव्वर फारुकी ने यदि कुछ किया है तो वो है अपनी कठिन परिस्थितियों से उबरने की कोशिश. एक मुश्किल पृष्ठभूमि वाले परिवार से संबंधित फारुकी– उनकी मां ने आत्महत्या कर ली थी– ने स्टैंड-अप कॉमेडी के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने के लिए मेहनत की. ओपेन माइक आयोजनों में प्रस्तुति का अवसर पाने के लिए उन्हें पैसे तक देने पड़ते थे.

वास्तव में, मुनव्वर एक आदर्श आधुनिक युवा मुस्लिम के प्रतीक हैं, जो अपारंपरिक है (स्टैंड-अप कॉमेडी में करियर ढूंढने वाला), महत्वाकांक्षी है और खुद को अपनी धार्मिक पहचान से परे देखता है. और हां, अपना करियर और अपनी पहचान बनाने की प्रक्रिया में, कथित रूप से वो एक भूल कर बैठे. लेकिन महज हिंदुत्ववादी ताकतों की संतुष्टि के लिए, उन्हें कलंकित करना और सबक सिखाना, खासकर उनके मुसलमान होने के कारण, अमानवीय है.

इस मामले में चार अन्य लोगों- प्रखर व्यास, नलिन यादव, प्रतीक व्यास और एडविन एंथनी को भी गिरफ्तार किया गया था. लेकिन किसी को भी उनसे परेशानी नहीं है क्योंकि केवल एक मुस्लिम नाम वाला व्यक्ति ही आक्रोश की वजह बन सकता है.

(लेखिका एक राजनीतिक प्रेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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