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Friday, 22 November, 2024
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मोदी अकेले नहीं, दुनिया भर में दक्षिणपंथी लोकप्रिय अधिनायकों का दौर

दक्षिणपंथी अधिनायकवाद की एक प्रवृत्ति ये भी है कि वो समर्थन तो वंचितों से लेता है, लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान नहीं करता. धार्मिक उन्माद दक्षिणपंथी अधिनायकवाद का हथियार है.

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भारत में दक्षिणपंथ की लोकप्रियता चरम पर है. केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के 5 साल पूरे होने के बाद एक बार फिर पूर्ण बहुमत से उनकी सरकार की वापसी हुई है. जो लोग इस सरकार से नाखुश हैं, उनको भी नरेंद्र मोदी का विकल्प नहीं नजर आ रहा है. कम से कम पिछले आम चुनाव में यही देखने को मिलाजब लोग यह कहते सुने गए कि मोदी का विकल्प क्या है?

ऐसा नहीं कि भारत में ही लोकप्रिय अधिनायक या दक्षिणपंथी पार्टियां सत्तासीन है. विश्व के कई और देशों में ऐसी स्थिति है. इकॉनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली की एक समीक्षा के मुताबिक आर्थिक और सांस्कृतिक चिंता व पहचान आधारित राष्ट्रवाद के माध्यम से लोकप्रियता हासिल करने वाले अधिनायकों का दुनिया के एक बड़े हिस्से की सत्ता पर कब्जा है. इस तरह की सरकारें इस समय अमेरिकायूरोप के 11 देशोंतुर्कीपाकिस्तानभारतफिलीपींसब्राजील और इक्वाडोर आदि देशों में हैं. इन सभी देशों के अधिनायकवादी शासकों का काम करने का तरीका एक ही है.

आइएभारत के संदर्भ में हम देखते हैं कि वह क्या तरीके हैं, जिसका इस्तेमाल कर सरकारें लोकप्रियता हासिल कर रही हैं-

मीडिया और प्रचार-तंत्र का अधिकतम इस्तेमालः जर्मनी के तानाशाह हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स का ये कथन हमेशा याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि – झूठ अगर ऊंची आवाज में और बार-बार बोला जाए तो लोग उसे सच मान लेते हैं. दक्षिणपंथी अधिनायकवाद में प्रचार की एक बड़ी भूमिका होती है. सत्ता के शीर्ष पर काबिज अधिनायक हमेशा कोशिश करता है कि किसी न किसी बहाने वह चर्चा में बना रहे. इसके लिए प्राचीन गौरव को याद करने से लेकर किसी वास्तविक या काल्पनिक दुश्मन या विरोधी का विरोध करने समेत तमाम हथकंडे अपनाए जाते हैं. मिथकों और उनकी व्याख्या के माध्यम से अपने तर्क गढ़े जाते हैं. वे तकनीक को प्यार करते हैंलेकिन विज्ञान से डरते हैं और समाज विज्ञान यानी सोशल साइंस को तो खत्म कर देना चाहते हैं. ब्राजील के विदेश मंत्री ने जलवायु परिवर्तन को मार्क्सवादियों द्वारा फैलाया गया हव्वा करार दिया और कहा कि इसका प्रचार चीन को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है. वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने प्राचीन भारत के गौरव का बखान करते हुए कहा कि भारत में गणेश की सर्जरी हुई थी. भारत में इस तरह के बयान देने वालों की लंबी लिस्ट हैजिनके माध्यम से नेता चर्चा में बने रहते हैं. तुर्की के एर्दोगानयूक्रेन के विक्टर युशचेनको सहित रोमानिया, पोलैंड हंगरी में दक्षिणपंथियों के इस तरह के बयान आम हैंजिनका कोई आधार नहीं होता. इन बयानों से ये नेता समाज के एक तबके के बीच चर्चा में बने रहते हैं.


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शक्तियों का केंद्रीकरणः सत्ता का विस्तार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक करना एक लोकतांत्रिक प्रोजेक्ट है. इसके उलट अधिनायकवादी चाहते हैं कि सत्ता उनके और उनके अपने लोगों के पास केंद्रित रहे. भारत में इस समय सबसे ताकतवर संस्थान प्रधानमंत्री कार्यालय है. प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ अधिकारियों को नियमों में बदलाव कर स्थापित किया गया हैजो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कामकाज संभालते है. इन प्रमुख अधिकारियों में अजित डोभाल सबसे ऊपर हैं जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है. इसी तरह से नृपेंद्र मिश्र और पीके मिश्र को भी प्रिंसिपल सेक्रेटरी और एडिशनल प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाय़ा गया है. मोदी के प्रिय अधिकारियों की एक फेहरिस्त है, जिन्हें लंबे समय से वह अपने साथ रखते आए हैं. इनमें से कई अफसर गुजरात से उनके साथ आए हैं. इन अधिकारियों के माध्यम से वह पूरी सत्ता पर अपनी पकड़ रखते हैं. मोदी के अफसरों के सामने चुने गए सांसदों या उनके कैबिनेट में रखे गए लोग बौने पड़ गए हैं. संसद में नरेंद्र मोदी के घुसते ही उनके दल के लोग मोदीमोदी का नारा लगाने लगाते हैं. यह अभूतपूर्व है. दिल्ली के राजनीतिक हलके में माना जाता है कि केंद्रीय सत्ता पूरी तरह से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के हाथों में केंद्रित है और बीजेपी के अंदर भी उन्हें चुनौती देने वाला अब कोई नहीं नहीं रहा.   

अगर हम तुर्की का उदाहरण लें तो वहां के शासक तैयिप एर्दोगान ने जनादेश के माध्यम से कैबिनेट पर अपना पूर्ण अधिकार ले लिया और अधिकारियोंजजों की अपनी मर्जी से नियुक्तियां कीं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप अपने दामाद जारेड कुशनर को मुख्य विदेशी वार्ताकार के रूप में इस्तेमाल करते हैं और उन्हें सबसे ताकतवर बना रखा है.

वंचित तबके की समस्याः अधिनायकवाद की एक प्रवृत्ति ये भी है कि वो समर्थन तो वंचितों से लेता है, लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान नहीं करता. धार्मिक उन्माद दक्षिणपंथी अधिनायकवाद का हथियार है. इसके अलावा अधिनायकवाद, वंचित तबके को दी जाने वाली राहत या सब्सिडी का मजाक भी उड़ाता है और गरीबों की सहायता करने वाले विचारों को अविश्वसनीय भी बनाता है. नरेंद्र मोदी ने मनरेगा को 2014 के चुनाव में मसला बनाया और कहा कि इसके जरिए करदाताओं का पैसा बर्बाद किया जा रहा है. उन्होंने मनरेगा को कांग्रेस की विफलता का स्मारक करार दिया. इसी तरह से 13 प्वाइंट रोस्टर पर यूजीसी  नोटिफिकेशन लाया, जिससे विश्वविद्यालयों की नौकरियों में आरक्षण लगभग खत्म हो गया था. इस तरह अधिनायकवाद अपनी नीतियों से वंचितों की तकलीफ बढ़ाता है और लेकिन साथ ही राष्ट्रवाद या किसी समूह के प्रति नफरत जगाकर वंचित तबकों का समर्थन भी हासिल कर लेता है. हरियाणा में जाट, गुजरात में पटेल, महाराष्ट्र में मराठा और यूपी-बिहार में यादवों के खिलाफ बीजेपी ने जिस तरह का ध्रुवीकरण किया है, या उन्हें सत्ता से बाहर किया है, वह इसी रणनीति के तहत है.

हर अधिनायक को एक दुश्मन चाहिए: दुनिया का हर अधिनायक जनता को किसी दुश्मन का डर दिखाता है और इस आधार पर ध्रुवीकरण करता है. हिटलर ने वह दुश्मन यहूदियों में दिखाया. ट्रंप के लिए वे दुश्मन विदेशी शरणार्थी और मुसलमान हैं. श्रीलंका के शासक तमिलों को दुश्मन के तौर पर पेश करते हैं, तो भारत में ध्रुवीकरण मुसलमानों के खिलाफ किया जा रहा है. इस विचार को बहुत तेजी से व्हाट्सएप व अन्य माध्यमों से फैलाया जाता है. मुसलमान देश के सबसे गरीब और अशिक्षित समुदायों में है, लेकिन वर्षों से ये विचार फैलाया गया कि सरकार उनका तुष्टीकरण करती है. भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने बांग्लादेशी घुसपैठियों यानी बाहरी लोगों को निशाना बनाया. उन्होंने बांग्लादेशी घुसपैठियों को दीमक करार देते हुए कहा कि भाजपा सरकार एक एक घुसपैठिये को चुन चुनकर मतदाता सूची से हटाने का काम करेगी. लेकिन साथ ही हिंदू, बौद्ध और सिख शरणार्थियों को सरकार नागरिकता भी देने जा रही है. असम में नेशनल रजिस्टर के माध्यम से मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है, जबकि असम आंदोलन में घुसपैठियों में धर्म के आधार पर भेदभाव की कोई बात नहीं थी.   

मुसलमानों से नफरत के एक ग्लोबल ट्रैंड नजर आ रहा है. पोलैंड की दक्षिणपंथी पार्टी पीआईएस के नेता जारोस्लाव काजेन्सकी ने मुस्लिम शरणार्थियों के प्रति घृणा दिखाते हुए कहा कि ये लोग देश में अतिसार और हैजा लेकर आए है. दक्षिणपंथ शरणार्थियों को खतरा बताता है और उसे देश के स्थानीय निवासियों की समस्याओं का मूल करार देता है. ट्रंप ने पश्चिम एशिया और लैटिन अमेरिका से अमेरिका आए लोगों को खतरा करार दिया. इटैलियन फर्स्ट का नारा देने वाले इटली के उप प्रधानमंत्री मट्टेओ सालविनी ने शरणार्थी दुकानदारों को गंदा करार दिया और कहा कि उनकी दुकानों पर नशीली दवाओं का कारोबार होता है.

उदारवादियों से घृणाः दक्षिणपंथी अधिनायकवाद में उदारवादियों या लोकतंत्र समर्थकों के लिए कोई जगह नहीं है. वे वामपंथियों व उदारवादियों से घृणा करते हैं. जिन देशों में इस तरह का अधिनायकवाद हैवहां पर भीड़ द्वारा हिंसा और भीड़ का कानून आम बात है. भारत में आए दिन गोरक्षकों के कारनामे सामने आते हैं. उन्हें सत्ता पक्ष का प्रत्यक्ष और परोक्ष समर्थन मिलता है. प्रधानमंत्री मोदी अक्सर उदारवादियों को फर्जी करार देते हैं और वामपंथियों को ललकारते हैं. यहां तक कि गंगा प्रदूषित होने की जिम्मेदारी भी उन्होंने उदार वामपंथियों पर डाल दी और कहा कि अगर वामपंथी गंगा को मां मानते तो वह प्रदूषित नहीं होती. उदारवादी शिक्षा संस्थान भी बीजेपी के निशाने पर होते हैं. महिला अधिकारों से भी अधिनायकवादी विचारों को दिक्कत है.  भारत में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला आया तो इसके खिलाफ सबसे तेज आंदोलन भाजपा ने चलाया. महिलाओं पर अत्याचार को मजाक बनाना दक्षिणपंथ की वैश्विक शगल है. फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे ने कहा कि यहां बहुत सी सुंदर महिलाएं हैंऐसे में यहां ज्यादा बलात्कार होंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप तो महिलाओं के लिए बार बार मोटी’  ‘मूर्ख और घृणित जानवर’ जैसी उपमाएं दे चुके हैं. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान भी नियमित रूप से महिलाओं के खिलाफ आग उगलते हैं.

इस तरह से देखें तो विश्व में जहां भी दक्षिणपंथी अधिनायकवाद चल रहा हैकरीब हर जगह एक ही तरह का ट्रेंड है. मध्यमार्गीउदारवादीवामपंथी, शिक्षा संस्थानमहिलाएंवंचित तबका इनके निशाने पर होते हैं. लेकिन राष्ट्रवाद के उग्र नारे या धार्मिक या नस्लीय ध्रुवीकरण करके वे लोकप्रियता भी हासिल कर लेते हैं.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.)

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