पिछले कुछ सालों के बजट भाषणों पर गौर करें तो इस बार का भाषण बाकी सालों से थोड़ा अलग है. शुक्रवार को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण की शुरुआत कल्याणकारी कार्यक्रमों से नहीं की. यही नहीं उन्होंने प्रधानमंत्री जन आरोग्य (पीएमजेएवाई) जैसी प्रमुख योजना का भी कोई जिक्र नहीं किया.
सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना के रूप में प्रचारित की गई यह योजना देश के 10.74 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों को लाभ पहुंचाने के मकसद से शुरू की गई है. यहीं नहीं वित्त मंत्री ने अपने भाषण में सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण अभियान पर लिए गए हालिया पहल का भी कहीं उल्लेख नहीं किया. सबसे आश्चर्यजनक तो रहा प्रधानमंत्री कृषि योजना का जिक्र नहीं होना. जबकि फरवरी में पेश हुए अंतरिम बजट में इस पर खास ध्यान दिया गया था.
इसके बजाय, बजट नरेंद्र मोदी सरकार के पुराने अवतार पर मुख्य रूप से केंद्रित था. बुनियादी ढांचे पर ध्यान आकर्षित करने और लक्ष्य के लिए मिशन-मोड मॉडल के अलावा इस बार जल संकट जैसे मुद्दे पर फोकस किया गया.
बजट संख्याओं पर करीबी नज़र डालने से पता चलता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण सहित सामाजिक क्षेत्र के लिए आवंटन 2018-19 के संशोधित अनुमानों से अधिक हो गया है (विद्यालय शिक्षा योजना के लिए 18 प्रतिशत, एकीकृत शिक्षा के लिए 11 प्रतिशत, बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) और पीएमजेएवाई के लिए लगभग दोगुना), वहीं फरवरी में पेश हुए अंतरिम बजट से ज्यादातर के लिए कोई बदलाव नहीं किया गया है.
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इसके स्थान पर, अगले पांच वर्षों में बुनियादी ढांचे में 100 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने और पिछली प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का इरादा है, जिसमें आवास योजना के दूसरे कार्यकाल में 1.95 करोड़ घर बनाना और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 1,25,000 सड़कों का अपग्रेडेशन शामिल है.
स्वच्छ भारत निर्माण का ‘लक्ष्य’ प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) के अनुसार लगभग पूरा हुआ. यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नया आंदोलन अब पानी के लिए होगा. 5 जुलाई 2019 तक, केवल 18 प्रतिशत ग्रामीण घरों में पानी की आपूर्ति के कनेक्शन थे और पूरी तरह से कवर किए गए 50 प्रतिशत से कम बस्तियों में प्रति व्यक्ति 55 लीटर तक पहुंच थी. हाल ही में शुरू किया गया जल जीवन मिशन (राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन या एनआरडीडब्लूएम के तहत), अब 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने की कोशिश में तेजी से आगे बढ़ा जाएगा. इसके विपरीत, एनआरडीडब्लूएम के लिए आवंटन की गई राशि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है – पिछले वर्षों के संशोधित अनुमान से 82 प्रतिशत और अंतरिम बजट से 22 प्रतिशत.
लंबे समय से इंतजार किए जा रहे भारत के जल संकट पर ध्यान देना एक स्वागत योग्य कदम है और जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय और पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय को एकीकृत करके जल शक्ति मंत्रालय, (पूर्व में बनाया गया) की घोषणा करना, जल संसाधन प्रबंधन को अनुमति सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट (एसएलडब्ल्यूएम) को प्राथमिकता देने की आवश्यकता का भी उल्लेख है. कई राज्य अब केवल एसएलडब्ल्यूएम पर खर्च करने लगे हैं, हालांकि संख्या कम है. वित्तीय वर्ष 2018-19 में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में जवाबदेही पहल के आंकड़ों के अनुसार, स्वच्छ भारत ग्रामीण पर कुल राज्य व्यय का 4 प्रतिशत और केंद्र के कुल व्यय का 3 प्रतिशत एसएलडब्ल्यूएम पर था.
कोई भी नई योजना शुरू नहीं की गई है और यह आश्चर्य की बात नहीं है कि शायद अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय तनाव को देखते हुए भी सामाजिक क्षेत्र, विशेष रूप से, लंबे समय से छोटी योजनाओं (खासकर केंद्र की योजनाओं) को पूरा करने में दिक्कतें आ रही हैं, जो अक्सर इनके कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार राज्य को मझधार में डालते हैं. आर्थिक सुस्ती को देखते हुए अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए बुनियादी ढांचे पर जोर दिया गया है.
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हालांकि, जो बात खटक रही, वो सामाजिक क्षेत्र के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण का नहीं होना है. बजट भाषण देश के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत प्रदान करता है. हालांकि इस वर्ष के भाषण ने कृषि के लिए ‘शून्य-बजट‘, ‘उदय योजना’ का पुन: अवलोकन और संरचनात्मक सुधारों के पैकेज की आवश्यकता (और घोषणा करने का वादा) जैसी चीजों की बात आने पर कुछ बुनियादी बातों पर वापस जाने की आवश्यकता को स्वीकार किया है जो कि सामाजिक क्षेत्र के लिए गायब था.
पिछले साल देश में हुई कई स्वास्थ्य आपदाओं और नीति आयोग द्वारा हेल्थ इंडेक्स के दूसरे संस्करण में चिंताजनक रुझानों के साथ, बजट ने सामाजिक क्षेत्र के लिए एक व्यापक दृष्टि व्यक्त करने का मौका गंवा दिया. जो कि एक समन्वित प्रयासों पर केंद्रित है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि निर्मला सीतारमण के शब्दों में लाखों महिलाओं, बच्चों और कमजोर परिवारों की ‘आशा, विश्वास और आकांक्षा पूरी हो गई है. स्वास्थ्य, शिक्षा, डब्ल्यूएएसएच (जल, स्वच्छता और स्वच्छता), खाद्य और सामाजिक सुरक्षा के लिए बने विभागों और मंत्रालयों में आपसी तालमेल की आवश्यकता है.
(लेखिका सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में फेलो हैं. ये उनके निजी विचार हैं)
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