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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतआर्थिक मंदी की खबरों के बीच मोदी सरकार नई घोषणाएं कर स्थिति पर नियंत्रण दिखाना चाहती है

आर्थिक मंदी की खबरों के बीच मोदी सरकार नई घोषणाएं कर स्थिति पर नियंत्रण दिखाना चाहती है

मोदी सरकार के दो कार्यकालों में ऐसा कोई दूसरा सप्ताह शायद ही रहा होगा जब आर्थिक नीति को लेकर इतनी सारी घोषणाएं की गई होंगी. लेकिन जब तक मांग नहीं बढ़ती, परिदृश्य में सचमुच बदलाव मुश्किल है.

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बहुत पहले कहा जा चुका है कि भारत के राजनीतिक नेता व्यवस्थित आर्थिक सुधारों की पहल तभी करते हैं जब कोई संकट पैदा हो जाता है. इस कहावत को हमने पिछले सप्ताह ही सच होते देखा. इसके अलावा, शायद अरुण शौरी ने मोदी सरकार के बारे में कहा कि अर्थव्यवस्था के बारे में सुर्खियां बनाना अर्थव्यवस्था को संभालने जितना ही महत्वपूर्ण है.

इससे साफ हो जाता है कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारामण ने पत्रकार सम्मेलन करने के लिए पिछले हफ्ते को ही चुनने का शानदार फैसला क्यों किया, जबकि इसके 90 मिनट बाद ही यह स्पष्ट किया गया कि पिछले छह वर्षों में यह तिमाही ऐसी बीती जब जीडीपी वृद्धि दर सबसे निचले स्तर पर रही और मैन्युफैक्चरिंग में सबसे न्यूनतम 0.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की गई. अब सीतारामण ने बैंकिंग को लेकर जो बिजली चमकाई उसके आगे इन आंकड़ों का अपशकुनी धमाका फीका पड़ गया.

इस तरह, हमारे पास दो परिदृश्य हैं. एक ओर अर्थव्यवस्था की रफ्तार ‘पांच कमज़ोरियों’ वाले 2013 के दिनों (जब तेल की कीमत दोगुनी ऊंची थी) के मुक़ाबले धीमी है. पिछली चार तिमाहियों में वृद्धि औसतन मात्र 6.1 प्रतिशत की दर से रही है. पिछली तिमाही में वृद्धि दर मात्र 5 प्रतिशत रही और चालू तिमाही के लिए भी आसार कमजोर ही हैं इसलिए अब 2012-13 के बाद से सबसे धीमी वार्षिक वृद्धि दर के लिए तैयार रहिए.


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सरकार ने ऐसी बुरी ख़बर को कुछ फीका करने के लिए जवाबी परिदृश्य तैयार किया है और उभरती स्थिति के लिए कार्रवाई की है. चूंकि वित्त क्षेत्र में लगातार संकट ने क्रेडिट फ़्लो को बाधित करके व्यापक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, सरकार ने अपने बैंकों को फिर से पूंजी देने पर ध्यान दिया है और अब 10 बैंको को मिलाकर चार बैंक बनाने की पहल भी की है. दोनों घोषणाओं का मकसद मजबूत बैलेंसशीट वाली संस्थाओं का निर्माण करना है. रिजर्व बैंक ने अपनी पॉलिसी रेट्स को पिछले नौ वर्षों में सबसे निचले स्तर पर घोषित करके अपनी तरफ से योगदान दिया है.

दूसरी घोषणाएं भी ताबड़तोड़ की गई हैं. बजट में टैक्स कटौती की घोषणाएं की गई हैं, खनन और खुदरा क्षेत्र को विदेशी निवेश के लिए और खोला गया है, और चीनी निर्यात के लिए बड़ी सब्सिडी की घोषणा की गई है, ताकि चीनी मिलें इस पैसे से गन्ना किसानों को बकाये का भुगतान कर सकें. कमर्शियल वाहनों की बिक्री में गिरावट को रोकने के लिए ज्यादा उदार डेप्रिसिएशन रेट्स तैयार की गई हैं.

कहा जा रहा है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश को बढ़ाने, निर्यातों को बढ़ावा देने, रियल एस्टेट के लिए पैकेज देने की भी पहल की जाने वाली है. इस बीच, तेल की कमज़ोर कीमतों के बावजूद रुपए के बाहरी मूल्य में हाल में आई कमज़ोरी यह एहसास होने का संकेत देती है कि मुद्रा के मूल्य में तेजी से अर्थव्यवस्था का कोई भला नहीं होता.

मोदी सरकार के दो कार्यकालों में ऐसा कोई दूसरा सप्ताह शायद ही रहा होगा. जब आर्थिक नीति को लेकर इतनी सारी घोषणाएं की गई होंगी. सरकार के वरिष्ठ लोग कहते हैं कि वह फिलहाल सलाहों को सुनने और आलोचनाओं (व्यवसायियों द्वारा समर्थित) पर ध्यान देने के मूड में है. तो इस सबका मतलब क्या है?

रणनीति के लिहाज से निरंतर घोषणाएं एक बड़े पैकेज की घोषणा से शायद बेहतर ही होती हैं क्योंकि बड़ा पैकेज अगर नाकाम हुआ तो हालत पहले से भी बदतर हो जाते हैं. निरंतर घोषणाएं कम जोखिम वाली होती हैं जिनमें ज्यादा खुलापन रखने की गुंजाइश होती है, क्योंकि इन्हें तब तक जारी रखा जा सकता है जब तक इनके इकट्ठे असर के कारण लोग भविष्य के बारे में दूसरी तरह से न सोचने लगें और कुछ ज्यादा खर्च या निवेश करने लगें. इस चश्मे से देखें तो लगेगा कि सरकार को अभी ज्यादा कुछ करने और कुछ अहम खामियों को दूर करने की जरूरत है ताकि लोगों का मूड उसकी उम्मीद के मुताबिक बदले.


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पहला लक्ष्य यह होगा कि सरकार चक्रीय गिरावटों को रोकना और उपभोग तथा निवेश को न्यूनतम बिन्दु पर नहीं पहुंचने देना चाहेगी. बदलाव पहले तो उपभोग में आना चाहिए, क्योंकि नकदी के संकट के दबाव में कंपनियां तब तक निवेश से परहेज करेंगी जब तक बिक्री में सुधार नहीं दिखता. बैंकरों का कहना है कि कॉर्पोरेट क्रेडिट की मांग कमजोर बनी हुई है लेकिन खुदरा मांग त्यौहारों के दौरान बढ़ सकती है, अगर तब तक वह मांग जो टाल कर रखी गई थी वह उभरने लगी तो. लेकिन, गन्ना किसानों की समस्याओं का निबटारा करने के सिवाय सरकार ने ग्रामीण मांग को तेज़ी देने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं की है.

याद रहे कि कृषि कीमतें नीची ही रही हैं और ग्रामीण मजदूरी पिछले पांच साल से लगभग स्थिर है. इनके अलावा ढांचागत मसले भी निबटाए जाने का इंतज़ार कर रहे हैं. इसलिए परिदृश्य में सचमुच बदलाव लाने के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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