अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन समारोह हमें एक नए ‘राजनीतिक समय’ की झलक दिखाता है, जो निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी के 2024 के चुनावी अभियान से परे है. समय की यह कल्पना हिंदुत्व के पारंपरिक तत्वों – मुगलों द्वारा मंदिर का अपमान, कार सेवकों का बलिदान, मंदिर का विध्वंस और सुप्रीम कोर्ट के फैसला को इतिहास के निर्विवाद तथ्यों के रूप में समायोजित करती है. साथ ही, यह अमृत काल के आधिकारिक सिद्धांत को राजनीतिक नज़रिए से सही ठहराने का भी एक प्रयास है. इससे पता चलता है कि, प्राण-प्रतिष्ठा समारोह केवल राम मंदिर के बारे में नहीं था. बल्कि इसका मकसद नए ऐतिहासिक ज्ञान को विकसित करना था.
अब इससे जुड़े दो सरल प्रश्न तो पूछने ही चाहिए कि, राजनीतिक समय की इस अवधारणा में नया क्या है? और, भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के लिए इसके क्या मायने हैं?
राजनीतिक समय के रूप में अमृत काल
राजनीतिक समय से तात्पर्य उन राजनीतिक कार्यों से है जिनके द्वारा किसी समुदाय या राष्ट्र के अतीत, वर्तमान और भविष्य का निर्माण होता है. इसका निर्माण केवल विशेष इतिहास लिखने से नहीं होता है. इसके विपरीत, इसमें ‘अभी और यहां’ पर अधिक जोर दिया जाता है. जनता को इतिहास बनाने के साधन के रूप में कार्य करने के लिए और अतीत के बारे में एक विशेष तरीके से सोचने के लिए प्रेरित किया जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मंदिर के उद्घाटन के बाद अपने भाषण में इसी बात पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “समय का चक्र बदल रहा है. ये सुखद संयोग है कि हमारी पीढ़ी को एक कालजयी पथ के शिल्पकार के रूप में चुना गया है. हजार वर्ष बाद की पीढ़ी राष्ट्रनिर्माण के हमारे आज के कार्यों को याद करेगी. हमें आज से, इस पवित्र समय से अगले 1 हजार साल के भारत की नींव रखनी है.”
यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री नहीं हैं जो राजनीतिक समय के बारे में विचार कर रहे हैं. जवाहरलाल नेहरू ने विभाजन के तुरंत बाद राजनीतिक समय की एक सशक्त व्याख्या प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. नेहरू की राष्ट्र-निर्माण की अवधारणा भारतीय सभ्यता की कहानी से गहराई से जुड़ी हुई थी, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक, द डिस्कवरी ऑफ इंडिया में भी रेखांकित किया था. इस योजना में, भारत का धर्मनिरपेक्ष अतीत भविष्य के लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है. नेहरू ने हमेशा वर्तमान को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षण के रूप में परिभाषित किया.
कांग्रेस के नेतृत्व वाला राजनीतिक वर्ग राजनीतिक समय की इस नेहरूवादी कल्पना से विचलित नहीं हुआ. यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी इस नेहरूवादी अवधारणा को स्वीकार किया और इसे ज्यादा बदलने का प्रयास नहीं किया. हालांकि, मोदी इस संबंध में एक अपवाद हैं. वह, नेहरू की तरह, राजनीतिक समय की वैकल्पिक कल्पना उत्पन्न करने में गहरी रुचि रखते हैं.
मोदी का 2023 स्वतंत्रता दिवस का भाषण यहां बहुत प्रासंगिक है, क्योंकि तभी उन्होंने पहली बार अमृत काल का विचार पेश किया था. मोदी को इस बात का आभास नहीं हुआ कि 2014 में, जिस वर्ष वह प्रधान मंत्री बने, वह अमृत काल की शुरुआत थी. इसके विपरीत, उन्होंने वर्तमान क्षण (अधिक सटीक रूप से 2023) को इस खास अवधि के शुरुआती दौर के रूप में परिभाषित किया.
मोदी ने कहा था, “मैं एक हजार साल पहले की घटनाओं के बारे में एक कारण से बात कर रहा हूं. मैं अपने देश के सामने एक और अवसर देख रहा हूं, एक ऐसा समय जब हम ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि या तो हम युवावस्था में हैं या फिर हमने अमृत काल के पहले वर्ष में भारत जैसे देश में जन्म लिया है.”
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अमृत काल में राम मंदिर
राम मंदिर समारोह भी दो तरह से अमृत काल से जुड़ा हुआ है. सबसे पहले, राम मंदिर के उद्घाटन को दैवीय साक्ष्य के रूप में देखा जाता है, जो पुष्टि करता है कि वर्तमान वास्तव में एक अमृत काल है. मोदी ने एक पुरजोर दावा किया कि, “आज सब कुछ दिव्यता से भरा है. ये कोई सामान्य समय नहीं है. ये समय के चक्र पर चिरस्थायी स्याही से अंकित अमिट स्मृति रेखाएं हैं.”
दूसरी और शायद सबसे महत्वपूर्ण, भाजपा के नेतृत्व वाले राम मंदिर आंदोलन की कहानी है, जिसे अमृत काल से भी जोड़कर देखा जाता है. भले ही समारोह को गहरा आध्यात्मिक स्वरूप दिया गया, लेकिन फिर भी राम मंदिर की परिकल्पना अंततः एक राजनीतिक उपलब्धि के रूप में की गई. मंदिर स्थल को मुक्त कराने के लिए ‘500 वर्षों के संघर्ष’ और इसमें कार सेवकों द्वारा किए गए बलिदानों को राजनीतिक समय का एक नया वर्गीकरण तैयार करने के लिए उजागर किया गया था. इस योजना में अतीत को गुलामी का काल बताया गया है जबकि वर्तमान को अमृत काल कहा गया है. मोदी ने तर्क दिया, “यह राम के रूप में राष्ट्रीय चेतना का मंदिर है. रामलला के इस मंदिर का निर्माण भारतीय समाज के शांति, धैर्य, आपसी सद्भाव और समन्वय का भी प्रतीक है.”
राजनीतिक समय का भविष्य
राजनीतिक समय की इस नई अवधारणा के भारतीय लोकतंत्र पर दो बहुत ही दीर्घकालिक प्रभाव हैं. सबसे पहले, यह धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक समय की नेहरूवादी कल्पना के लिए एक गंभीर चुनौती है. यह सच है कि अमृत काल का विचार राजनीति के लिए एक रचनात्मक एजेंडा पेश करने का दावा करता है. हालांकि, यह भारत के अतीत की एक सामंजस्यपूर्ण अवधि के रूप में परिकल्पना नहीं करता है. इसके बजाय, इसमें ऐतिहासिक संघर्षों को महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्यों के रूप में याद किया जाता है.
दूसरा, भाजपा की स्थापना और उस मामले के लिए हिंदुत्व की राजनीति, राजनीतिक समय की इस अवधारणा को सही ठहराने के लिए कानूनी-संवैधानिक प्रवचन को बहुत दिलचस्प तरीके से नियोजित करती है. मोदी ने भारतीय संदर्भ में राम को केंद्र में लाने के लिए संविधान का आह्वान किया. मोदी ने कहा, “संविधान के अस्तित्व में आने के बाद भी दशकों तक प्रभु श्रीराम के अस्तित्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली. मैं आभार व्यक्त करूंगा भारत की न्यायपालिका का जिसने न्याय की लाज रख ली. न्याय के पर्याय प्रभु श्रीराम का मंदिर भी न्याय बद्ध तरीके से बना.” इस बयान से साफ पता चलता है कि बीजेपी संविधान को छोड़ना नहीं चाहती. इसके बजाय, वह इसे एक राजनीतिक उपकरण के रूप में प्रयोग करना चाहते हैं. और इसे ही मैं हिंदुत्व संविधानवाद कहता हूं.
राजनीतिक समय की एक नई अवधारणा के रूप में अमृत काल भविष्य में हमारी लोक संस्कृति को महत्वपूर्ण रूप से पुनः परिभाषित करने वाला है. यह न केवल हिंदुत्व की सफलता का प्रतीक है बल्कि विपक्ष की बौद्धिक विफलता का भी प्रतीक है.
(हिलाल अहमद राजनीतिक इस्लाम के विद्वान और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस), नई दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. वह @Ahmed1Hilal पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादन: अलमिना खातून)
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