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Friday, 3 May, 2024
होममत-विमतबिहार, बंगाल के प्रवासी मजदूर यूपी, एमपी के मजदूरों जितने भाग्यशाली नहीं हैं

बिहार, बंगाल के प्रवासी मजदूर यूपी, एमपी के मजदूरों जितने भाग्यशाली नहीं हैं

अरविंद केजरीवाल और उद्धव ठाकरे तो प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने को तैयार हैं मगर नीतीश कुमार लॉकडाउन के भंग होने का तर्क देकर उन मजदूरों को अपने राज्य में लौटने से लगातार रोक रहे हैं.

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कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों को लेकर जो संकट पैदा हुआ है उसका एक राजनीतिक पहलू भी है, जो न केवल प्रादेशिक नेताओं का पर्दाफाश कर रहा है बल्कि आपदा प्रबंधन के मामले में केंद्र सरकार की अकुशलता की भी पोल खोल रहा है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा ने अपने लोगों को वापस लाने की तैयारी शुरू कर दी है लेकिन बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाए हैं जबकि उनके लाखों लोग देशभर में जहां-तहां फंसे हुए हैं. हालांकि ममता दीदी का दिल है पिघलता रहता है, उन्होंने ट्वीट किया है कि जब तक मैं हूं तब तक कोई भी बंगाल का आदमी अपने आपको लाचार न समझें.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे प्रवासियों को अपने यहां से भेजने को तैयार हैं लेकिन बिहार के नीतीश कुमार प्रवासियों को निरंतर रोक रहे हैं. उनका तर्क है कि उनलोगों को आने दिया गया तो इससे लॉकडाउन का उल्लंघन होगा. बंगाल की ममता बनर्जी ने राज्य के भीतर आवाजाही की इजाजत तो दी है लेकिन राज्य से बाहर फंसे प्रवासियों को बाहर ही ठहरने को कहा है.

टीवी स्टुडियो में ‘प्राइमटाइम’ पर कोविड-19 वायरस के बारे में बहस करते हुए हम मजहब, मीडिया और गले की नसें फुलाकर चीखने वाले पत्रकारों के बारे में चाहे जो कह दें, लेकिन गले की हड्डी बने नज़र आ रहे हैं वे गरीब लोग, जो असंगठित क्षेत्र के अकुशल प्रवासी मजदूर हैं और जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉकडाउन लागू किए जाने के बाद एक महीने से अपने घर लौटने की जद्दोजहद में लगे हैं.


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मोदी सरकार को यह कहने में एक महीने का समय लग गया कि अगर राज्य आपसी सहमति से प्रवासियों को भेजने और स्वीकार करने को तैयार हों तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी, जबकि इस बीच ये प्रवासी मजदूर और छात्र भारी बदहाली का सामना करते रहे.

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घर वाले स्वागत करने को राजी नहीं

खबर है कि नीतीश काफी हिसाब-किताब लगाकर कदम उठा रहे हैं. उनका मानना है कि प्रवासियों की वापसी खासकर राज्य में स्वास्थ्य सेवा के बदहाल ढांचे के मद्देनजर इस स्वास्थ्य संकट से निबटने में उनकी मुश्किलें और बढ़ा देगी. यही वजह है कि वे अभी सख्ती बरत रहे हैं ताकि बाद में समस्या का सामना न करना पड़े.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य से बाहर फंसे अपने प्रवासियों को पैसे से मदद करने का वादा तो किया है मगर उन्हें वापस लाने के मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है. उन्हें एक डर यह भी है कि प्रवासियों को राज्य में आने की छूट दी गई तो भारत-बांग्लादेश की बाड़ रहित सीमारेखा का लाभ उठाकर बांग्लादेशी भी घुसपैठ कर सकते हैं. शायद इसीलिए ममता ने ‘स्नेहेर प्रकाश’ नामक ऑनलाइन स्कीम शुरू की है जिसके तहत दूसरे राज्यों में फंसे पश्चिम बंगाल के मजदूरों को जेबखर्च के रूप में 1000 रुपये दिए जाएंगे.

प्रवासियों के मसले पर केंद्र-राज्य सहमति बनने में देरी के नतीजे सबसे ज्यादा मुंबई और सूरत में सामने आए, जहां उनलोगों ने भारी विरोध प्रदर्शन किए. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों को प्रवासियों के सामूहिक रूप से बाहर निकलने पर रोक लगाने और उनके लिए आश्रयस्थलों और जरूरी चीजों की व्यवस्था करने के निर्देश दिए, तो महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे ने बयान दे दिया कि ‘बांद्रा स्टेशन पर जो हालात बने (हालांकि वहां से लोगों को हटा दिया गया है), और सूरत में जो दंगे की जो स्थिति बनी वह इसलिए कि केंद्र सरकार ने उन मजदूरों को उनके घर भेजने की व्यवस्था नहीं की. वे मजदूर खाना या ठिकाना नहीं चाहते, अपने घर जाना चाहते हैं.’

मुंबई में प्रवासियों की समस्या ने भाजपा और शिवसेना के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू कर दिया. भाजपा ने शिवसेना पर आरोप लगाया कि उसकी सरकार कोरोना महामारी से लड़ने में विफल रही है और उसे बांद्रा स्टेशन के बाहर ‘मजदूरों के जमा होने की पहले से कोई खुफिया सूचना नहीं मिल पाई.’

घर लौटने की बेताबी क्यों है?

अपने घरों और सुरक्षित दफ्तरों में सुकून के साथ ‘क्वारंटाइन’ होकर पड़े रहने वाले सत्ताधारियों के लिए यह कहना बहुत आसान है कि वे मजदूर जहां हैं वहीं रहें. खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने की प्रवृत्ति के चलते ये लोग राष्ट्रवाद की दुहाई देते हुए उन मजदूरों को तमाम मुसीबतें झेलते हुए देश और उसके लोगों के व्यापक हित के बारे में सोचने की नसीहत दे सकते हैं. कुछ लोग तो उन प्रवासियों को उतावला, मूर्ख और स्वार्थी तक कह सकते हैं. जो लोग उनके प्रति रहम का भाव रखते हैं वे उन्हें खाना-पानी बांटकर अपनी अंतरात्मा को समझा लेते हैं.

लेकिन जो असंवेदनशील हैं वे यही उम्मीद करते हैं कि वे सरकार द्वारा स्थापित आश्रयस्थलों में सुकून महसूस करें. कोई उनसे यह पूछे कि जब मारक वायरस से संक्रमण का खतरा आपके सिर पर तलवार की तरह लटका हो तब आप अपने घर से अलग किसी आश्रयस्थल में रहना चाहेंगे? कतई नहीं. आप भी अपने घर जाना चाहेंगे, भले ही इस कोशिश में जान जाने का खतरा क्यों न हो. कम-से-कम सुकून से मर तो सकेंगे!

ऐसे बुरे दौर में गरीबों को अपनी रोजी-रोटी पर मार तो झेलनी ही पड़ रही है, वे जिस मनोवैज्ञानिक व मानसिक यातना से गुजर रहे हैं, उसकी ओर कई लोगों का ध्यान शायद ही जाता है. केवल खाना-पानी ही उनकी मुसीबतों को दूर नहीं करता. गुजरात में मूर्तिकार का काम करने वाले मुरैना (मध्य प्रदेश) के 24 वर्षीय विवेक शर्मा ने बणासकांठा के नादेश्वरी गांव में नादेश्वरी माता मंदिर में अपनी जीभ इसलिए काट डाली क्योंकि अपने घर न लौट पाने के कारण वे अवसादग्रस्त थे.

आंकड़े क्या कहते हैं

2011 की जनगणना और 2007-08 के नेशनल सैंपल सर्वे के आधार पर लगाए गए अनुमान के मुताबिक 2001 से 2011 के दौरान राज्यों के बीच प्रवासियों की आबादी 6 करोड़ थी और जिलों के बीच उनकी आबादी 8 करोड़ थी. 2011-16 के बीच रोजगार से जुड़े कारणों के चलते राज्यों के बीच प्रवासियों की संख्या 90 लाख थी. इसमें पढ़ाई करने के लिए दूसरे राज्यों में जाने वाले छात्रों की संख्या भी जोड़ दें, तो पता चलेगा कि हरेक राज्य से दूसरे राज्यों में जाने वालों की आबादी कितनी बड़ी है.

आज महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु और गुजरात प्रवासियों के बड़े ‘हॉटस्पॉट’ हैं, जहां उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से आए प्रवासी बड़ी संख्या में मौजूद हैं. प्रवासी मजदूरों का एक और बड़ा केंद्र पश्चिम बंगाल है जहां झारखंड, उत्तर प्रदेश और ओड़ीसा से आए प्रवासी बड़ी संख्या में मौजूद हैं. लेकिन बंगाल ने राज्य के भीतर प्रवासियों की आवाजाही की समस्या को बेहतर तरीके से सुलझाया है. ममता बनर्जी ने देशव्यापी लॉकडाउन से दो दिन पहले ही राज्य में 22 मार्च को लॉकडाउन लागू कर दिया था. राज्य में रह रहे प्रवासियों या दूसरे राज्यों में रह रहे पश्चिम बंगाल के प्रवासियों ने तभी अपने-अपने घर लौटने का फैसला कर लिया था जब ट्रेनें चल रही थीं. लेकिन ऐसा नहीं है कि वहां प्रवासियों के सामूहिक पलायन की समस्या नहीं है, हावड़ा स्टेशन की फोटो देखेंगे तो साफ पता चल जाएगा.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब यह व्यवस्था कर रहे हैं कि अपने ही राज्य के भीतर जिन प्रवासियों ने सरकारी केन्द्रों में 14 दिन की ‘क्वारंटाइन’ की अवधि पूरी कर ली है वे एक जिले से दूसरे जिले में जा सकें.

उन्हें लंबे समय तक रोक नहीं सकते

राज्य सरकारों ने अब आपसी तालमेल से प्रवासियों को अपने घरों तक जाने की छूट देने का जो फैसला किया है उसमें काफी देर हो चुकी है क्योंकि अब तक काफी नुकसान हो चुका है. यह काम तो 24 मार्च को लॉकडाउन लागू करने से पहले ही जिलावार और राज्यवार बैच बनाकर व्यवस्थित तरीके से किया जाना चाहिर था.

अब जबकि अटकलें लगाई जा रही हैं कि लॉकडाउन और आगे बढ़ाया जा सकता है, तब प्रवासी मजदूरों को अस्थायी आश्रयस्थलों में रखना न केवल क्रूरता होगी बल्कि खतरनाक भी होगा क्योंकि भारत आज विरोध प्रदर्शनों का जोखिम नहीं उठा सकता. दरअसल, पलायन को रोकना मुमकिन नहीं होगा.


य़ह भी पढ़ें: कोरोनावायरस ने सर्वशक्तिमान केंद्र की वापसी की है और मोदी कमान को हाथ से छोड़ना नहीं चाहेंगे


तिरुनेलवेली (तमिलनाडु) जिले के 10,000 लोग, जो धारावी में रह रहे थे, इसलिए वहां से पलायन कर गए क्योंकि वहां की घनी आबादी के कारण सोशल डिस्टेन्सिंग लगभग असंभव थी. यह तब हुआ जबकि महाराष्ट्र में लॉकडाउन सख्ती से लागू है. दरअसल, तिरुनेलवेली की कलक्टर शिल्पा प्रभाकर सतीश ने तिरुनेलवेली-थूटुकुडी जिले की सीमा के पास नेशनल हाइवे पर प्रवासियों की जांच और क्वारांटाइन के लिए व्यवस्था की, क्योंकि उन्हें रोक पाना संभव नहीं था.

(इस लेख को अंग्रेजी में भी पढ़ा जा सकता है, यहां क्लिक करें)

(लेखिका एक राजनीतिक विश्लेषक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

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31 टिप्पणी

  1. Madam har mudde ko political angel se dekha Kar or usme sirf bjp ki galti nikalana aap jaise logo ki gahtiya mansikata ko dikhata hai…..desh Mai Jo b ghtanaa ho usko Galata trike se batkar modi or bjp ko Gali Dena aap logo be ek shol hai….jisme na koi tark hai na koi logic sirf aap ek Niche tabke ke insan ko p m ke pad or nhi dekh sakte..kunki apki nazro Mai bo pm pad sirf ek pariwar ki bapoti hai isliy har bat PR modi ko Gali do….isme apko bhut paise milte hai

  2. Main mp ka ho jila rewa hai main VARANASI me hoon main apne ghar jana chahta ho kaise Jaon aap kipa mere sahaita kijiye main aapka bahut abhari rahonga

  3. Main mp ka ho jila read hai main VARANASI me hoon main apne ghar jana chahta ho kaise Jaon aap kipa mere sahaita kijiye main aapka bahut abhari rahonga

  4. ग्राम कोरियावास तहसील नारनौल जिला महेंद्रगढ़ राज हरियाणा से एमपी के मजदूरों को घर कब भेजा जाएगा

  5. नमस्कार सर मै गोंडा जिला उत्तर प्रदेश से हूं
    नही भेजना चाहते हो तो मत भेजो लेकिन एक दिन हमारी तरह रह कर देखो पता लग जायेगा कि किया बीत रही है मजदूरों पर
    नहीं रह सकते तो सिर्फ एक बार कल्पना कर के देखो कि हमारी जगह आप के बच्चे होते तो आप क्या करते

  6. नमस्कार सर मै गोंडा जिला उत्तर प्रदेश से हूं
    मै सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि बददुआ की कभी खाली नहीं जाएगी

  7. Sr ham delhi me 4 mazdur fase hi ham 4 west bengal ka rahene bala ji har bapas jana chahata

    hu

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