scorecardresearch
Thursday, 31 October, 2024
होममत-विमतब्लॉगलव कुश तो बहाना है, असल मसला तो वाल्मीकि की विरासत है

लव कुश तो बहाना है, असल मसला तो वाल्मीकि की विरासत है

वाल्मीकि समाज का कहना है कि लव-कुश के कपड़े मॉडर्न क्यों लग रहे हैं. उनकी मांग है कि जब भी ऐसे धारावाहिक बनें तो समाज को स्टेकहोल्डर बनाया जाए.

Text Size:

कहा जाता है कि रामायण हमारे समाज की नस-नस में बसा है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर सुनवाई करते हुए पूछा कि राम के उत्तराधिकारी कहां हैं? दनादन राजस्थान के कई राजसी परिवारों ने कागजात पेश करने शुरू कर दिये कि हम हैं भगवान राम के उत्तराधिकारी.

सवाल ये है कि रामायण लिखने वाले वाल्मीकि के उत्तराधिकारी कौन हैं? जवाब है- वाल्मीकि समाज. वही समाज, जिनकी गलियों से झाड़ू लगाकर प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी. आज वो समाज रामायण में अपना हक मांग रहा है. अंदाज भी वही है- फैक्ट और फिक्शन में बिना अंतर किए हंगामा खड़ा कर देना.

फिक्शन और फैक्ट को लेकर देश में हो रही विचित्र बयानबाजी और प्रदर्शन में एक नया किस्सा जुड़ा है. किस्सा है कलर्स टीवी पर चल रहे धारावाहिक ‘राम सिया के लव कुश’ का. इस धारावाहिक को लेकर भारत बंद की गुहार लगाई जा रही है. वाल्मीकि समाज ने हिंसक विरोध प्रदर्शन करते हुए इस सीरियल को बंद कराने की जोरदार मांग की है. वाल्मीकि समाज का कहना है कि इस धारावाहिक में ‘भगवान वाल्मीकि’ को गलत तरीके से दिखाया गया है.

इस बारे पुलिस के बयानों के आधार पर पता चलता है कि धारावाहिक में ये दिखाया गया है कि राम के बेटे लव-कुश और भरत-लक्ष्मण के बेटे एक साथ आश्रम में पढ़ाई कर रहे हैं. वाल्मीकि समाज का कहना है कि वाल्मीकि रामायण में तो ऐसा लिखा ही नहीं था. यही नहीं, उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई है कि लव-कुश के कपड़े मॉडर्न क्यों लग रहे हैं. उनकी मांग है कि जब भी ऐसे धारावाहिक बनें तो समाज को स्टेकहोल्डर बनाया जाए और उनकी राय भी ली जाए. तर्क है कि ये तथ्यों के साथ छेड़छाड़ है. हालांकि हाल फिलहाल में वाल्मीकि जयंती पर केक काटने का रिवाज भी चल पड़ा है.

इसके मद्देनजर भाजपा सांसद हंसराज हंस ने केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को इस सीरियल पर बैन लगाने की बात कही है. पंजाब की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो इस धारावाहिक पर बैन भी लगा दिया है.

पर रामायण के लेखक ऋषि वाल्मीकि को भगवान बनाकर पेश करना एक नया तथ्य है, इस पर कोई बात नहीं हुई. हालांकि इस देश में पत्थर को भगवान कहकर हंगामा खड़ा कर दिया जाता है, वाल्मीकि तो फिर भी लेखक थे.

ऐसा नहीं है कि फैक्ट और फिक्शन को एक समझने की शुरुआत वाल्मीकि समाज ने ही की है. 2011 में दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीए हिस्ट्री के कोर्स से ए के रामानुजम के लेख 300 रामायनाज को लेकर काफी हंगामा हुआ था और इसे हटा दिया गया था. लेख पढ़ने से पता चलता है कि रामायण के अनेक वर्जन हैं. पूरे एशिया में रामायण की कहानियां अपने अपने तरीके से फैली हुई हैं और बनी हुई हैं. ऐसे में कहानी पर किसी एक व्यक्ति, एक लेखक या एक समुदाय को पूरा अधिकार कैसे दिया जा सकता है. वैसे भी, कहानी और कला तो पूरे समाज के उत्तराधिकार में आती हैं. लेकिन रामायण की एक प्रचलित कहानी को फैक्ट के रूप में स्थापित किया गया.


य़ह भी पढ़ें: एक वीडियो ने पुलिसवालों की इमेज प्यारभरी दिखाई, लेकिन इस बात पर पुलिस सिस्टम भड़क उठा


ये पहला मौका है जिसमें इस तरीके से आपत्ति जताई गई है कि ओरिजिनल कहानी में तो ऐसा था ही नहीं. जबकि फिल्में और धारावाहिक बाजार और कला को मिलाकर चलते हैं और शुरुआत में ही अस्वीकरण देते हैं कि इस धारावाहिक/फिल्म का किसी सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है, ये सिर्फ मनोरंजन के लिए है. अगर फिल्मों की बात करें तो जेम्स कैमरून निर्देशित फिल्म टाइटैनिक में जहाज के डूबने के दौरान कैप्टन और अन्य पात्रों की कहानी को बदल दिया गया था. उसी तरह पहलवान महावीर फोगाट पर बनी फिल्म ‘दंगल’ में नाटकीयता लाने के लिए बबीता फोगाट के कोच के रोल को बदल दिया गया था.

अभी हाल में आई अक्षय कुमार की फिल्म ‘मंगलयान’ में पूड़ी तलने से टेक्नीक प्राप्त की गई है. इसी तरह बहुत सारी फिल्मों में अपने हिसाब से रचनात्मक छूट ली जाती है. कहीं कहीं ये काम कर जाता है जैसा कि टाइटैनिक फिल्म में हुआ. कहीं कहीं ये छूट बहुत सामने आ जाती है और मजाक का कारण बनती है. जैसा कि मंगलयान में पूड़ी तलने को लेकर हुआ. पर जाहिर सी बात है कि इस बात को लेकर वैज्ञानिक केस नहीं करेंगे. अगर ऐसा होता तो सुपरमैन, बैटमैन और आयरनमैन जैसी फिल्में कभी बन नहीं पातीं.

वाल्मीकि समाज का विरोध वर्तमान समाज की हालत ही दिखाता है. अभी हाल ही में में बुकर प्राइज के लिए सलमान रुश्दी के उपन्यास ‘कीशॉट’ को नॉमिनेट किया गया है. उस उपन्यास में वर्तमान समय की अब्सर्डिटी (मूर्खता) पर तंज कसा गया है जहां लोग फैक्ट और फिक्शन को लेकर कन्फ्यूज हैं. उपन्यास का नायक इतना टीवी देखता है कि वो कहानी और असली जीवन का फर्क ही भूल जाता है.

ये हमारे नेताओं के बयानों से भी जाहिर होता है. कुछ दिन पहले ही मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने आईआईटी में बोलते हुए कहा कि इंजीनियरों को रामसेतु की सिविल इंजीनियरिंग पर रिसर्च करनी चाहिए. पुष्पक विमान की तकनीक को लेकर गाहे-बगाहे बयानबाजी होती रही है.

पर अब रामायण पर सिर्फ अयोध्या में मंदिर बनानेवाले समूह का ही अधिकार नहीं रह गया है, वाल्मीकि समाज सहित हर समूह अपना अपना दावा ठोंकेगा. सीधी बात है, जब अयोध्या के महल और श्रीराम के अस्तित्व को हम ऐतिहासिक मानकर उस पर केस लड़ रहे हैं, फिर वाल्मीकि के अस्तित्व को भी ऐतिहासिक ही मानना पड़ेगा.

फैक्ट और फिक्शन का कन्फ्यूजन नित नई समस्याएं खड़ी करनेवाला है. हो सकता है कि इसके लिए हमें मिनिस्ट्री ऑफ फैक्ट एंड फिक्शन और सुप्रीम कोर्ट बेंच ऑफ फैक्ट एंड फिक्शन बनाना पड़े. सामान्य नियमों और प्रशासन से इस समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा.

share & View comments