अपनी कुर्सी पर आगे खिसक कर बैठे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप न ओजपूर्ण ढंग से, इमरान खान का स्वागत किया और कहा ‘बहुत लोकप्रिय और साथ ही महान एथलीट- महानतम एथलीटों में से एक पाकिस्तान के बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री को स्वागत करना मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है.’
ओवल ऑफिस में सोमवार का ये दृश्य पाकिस्तानियों के ज़ेहन में घर कर गया. उन्हें ट्रंप से प्यार हो गया. ये वही व्यक्ति था जिसे वे कभी इस्लाम का दुश्मन और तमाम बुराइयों की जड़ मानते थे. वह अब कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाएगा और जो यदि चाहे तो 10 दिनों के भीतर ‘अफ़ग़ानिस्तान को धरती से मिटा’ सकता है. यानि एक ही तीर से दो पड़ोसियों का शिकार.
ये वही अमेरिका है जिसने कभी ‘बमों की बारिश कर पाकिस्तान को प्रस्तर युग में भेजने’ की बात सोची थी.
ट्रंप ने 2016 में अपने चुनाव अभियान के दौरान वादा किया था कि ओसामा बिन लादेन को ढूंढने में कथित तौर पर अमेरिका की मदद करने वाले सर्जन डॉ. शकील अफरीदी को पाकिस्तानी जेल से मुक्त कराने में उन्हें महज ‘दो मिनट’ लगेंगे. ‘मैं उनसे कहूंगा उनको छोड़ दो और मुझे यकीन है वे उन्हें रिहा कर देंगे… क्योंकि हम पाकिस्तान को बहुत मदद देते हैं. हम पाकिस्तान को काफी धन देते हैं.’
लेकिन सोमवार को जब उनसे अफरीदी के बारे में पूछा गया, तो एकबारगी ट्रंप को कुछ समझ ही नहीं आया. ‘प्रेस की आज़ादी?’ उन्होंने शायद अफरीदी को पत्रकार समझते हुए पूछा. बाद में उन्होंने अफरीदी का उल्लेख उत्तर कोरिया में रखे गए बंधक के रूप में किया. कुछ-कुछ उसी तरह जैसे कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने ‘मुंबई आतंकी हमले के कथित सरगना’ को ’10 वर्षों की तलाशी’ के बाद पाकिस्तान में गिरफ़्तार किए जाने की बात की थी.
तो इस तरह ट्रंप नए पाकिस्तान को, फिर से महान बनाते हैं. हमें कोई शिकायत नहीं है.
इमरान ख़ान को आफ़िया सिद्दिक़ी के बदले अफरीदी को छोड़ने का सौदा करना जायज़ लगता है. यदि नवाज़ शरीफ़ या आसिफ़ अली ज़रदारी ने ऐसा सौदा करने की कोशिश की होती, तो हंगामा खड़ा हो जाता और इन नेताओं को ‘अमेरिकी पिट्ठू’ करार देते हुए पहला हमला इमरान ख़ान ने ही किया होता.
इमरान की कड़वी गोली
ख़ान ने मंगलवार को यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में अपने संबोधन में कहा, ‘ये सर्वाधिक सुखद आश्चर्यों में से एक था. उनके (ट्रंप के) आतिथ्य, स्पष्टवादिता और हमारे प्रति सौम्य व्यवहार से हम हैरान रह गए. हमें राष्ट्रपति से मिल कर अच्छा लगा.’
जैसे सोमवार की मुलाकात के बाद आम पाकिस्तानी ट्रंप और अमेरिका के प्रति नरम पड़ गया है, उसी तरह इमरान ख़ान भी यह दिखाने की कोशिश करने लगे हैं कि अब जबकि वह कड़वी गोली गटक चुके उसके बाद उनका भी हृदय परिवर्तन हो गया है.
ट्रंप के साथ द्विपक्षीय बैठक से पूर्व अभिभूत दिख रहे ख़ान ने सोमवार को कहा, ‘मैं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पद संभालने के दिन से ही इस मुलाकात का इंतजार कर रहा हूं.’ सच में? क्योंकि अपने ‘चुनाव’ के दिनों में इमरान ख़ान हमसे यही कह रहे थे कि वह ट्रंप से मिलने को लेकर असहज हैं पर वह ‘इस कड़वी गोली को खाएंगे और उनसे मिलेंगे.’
कौन कड़वी गोली खाने से हिचकेगा यदि पुरस्कार बड़े हों और हारने का दांव और भी बड़ा? वास्तव में, देश में आर्थिक उथल-पुथल को देखते हुए कड़वी गोली की पूरी शीशी तक गटकना वैध माना जाएगा.
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ट्रंप और ख़ान का अतीत का तनावपूर्ण संबंध ट्विटर पर सहेज कर रखा मिल जाएगा. दोनों के बीच एक बार हुई नोंकझोंक के अलावा पिछले दो वर्षों के दौरान पाकिस्तान को लेकर ट्रंप अनेकों बार अपनी भड़ास निकाल चुके हैं.
अफ़ग़ानिस्तान संबंधी अपनी नीति की घोषणा करते हुए अगस्त 2017 में ट्रंप ने कहा था, ‘हम पाकिस्तान को अरबों डॉलर दे रहे हैं, पर वे उन्हीं आतंकवादियों को पनाह दे रहे हैं जिनसे कि हमारी लड़ाई है…’
ट्रंप का 2018 का नए साल का संदेश भी स्पष्ट था. उन्होंने ‘गत 15 वर्षों के दौरान 33 अरब डॉलर की सहायता’ के बदले पाकिस्तान के ‘झूठ और छल’ के बारे में ट्वीट किया था- ‘अब और नहीं!’
फिर पिछले वर्ष नवंबर में एक इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा, ‘वे (पाकिस्तान) हमारे लिए कुछ भी नहीं करते.’ इस दफे, इमरान ख़ान ने जवाब दिया – और सीधे ‘मिस्टर ट्रंप’ पर हमला किया.
जैसे ट्रंप, वैसे ख़ान
पाकिस्तान के परमाणु भौतिकविद और एक्टिविस्ट परवेज़ हुदभॉय ने 2015 में ही, दोनों नेताओं के सत्ता में आने से पहले, लिखा था कि ट्रंप और ख़ान ‘एक ही मिट्टी के बने है, बस पैकेजिंग अलग है’ क्योंकि शीर्ष पदों के लिए अपने अभियान से दोनों ने ही ‘जातीय और धार्मिक अतिवादियों को जोश दिलाया है.’
क्या दोनों सचमुच में दोस्त बन सकते हैं? इस वक़्त इसका उत्तर उतना जटिल नहीं है, क्योंकि उनमें से एक के पास ही वास्तवित शक्ति है.
दोनों के बीच अन्य कई समानताओं में से एक ये है कि ट्रंप और ख़ान दोनों मानते हैं कि वे स्वतंत्र प्रेस के शिकार हैं. जहां ट्रंप का सामना एक ऊर्जावान मीडिया से है, वहीं इमरान ख़ान ने यह कहते हुए सरासर झूठ बोला कि ‘पाकिस्तानी प्रेस पर पाबंदियों की बात करना एक मज़ाक है.’ सरकार की आलोचना करने वाले टीवी चैनल बंद होते रहते हैं, आत्म-सेंसरशिप हर तरफ दिख रहा है, विपक्षी नेताओं के साक्षात्कारों के प्रसारण स्थगित किए जाते हैं, सत्तारूढ़ दल सोशल मीडिया के ज़रिए पत्रकारों को देशद्रोह के मामले में फंसाने की धमकियां देता है और ये सब प्रधानमंत्री को ‘मज़ाक’ लगता है.
विडंबना देखिए कि यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के समक्ष इमरान ख़ान खुद को पाकिस्तान के स्वतंत्र प्रेस का सबसे बड़ा शिकार बताते हैं, क्योंकि एक पत्रकार ने एक समाचार कार्यक्रम में उनके तलाक़ की चर्चा की थी. ख़ान किसी पत्रकार को उनकी जाती ज़िंदगी के बारे में चर्चा का दोषी कैसे बता सकते हैं, जब अतीत में वह खुद बुशरा से अपने विवाह प्रस्ताव की घोषणा अपनी पार्टी पीटीआई के लेटरहेड पर कर चुके हैं?
पाकिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं – मानवाधिकार कार्यकर्ता गुलालाई इस्माइल पर विद्रोह भड़काने का आरोप लगाया गया है, जबकि पश्तून सांसदों मोहसिन दावर और अली वज़ीर को एक सुरक्षा चौकी पर हमले के मामले में गिरफ्तार किया गया है– की लीपापोती कर इमरान ख़ान इन कृत्यों के उत्तरदायित्व से खुद को अलग नहीं कर सकते हैं.
यदि वे अपने फासीवादी शासन का आकर्षक चेहरा बनने को राज़ी हैं, तो उन्हें राष्ट्रीय हित के नाम पर की जाने वाली कार्रवाई की जवाबदेही भी लेनी होगी.
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इमरान ख़ान के नए पाकिस्तान में हाशिए पर पड़े समूहों का उत्पीड़न ट्रंप के ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के साथ प्रतिध्वनित होता है. पर इसकी किसे परवाह है. अभी तो बस ये बात मायने रखती है कि ख़ान ट्रंप के यार हैं या फिर मतलब के यार कहें?
(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विट हैंडल @nailainayat है. यहां प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं.)
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