पिछले हफ्ते एक बेटा अपने पिता का सम्मान बहाल करने की लंबी लड़ाई में विजयी हो गया, जब क्रिकेट के नियमों में तय कर दिया गया कि ‘मांकडिंग’ को अब अनुचित खेल नहीं माना जाएगा.
मुम्बई के लिए उस दौर में रणजी ट्रॉफी खेलने के बाद, जब आधी भारतीय टीम मुम्बई के लिए खेलती थी, राहुल मांकड़ इसे हज़म नहीं कर सकते थे कि जब भी कोई गेंदबाज़ नॉन-स्ट्राकर छोर पर खड़े किसी बल्लेबाज़ को रन आउट करता था, तो उसके साथ उनके पिता का नाम एक अपराध बोध और कलंक के साथ जुड़ जाता था. राहुल इस लड़ाई को मैरीलिबोन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) तक ले गए, और उसके नतीजे में आख़िरकार अब नियम में एक बदलाव किया गया है.
नियम 41.16 को- नॉन-स्ट्राइकर को रन आउट करना- नियम 41 से हटाकर (अनुचित खेल) नियम 38 (रन आउट) के साथ कर दिया गया है. इसका मतलब है कि क़रीब 75 साल पहले, जब वीनू मांकड़ ने बिल ब्राउन को रन आउट किया था, तो वो अनुचित खेल नहीं था.
विलियम एल्फ्रेड ‘बिल’ ब्राउन का शुमार, टेस्ट क्रिकेट के अब तक के सबसे शानदार सलामी बल्लेबाज़ों में किया जाता है. वो डॉन ब्रेडमेन के नेतृत्व में ‘अजेय’ टीम का हिस्सा थे. ब्राउन और जैक फिंगलटन यक़ीनन ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के इतिहास में, सर्वश्रेष्ठ सलामी जोड़ी थे. लेकिन ब्राउन कोई ऐसे आकर्षक खिलाड़ी नहीं थे, जिनमें नैसर्गिक प्रतिभा भरी हुई हो; बल्कि वो एक मेहनती क्रिकेटर थे, जिन्होंने अपने धैर्य और दृढ़ संकल्प से खेल की ऊंचाइयों को छुआ.
शायद ये उनका दृढ़ संकल्प ही था, जिसने ब्राउन को अपना क्रीज़ छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया, जब मुलवंतराय हिम्मतलाल ‘वीनू’ मांकड़, ऑस्ट्रेलिया में एक टेस्ट श्रंखला में गेंद फेंकने ही वाले थे. वो साल 1947 था- और भारत ने तभी आज़ादी हासिल की थी- और वो आत्मविश्वास क्रिकेट मैदान पर भी, देश के एक बेहतरीन ऑलराउण्डर के रूप में दिख रहा था. मांकड़ को सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर ब्राउन को रन आउट करने में कोई झिझक नहीं हुई.
मांकड़ को वो विश्वास शायद इस बात से मिला होगा, कि वो एक महान क्रिकेटर थे. 1946 में उनके अपना पहला टेस्ट खेलने से लेकर 1978 तक- जब कपिल देव मैदान में प्रकट हुए, भारत के सबसे महान ऑलराउंडर मांकड़ ही थे. उनके ब्राउन को रन आउट करने से विवाद इसलिए खड़ा हुआ कि एमसीसी- जो खेल के नियमों की संरक्षक है- पहले ही इस तरह आउट दिए जाने को, नियम 41.16 के अंतर्गत ‘अनुचित खेल’ के वर्ग में रख चुकी थी.
इस तरह किसी को आउट करने वाले मांकड़ पहले क्रिकेटर नहीं थे. 1935 में अंग्रेज़ खिलाड़ी टॉमस बार्कर प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पांच बार ऐसा कर चुके थे. बार्कर एक ग़ैर-पेशेवर खिलाड़ी- एक कारोबारी थे, जिन्होंने सिर्फ थोड़े से मैच खेले और बाद में शेफील्ड के मेयर बन गए. अगर ‘मांकडिंग’ का कलंक किसी को ढोना था, तो वो बार्कर होने चाहिएं थे.
मांकड़ का नाम जिस कारण चर्चा में आया वो ये था कि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में ऐसा करने वाले वो पहले खिलाड़ी थे. इसने दुनिया भर की तवज्जो अपनी ओर खींच ली, क्योंकि ये एक मशहूर टेस्ट श्रंखला के दौरान एससीजी पर हुआ था. ऑस्ट्रेलियाई प्रेस ने एक नया शब्द गढ़कर इसे ‘मांकडिंग’ या ‘मांकेडेड’ का नाम दे दिया. ये आसानी के साथ ‘बार्क्ड’ हो सकता था, लेकिन अंग्रेज़ी प्रेस ने उसे जानबूझकर नज़रअंदाज़ कर दिया था.
उस घटना से काफी हंगामा मचा था, लेकिन कुछ अजीब कारणों से ये केवल गेंदबाज़ था, जिसे ‘अनैतिक’ के तौर पर देखा गया.
सच्चाई ये थी कि वो बल्लेबाज़ था जो एक रन चुराने की कोशिश कर रहा था, और गेंदबाज़ के गेंद डालने से पहले ही, कुछ कॉदम क्रीज़ से आगे निकल आना चाहता था. लेकिन फिर भी, उसे गेंदबाज़ का अनुचित खेल माना गया.
मांकड़ की बहुत ओर से अच्छी ख़ासी अनुचित आलोचना हुई, लेकिन उस व्यक्ति से नहीं जिसे उन्होंने रन आउट किया था. ये मामला इसलिए और बिगड़ गया, कि ऐसे लगभग सभी मामलों में गेंदबाज़ पहले बल्लेबाज़ को चेतावनी देकर आगाह कर देता था. इसका मतलब था कि लगभग सभी मामलों में बल्लेबाज़ एक दोहराने वाला अपराधी था.
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सर्वकालिक महान
मांकड़ के लिए एक राहत थी. 1947 में कोई टेलीवीज़न नहीं था, और वो घटना दुनिया भर की स्क्रीन्स पर फ्लैश नहीं हुई. विडंबना ये रही कि 1992 में भारत के सबसे महान ऑल राउंडर कपिल देव ने, दक्षिण अफ्रीका के पीटर कर्सटन को रन आउट कर दिया. इस बार पूरी दुनिया ने उस घटना को टेलीवीज़न पर देखा. जिस तरह मांकड़ ने ब्राउन को सावधान किया था, ठीक वैसे ही कपिल देव ने भी कर्सटन को पहले से चेतावनी दी थी. जब कर्सटन ने फिर ढिठाई दिखाने की कोशिश की, तो ग़ुस्साए कपिल देव ने उसे रन आउट कर दिया और उचित रूप से इस पर ज़ोर दिया कि उनकी अपील मानी जाए. विडंबना ये थी कि भारत के दो सबसे महान ऑलराउंडर, ऐसे बल्लेबाज़ों को रन आउट करने में शामिल थे, जो अनुचित फायदा उठाना चाहते थे.
उस घटना से मांकड़ की प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं आई. जिस समय तक वो रिटायर हुए, वो पांच शतक और छह अर्ध शतक लगा चुके थे, और उनका सर्वाधिक स्कोर 231 रन था. ज़्यादा अहम ये कि उन्होंने गेंद के साथ 162 विकेट लिए. एक क्रिकेटर के नाते आपको उनकी उपलब्धियों पर नज़र डालने का प्रलोभन हो सकता है. उन्होंने वो 231 रन कीवियों के खिलाफ, 1955-56 की एक श्रंखला में बनाए थे और पंकज रॉय के साथ मिलकर पहले विकेट के लिए 413 रन की साझेदारी की थी. उस श्रंखला में उनका 105 का अविश्वसनीय औसत रहा था.
इंग्लैण्ड के खिलाफ टेस्ट में भारत की पहली जीत 1952 में आई, जो पूरी तरह से महान मांकड़ की बदौलत थी. मद्रास की विकेट पर, जहां स्पिन के लिए कोई मदद नहीं थी, उन्होंने क़रीब 100 रन देकर 12 विकेट लिए थे.
वो अपने सर्वोच्च शिखर पर उसी साल लॉर्ड्स में पहुंचे, जब उन्होंने 72 और 184 रन स्कोर किए. जब वो बल्लेबाज़ी करने उतरे और 184 रन बनाए, उससे पहले वो उसी दिन 31 ओवर फेंक चुके थे. विरोधी इंग्लिश कप्तान लेन हटन ने उनके खेल को, हारने वाली किसी भी टीम के खिलाड़ी द्वारा, अभी तक का सबसे महान प्रदर्शन क़रार दिया.
नैतिक बहस
हालांकि 1947 की मांकड़ द्वारा ब्राउन को रन आउट करने की घटना ने प्रेस और आम लोगों के बीच एक नैतिक बहस छेड़ दी, लेकिन एक व्यक्ति ऐसा था जिसने उसे सही नज़रिए से देखा. वो व्यक्ति ख़ुद ब्राउन थे. उन्होंने स्वीकार किया कि मांकड़ ने उन्हें आकर्षक बनने और ये समझने के लिए मजबूर कर दिया कि कुछ क़दम आगे निकलकर बल्लेबाज़ किसी गेंदबाज़ को धोखा नहीं दे सकता.
महान बिल ओरीली हैरत में पड़ जाते थे, जब कोई भी मांकड़ की निंदा करता था. ओरीली, जो एक गेंदबाज़ थे, हमेशा अपनी टिप्पणियों के साथ बल्लेबाज़ से टकराने के लिए तैयार और इच्छुक रहते थे. जब उनसे पूछा गया कि क्या वो भी वही करेंगे जो मांकड़ ने किया, तो ओरीली का जवाब हां में था, और उन्होंने उसमें वाकुटुता जोड़ते हुए कहा कि जब उनके और मांकड़ जैसे महान गेंदबाज़ गेंदबाज़ी कर रहे हों, तो बल्लेबाज़ को दूसरे छोर की तरफ भागना ही नहीं चाहिए.
नियम में ये बदलाव सिर्फ महान वीनू मांकड़ को ही नहीं, बल्कि उन सभी गेंबाज़ों को सही ठहराता है, जो नॉन-स्ट्राइकर को अनुचित लाभ लेने से रोकने की कोशिश करते हैं. ऐसा करना उस समय भी सही था, ऐसा करना अब भी सही है, और ये तब तक सही रहेगा, जब तक क्रिकेट का महान खेल खेला जाता रहेगा.
कुश सिंह द क्रिकेट करी टूर कंपनी के संस्थापक हैं
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