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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतदेश के सबसे 'बदज़ुबान' प्रधानमंत्री को 23 मई को बाहर का रास्ता दिखा कर जनता अपना जवाब सुनाएगी

देश के सबसे ‘बदज़ुबान’ प्रधानमंत्री को 23 मई को बाहर का रास्ता दिखा कर जनता अपना जवाब सुनाएगी

मणिशंकर अय्यर लिखते हैं ‘याद है कि मैंने 7 दिसंबर 2017 को उन्हें किस रूप में चित्रित किया था? क्या मेरी बात भविष्यवाणी नहीं साबित हुई?

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मुझे लगता है मैंने पता लगा लिया है कि मोदी जवाहरलाल नेहरू से इतनी नफरत क्यों करते हैं. नेहरू के पास कैंब्रिज विश्वविद्यालय से नेचुरल साइंसेज़ की डिग्री थी. इसके कारण वह जान पाए थे कि भारत और भारतीयों को अंधविश्वास की जकड़, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में ‘मृत आदतों की शुष्क रेगिस्तानी रेत’, से निकालने के लिए आधुनिक भारत को ‘वैज्ञानिक समझ’ विकसित करनी होगी.

यह अभिव्यक्ति संघियों को पागल कर देती है क्योंकि उनका यकीन इस बात पर है कि मिथकीय ‘उड़न खटोले’ आधुनिक एफ-16 के आरंभिक प्रारूप थे जिनका आविष्कार हिंदुओं ने किया था, और भगवान गणेश का हाथी का सिर हिंदू प्लास्टिक सर्जरी की बदौलत संभव हुआ था, ना कि प्रत्यारोपण ऑपरेशन से. बेहद जाहिलपने वाले ये दोनों ही दावे किसी और ने नहीं, बल्कि हमारे देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं किए हैं, उच्च शिक्षा से जिनका वास्ता दिल्ली और गुजरात विश्वविद्यालयों से, जहां वे कभी गए नहीं, डिग्रियां हासिल करने के झूठ से आगे का नहीं है. जाहिर है वह किसी वैज्ञानिक सिद्धांत और ढोकले में अंतर नहीं कर सकते हैं.

वैसे, सिर्फ इससे, कोई खास फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि ना तो इंदिरा गांधी और ना ही राजीव गांधी के पास विश्वविद्यालय की डिग्री थी, फिर भी दोनों अच्छे प्रधानमंत्री, और शायद महान भी, साबित हुए. सियासतदानी कोई सिविल सर्विसेज का इम्तहान नहीं है, और शासन के शिखर तक पहुंचने के लिए विश्वविद्यालय की पढ़ाई की अनिवार्यता नहीं होती. शायद इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण विंस्टन चर्चिल हैं. लेकिन अपनी शैक्षिक डिग्री – या उसके अभाव – के बारे में झूठ बोलने की क्या ज़रूरत है? जब तक कि, निश्चय ही, ऐसे झूठ बोलने का मानसिक विकार ना हो.


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हमने हाल ही में अपने प्रधानमंत्री (हां, वह अभी अगले दसेक दिनों के लिए प्रधानमंत्री हैं) से सुना कि उन्होंने आसमान बादलों से भरा होने के बावजूद भारतीय वायुसेना को बालाकोट में हमले का आदेश दिया क्योंकि वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारी जहां थरथर कांपते हुए मौसम में सुधार तक हमले को टालने की विनती कर रहे थे, उन्होंने (मोदी) अपने 56 इंच के सीने को ठोका और पाया कि बादलों से भरा आसमान वास्तव में भारतीय वायुसेना के लिए अच्छी बात है क्योंकि पाकिस्तानी रडार घने बादलों को भेद नहीं पाएंगे.

यह हमारे बहादुर वायुसैनिकों का, और उससे भी अधिक वायुसेना प्रमुख का अपमान है. उनमें से कोई भी इतना नादान नहीं है कि ये नहीं जानता हो कि रडार कोई दूरबीन नहीं होते कि बादलों से उसकी नज़र बाधित होती हो. दरअसल, रडार का इस्तेमाल ही इस कारण किया जाता है कि हर तरह की मौसमी दशाओं में ये विमानों का सटीक पता लगा सकते हैं. क्या मोदी अपने वरिष्ठतम वायुसेना अधिकारियों को मूर्ख मान रहे थे कि उनके सामने वह इस तरह का हास्यास्पद अवैज्ञानिक बकवास कर सके? और क्या अधिकारी इतने भीरू थे कि वे इतने खोखले प्रधानमंत्री की बात को दुरुस्त करने का साहस नहीं जुटा पाए?

हमारे रक्षा बलों का ये अपमान नौसेना के उन वरिष्ठ अधिकारियों के अपमान की श्रृंखला में है, जो कि दिसंबर 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, और उनकी पत्नी, को तिरुवनंतपुरम से लक्षद्वीप ले जाने की प्रक्रिया में शामिल थे, जहां कि प्रधानमंत्री को द्वीप विकास प्राधिकरण की बैठक में शामिल होना था. नौसेना के दक्षिणी कमान के तत्कालीन फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ एडमिरल लक्ष्मीनारायण रामदास ने ऑन-रिकॉर्ड स्पष्ट किया है कि लक्षद्वीप की यात्रा में आईएनएस विराट पर सिर्फ राजीव गांधी और सोनिया गांधी मौजूद थे. नौसेना के तीन अन्य वरिष्ठ अधिकारियों, जिन्हें इंतजामों से जुड़े होने के कारण उस यात्रा की व्यक्तिगत जानकारी है और जिनमें से एक बाद में नौसेना प्रमुख बना, एडमिरल अरुण प्रकाश, एडमिरल मदनजीत सिंह और एडमिरल विनोद पसरीचा ने भी सार्वजनिक बयान दिए हैं कि विमानवाहक पोत पर कोई विदेशी सवार नहीं था.

जब नौसेना के चार वरिष्ठतम अधिकारियों ने सही बात बता दी हो, तो क्या शालीनता के हित में मोदी को अपने आरोप वापस नहीं ले लेने चाहिए कि बंगाराम द्वीप पर छुट्टियां मनाने के लिए ‘विदेशियों’ को ढोने के लिए राजीव ने भारतीय नौसेना का ‘निजी टैक्सी’ की तरह इस्तेमाल किया था? उन्होंने हमारे रक्षा बलों के इतने प्रतिष्ठित अधिकारियों की देशभक्ति पर संदेह करने की ज़ुर्रत कैसे की? या तो मोदी झूठ बोल रहे हैं या ये चार वरिष्ठ, अब सेवानिवृत, नौसैनिक अधिकारी झूठ बोल रहे हैं. इनमें से दो की नौसेना प्रमुख, नौसैनिकों के लिए सर्वोच्च पद, के रूप में पदोन्नति कैसे हो सकती थी, यदि युद्ध की नवीनतम तकनीकों से लैस नौसैनिक पोत पर अनधिकृत विदेशियों को आने की इजाज़त देने के कारण उनका सर्विस रिकॉर्ड खराब रहा हो?


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मोदी को आगाह किए जाने की ज़रूरत है कि अपने गंदे चुनाव अभियान में हमारी सेना और सीआरपीएफ के शहीदों के बलिदानों को भुनाने; अपनी वैज्ञानिक निरक्षरता में सहभागी मूर्खों के रूप में चित्रित कर भारतीय वायुसेना को बदनाम करने; और एक प्रमुख रक्षा पोत पर अनधिकृत विदेशियों को सवार होने की अनुमति देने वाले देशद्रोहियों से भरे शीर्ष नेतृत्व की छवि गढ़कर भारतीय नौसेना को बदनाम करने के लिए, वह राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के दोषी हैं.

पर, चिंता क्यों करें? हर हाल में, मोदी 23 मई को भारत की जनता द्वारा बेदखल किए जाएंगे. भारत के अब तक के या शायद भविष्य के भी, सर्वाधिक बदज़ुबान प्रधानमंत्री के लिए यह एक उपयुक्त अंत होगा. याद है कि मैंने 7 दिसंबर 2017 को उन्हें किस रूप में चित्रित किया था? क्या मेरी बात भविष्यवाणी नहीं साबित हुई?

लेखक कांग्रेस के नेता है. यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं.

(यह आलेख सर्वप्रथम ‘राइज़िंग कश्मीर’ में प्रकाशित हुआ और इसे यहां लेखक की अनुमति से प्रकाशित किया जा रहा है.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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