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Wednesday, 18 December, 2024
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सरदार पटेल के व्यंग और मजाक के कायल थे महात्मा गांधी

बौद्धिक बातचीत पर पटेल नाक-भौं सिकोंड़ लेते थे. हालांकि वो लंदन से पढ़कर आए हुए बैरिस्टर थे. लेकिन वो अपने भाषणों में खुद को चौथी पास अशिक्षित की तरह पेश करते थे.

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सरदार पटेल को मुश्किल काम को पूरा करने वालों में, लौह पुरुष और भारत को एक करने वाला माना जाता है. प्रसिद्ध फिल्म मासिक ‘फिल्म इंडिया’ के संपादक बाबूराव पटेल ने उन्हें भारत का अब तक के सबसे अच्छे मैपमेकर (नक्शा बनाने वाला) की तरह वर्णित किया था. लेकिन बाबूराव ने पटेल को ‘द कांग्रेस स्फिंग्स’ (कांग्रेस का गूढ़ व्यक्ति) कहा था.(अक्टूबर 1942, फिल्म इंडिया).

जो बात गुजरात के बाहर पटेल के बारे में लोगों को नहीं पता वो है उनका ह्यूमर और सटायर (कटाक्ष). उनके मजाक में चरोतर का प्रभाव था जो कि मध्य गुजरात के खेड़ा जिले का कृषि क्षेत्र है. यह स्थान अमूल के जन्मस्थान के तौर पर भी जाना जाता है.

स्कूल के समय में पटेल के गुजराती अध्यापक ने उन पर संस्कृत की जगह गुजराती का चयन करने पर तंज किया था. अध्यापक के अनुसार प्रत्येक हिंदू छात्रों को संस्कृत सीखनी चाहिए. लेकिन सरदार पटेल झुकने वाले नहीं थे. उन्होंने अपने गुजराती शिक्षक को जवाब दिया, ‘सर अगर सभी बच्चे संस्कृत का चयन कर लेंगे तो आपको घर बैठना पड़ जाएगा.’ (पटेल : अ लाइफ, राजमोहन गांधी, अहमदाबाद.1999. पेज 11)

गेंहू की बालियों से निकलने वाले भूसे के समान

बौद्धिक बातचीत पर पटेल नाक-भौं सिकोंड़ लेते थे. हालांकि वो लंदन से पढ़कर आए हुए बैरिस्टर थे. लेकिन वो अपने भाषणों में खुद को चौथी पास अशिक्षित की तरह पेश करते थे. वो शिक्षा पर कुछ अच्छा करने के लिए जोर डालते थे.

महात्मा गांधी के 1930 में हुए दांडी मार्च से सिर्फ दो महीने पहले सरदार पटेल को गुजराती विद्यापीठ के स्नातक के छात्रों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया. इसकी स्थापना गांधी ने ही की थी. पटेल अचंभित हुए कि उनके जैसे अशिक्षित को इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया है. वो खुद को ऐसे कार्यक्रमों में गेंहू की बालियों में से निकलने वाले भूसे के समान मानते थे.


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उन्होंने किताबी शिक्षा को नकार कर चरित्र निर्माण पर ज्यादा ध्यान दिया था. आपको ऐसे बहुत सारे लोग मिलेंगे (जो किताबी शिक्षा पाए हुए हों) जो गुजरात क्लब में बैठकर वकीलों की तरह टाइम पास करते हैं और ऐसे लोग आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. अपनी बात को समझाने के लिए वो एक कहानी सुनाते हैं. मैं एक आदमी को जानता हूं जो काशी का है और संस्कृत का विद्वान है. वो मरने वाले लोगों के अंतिम संस्कार के लिए मिलने वाले सामान की दुकान चलाता है. लेकिन वहां वो अपनी संस्कृत का क्या कर सकता है. आप संस्कृत में बिल नहीं बना सकते. अब वो आदमी मुंबई चला गया है.’ (सरदार वल्लभभाईनान भाषणो, ईडी : नरहरी पारीख, उत्तमचंद शाह, अहमदाबाद,1949, पेज 220-222)

भैंस और शेर 

सरदार पटेल अपने भाषणों में व्यंगात्मक शैली का इस्तेमाल लोगों को एकजुट करने के लिए करते थे. 1928 में हुए बारदोली सत्याग्रह के दौरान पटेल अपने उत्कर्ष पर थे. वहीं से उन्हें सरदार की उपाधि मिली. कर न चुकाने के एवज में जब स्थानीय लोगों से उनकी भैंसे और प्रापर्टी ली जा रही थी तब सरदार पटेल ने सलाह दी थी कि सरकार का गुस्सा अभी बढ़ा हुआ है. लोहे को अभी गरम होने दो. हथौड़े को ठंडा रखा जाए. नहीं तो यह हानिकारक होगा. टैक्स वसूलने वाले के हवाले से उन्होंने कहा, ‘जब्त करने वाला ब्राह्मण है. वो सुबह के चार बजे उठता है. भगवान को याद करने के बजाए उसे इन दिनों भैंसें याद रहती है.’ सरकारी अधिकारी शिकायत कर रहे हैं कि जब्त करने के दौरान भैंसे शोर करती हैं. वो यह क्यों नहीं बता देते भैंसों को कि उन्हें शोर नहीं करना चाहिए. वो पूछते हैं कि क्या हम अपने भैंसों के बारे में लापरवाह हो गए हैं. मेरा जवाब था – हां हम हो गए हैं. हमें लगता है कि हमारे भैंसों को सरकारी प्लेग ने घेर लिया है.

एक मीटिंग के अंत में भैंसों की आवाज़ सुनाई पड़ी. वल्लभभाई ने तत्काल एक रिपोर्टर से कहा कि भैंसे भी भाषण देती हैं. अगर आप अभी भी इसे समझ नहीं पा रहे हैं तो यह किस तरह का शासन है. (सरदार वल्लभभाईनान भाषणो, ईडी : नरहरी पारीख, उत्तमचंद शाह, अहमदाबाद,1949, पेज 159)

जब जब्त की गई भैंस पीली पड़ जाती थीं तो उन्हें मैडम कह कर पुकारा जाता था. जब्तकर्ताओं को भैंसों को खाने वाले शेर के नाम से बुलाया जात था.

1924 में बोरसाद सत्याग्रह में जीत हासिल करने के बाद स्थानीय लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, ‘जब हम सरकार से लड़ते हैं, तो आप हम पर बहुत प्यार बरसाते हैं. लेकिन आपके प्यार की असली परीक्षा तब है जब मैं आपको अपनी सीमाओं में लड़ते देखूंगा. सरकार तो एक माया है, पानी का बुलबुला है. जैसे ही हम जानेंगे वैसे ही वो फट जाएगा. लेकिन हमारे आंखों पर पट्टी बंधी हुई है. (सरदार वल्लभभाईनान भाषणो, ईडी : नरहरी पारीख, उत्तमचंद शाह, अहमदाबाद,1949, पेज 103)


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गांधी के साथ मजाक

गांधी को सरदार पटेल के व्यंग्य काफी पसंद थे. वो उन कुछ लोगों में से थे जो गांधी के साथ और गांधी पर मजाक कर सकते थे. ऐसी बहुत सारी घटनाएं हैं जो तीन दशकों के उनके संबंधों के दौरान हुई थी. यरवदा जेल के दौरान भी कुछ स्पेशल मोमेंट उनके बीच हुए थे. उनके साथ महादेव देसाई भी उस समय जेल में थे. पटेल की आत्मकथा के लेखक के तौर पर राजमोहन गांधी ने गौर किया कि, ‘इस बौसवेल के पास दो जॉनसन थे.’ (पटेल : अ लाइफ, राजमोहन गांधी, अहमदाबाद.1999. पेज 214). उस समय की महादेव देसाई की डायरी में पटेल के व्यंग से जुड़ी कई छोटी कहानियां हैं. गांधी इन व्यंग में थोड़ा सोडा खोल देते थे. जब कभी भी जेल के समय उनकी बातचीत के दौरान कोई मुश्किलात आती थी, तब सरदार कहते थे, थोड़ा सोडा खोलने से सब ठीक हो जाएगा.

गांधी सभी प्रकार के पत्र प्राप्त करते थे, विशेष रूप से इस तरह की समस्याओं में मार्गदर्शन की मांग करते थे – जैसे कि एक आदमी तीन मौलों का वजन उठाए कैसे चींटियों को कुचलने से रोक सकता है जब वह इस धरती पर चलता है? सरदार जल्दी से जवाब देते थे – उसे अपने सिर पर पैर रखकर चलने को कहो.’ (पटेल : अ लाइफ, राजमोहन गांधी, अहमदाबाद.1999. पेज 217-218).

एक अंग्रेजी किताब पढ़ते हुए गांधी जी ब्रिटिश बाइबल पर आके अटक गए थे. इसपर सरदार पटेल ने चुटकी ली. ब्रिटिश बाइबल इसके अलावा क्या हो सकता है. पाउंड, शीलिंग और पेंस. गांधी ने सरदार पटेल के बारे में लिखा था कि उसके मजाक मुझे काफी हंसाते हैं. सिर्फ एक बार ही नहीं दिन में कई बार. (पटेल : अ लाइफ, राजमोहन गांधी, अहमदाबाद.1999. पेज 218).

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक अहमदाबाद स्थित वरिष्ठ स्तंभकार हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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