कांग्रेस इन दिनों 2019 लोकसभा चुनाव का घोषणापत्र बनाने में जुटी है. ये हर चुनाव से पहले होने वाली कवायद है. लेकिन इस बार कांग्रेस के घोषणापत्र बनाने के क्रम में एक नई बात हो रही है. कांग्रेस पहली बार अपने घोषणापत्र में ओबीसी यानी अन्य पिछड़े वर्गों के लिए अलग से बात करने वाली है. इन दिनों संसद के पास कांग्रेस के थिंक टैंक राजीव गांधी फाउंडेशन की बिल्डिंग- जवाहर भवन में ओबीसी के बुद्धिजीवियों, प्रोफेसरों, कलाकारों, विचारकों का आना जाना बढ़ गया है. कांग्रेस का रिसर्च विभाग और एक लिबरल डेमोक्रिटिक फाउंडेशन उनकी राय इकट्ठा कर रहा है. कांग्रेस के बड़े नेता इन बुद्धिजीवियों को सुन रहे हैं.
इन सब चर्चाओं के बीच ये सहमति बनकर उभर रही है कि अगर कांग्रेस ओबीसी को अपने पाले में रखना चाहती है, तो गोलमोल बातों से काम नहीं बनेगा. उसे कुछ बड़ा और धमाकेदार करना होगा. चर्चा इस बात की चल रही है कि वो धमाकेदार बात क्या होगी. आख़िर मामला देश की 52 फीसदी आबादी का है. ये आंकड़ा मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में दिया है.
जिन संभावित घोषणाओं पर विचार किया जा रहा है, उसमें सबसे दिलचस्प ये है – अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनती है तो ‘ओबीसी को अपनी आबादी के अनुपात में सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण दिया जाएगा.’ इसके अलावा ये भी बात घोषणा पत्र में शामिल करने पर चर्चा हो रही है कि ओबीसी का आबादी के अनुपात में आरक्षण लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधानपरिषदों में भी लागू किया जाएगा.
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बड़ी संख्या में ओबीसी छात्रों को स्कॉलरशिप देने, ओबीसी उद्यमियों को लोन देने, ओबीसी विकास के लिए अलग से बजट प्रावधान करने की बात भी घोषणापत्र में हो सकती है. ये वे बिंदु हैं, जो चर्चा में उभर कर आए हैं. इसके अलावा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले को भारत रत्न देने और इनकी रचनाओं को सिलेबस में शामिल करने का वादा भी कांग्रेस के घोषणापत्र में हो सकता है.
ओबीसी को लेकर कांग्रेस की नीति
ओबीसी की राजनीति कांग्रेस ने अब तक की नहीं है. कांग्रेस मूल रूप से ब्राह्मणों की पार्टी के रूप में पली-बढ़ी और बाद में उसने दलितों और मुसलमानों को अपने साथ जोड़ा. इसके अलावा स्थानीय और राज्य स्तरों पर कांग्रेस ने कई तरह के सामाजिक गठजोड़ किए. ये सब ठीक चल रहा था, लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद गिरने के बाद मुसलमान कांग्रेस के वफादार नहीं रहे और सामाजिक न्याय और बहुजन विचारधारा के संगठनों के उभरने के बाद दलितों ने कई राज्यों में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. सवर्णों का रुझान भी बीजेपी की तरफ होने लगा. रही सही कसर 2014 में पूरी हो गई जब राष्ट्रीय रंगमंच पर नरेंद्र मोदी का आगमन होता है.
नरेंद्र मोदी ने खुलकर अपनी जाति का कार्ड खेला. 2014 में तो उन्होंने खुलकर अपनी पिछड़ी जाति का ढिंढोरा पीटा. खुद को नीच जाति का बताया, पिछड़ी मां का बेटा कहा. हालांकि इस बात का कोई विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है, लेकिन अनुमान लगाया जा सकता है कि ओबीसी वोट का एक बड़ा हिस्सा 2014 में बीजेपी को गया.
इस बात ने कांग्रेस को परेशान कर दिया है
कांग्रेस के लिए बड़ी परेशानी की बात यह है कि बीजेपी ने ओबीसी के लिए कुछ किए बगैर सिर्फ बातें बनाकर और एक ओबीसी चेहरा सामने लाकर इस वोटबैंक से नाता जोड़ लिया. जबकि पिछले 30 साल में ओबीसी के लिए सबसे बड़े काम कांग्रेस के शासन काल में हुए. मिसाल के तौर पर-
1. मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा बेशक प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने की, लेकिन ये लागू हुआ कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव के शासन में. केंद्र सरकार की नौकरियों में 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने का जिम्मा तत्कालीन कल्याण मंत्री सीताराम केसरी ने निभाया. इसी दौरान ओबीसी कोटे से देश का पहला ओबीसी आईएएस बना.
2. कांग्रेस के शासनकाल में ही राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और ओबीसी विकास फंड बना.
3. एक और कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके समय के मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों में 27% ओबीसी आरक्षण लागू किया.
4. यूपीएस के ही शासनकाल में 1931 के बाद देश में पहली बार जाति जनगणना करने की कोशिश शुरू हुई. हालांकि ये काम बहुत बेमन से हुआ, वरना 2011 में जनगणना में जाति का कॉलम जोड़कर जाति जनगणना कर ली गई होती. हालांकि जाति जनगणना के लिए सिद्धांत के तौर पर सहमत होना और ऐसी एक कार्यवाही शुरू करना अपने आप में अभूतपूर्व है.
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लेकिन कांग्रेस ने कभी ओबीसी के लिए गए अपने कामों को भुनाया नहीं. भुनाना तो दूर की बात, ओबीसी के बारे में बात करते और ओबीसी का नाम लेते हुए भी कांग्रेस शर्माती है. उसे हर समय इस बात की चिंता होती है कि अगर सवर्ण नाराज हो गए तो क्या होगा. हालांकि ओबीसी के लिए कई काम करके वह जातिवादियों को नाराज तो कर ही चुकी है. अब कांग्रेस ने पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी का विभाग बनाया है और इसके कई सम्मेलन हो चुके हैं.
कांग्रेस इस बार ओबीसी के लिए कुछ बड़ी घोषणा करना चाहती है. वह बड़ी घोषणा संभवत: ओबीसी के लिए आबादी के अनुपात में यानी 52% आरक्षण हो सकती है. कांग्रेस ये समझ चुकी है कि स्कॉलरशिप या ओबीसी विकास निगम टाइप घोषणाओं का ज़्यादा असर नहीं होगा. छोटी-मोटी घोषणा से बीजेपी की काट मुमकिन नहीं लगती.
क्या कांग्रेस ये जोखिम उठाएगी और क्या ऐसा करके कांग्रेस वही पुरानी कांग्रेस रह जाएगी?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)