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Saturday, 23 November, 2024
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क्यों सीएम उद्धव ठाकरे उन्हें स्थिरता प्रदान करने के लिए शिक्षकों और ग्रैजुएट्स से आस लगाए बैठे हैं

इन चुनावों में भाजपा से सीधे मुक़ाबले में एमवीए ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया तो विचारधारा के मामले में समझौता इन तीनों दलों के शंकालुओं और खासकर राहुल गांधी को सचमुच मूल्यवान लगेगा. यह एमवीए सरकार के एक साल के कामकाज पर जनता का फैसला भी सुनाएगा.

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शनिवार को अपने कार्यकाल का पहला साल पूरा करने पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे मीडिया को दिए इंटरव्यूओं में आत्मविश्वास से लबालब दिखे. उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया— लॉकडाउन के दौरान 50,000 करोड़ रुपये मूल्य के ‘एमओयू’ (सहमतिपत्रों) पर दस्तखत हुए, 19,000 करोड़ के कृषि कर्जों में राहत दी गई, आदि-आदि. ठाकरे ने नरेंद्र मोदी सरकार पर असहयोग करने का आरोप लगाया और कहा कि उसने राजनीतिक बदले की कार्रवाई के लिए केंद्रीय एजेंसियों को महाराष्ट्र भेजा. उनके अंतिम बयान ने उनके पिता बाल ठाकरे के सिंहनादों की याद दिला दी. उनके परिवार को निशाना बनाने वाले राजनीतिक विरोधियों को चेतावनी देते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘याद रखिए, आपका भी परिवार है, आपके भी बच्चे हैं!’

एक लंगड़ी और दीमक लगी कुर्सी पर बैठे मुख्यमंत्री होने के नाते उद्धव ठाकरे के लिए बहादुराना तेवर दिखाना जरूरी भी है. उन्हें यह सपना या दुःस्वप्न तो परेशान करता ही होगा कि पता नहीं कब उनके उप-मुख्यमंत्री अजित पवार कुछ विधायकों को साथ लेकर राजभवन पहुंच जाएं. ऊपर से बुरा यह हुआ कि ‘महा विकास अघाड़ी’ (एमवीए) गठबंधन के एक संस्थापक, कांग्रेस कोषाध्यक्ष अहमद पटेल पिछले सप्ताह चल बसे. पटेल ने ही सोनिया गांधी को इस बात के लिए राजी किया था कि महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और शिवसेना से हाथ मिलाए.

अगर राहुल गांधी के भरोसे छोड़ा जाता तब कांग्रेस उलटी विचारधारा वाली किसी दुश्मन पार्टी से कतई हाथ नहीं मिलाती, भले ही महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बन जाती. लेकिन उनकी मां सोनिया गांधी एक व्यवहारकुशल नेता हैं. उन्होंने ताड़ लिया कि भारत की व्यावसायिक राजधानी मानी जाने वाली मुंबई में पटेल भाजपा को सत्ता से क्यों दूर रखना चाहते थे. अब पटेल के निधन के बाद उद्धव ठाकरे को राहुल की तनी हुई भौहें जरूर परेशान कर रही होगी.

यही वजह है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिक्षकों और स्नातकों से यह उम्मीद कर रहे होंगे कि वे उनकी परेशानियां हल्की करेंगे. राज्य विधान परिषद में शिक्षक व स्नातक निर्वाचन क्षेत्र की पांच सीटों (पुणे डिवीजन की दो और नागपुर, अमरावती, औरंगाबाद डिवीजनों के लिए एक-एक सीट) के लिए 1 दिसंबर को मतदान होंगे. शिवसेना, एनसीपी और काँग्रेस की इस खिचड़ी एमवीए सरकार की यह पहली बड़ी परीक्षा है. एक गठबंधन के रूप में एमवीए पहली बार कोई चुनाव लड़ रहा है, जिसमें एनसीपी और काँग्रेस दो-दो सीटों, और शिवसेना एक सीट के लिए चुनाव लड़ रही है.

वैसे तो यह विधान परिषद सदस्यों के लिए एक द्विवार्षिक चुनाव है लेकिन इसमें मतदाताओं की संख्या और इसके अंतर्गत आने वाले भौगोलिक क्षेत्र के विस्तार के मद्देनजर इसे एमवीए और उद्धव ठाकरे के शासन के लिए जनादेश के रूप में लिया जा सकता है. इस चुनाव में 12 लाख स्नातक और शिक्षक भाग लेंगे. इनमें से हरेक चुनाव क्षेत्र में कई जिले आते हैं. उदाहरण के लिए, नागपुर स्नातक क्षेत्र में छह से ज्यादा ज़िले आते हैं. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पहली बार इस क्षेत्र से 1989 में चुने गए और फिर चार बार और वहां से जीते, तब 2014 में उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा.


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विधान परिषद चुनावों का महत्व

विधान परिषद के इन द्विवार्षिक चुनावों पर महाराष्ट्र के लोगों और राजनीतिक पंडितों की दो कारणों से गहरी नज़र लगी हुई है. पहला कारण तो यह है कि लोग यह देखना चाहते हैं कि विपरीत विचारधाराओं वाले और कभी एक-दूसरे के दुश्मन रहे दल चुनाव अभियान किस तरह चलाते हैं. फिलहाल तो लगता है कि एमवीए इस पहले इम्तहान में पास हो गया है क्योंकि यह तीनों दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को साथ लाने में सफल दिख रहा है. जमीन से जानकारियां जुटाने के बाद मैंने महाराष्ट्र के प्रभारी कांग्रेस सचिव आशीष दुआ से पिछले शुक्रवार को फोन पर बात की. वे नागपुर में थे और मीडिया से बात करने के मूड में नहीं थे, ‘एमवीए जमीन पर किस तरह काम कर रहा है यह देखने के लिए यहां आना पड़ेगा.

कांग्रेस के मुकुल वासनिक को 2014 में और 2019 में किशोर उत्तमराव को हराने वाले रामटेक से शिवसेना सांसद कृपाल तुमाने, कांग्रेस के मंत्री सुनील केदार और दूसरे लोग साथ मिलकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं.अभी उस दिन अजित पवार और अशोक चह्वाण औरंगाबाद में प्रचार कर रहे थे. सभी तीनों दलों के नेता और कार्यकर्ता एमवीए के लिए प्रचार कर रहे हैं लेकिन मुझे लगता है, यह मीडिया के लिए अच्छी खबर नहीं है शायद…जो हमेशा इस गठबंधन की खराब छवि पेश करने की फिराक में रहता है.’

बहरहाल, हम इन चुनावों में लोगों की भारी दिलचस्पी के दूसरे कारण की बात करें, जो यह है कि अगर इन चुनावों में भाजपा से सीधे मुक़ाबले में एमवीए ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया तो विचारधारा के मामले में समझौता इन तीनों दलों के शंकालु और खासकर राहुल गांधी को सचमुच मूल्यवान लगेगा. यह एमवीए सरकार के एक साल के कामकाज, खासकर कोविड-19 संकट से निबटने के उसके प्रयासों पर जनता का फैसला भी सुनाएगा. तब खुद को ताकतवर महसूस कर रहे उद्धव ठाकरे दीर्घकालिक आर्थिक पुनरुत्थान की योजनाओं और शासन पर अधिक ध्यान दे पाएंगे. एमवीए की अगली परीक्षा 2021 और 2022 में स्थानीय निकायों के चुनावों में होगी, तब तक मुख्यमंत्री के पास अपने शासन को दुरुस्त करने का पर्याप्त समय मिल जाएगा.

लेकिन 3 दिसंबर को शिक्षक तथा स्नातक चुनाव क्षेत्रों के चुनाव के नतीजे एमवीए के लिए उलटे रहे तो यह एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक ‘एमवीए नामक एक जागीर’ को झटका लगेगा. ऐसा नहीं है कि भाजपा से तुरंत कोई खतरा है. केंद्रीय मंत्री रावसाहब दनवे ने पिछले सप्ताह कहा कि भाजपा ‘अगले दो-तीन महीने में’ महाराष्ट्र में अपने सरकार बनाएगी, ‘हम विधान परिषद चुनावों के पूरे होने का इंतजार कर रहे हैं.’ लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने दो दिन बाद कुछ भिन्न रुख अपनाते हुए कहा कि जब भी यह ‘अस्वाभाविक गठबंधन’ टूटेगा, भाजपा वहां सरकार बनाने को तैयार है.

आंतरिक खतरा

कर्नाटक या मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो भाजपा कांग्रेस से दलबदल करवा के सरकारों को गिराने में सफल रही मगर इनके विपरीत महाराष्ट्र उसके लिए बड़ी चुनौतियां पेश कर रहा यहां उसके पास 105 विधायक हैं, जिनमें सहयोगी दलों के 9 विधायकों को जोड़ दें तो 287 सदस्यों की विधानसभा (पिछले सप्ताह एनसीपी के एक विधायक की मृत्यु से खाली हुए सीट को छोड़कर) में उसकी कुल ताकत 114 सदस्यों की बनती है. भाजपा और उसके सहयोगियों को बहुमत के 144 के आंकड़े को हासिल करने के लिए अभी 30 सदस्यों की जरूरत है. कोई भी दल कुछ सदस्यों को अपने लिए पक्का माने बिना इस तरह की कोशिश नहीं करेगा, इसलिए भाजपा को सत्तासीन एमवीए से करीब 40 सदस्यों को तोड़ना होगा. अमित शाह की भाजपा के लिए यह असंभव नहीं है मगर फड़नवीस समर्थक और विरोधी खेमों में बंटी भाजपा के लिए यह मुश्किल है.

इसलिए, महाराष्ट्र में सरकार को गिराने के लिए भाजपा को इसके “अस्वाभाविक गठबंधन” के अंदर के विरोधाभासों के गहरे होने का ही इंतज़ार करना पड़ेगा. अगर विधान परिषद के इन चुनावों में एमवीए कमजोर साबित होती है तो दिल्ली में राहुल गांधी के निवास 12, तुगलक लेन में खतरे की घंटी बजने लगेगी. उम्मीद है कि अगले वर्ष फरवरी में वे काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिये जाएंगे, और अपनी पार्टी के अंदर विचारधारात्मक गांठों को दुरुस्त करना उनकी प्राथमिकता हो सकती है.

उनके विचार से महाराष्ट्र में काफी गड्डमड्ड है. परिषद के चुनावों में एमवीए की हार उनकी इस धारणा को और मजबूत कर सकता है कि शिवसेना से हाथ मिलाने के सवाल पर वे सही थे और अहमद पटेल गलत थे. अगर कांग्रेस आलाकमान एमवीए की नाव को डुबोने का फैसला करता है तो कांग्रेस विधायकों का एक बड़ा धड़ा अपनी वफादारी बदल सकता है, और तब मध्यावधि चुनाव करवाना पड़ेगा. लेकिन देखा गया है कि राहुल गांधी के लिए विचारधारा (या इसे वे जिस अर्थ में भी लेते हों) पार्टी से ज्यादा महत्वपूर्ण है.

इसलिए, उद्धव ठाकरे यही उम्मीद करेंगे कि राज्य के शिक्षक और स्नातक एमवीए के उम्मेदवारों को जिताकर उनकी मदद करेंगे. इससे इस गठबंधन पर खतरा फिलहाल टल सकता है, हालांकि इसे पूरे पांच साल टिकने की गारंटी कोई नहीं दे सकता. देवेन्द्र फड़नवीस उसके लिए असली खतरा नहीं हैं. उद्धव ठाकरे को राहुल गांधी और उनके धुर वामपंथी सलाहकारों की चिंता करनी चाहिए.

(विचार निजी है )

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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