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Saturday, 15 March, 2025
होममत-विमतगेमिंग एप के लिए तमिलनाडु में KYC एक अच्छी पहल है, लेकिन और भी बदलाव किए जा सकते हैं

गेमिंग एप के लिए तमिलनाडु में KYC एक अच्छी पहल है, लेकिन और भी बदलाव किए जा सकते हैं

ये नियम दखलंदाजी या प्रोत्साहनों पर आधारित नहीं हैं. बल्कि, काउंसलिंग, डिजिटल कुशलता के साधन, या गेम की स्वैच्छिक सीमा जैसे उपाय आचरण में दीर्घकालिक बदलाव को बढ़ावा दे सकते हैं.

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इस डिजिटल युग में बटन छूते ही मनोरंजन उपलब्ध कराने वाली ऑनलाइन गेमिंग भी मनोरंजन का एक साधन बन गई है, लेकिन इसके बुरे नतीजे भी सामने आ रहे हैं. स्मार्टफोन और इंटरनेट ने गेमिंग को ज्यादा सर्वसुलभ बना दिया है जिसके कारण आउटडोर खेल, आमने-सामने बैठकर बातचीत , सामाजिक मेलजोल आदि दरकिनार कर दिए गए हैं. अपने खाली समय के उपयोग के तरीकों में यह बदलाव चिंताजनक है क्योंकि यह सामाजिक मेलजोल और शारीरिक श्रम की अधिक सार्थक गतिविधियों की कीमत पर हो रहा है. इसलिए आभासी और वास्तविक संवादों के बीच बेहतर संतुलन के लिए सुचिंतित नियम बनाने ज़रूरी हैं.

ऑनलाइन गेमिंग ने दीर्घकालिक सामाजिक तथा मानसिक व भावनात्मक परिणामों का डर पैदा कर दिया है. शायद सबसे चिंताजनक आशंका यह है कि इसके कारण अपने में सिमटी, आपसी संवाद से परहेज़ करने वाली पीढ़ी उभर सकती है. इलेक्ट्रोनिक माध्यमों के जरिए बातचीत वास्तविक बातचीत की जगह ले सकती है, जो अक्सर शारीरिक और स्कूली शिक्षण की कीमत पर होगा. इन आशंकाओं के चलते दुनियाभर में सरकारों संगठनों ने ऑनलाइन गेमिंग के प्रभावों का आकलन करना शुरू कर दिया है. इसका परिणाम यह हुआ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘गेमिंग डिसॉर्डर’ को रोगों के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण (आइसीडी-11) में शामिल कर लिया है. इसने इस रोग की इस तरह परिभाषा की है : ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, रोगी गेमिंग में लगातार उलझा रहता है, गेमिंग के क्रम, उसकी गंभीरता, अवधि और समापन के मामले में उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और उन पर उसका कोई नियंत्रण नहीं रह जाता.

जिस व्यक्ति को गेमिंग का रोग लग जाता है वह गेमिंग को जीवन के दूसरे आकर्षणों और दैनिक गतिविधियों के मुकाबले ज्यादा तवज्जो देता है. इसके दीर्घकालिक परिणामों से बचने के लिए उत्तरदायित्वपूर्ण और विस्तृत नियमों तथा सहायक उपायों की ज़रूरत है.

प्रतिबंध के बदले नियमन

गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने की जगह निजी आज़ादी, सकारात्मक नियमन के साथ उत्तरदायित्वपूर्ण गेमिंग की ज़रूरत है. हाल में जो ‘तमिलनाडु ऑनलाइन गेमिंग अथॉरिटी (रियल मनी गेम्स) रेगुलेशन्स 2025’ लागू किया गया है वह काफी स्वागतयोग्य है. यह जनस्वास्थ्य और उत्तरदायित्वपूर्ण गेमिंग की सुरक्षा की दिशा में एक विकासशील पहल है. यह रियल-मनी जुआ वेबसाइटों पर एक अनुशासन लागू करने की कोशिश भी है.

नए नियम 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को ऑनलाइन रियल-मनी गेम खेलने से रोकते हैं, जो कि उचित तथा ज़रूरी भी है. इसके अलावा, इन नियमों के तहत हर 30 मिनट पर उन खिलाड़ियों के सामने एक मैसेज भेजना ज़रूरी बना दिया गया है जो एक घंटे से ज्यादा समय से लगातार गेमिंग कर रहे हो. समय आधारित पाबंदियां चीन, दक्षिण कोरिया, जापान आदि देशों में पहले से लागू हैं.

लेकिन एक प्रावधान यह भी किया गया है कि रात 12 बजे से सुबह 5 बजे तक खिलाड़ी लॉग इन नहीं कर सकेंगे. यह प्रावधान अनुभव के आधार पर उचित नहीं जान पड़ता और यह सहज बुद्धि के विपरीत भी है. तमिलनाडु ने जो एकतरफा रुख अपनाया है वह यूज़र के लिहाज़ से बनाई गई व्यवस्था नहीं प्रस्तुत करता, जिसके कारण वयस्क यूज़रों में निराशा फैल सकती है. हालांकि, ऐसे नियमों का मकसद गेमिंग को लत बनने से रोकना और इसके प्लेटफॉर्मों को ज्यादा जवाबदेह बनाना है, लेकिन इसे देर रात में पूरी तरह बंद करना समस्या पैदा कर सकता है. कामकाजी आबादी का एक बड़ा हिस्सा दिन के सामान्य घंटों के बाद भी काम करता है, कई लोग रात की पाली में या लचीली अवधि के हिसाब से काम करते हैं. ऐसे लोगों के लिए गेमिंग के वास्ते देर रात का समय ही मिलता है जब उन्हें लंबे घंटे तक काम करने के बाद मनोरंजन का समय मिलता है.

ब्लैकआउट इन यूज़रों को अनजाने में प्रभावित करता है और उन्हें खाली समय कम मिल पाता है और उन्हें गेमिंग के लिए असुविधाजनक समय चुनना पड़ता है. इससे भी खतरनाक बात यह है कि वह वीपीएन या किराए के आईपी के ज़रिए विदेशी वेबसाइटों को देख सकते हैं जो रेगुलेशन के दायरे से बाहर हैं. यह कानून बनाने के मकसद को ही नाकाम कर देता है और उपभोक्ता बुरी और रेगुलेशन से बाहर वाली वेबसाइटों की ओर मुड़ते हैं जिन्होंने न तो यूज़र की उम्र की जांच की व्यवस्था की होती है और न इसे लत में तब्दील होने से रोकने का उपयुक्त उपाय किया होता है.

इसके अलावा, यह सरकार को कारों के रूप में कमाई से वंचित करता है और नाबालिगों को जोखिम में डालता है.

इसलिए, ज्यादा व्यावहारिक उपाय यह होगा कि यूज़र्स को इस खेल से बाहर निकलने की अवधि के मामले में ज्यादा विकल्प दिए जाएं. लोगों को गेमिंग के लिए अपना समय निकालने का विकल्प देने, मसलन जल्दी सोने वालों के लिए रात दस बजे का समय या देर से सोने वालों के लिए आधी रात के बाद का समय, से विविध जीवनशैली वालों को मौके उपलब्ध कराए जा सकते हैं जबकि समझदारी के साथ गेमिंग को भी जारी रखा जा सकता है.

अपनी सुविधा वाली व्यवस्था खिलाड़ियों को स्क्रीन पर समय बिताने के मामले में ज्यादा नियंत्रण देगा, जबकि वे अपने पास उपलब्ध समय के भीतर गेमिंग का मज़ा भी ले सकेंगे.

इन नियमों को संशोधित करने की ज़रूरत है, क्योंकि वे दखलंदाजी या प्रोत्साहनों पर आधारित नहीं हैं. बल्कि, काउंसलिंग, डिजिटल कुशलता के साधन, या गेम की स्वैच्छिक सीमा जैसे उपाय आचरण में दीर्घकालिक बदलाव को बढ़ावा देने में ज्यादा प्रभावी साबित हो सकते हैं.


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प्राइवेसी की फिक्र

पे-टु-पे ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों के लिए केवाइसी (अपने ग्राहक को पहचाने) व्यवस्था लागू करना एक सकारात्मक बात है. निकासी के समय पर नहीं बल्कि शुरू में लॉगइन के समय ही केवाइसी की जांच की व्यवस्था से जालसाजी को रोका जा सकता है और यूज़र की उम्र की जांच हो सकती है, लेकिन ‘आधार’ पर आधारित प्रमाणीकरण की प्राइवेसी को लेकर मैं काफी चिंतित हूं. आधार पर आधारित केवाइसी से बेहतर नियमन करने में मदद मिल सकती है, लेकिन इस तरह इस्तेमाल किए जाने वाले डाटा की सुरक्षा पर मुझे संदेह है, कि डाटा को किस तरह इस्तेमाल किया जाएगा, किस तरह स्टोर किया जाएगा और उसकी किस तरह सुरक्षा की जाएगी?

एक और विचारणीय मसला नए नियमों के अनुसार अपने प्लेटफॉर्मों को बदलने के लिए गेमिंग ऑपरेटरों दी गई समयसीमा का है. केवाइसी प्रक्रिया को शामिल करने के तकनीकी उपाय करने, समयसीमा को लागू करने और दूसरी पाबंदियों को लागू करने के लिए काफी समय और संसाधन की ज़रूरत पड़ेगी. फेरबदल की इस अवधि में ऑपरेटरों को काफी घाटे का सामना करना पड़ सकता है और यह नियमन के तहत चलने वाले ऑनलाइन गेमिंग उद्योग की क्षमता को ही अंततः प्रभावित कर सकता है.

‘तमिलनाडु ऑनलाइन गेमिंग अथॉरिटी ने जो नियम लागू किए हैं वे गेमिंग को लत बनने से रोकने और खिलाड़ियों को सुरक्षित प्लेटफॉर्म देने के वादे करते हैं, लेकिन इनके असर और कुछ समूहों पर अप्रत्याशित प्रभावों को लेकर संदेह उभरते हैं. इसके अलावा, दीर्घकालिक दृष्टि से गेमिंग पर प्रतिबंध लगाना ही काफी नहीं होगा, क्योंकि ज़रूरी नहीं कि यह फिजूलखर्ची और मानसिक निर्भरता की समस्या का समाधान कर सके. यह बात अध्ययनों से भी पुष्ट होती है, जो बताते हैं कि गेमिंग की लत आचरण संबंधी आदतों का परिणाम होती है, केवल लंबे समय तक गेमिंग का परिणाम नहीं होती.

आत्म-नियमन, इस्तेमाल का लचीलापन, प्राइवेसी की सुरक्षा में वृद्धि में भरोसा रखने वाली संतुलित रणनीति उत्तरदायी तथा टिकाऊ ऑनलाइन गेमिंग परिवेश के निर्माण में अहम भूमिका निभा सकती है. इस उद्योग के खिलाड़ियों और रेगुलेटरों के बीच सहयोग से बदलाव आसान हो जाएगा, गड़बड़ी कम होगी, और अंततः एक एक ऐसा गेमिंग समुदाय बनेगा जो लोगों के मनोरंजन और कुशल-क्षेम के बीच संतुलन स्थापित करेगा.

(कार्ति पी चिदंबरम शिवगंगा से सांसद और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं. वे तमिलनाडु टेनिस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी हैं. उनका एक्स हैंडल @KartiPC है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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