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Sunday, 17 November, 2024
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कौन हैं आजम खान, जिन्हें तबाह करना चाहती है भाजपा

आजम खान इमरजेंसी के योद्धा हैं, जिन्होंने रामपुर इलाके में नवाबी दबदबे को खत्म करके लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत किया. शिक्षा के क्षेत्र में उनके काम की बराबरी करने वाले देश में कम ही नेता हैं.

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वर्तमान में भाजपा सरकार पर कई विपक्षी नेताओं के खिलाफ बदले की कार्रवाई के आरोप लग रहे हैं. इनमें लालू प्रसाद, पी. चिदंबरम, डी.के. शिवकुमार शामिल हैं. लेकिन इन नेताओं में भी जिनके खिलाफ पूरी बीजेपी टूट पड़ी है, उनका नाम है आजम खान. समाजवादी पार्टी के नेता और सांसद आजम खान पर करीब 80 मुकदमे पिछले दिनों दर्ज कराए जा चुके हैं. समाजवादी राजनीति के जाने-माने चेहरा मोहम्मद आजम खान पर किसानों की जमीन जबर्दस्ती हथियाने से लेकर किताबें चुराने, मारपीट करने, बकरी और भैंस चुराने तक के मुकदमे लगाने का सिलसिला जारी है.

रामपुर विधानसभा सीट से 10 बार विधायक और कई बार मंत्री बने आजम वर्तमान में लोकसभा सांसद हैं. पिछले दिनों लोकसभा में पीठासीन अधिकारी रमादेवी पर की गई उनकी एक कथित अभद्र टिप्पणी के मामले में भी उन्हें बुरी तरह से घेरा गया था. लेकिन उनके माफी मांगने पर मामला निपट गया था. उस समय भी उनकी लोकसभा सदस्यता खत्म करने की मांग कई ऐसी महिला सांसदों ने भी उठाई थी जो बड़े-बड़े बलात्कार के मामलों पर भी चुप्पी साधे रहती हैं.


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आपात काल के विरोध से शुरू हुआ सफर

कांग्रेस राज में आपातकाल के विरोध में तमाम छोटे-बड़े नेताओं में आज़म खान भी जेल में रहे. उनका एक लंबा राजनीतिक संघर्ष रहा है. उनके खिलाफ जिस तरह से छोटे-छोटे केस दर्ज किए जा रहे हैं, वो अब राजनेताओं और पत्रकारों के बीच व्यंग्य का विषय बन गया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि शासन की इन हरकतों से उनका वह पुराना इतिहास नहीं धुल जाएगा जिसमें वे रामपुर और आस-पास की राजनीति का चेहरा बदल देने वाले नायक के तौर पर नजर आते हैं.

आजम खान के रामपुर की राजनीति के आजम बनने की कहानी 1974 से शुरू होती है, जब वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ के महासचिव चुने गए थे. उसी समय आपातकाल लगा और उनके कांग्रेस विरोधी रवैये के कारण उन्हें भी जेल भेज दिया गया.

आपातकाल में जहां ज्यादातर नेताओं को राजनीतिक कैदी का दर्जा देकर ठीक-ठाक तरीके से जेल में रखा गया था, वहीं आजम खान उन खास लोगों में थे, जिन्हें पांच गुणा आठ फीट की ऐसी कोठरी में डाला गया था जिसमें रोशनी तक नहीं थी. बाद में छात्र होने के नाते उन्हें जेल में बी क्लास की सुविधा मिली.

प्रताड़ना केवल आजम खान को ही नहीं, उनके परिवार को भी झेलनी पड़ी थी. उनके इंजीनियर भाई शरीफ खां पर तो नौकरी तक छोड़ने का दबाव पड़ा था. बहरहाल, छात्र राजनीति और जेल से शुरू हुई आजम की असली राजनीतिक पहचान नवाबी राजनीति के विरोध को लेकर रही.

रामपुर की राजनीति के आजम

आपातकाल के बाद जेल से छूटने पर आजम खान का कद तो बढ़ गया लेकिन माली हालत खस्ता ही रही. उनके पिता मुमताज खान शहर में एक छोटा-सा टाइपिंग सेंटर चलाते थे. आज़म जेल से आते ही विधानसभा का चुनाव लड़ गए, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण कांग्रेस के मंज़ूर अली खान से हार गए.

इसके बाद शुरू हुआ दौर रामपुर के नवाब खानदान से टकराने का. रामपुर के नवाब यूसुफ अली 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के साथ थे, लेकिन उनकी बाद की पीढ़ी बदलते दौर में राजनीति में आ गई और उन्हें 1967 में कांग्रेस के टिकट पर उन्हीं के वारिस मिकी मियां के नाम से चर्चित जुल्फिकार अली खान सांसद बने.

तमाम रजवाड़ों की तरह रामपुर का नवाबी खानदान राजनीति में आते ही अपनी पुरानी धाक जमाने में सफल रहा. मिकी मियां तो 1967, 1971, 1980, 1984 और 1989 में सांसद बने ही, उनकी मौत के बाद 1996 और 1999 में उनकी पत्नी बेगम नूर बानो भी सांसद चुनी गईं.

नवाब खानदान के लिए बने चुनौती

नवाबी खानदान की राजनीति के उरूज के उस दौर में उन्हें चुनौती देने वाले बेहद मामूली खानदान के आजम खान ही थे, जो निचले तबके और मजदूरों में अपनी पैठ बनाते जा रहे थे. उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी और रामपुर लोकसभा में जहां मिकी मियां सफलता हासिल कर रहे थे, वहीं विधानसभा चुनावों में आजम भी जीतने लगे थे.

अंग्रेजी सरकार के विरोध के प्रतीक रहे पत्रकार और शायर मौलाना मोहम्मद जौहर अली को अंग्रेज-परस्त नवाबी खानदान ने भी काफी प्रताड़ित किया था. आजम खान ने अपने इस प्रेरणा स्रोत के काम को प्रचारित करने का जो फैसला किया वो अब तक जारी है. उनकी जिस यूनिवर्सिटी पर भाजपा सरकार की निगाहें टेढ़ी हैं, वह इन्हीं जौहर अली के नाम पर है. अली जौहर प्रमुख शिक्षाविद थे और जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना उन्होंने ही की थी. वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे. उनका राउंड टेबल कांफ्रेंस में अंग्रेजों के सामने दिया गया ये बयान काफी चर्चित है कि– हमें आजादी दे दो या फिर कब्र के लिए दो गज जमीन दे दो. 2003 में यूपी में सपा सरकार बनने पर आजम ने मौलाना अली जौहर ट्रस्ट बनाया और फिर इस यूनिवर्सिटी के निर्माण की कवायद शुरू की थी.

आजम जैसे-जैसे ताकतवर होते गए, वैसे-वैसे रामपुर के नवाब खानदान की राजनीति पस्त होती गई. इस इलाके में सपा का असर बढ़ता चला गया. 2004 में तो सपा ने मुंबइया फिल्मों की हीरोइन जया प्रदा को यहां चुनाव में खड़ा किया और वे चुनाव जीत गईं.

राजनीति में वजूद बचाने में जुटा नवाब का खानदान

2014 की मोदी लहर में भी भाजपा रामपुर से मामूली अंतर से ही जीत सकी, लेकिन यह तय हो गया कि नवाब  का खानदान की सियासत के दिन चुक गए हैं. कांग्रेस के टिकट पर खड़े नवाब काज़िम अली खान को तकरीबन 16 प्रतिशत वोट ही मिले और वे तीसरे नंबर पर रहे. नवाबी खानदान की राजनीति 2019 में और सिमट गई. कांग्रेस ने भी नवाब के खानदान को टिकट नहीं दिया. कांग्रेस ने संजय कपूर को टिकट दिया जो केवल 35 हजार वोट पा सके थे, जबकि आजम खान 5 लाख 59 हजार वोट पाकर सांसद बने. कभी उन्हीं पार्टी में रहीं जया प्रदा भाजपा के टिकट पर लड़कर 4 लाख 49 हजार वोट ही पा सकीं.

आजम खान अब रामपुर के सांसद हैं, और पत्नी तंजीम फातिमा राज्यसभा सांसद हैं. नवाब खानदान के पास 20 साल रही स्वार विधानसभा सीट पर भी अब आजम खान के बेटे अब्दुल्ला विधायक हैं. रामपुर से नवाब खानदान ही नहीं, कांग्रेस तक साफ हो चुकी है.


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अब सत्ता में न होते हुए भी आजम खान रामपुर के आजम हैं, और उनका यही रसूख भाजपा को अखर रहा है. मंदिर आंदोलन के बाद आजम सपा की मुस्लिम राजनीति के भी चेहरे बन गए. लेकिन उनकी कभी सांप्रदायिक छवि नहीं रही. रामपुर शहर के विकास में उनकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता. बीजेपी की यूपी में कई बार सरकारें रहीं, लेकिन बीजेपी का कोई नेता आज तक जौहर यूनिवर्सिटी जैसा कोई शिक्षा संस्थान नहीं बना पाया, जहां हर धर्म के हजारों विद्यार्थी उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.

इस कारण से उनको प्रताड़ित करके भाजपा अपने कट्टर समर्थकों को भी खुश करना चाहती है. इसी खुन्नस के कारण आजम पर छोटे-छोटे मारपीट और चोरी के मुकदमे लादे जा रहे हैं, जिनके पीछे उन्हें परेशान करने से ज्यादा अपमानित करने का लक्ष्य दिखता है. बहुत संभव है, आजम खान पर मुकदमों की संख्या जल्द ही शतक पार कर जाए.

(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं. यह उनका निजी विचार है.)

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2 टिप्पणी

  1. कोरा बकवास लिखा गया है। उपर लिख ही देते की पेड आर्टिकल है। गुंडों का महिमामंडन करने में लगे हो। शर्म तो करो प्रिंट की टीम

  2. Baat agar shiksha ki ho rahi hai. To johar university aazam khan se le lo. Par waha padne walon bachcho Ka nuksaan Nahi Hona Chahiye. University govt Apne control me le le.

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