कट्टरपंथी चाहे यहूदी हो या ईसाई या मुसलमान या हिंदू, उनमें कोई अंतर नहीं है. सब ‘असहिष्णु’ होते हैं. पार्श्वगायिका लता मंगेशकर के पार्थिव शरीर के आगे खड़े होकर मुसलमानों ने अल्लाह की, हिंदुओं ने भगवान की, ईसाइयों ने सर्वशक्तिमान ‘गॉड’ की इबादत की. फिल्म अभिनेता शाहरुख खान को हाथ उठाकर प्रार्थना करते और उनके पार्थिव शरीर की ओर फूंक मारते देखकर उग्रपंथी हिंदुओं ने सोचा कि उन्होंने थूक दिया और फिर सोशल मीडिया पर हंगामा बरपा.
मैंने देखा है कि भारत में मुसलमानों को तो हिंदू रीति-रिवाजों की जानकारी है लेकिन मुसलमानों की रीति-रिवाजों से अधिकतर हिंदू अनजान हैं. इसी तरह, बांग्लादेश में हिंदुओं को मुसलमानों की रीति-रिवाजों की जितनी जानकारी है उतनी मुसलमानों को हिंदू रीति-रिवाजों की जानकारी नहीं है.
असहिष्णुता बहुत हद तक अज्ञानता से पैदा होती है. जैसा कि हमने शाहरुख के मामले में देखा, सभी धर्मों के लोगों ने उनका पक्ष लिया. वास्तव में, हिंदू समुदाय में उग्रवादियों का विरोध करने वाले उदार और समझदार लोग काफी तादाद में हैं.
हिजाब पर विवाद
उधर, कर्नाटक में हिजाब को लेकर अनावश्यक विवाद खड़ा हो गया है. अधिकारियों ने छात्राओं को हिजाब पहनकर स्कूल-कॉलेज आने से मना कर दिया तो मुसलमानों ने विरोध शुरू कर दिया. इसके बाद कुछ छात्र भगवा गमछा पहनकर बुर्का का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतार आए. मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने स्कूलों-कॉलेजों को कुछ दिनों के लिए बंद करने का आदेश जारी कर दिया. लेकिन यह तो कोई समाधान नहीं हुआ. अगर सरकार को दंगों का डर है, तो स्कूल-कॉलेज खुलने के बाद भी हिंसा हो सकती है. दंगों को रोकने के लिए सोच बदलने, एक-दूसरे के लिए नफरत और एक-दूसरे से डर को खत्म करने की जरूरत है. इस मामले में कर्नाटक हाइकोर्ट का अंतरिम आदेश सही है. मेरा विचार है कि टकरावों को खत्म करने के लिए समान आचार संहिता और समान यूनिफॉर्म का नियम जरूरी है. धार्मिक अधिकार शिक्षा के अधिकार के ऊपर नहीं हो सकते.
बंटवारे के 75 साल बाद भी हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दूरी कम नहीं हुई है. भारत से अलग होकर पाकिस्तान एक मजहबी मुल्क बन गया. लेकिन भारत ने कभी पाकिस्तान नहीं बनना चाहा. वह 75 साल पहले बड़ी आसानी से हिंदू राष्ट्र बन सकता था. भारतीय संविधान धर्म की नहीं धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देता है. हिंदुओं की बहुसंख्या वाला यह देश दुनिया में मुसलमानों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है. भारत के कानून सभी धर्मों, जातियों, भाषाओं, नस्लों, संस्कृतियों के लोगों को समान अधिकार देते हैं.
एक धर्मनिरपेक्ष देश अगर अपने सभी विद्यार्थियों के लिए धर्मनिरपेक्ष पोशाक का आदेश देता है तो यह बिलकुल सही है. स्कूल/कॉलेज के अधिकारी अगर यह संदेश देते हैं कि धर्म का पालन अपने घरों के अंदर ही करें तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है. शिक्षण संस्थान ज्ञान का प्रसार करने के लिए हैं, उन्हें धर्म या स्त्री-पुरुष के आधार पर भेदों से प्रभावित नहीं होना चाहिए. शिक्षा ही लोगों को कट्टरता, क्षुद्रता, रूढ़िवादिता, अंधविश्वासों के अंधेरों से बाहर निकालकर उस दुनिया में पहुंचा सकती है जिसमें व्यक्तिगत स्वाधीनता, मुक्त विचार, मानवता और वैज्ञानिक सोच के सिद्धांतों को मूल्यवान समझा जाता है. उस दुनिया में औरतें गुलामी की अपनी जंजीरों पर गर्व नहीं करतीं बल्कि उन्हें तोड़कर आज़ाद होना चाहती है, वे बुर्के को अपने अधिकार का नहीं बल्कि महिला उत्पीड़न का प्रतीक मानती हैं और उसे परे रखना चाहती हैं. बुर्का, नक़ाब, हिजाब, सबका एक ही मकसद है— औरत को सेक्स की चीज बनाना. औरत को देखते ही लार टपकाने वाले मर्दों से खुद को छुपाने का विचार औरत और मर्द दोनों के लिए कोई सम्माननीय विचार नहीं है.
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शिक्षा सबसे ऊपर
कर्नाटक में 12 साल पहले एक स्थानीय अखबार ने बुर्का पर मेरा एक लेख प्रकाशित किया था, तब कुछ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने उसके दफ्तर में आग लगा दी थी. उन्होंने आसपास की दुकानों आदि को भी जला दिया था. कुछ हिंदू भी विरोध में सड़कों पर उतर आए थे. पुलिस की गोलीबारी में दो लोग मारे गए. एक मामूली बुर्का इस राज्य में आग लगा देता है. बुर्के को लेकर दंगे हो जाते हैं.
कोई भी औरत कभी बुर्का या हिजाब नहीं पसंद कर सकती. इसे तभी पहना जाता है जब उससे तमाम विकल्प छीन लिये जाते हैं. जिस तरह इस्लाम को सियासी रंग दे दिया गया है उसी तरह बुर्का/हिजाब भी सियासी हो गया है. परिवार वाले महिला को बुर्का/हिजाब पहनने के लिए मजबूर करते हैं. इसके लिए बचपन से ही दिमाग बनाया जाता है. बुर्का/हिजाब जैसी मजहबी पोशाक किसी की पहचान नहीं बन सकती, जो उसकी काबिलियत और उपलब्धियों से बनती है. ईरान ने महिलाओं के लिए हिजाब पहनना जरूरी बना दिया. वहां की महिलाएं सड़कों पर उतर आईं और अपने हिजाब उतारकर फेंक दिए. कर्नाटक की जो महिलाएं अभी भी हिजाब को अपनी पहचान मानती हैं, उन्हें अपनी कहीं ज्यादा सार्थक और सम्मानजनक पहचान बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
जब हिजाब के कारण शिक्षा का अधिकार महिला से छीना जाता है, जब कोई शिक्षा के लिए महिलाओं को हिजाब न पहनने की शर्त लगाता है तब मैं कहूंगी कि महिला हिजाब में भी हो तो उसे शिक्षा दी जाए. लेकिन जब महिला को हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया जाएगा, तब मैं कहूंगी कि वह हिजाब को उतार फेंके. व्यक्तिगत तौर पर तो मैं बुर्का/हिजाब के खिलाफ हूं. मैं मानती हूं कि यह पुरुषवादी साजिश है जो औरतों को बुर्का पहनने पर मजबूर करती है. ये कपड़े महिला के उत्पीड़न और अपमान के प्रतीक हैं. मुझे उम्मीद है कि महिलाएं जल्दी ही यह समझने लगेंगी कि बुर्का, और अंधेरे युग में महिला के यौन अंगों पर ताला लगाने वाले शुद्धता बेल्ट में कोई अंतर नहीं है. वह अगर अपमानजनक था, तो बुर्का क्यों नहीं है?
कुछ लोगों का कहना है कि कर्नाटक में बुर्का को लेकर हंगामा स्वतःस्फूर्त नहीं है बल्कि सियासी ताकतों के द्वारा समर्थित है. यह ऐसा ही जाना-पहचाना तर्क है कि दंगे हो नहीं जाते बल्कि उन्हें भड़काया जाता है, वह भी चुनावों से पहले और प्रायः हिंदुओं और मुसलमानों के बीच. जाहिर है, वे चंद वोटों की खातिर होते हैं. मुझे भी चंद वोटों की खातिर पश्चिम बंगाल से निकाल दिया गया था. अच्छी बात यह है कि दंगे अपनेआप नहीं होते. अगर ऐसा हो तो यह डरावनी बात होगी. तब हमें मानना पड़ेगा कि हिंदू और मुसलमान जन्म से एक-दूसरे के दुश्मन हैं और वे कभी शांति से साथ मिलकर नहीं रह सकते. मेरा मानना है कि बंटवारे के समय भी दंगे स्वतः नहीं हो गए थे, उन्हें भड़काया गया था.
एक नया भारत
कुछ कट्टरपंथी लोग कहते रहे हैं कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए, जहां सभी गैर-हिंदुओं की या तो हत्या कर दी जाए या उन्हें हिंदू बना लिया जाए या देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जाए.
मुझे नहीं मालूम कि ऐसे लोग बड़ी तादाद में हैं. मैं भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में जानती हूं और इसलिए उससे मोहब्बत करती हूं. मुझे इस देश पर भरोसा है. क्या भारत बदल रहा है? क्या यह बदल जाएगा? मैं हिंदू धर्म की उदारता से परिचित हूं. हिंदू धर्म का पालन करने या न करने की आज़ादी है. इस्लाम के विपरीत हिंदू धर्म किसी को अपनी रीति-रिवाज पालन करने का ज़ोर नहीं डालता. वह लोगों को ईश-निंदा के लिए किसी को यातना देने, कैद करने, सिर कलम करने, या फांसी देने की वकालत नहीं करता. हिंदू धर्म में अंधविश्वास अभी भी मौजूद हैं, हालांकि समय के साथ कई अंधविश्वास एमआईटी चुके हैं. लेकिन ‘भारत केवल हिंदुओं का होगा’, हिंदुओं या हिंदू धर्म की आलोचना करने वाले को मार दिया जाएगा’— ऐसे बयान मेरे लिए नये हैं.
करीब तीन दशकों से मैं महिला अधिकारों की रक्षा और उन्हें समानता दिलाने के लिए सभी धर्मों और धार्मिक कट्टरता की कड़ी समीक्षा करती रही हूं. हिंदू धर्म और महिला अधिकारों को दबाने वाले धार्मिक अंधविश्वासों पर मेरे लेख भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में छपते और सराहे जाते रहे हैं. लकीन आज जब भी मैं इस तरह के सवाल उठाती हूं कि ‘पति अपनी पत्नियों की भलाई के लिए करवा चौथ क्यों नहीं करते?’ तो सैकड़ों हिंदू मुझे गालियां देने लगते हैं और मुझे देश से निकालने की मांग करने लगते हैं. यह एक नया भारत है, ऐसा भारत जिसकी मैं कल्पना नहीं कर सकती. मुझे ऐसे लोगों का व्यवहार मुस्लिम कट्टरपंथियों के जैसा बिलकुल असहिष्णु लगता है.
अगर भारत हिंदू राष्ट्र बन गया, तो क्या सभी कट्टरपंथी और उदार हिंदू शांति से रह पाएंगे? क्या दबंग और सताई हुई जातियों में जो असंतोष है वह खत्म हो जाएगा? औरत-मर्द में भेद मिट जाएगा? राज्य केवल हिंदुओं के लिए होगा? शायद. वैसे ही जैसे यहूदियों ने अपने लिए राज्य बना लिया है, जैसे मुसलमानों ने अपने लिए पाकिस्तान बना लिया है.
(लेखिका एक कहानीकार और टिप्पणीकार हैं. ये उनके निजी विचार हैं)
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