मध्य प्रदेश की राजनीति 2019 लोकसभा चुनाव में एक ऐसे मोड़ पर है जब एक पीढ़ी अपनी विरासत दूसरी पीढ़ी को सौंपने जा रही है. हम बात कर रहे है मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट की जहां पिछले नौ बार के सांसद और लोकसभा में वरिष्ठ नेता कमलनाथ अपने बेटे नकुल नाथ को राजनीतिक विरासत देकर खुद मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की सत्ता चलाएंगे और कभी विधानसभा चुनाव न लड़ने वाले कमलनाथ अपने बेटे के साथ ही विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करेंगे.
1980 में इंदिरा गांधी के कहने और संजय गांधी के आदेश पर मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य छिंदवाड़ा लोकसभा से चुनाव लड़ने पहुंचे कमलनाथ ने इस लोकसभा से अलग ही पहचान स्थापित की. छिंदवाड़ा लोकसभा के अंर्तगत आने वाले पातालकोट जिसके बारे में कहा जाता था कि यहां धूप भी बड़ी मुश्किल से पड़ती थी. वहां सांसद रहते कमलनाथ ने विकास की ऐसी गंगा बहाई कि गुजरात मॉडल की तरह पिछले विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा मॉडल की खूब चर्चा हुई. वैसे पहले संजय गांधी की मौत और उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या ने कमलनाथ के राजनीतिक करिअर के उठान पर असर ज़रूर डाला लेकिन वे कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति प्रतिबद्ध बने रहे.
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कमलनाथ कहते हैं कि उनकी लोकसभा सीट नागपुर यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय के बेहद ही करीब है और वह जितने भी लोकसभा चुनाव लड़े नागपुर ने उनके खिलाफ जमकर प्रचार किया. आरएसएस स्वयंसेवक यहां चुनाव आते ही डरा डाल देते थे और घर-घर जाकर उनका दुष्प्रचार करते थे. लेकिन उन्होंने अपने काम से उनके इस दुष्प्रचार का जवाब दिया. अब उन्हीं संघियों से उनके बेटे नकुलनाथ का मुकाबला है.
हालंकि कमलनाथ ने सांसद रहते छिंदवाड़ा के विकास के साथ ही यहां के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए कई अभूतपूर्व काम किए. उन्होंने आदिवासी और नामालूम इलाक़े से 1980 में पहली बार जीतने वाले कमलनाथ ने छिंदवाड़ा की तस्वीर पूरी तरह से बदल दी है. उन्होनें यहां स्कूल-कालेज सहित आईटी पार्क तक बनवाए हैं. स्थानीय लोगों को रोजगार मिले इस सोच के साथ उन्होंने केन्द्र में मंत्री रहते वेस्टर्न कोल्ड फील्ड्स और हिन्दुस्तान यूनिलिवर जैसी कंपनियों को छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में स्थापित कराया. उन्होंने यहां कई ट्रेनिंग सेंटर भी खुलवाए, ताकि यहां के लोग आत्मनिर्भर बन सकें.
नौ चुनाव जीत कर लोकतंत्र के सबसे बडे़ मंदिर पहुंच चुके कमलनाथ इस बार छिंदवाड़ा से लोकसभा से नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. लगातार 1980, 84,89, 91 और फिर 1998,1999, 2004, 2009, 2014 में उन्होंने यहां से जीत दर्ज की, जबकि 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद पार्टी ने जब उनको टिकट नहीं दिया तो उन्होंने छिंदवाड़ा से अपनी पत्नी श्रीमती अलका नाथ को चुनाव लड़वाया और वह जीती भीं लेकिन वह यहां से पांच साल सांसद नहीं रह सकीं और उनके इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में कमलनाथ को भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे सुन्दर लाल पटवा से हार का सामना करना पड़ा. दरआसल, इसके पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी है.
वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति अपनी किताब राजनीतिनामा मध्य प्रदेश में लिखते हैं कि 1996 तक कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ 1980 से मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट से लगातार चुनाव जीतते आ रहे थे. चार बार से लगातार चुनाव जीतते आ रहे कमलनाथ का 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो उन्होंने अपनी पत्नी को चुनाव लड़वा दिया. उनकी पत्नी अलकानाथ चुनाव जीत भी गईं.
कमलनाथ को दिल्ली में सांसद न रहने के चलते लुटियंस जोन में मिला बड़ा बंगला खाली करने का नोटिस मिल गया. उन्होंने बहुत कोशिश की कि ये बंगला उनकी पत्नी के नाम अलाट हो जाए. चूंकि उनकी पत्नी पहली बार सांसद बनीं थीं, जिसके कारण बड़ा बंगला नहीं मिल सका. उधर कमलनाथ किसी भी कीमत पर ये बंगला छोड़ने को तैयार नहीं थे.
बंगले की खातिर उन्होंने अपनी पत्नी से संसद से इस्तीफा दिलवा दिया और खुद छिंदवाड़ा में उपचुनाव में प्रत्याशी बन गए. सन 1997 में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने सुंदरलाल पटवा को मैदान में उतार दिया. पटवा ने ये चुनाव बखूबी लड़ा और कमलनाथ को उन्हीं के गढ़ में मात दे दी. हालांकि अगले साल 1998 में फिर चुनाव हुए और पटवा कमलनाथ से हार गए.
कमलनाथ की छिंदवाड़ा लोकसभा में लोकप्रियता इस कदर है कि 2013 में विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा सीट की सात विधानसभाओं में से चार पर बीजेपी विधायकों का कब्जा था लेकिन वाबजूद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने जीत दर्ज की. शायद यही कारण है कि छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है और इसीलिए उन्होंने छिंदवाड़ा के शिकारपुर में अपना बंगला भी बनवाया है, जहां उनका हेलीकॉप्टर सीधे उतरता है. अब उसी कमलनाथ के गढ़ में उनके बेटे नकुल नाथ अपने पिता की विरासत को आगें बढ़ाने मैदान में उतर रहे हैं. 9 अप्रैल 2019 को जहां कमलनाथ विधायक का चुनाव लड़ने के लिए छिंदवाड़ा विधानसभा से नामांकन दाखिल करेंगे तो वही छिंदवाड़ा लोकसभा के लिए नकुल नाथ पर्चा दाखिल करेंगे.
कमलनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधायक होना जरूरी है तो वहीं छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से नकुल नाथ जीतकर लोकसभा में कदम रखना चाहते हैं और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाना चाहते हैं. छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ के सामने बीजेपी ने नत्थन शाह को चुनाव मैदान में उतारा है जो छिंदवाड़ा लोकसभा की जुन्नारदेव विधानसभा सीट से 2013 में विधायक रहे हैं और आरएसएस के कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से देखे जाते रहे हैं तो वही 72 साल के कमलनाथ के सामने 38 वर्षीय युवा नेता विवेक साहू बंटी बीजेपी से उनके सामने होंगे.
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लेकिन 17वीं लोकसभा के लिए उनके बडे़ बेटे नकुल नाथ छिंदवाड़ा से चुनाव मैदान में है और एक बार फिर से उनके बाद उनकी दूसरी पीढ़ी का मुकाबला नागपुर यानि राष्ट्रीय स्वमंसेवक संघ से है. जो लोकसभा चुनाव के दौरान देखने को मिलेगा, भले ही यह कांग्रेस या कहें कि कमलनाथ की परंपरागत लोकसभा सीट हो पर अपने पिता की विरासत को संभालना और उसे आगे बढ़ाना नकुल नाथ के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी और वह दृश्य भी अदभुत बन पड़ेगा जब एक साथ पिता और पुत्र दोनों अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए नामांकन पत्र दाखिल करेंगे.
(दिनेश शुक्ल भोपाल के पत्रकार हैं)