तेलंगाना की एक 27-वर्षीय महिला पशुचिकित्सक प्रियंका रेड्डी की गुरुवार शाम को कथित बलात्कार, हत्या और जिंदा जलाए जाने की अमानवीय घटना के लिए सरकार अथवा राजनैतिक दलों को दोष देने के बजाय संपूर्ण भारतीय समाज को दोषी ठहराना चाहिए.
मुझे पूरा यकीन है कि जल्द ही आप लोगों को सड़क पर विरोध करते हुए और कैंडल मार्च निकालते देखेंगे. कुछ गणमान्य व्यक्ति इस भयावह घटना की कठोर निंदा भी करेंगे. राहुल गांधी, चंद्रबाबू नायडू और के.टी. रामा राव जैसे राजनेताओं ने इस घटना के बाद एकजुटता की बात की है लेकिन उसके बाद क्या? क्या ऐसी घटनाएं होनी बंद हो जाएंगी?
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दोष पूरे समाज का है
हमें सोचना होगा कि एक समाज के रूप में हम कहां जा रहे हैं? हमारे समाज में कोई भी यह स्वीकार करना या गंभीरता से लेना पसंद नहीं करता है कि ऐसे भयानक अपराध वास्तविक होते हैं तब तक, जब तक कि यह उनके या उनके परिवार के किसी व्यक्ति के साथ न हों.
इस अपराध में शामिल आरोपियों को सजा होगी, या शायद नहीं भी? हैदराबाद की घटना पर उपजा आक्रोश धीरे-धीरे स्वतः ख़त्म हो जाएगा और फिर हम कुछ ही दिनों बाद समाचार में किसी और बलात्कार और हत्या के बारे में सुनेंगे.
आख़िर यह दुश्चक्र कभी खत्म क्यों नहीं होता? ऐसा इसलिए है क्योंकि एक समाज के रूप में हम इस तरह की घटनाओं के मूल कारणों को दूर करने की कभी चेष्टा नहीं करते. हम सदैव सरकार, न्यायपालिका और पुलिस को दोषी मानते हैं, लेकिन मैं इस सब के लिए सामूहिक रूप से हमें हीं दोषी ठहराती हूं.
हम उन लोगों के साथ खड़े होने में हमेशा से विफल रहे हैं जो वंचित हैं और जिनके लिए हमारी तरह आसानी से चीज़ों को प्राप्त करना संभव नहीं होता. क्यों आज भी बुनियादी शिक्षा- जिसमें यौन शिक्षा भी शामिल है- एक विशेषाधिकार बनी हुई है? इन भीषण घटनाओं के पीछे शिक्षा और रोज़गार की कमी ही असली कारण हैं और मुझे लगता है कि हमें यही बदलाव लाने की जरूरत है?
डेनमार्क नौकरियों और शिक्षा के मामले में एक बहुत ही संपन्न देश है. जब मैं 2005 में प्रशिक्षण के लिए वहां गई, तो मैंने पब्लिक ट्रांसपोर्ट (सार्वजनिक परिवहन) का इस्तेमाल किया. शुरू मे मैं थोड़ा आशंकित थी. आरहूस मेरे लिए एक अनजान शहर था. पर मेरे कोच ने मुझसे कहा, ‘ज्वाला, यह एक अपराध -मुक्त शहर है.’ मैंने पहले ऐसा कभी नहीं सुना था. इसके बाद मैंने इस बारे में पढ़ना शुरू किया कि आख़िर एक देश कैसे पूरी तरह अपराध रहित बनता है.
यहां मैं सिर्फ साक्षरता का नहीं, बल्कि पूरे समाज में समग्र शिक्षा की बात कर रही हूं. हमें भारत में अधिक बेहतर शिक्षा और रोजगार की जरूरत है. अगर हमें भारत की सामाजिक पितृसत्तात्मक मानसिकता से लड़ना है तो जागरूकता ही हमारी सबसे बड़ी सहायक हो सकती है.
हैदराबाद, एक सुरक्षित शहर
व्यक्तिगत तौर पर इस घटना से मुझे बड़ा झटका लगा है. मैं हैदराबाद में हीं पली-बढ़ी हूं और लंबे समय तक यहां रहीं हूं. मैंने हमेशा शहर में अपने आपको बहुत सुरक्षित महसूस किया है. मुझे ड्राइविंग करना पसंद है और आराम से ड्राइविंग का आनंद लेने का एकमात्र समय देर रात में ही होता है. मैं अक्सर काफ़ी देर रात को वापस आती हूं. हालांकि मैं खुद ही ड्राइव करती हूं, लेकिन कभी भी खुद को असुरक्षित महसूस नहीं करती.
मैं यह नहीं कह रही हूं कि यह एक अपराध मुक्त शहर है, फिर भी यह विश्वास करना वास्तव में कठिन है कि हैदराबाद में ऐसा कुछ हो सकता है.
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पूर्वाग्रहों से लड़ाई
एक बैडमिंटन खिलाड़ी के रूप में बिताये अपने दिनों में, मैं हमेशा सेक्सिस्ट बायस (लिंग आधारित पूर्वाग्रहों) से लड़ती रही हूं. वहां बहुत पक्षपात होता है. जब भी मैंने अपने अधिकारों के लिए बात की तो मुझे विद्रोही कहा गया.
एक महिला होने के नाते मुझ पर आसानी से कोई भी लेबल चिपकाया जा सकता है. मुझे और मेरी जैसी परिस्थति में खुद को पा कर, कई महिलाएं अपने कदम पीछे हटा लेती हैं. मुझे उम्मीद है कि तेलंगाना की इस वीभत्स घटना के बाद भी ऐसा ही नहीं होगा. हम सभी महिलाओं को एक-दूसरे के अधिकारों के लिए खड़े रहना चाहिए.
हम अपनी बच्चियों और महिलाओं की रक्षा करने में असमर्थ रहे हैं और इसके लिए हम सब को सामूहिक रूप से अपना दोष साझा करना चाहिए. यदि आप विशेषाधिकार प्राप्त समूह से आते हैं, तो कृपया अन्य महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद करने के लिए अपने विशेषाधिकार का उपयोग करें.
(लेखिका हैदराबाद मे रहने वाली एक बैडमिंटन खिलाड़ी हैं. प्रस्तुत विचार पूर्ण रूप से व्यक्तिगत हैं)
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