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Sunday, 3 November, 2024
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जस्टिस ताहिलरमानी का इस्तीफा और न्यायपालिका की साख का सवाल

कोलिजियम द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जजों और हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस की नियुक्ति की सिफ़ारिशें लगातार विवादों के घेरे में आ रही हैं. लेकिन इससे ज़्यादा विवाद हाई कोर्ट के जजों के ट्रांसफ़र को लेकर है.

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मद्रास हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस विजय कमलेश ताहिलरमानी ने अपना ट्रांसफ़र मेघालय हाई कोर्ट में किए जाने के विरोध में इस्तीफ़ा देने की घोषणा की है. हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर का फैसला सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जजों की कमेटी करती है, जिसे कॉलेजियम कहा जाता है. इसमें चीफ जस्टिस के अलावा सबसे सीनियर चार जज होते हैं. जस्टिस ताहिलरमानी के ट्रांसफ़र का कॉलेजियम का फैसला इस समिति का हाल का सबसे विवादास्पद फैसला साबित हो रहा है. इस समय कॉलेजियम में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस बोबडे, जस्टिस रमना, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस नरीमन हैं.

ऐसी क़यास लगने शुरू हो गए हैं कि जस्टिस ताहिलरमानी का ट्रांसफ़र पूर्व में बिलकिस बानो मामले में दिए गए उनके निर्णय की वजह से हुआ है. गुजरात दंगों से जुड़े इस मामले में (सामूहिक बलात्कार और हत्या) बंबई हाई कोर्ट की जस्टिस ताहिलरमानी की बेंच ने 2017 में दिए गए अपने फैसले में 11 अभियुक्तों की उम्रकैद की सजा को बहाल रखा और पांच पुलिस अफसरों और दो डॉक्टरों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया. इस मामले में कुल 18 लोगों को सजा सुनाई गई. इसके अलावा ऐसी भी खबरें हैं कि कॉलेजियम मद्रास हाई कोर्ट के दो वकीलों को हाई कोर्ट में नियुक्ति करना चाह रहा था, जिसका जस्टिस ताहिलरमानी ने विरोध किया. इसकी वजह से कॉलेजियम ने उनका ट्रांसफ़र देश के एक छोटे हाई कोर्ट में कर दिया.


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विदित हो कि 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने जस्टिस ताहिलरमानी का मद्रास हाई कोर्ट से ट्रांसफ़र कर दिया और त्रिपुरा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एके मित्तल का ट्रांसफ़र मद्रास हाई कोर्ट कर दिया. जस्टिस ताहिलरमानी ने कॉलेजियम से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था. इसके बाद भी कॉलेजियम अपने निर्णय पर क़ायम रही. इसके बाद जस्टिस ताहिलरमानी ने इस्तीफ़ा देने की घोषणा की. उनकी इस घोषणा के बाद मद्रास हाई कोर्ट के वक़ील भी कॉलेजियम के निर्णय के विरोध में आ गए हैं.

ताहिलरमानी के ट्रांसफ़र पर विवादास्पद क्यों

जस्टिस ताहिलरमानी मूलतः बम्बई हाई कोर्ट की जज रही हैं. मद्रास हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के तौर पर ट्रांसफ़र से पूर्व वे बम्बई हाई कोर्ट में दो बार कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रह चुकी थी. चूंकि इलाहाबाद, बंबई, कलकत्ता और मद्रास हाई कोर्ट आज़ादी के पहले से चले आ रहे थे, इसलिए इनको काफ़ी प्रतिष्ठित माना जाता है. इन कारणों से उक्त हाई कोर्ट के सीनियर जजों को ही मुख्य न्यायाधीश बनाया जाता है. प्रतिष्ठित हाई कोर्ट की कड़ी में अब दिल्ली हाई कोर्ट का भी नाम जुड़ गया है क्योंकि देश की राजधानी होने की वजह से कई प्रमुख मुक़दमों की सुनवाई इस हाई कोर्ट में होती है.

जजों की स्वीकृत संख्या के आधार पर 5 सबसे छोटे हाई कोर्ट और 5 सबसे बड़े हाई कोर्ट

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ग्राफिक | सोहम सेन

जजों की अधिकृत संख्या के हिसाब से मद्रास हाई कोर्ट देश का चौथा सबसे बड़ा हाई कोर्ट है, जबकि मेघालय हाई कोर्ट देश का दूसरा सबसे छोटा हाई कोर्ट है. अतः छोटे हाई कोर्ट में जस्टिस रमानी के ट्रांसफ़र को दंड स्वरूप देखा जा रहा है, जबकि कॉलेजियम ने अपने फ़ैसले में ‘बेहतर प्रशासन’ का तर्क दिया है. हालांकि ताहिलरमानी की जगह जिस जस्टिस एके मित्तल का ट्रांसफ़र करके मद्रास हाई कोर्ट भेजा गया है, वो मूलतः पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से हैं, और इस समय हाई कोर्ट के जजों में परमानेंट नियुक्ति के आधार पर सबसे सीनियर जज हैं. लेकिन यदि अतिरिक्त जज के तौर पर नियुक्ति को देखा जाए तो जस्टिस ताहिलरमानी सभी हाई कोर्ट के जजों में सबसे सीनियर हैं. हालांकि क़ानून मंत्रालय परमानेंट नियुक्ति को ही सीनियरिटी का आधार बनाता है.


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सुप्रीम कोर्ट में जज की नियुक्ति के दौरान भी अनदेखी हुई

जस्टिस ताहिलरमानी अपनी सीनियरिटी के हिसाब से सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने के योग्य थीं, परंतु सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के समय यह भी देखा जाता है कि देश के सभी हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व हो. इस समय बम्बई हाई कोर्ट के चार जज (जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, और जस्टिस बीआर गवई) सुप्रीम कोर्ट में जज हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट में जज की नियुक्ति के लिए जस्टिस ताहिलरमानी के नाम पर विचार नहीं हुआ. इसी साल 8 मई को कोलिजियम ने सुप्रीम कोर्ट में बम्बई हाई कोर्ट से एक जज को नियुक्त करने समय भी जस्टिस ताहिल रमानी को इग्नोर करते हुए इनसे जूनियर जस्टिस बी.आर. गवई को नियुक्त किया. जस्टिस गवई की नियुक्ति की सिफ़ारिश में कॉलेजियम ने कहा कि ऐसा वह अनुसूचित जातियों को प्रतिनिधित्व देने के लिए कर रहा है.

सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति विवादों में

पिछले कुछ समय से सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में कॉलेजियम की सिफ़रिशें विवाद का विषय बन रही हैं. इसमें दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना की नियुक्ति की सिफारिश शामिल है, क्योंकि वे दिल्ली हाई कोर्ट में काफ़ी जूनियर थे. जस्टिस खन्ना की नियुक्ति के समय काफ़ी शोर शराबा हुआ था. 12 दिसंबर को ख़बर आई थी कि कॉलेजियम ने अपनी मीटिंग में दिल्ली हाई कोर्ट से जस्टिस प्रदीप नंदरजोग को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफ़ारिश की है. लेकिन उस मीटिंग के बाद कॉलेजियम के सदस्य जस्टिस मदन बी लोकुर रिटायर हो गए और बाद में कॉलेजियम ने जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफ़ारिश कर दी. इसके लिए योग्यता को आधार बताया गया. जस्टिस संजीव खन्ना को दिल्ली हाई कोर्ट से दूसरे राज्यों के हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के तौर पर गए जस्टिस प्रदीप नंदरजोग, जस्टिस गीता मित्तल, और जस्टिस रवींद्र भट्ट पर तरजीह दी गयी.

28 अगस्त को कॉलेजियम की जिस मीटिंग में जस्टिस ताहिलरमानी के ट्रांसफ़र का आदेश आया है, उसी मीटिंग में देश के अलग-अलग हाई कोर्ट से चार जजों को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफ़ारिश की गई है. इसमें भी सीनियरिटी का ख़याल न रखने को लेकर विवाद हुआ.


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हाई कोर्ट के जजों की ट्रांसफ़र पालिसी का विरोध

कॉलेजियम द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जजों और हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस की नियुक्ति की सिफ़ारिशें लगातार विवादों के घेरे में आ रही हैं. लेकिन इससे ज़्यादा विवाद हाई कोर्ट के जजों के ट्रांसफ़र को लेकर है. अपने ट्रांसफ़र की वजह से इस्तीफ़ा देने वाली जस्टिस ताहिलरमानी दूसरी जज होंगी. इसके पहले कर्नाटक के जस्टिस जयंत पटेल ने इस्तीफा दे दिया था. तब यह कहा गया कि जस्टिस पटेल कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न बन जाएं, इसलिए उनका ट्रांसफ़र कर दिया गया. ऐसा बार-बार सुनने में आ रहा है कि कॉलेजियम हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रिटायर या सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट होने पर वहां के सीनियर मोस्ट जज का ट्रांसफ़र कर दे रही है, ताकि वे कार्यवाहक चीफ जस्टिस न बन पाएं. इस तरह से ट्रांसफ़र होने वाले कई जज हैं. उनमें कुछ तो चुपचाप नया पदभार संभाल लेते हैं, लेकिन अब कुछ इस्तीफ़ा भी देने लगे हैं.

भारतीय संविधान की व्यवस्थाओं के मुताबिक हाई कोर्ट के जजों को सुप्रीम कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के अधीन नहीं रखा गया है. हाई कोर्ट के जजों पर सुप्रीम कोर्ट का प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है. कॉलेजियम की वर्तमान व्यवस्था इस मायने में विवादास्पद बन चुकी है.

जस्टिस ताहिलरमानी के मामले ने कॉलेजियम सिस्टम की खामी को नए सिरे से देश के सामने उजागर कर दिया है. इस समय सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या न्यायपालिका अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए सजग है? ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि न्यायपालिका की लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका है और ये भूमिका लगातार बढ़ती चली गई है.

(लेखक रॉयल हालवे, लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी स्क़ॉलर हैं .ये लेखक के निजी विचार हैं.)

 

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