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Saturday, 21 December, 2024
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सपा-बसपा गठबंधन में शामिल होना कांग्रेस के लिए घाटे का सौदा

कांग्रेस के सपा-बसपा गठबंधन में शामिल होने से सबसे बड़ा नुकसान ये है कि जो मतदाता सपा-बसपा छोड़कर इसकी ओर आना चाहता है, वह फिर से इन्हीं दलों में उलझकर रह जाएंगे. कांग्रेस के स्वतंत्र विकास में इससे अड़चन आएगी.

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लोकसभा के चुनाव की घोषणा हो चुकी है. ऐसे में पार्टियों ने अपनी अपनी रणनीतियों पर मंथन शुरू कर दिया है. खास तौर पर सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में, जहां लोकसभा की 80 सीटें हैं, राजनीतिक उठापटक बढ़ती जा रही है. एक तरफ सत्ताधारी बीजेपी अपने सहयोगी अपना दल और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ मैदान में है तो दूसरी तरफ़ सपा, बसपा, आरएलडी (और शायद कांग्रेस) सहित विपक्षी पार्टियों का बनता गठजोड़ है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी 2014 की जीत को दोहराने की बात कह रही है तो सपा-बसपा के नेता किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देना चाहते. सपा प्रमुख अखिलेश यादव गठबंधन के पक्ष में ज्यादा मज़बूती से खड़े नजर आ रहे हैं. वे आरएलडी को भी तीन सीट देने को राजी हो गए. हो सकता है कि वे और भी कुछ सीटें अन्य दलों से लिए छोड़ें.


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सपा-बसपा-कांग्रेस का समीकरण भाजपा से मजबूत

गठबंधन में सीटों का बंटवारा होते ही टिकट की जुगत में लगे इनके नेताओं की भगदड़ कांग्रेस की ओर शुरू हुई. इसे देखकर सपा बसपा ने पुनः चिंतिन शुरू किया और कांग्रेस को भी सम्मानजनक सीटें देने की चर्चा शुरू हो गई. साथ ही अन्य छोटे दल भी गठबंधन में शामिल होने के लिए अवसर की तलाश में हैं. अगर ऐसे स्थिति बनती है तो भाजपा के राष्ट्रवाद के नारे का रंग फीका पड़ सकता है, क्योंकि जातीय समीकरण में गठबंधन बहुत मजबूत स्थिति में हो जाएगा, जिसका वोट प्रतिशत बीजेपी के अब तक किसी भी चुनाव में प्राप्त मतों से कहीं ज्यादा है.

2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने अपना दल के साथ मिलकर, संयुक्त रूप से 43.2 प्रतिशत वोट प्राप्त किया था, जबकि सपा ने 22.18 और बसपा ने 19.62 प्रतिशत वोट प्राप्त किया था. यदि सपा और बसपा के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाये तो यह 41.8 प्रतिशत ही होता है और कांग्रेस के आ जाने से 7.47 फ़ीसदी वोट मिलकर कुल प्रतिशत 49.27 हो जाएगा. बाकी अन्य छोटे दलों को भी शामिल कर लेने पर वोट 50 प्रतिशत के ऊपर हो जाएगा, जो बीजेपी और उसके सहयोगियों को हराने के लिए पर्याप्त है. लेकिन भारतीय लोकतंत्र में वोट प्रतिशत से हार जीत का निर्धारण नहीं होता, बल्कि कंडिडेट के प्राप्त मतों के आधार पर होता है.

बीजेपी अपनी नाकामियों को राष्ट्रवाद से ढंकेगी

बीजेपी के पास हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ही एक ब्रह्मास्त्र है, जिसके जरिये मोदी चुनाव में उतरने को उत्सुक हैं. लेकिन जिस तरह से बीजेपी ने पार्टी हित में सेना का राजनीतीकरण करने का प्रयास किया, वह बौद्धिक तबक़ों में चिंता का कारण बना हुआ है. मोदी पर देश को युद्धोन्माद की तरफ धकेलने के भी आरोप लग रहे हैं. बावजूद इन सबके, मोदी के समर्थकों में ऊर्जा देखने को मिल रही है. इसके अलावा कुम्भ में धार्मिक उन्माद का जो ताना बाना बुना गया है, वह धर्मप्रेमियों के दिमाग से जल्दी उतरने वाला नहीं है. इसके विपरीत विपक्षी पार्टियों के बन रहे गठबंधन के पास कोई चमकता हुआ मुद्दा नहीं है. साथ ही गठबंधन दलों में भागीदारी न पाने वाली जातियों का मत विभाजन का खतरा भी होगा, जिसका फायदा बीजेपी को मिलेगा. कांग्रेस का रहा सहा ब्राह्मण वोटर भी 10 प्रतिशत आर्थिक आरक्षण का लाभ पाने से पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में ही जायेगा.

मोदी सरकार के कामकाज की वजह से बीजेपी के लिए राह आसान नहीं है. बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी का मामला गंभीर है. भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी सरकार पर लग रहे हैं. लेकिन मोदी के चुनावी एजेंडे में शामिल राष्ट्रवाद और हिंदुत्व, अन्य सभी मुद्दों को दरकिनार करने में सक्षम हो सकता है. मोदी के भाषणों पर अभी भी उनके समर्थकों को भरोसा है.

इस खेल में कांग्रेस का दांव 

इन सब राजनीतिक खेल में गठबंधन भले ही बड़ा समीकरण बना कर, मोदी को हराने में सफल हो जाए, लेकिन ऐसी सूरत में यूपी में कांग्रेस के लिए बेहतर भविष्य दिखाई नहीं पड़ता, क्योंकि बसपा में उपेक्षित अतिदलित और अविश्वास का शिकार मुसलमान कांग्रेस की तरफ आकर्षित हो सकता था. गठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने से ये मतदाता मजबूरी में फिर से इन्हीं पार्टियों में शिफ्ट हो जाएगा. ऐसी स्थिति में कांग्रेस को इन्हीं क्षेत्रीय पार्टियों पर हमेशा निर्भर रहना पड़ेगा, जो भविष्य में कांग्रेस के लिए अच्छा नहीं है.


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दरअसल, कई-कई बार सत्ता का सुख चखने वाली सपा-बसपा ने अपने कर्मों से जातीय दुश्मन भी पैदा किये हैं, जो इन दोनों पार्टियों से नफ़रत करते हैं. ये वोटर सपा-बसपा के विरोधी तो हैं, लेकिन मिजाज से भाजपाई नहीं हैं. इसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है, जो कांग्रेस को भविष्य में राजनीतिक मज़बूती प्रदान करती. लेकिन इन संकीर्ण जातिवादी चेहरों से गठबंधन करके कांग्रेस भविष्य की अपनी राजनीति को कमजोर करेगी.

बीजेपी के ख़िलाफ़ पनप रहे जन आक्रोश की स्थिति में उत्तर प्रदेश में, प्रियंका गांधी वाड्रा के आने से, कांग्रेस विकल्प हो सकती है. लेकिन कांग्रेस के गठबंधन में शामिल होने से सपा-बसपा की नीतियों से पीड़ित मतदाता पुनः बीजेपी के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व में फंस सकता है. कांग्रेस के सामने सपा-बसपा से अलग हो चुके वोटरों की पहरेदारी का बड़ा संकट है. क्या कांग्रेस अपने 7.47 प्रतिशत वोट को बचाते हुए अन्य नए मतदाताओं को जोड़ पाने में सक्षम हो पाएगी? प्रियंका गांधी की यूपी में यह पहली अग्नि परीक्षा होगी.

(लेखक पत्रकारिता एवं जनसंचार के शोधार्थी हैं)

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