सफेद सुज़ुकी वैन, जो कि केवल अपनी मिलिट्री लाइसेंस प्लेट्स की वजह से खास हो जाती है, रावलपिंडी में सेना मुख्यालय के गेट संख्या 2 के सामने धीमी गति में पहुंचती है. यह बिल्डिंग इमारतों का एक ऐसा कॉम्प्लेक्स है जहां न केवल सेना प्रमुख, बल्कि रणनीतिक योजना प्रभाग और सामरिक बल कमांड के महानिदेशक सहित देश के शीर्ष परमाणु-हथियार अधिकारी भी मौजूद हैं. तहरीक-ए-तालिबान जिहादियों ने बेस स्टाफ के कुछ लोगों को बंधक बना लिया, और सैनिकों के साथ एक लंबी लड़ाई छेड़ दी, जिसमें बारह सैनिकों की जान चली गई.
इस हफ्ते की शुरुआत में, उस किले के गेट को फिर से तोड़ दिया गया था – लेकिन इस बार पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सैकड़ों समर्थकों ने भ्रष्टाचार के आरोपों में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी का विरोध किया. इनमें से कुछ तो सेना के परिवार से थे. सेना ने अपने गार्ड्स को पीछे कर लिया, ताकि किसी भी तरह के खून-खराबे से बचा जा सके क्योंकि कुछ लोगों को डर था कि सेना के कर्मचारियों/अधिकारियों के मत इस मामले में अलग-अलग हो सकते हैं.
लाहौर कॉर्प्स कमांडर के जलते हुए घर के अंदर से सेरिमोनियल तोपें, जमी हुई स्ट्रॉबेरी के बक्से, और यहां तक कि उनके लॉन की शोभा बढ़ाने वाले बेहतरीन अल्बिनो मोर भी आते हुए दिखे: एक प्रदर्शनकारी ने जोर देकर कहा, “ये जनता के पैसे से खरीदे गए हैं. जो हमसे छीना गया था वह हमने वापस ले लिया है.”
आम आदमी के एक अचानक उठ खड़े होने वाले विरोध का इमरान खान एक प्रतीक हो सकते हैं: आखिरकार, उन्होंने महंगे उपहार जैसे एक लाख डॉलर के हैंडबैग और राज्य की भूमि को स्वीकार करने का आरोप लगाया. हालांकि, तथ्य यह है कि पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी राजनेता के खिलाफ कार्रवाई ने सेना के खिलाफ एक तात्कालिक मिनी इंतिफादा को प्रेरित किया है.
इस नाटकीय टकराहट की वजह क्या हो सकती है और देश के लिए इसके क्या गहरे परिणाम हो सकते हैं, यह समझने के लिए इमरान द्वारा सेना के अभूतपूर्व विरोध को संदर्भित करना जरूरी है.
पुराना न्यू मदीना
इमरान की राजनीति एक लंबी राजनीतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती है: धार्मिक दक्षिणपंथ ने खुद को उत्तर-औपनिवेशिक राज्य के अभिजात्यवाद के राजनीतिक प्रतिरोध के स्तंभ के रूप में स्थापित किया. 1949 का उद्देश्य संकल्प, जिसने पाकिस्तान को एक धर्मतांत्रिक राज्य के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध किया, दक्षिणपंथ की पहली जीत थी. धार्मिक दक्षिणपंथ ने 1956 के संविधान में धार्मिक क्लॉज़ को डालने पर और सैन्य शासक जनरल अयूब खान को नए संविधान के टेक्स्ट में ‘इस्लामिक रिपब्लिक’ शब्दों को पुनर्स्थापित करने के लिए मजबूर किया.
यह भी पढ़ेंः भागलपुर से प्रयागराज तक, भारत को पुलिस एनकाउंटर से इतना खतरनाक प्यार क्यों?
यहां तक कि पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) ने भी समाजवाद पर अपने विमर्श में धर्म को शामिल कर लिया और यह तय करने के लिए कि किसे एक मुसलमान माना जाना चाहिए, राज्य को शक्तियों के प्रयोग की सुविधा दी. पार्टी के तत्वों ने सैन्य शासक जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक की भी प्रशंसा की, क्योंकि उन्होंने ऐसी धार्मिक अदालतें बनाई थीं जो कि सिविल कोर्ट्स की शक्तियों को भी छीन सकती थीं.
धर्म निरपेक्ष मध्यमार्गी दलों द्वारा इस्लामवाद को सीधे चुनौती देने के प्रति उदासीनता के कारण धार्मिक दक्षिणपंथ का प्रभाव इतना बढ़ा कि उसको चुनावों में भी सफलता मिली. हर कोई अपने को इस्लामवाद का समर्थक दिखाना चाहता था और इसे लोकतंत्र के लिए खतरे के रूप में न देखता था.
इन राजनीतिक प्रक्रिया को देख रहे विदेशी सहयोगी चिंतित थे. अब डि-क्लासिफाइड हो चुके राज्य विभाग के गोपनीय दस्तावेज़ ने 1951 में ‘पश्चिमी विचारधारा वाली सरकार का विरोध करने वाले भूस्वामियों और अशिक्षित धार्मिक नेताओं (मुल्लाओं) के प्रतिक्रियावादी समूहों की गतिविधियों के बारे में’ चेतावनी दी थी. इसकी वजह से देश में “आदिम इस्लामी सिद्धांतों की वापसी हुई.” इसमें एक जोखिम था “पाकिस्तान एक विशिष्ट पश्चिम-विरोधी पूर्वाग्रह के साथ एक धार्मिक राज्य बन सकता था.”
रोहेल अहमद और फातिमा सज्जाद लिखते हैं, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम में जिहाद के विकास से सशक्त हुए लाल मस्जिद आंदोलन ने राज्य की सत्ता पर काबिज होने की कोशिश की. इसकी वजह से इस्लामिस्ट समर्थकों और पाकिस्तानी सेना के बीच टकराव हुआ जिसने अन्य बातों के अलावा, एक आतंकवादी घटना को अंजाम दिया जिसमें पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की जान चली गई.
इस तरह इमरान द्वारा किया गया न्यू मदीना का वादा एक पुराना परिचित विचार था: एक धार्मिक आदेश, जिसमें धन का उपयोग इस्लामी सिद्धांतों पर केंद्रित एक समाजवादी व्यवस्था बनाने के लिए किया जाएगा. डोनाल्ड ट्रम्प की तरह, उनके फॉलोवर्स के लिए, उनके नेता की व्यक्तिगत विफलताएं एक तुच्छ मुद्दा लगती हैं.
सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर इमरान को कुचलने के बारे में सतर्क रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का अंदेशा था कि उनका दांव उल्टा पड़ सकता है. हालांकि, गिरफ्तारी इस बात की ओर संकेत करती है कि समय आ गया है जब सेना प्रमुख जानते हैं कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है.
एक विभाजित सेना
लंबे समय से इमरान को लेकर सेना के भीतर वैचारिक विभाजन का सामना कर रहे जनरल मुनीर स्पष्ट रूप से पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ सावधानीपूर्वक कदम उठाने की आवश्यकता को समझते हैं. ज़मां पार्क की असफल लड़ाई- जिसमें मार्च में इमरान समर्थकों को पुलिस के खिलाफ खड़ा देखा गया था- ने शासन को पीछे हटते देखा. सैन्य संस्थानों की रक्षा के लिए बल प्रयोग नहीं करने का जनरल मुनीर का निर्णय एक शर्त है कि इमरान के जेल में रहने के कारण नेताविहीन विरोध विफल हो जाएगा, लेकिन यह एक ऐसा जुआ है जिस पर काफी चीजें दांव पर लगी हैं.
यह भी पढ़ेंः क़तर में कैद नौसेना के 8 पूर्व अधिकारियों पर लगे सुपर-सीक्रेट सबमरीन प्रोग्राम की जासूसी करने के आरोप
ऐसा इसलिए है क्योंकि सेना को लंबे समय से अपने अधिकारियों/कर्मचारियों के भीतर जिहादी प्रभाव की समस्या थी – जिसका समर्थन इमरान का प्रभाव बढ़ा सकता था. 2011 में, ब्रिगेडियर अली खान- जिनकी तीन पीढ़ियां सैन्य सेवा में थीं – को विद्रोह भड़काने की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. खान और तीन अन्य अधिकारियों को एक जिहादी संगठन हिज़्ब-उल-तहरीर का सदस्य होने के लिए दोषी ठहराया गया था.
2014 के अंत तक, कुछ नौसैनिक अधिकारियों पर अल-क़ायदा को पाकिस्तानी युद्धपोत का नियंत्रण अपने कब्जे में लेने और संयुक्त राज्य अमेरिका के बेड़े पर हमले के लिए इसका इस्तेमाल करने में मदद करने का संदेह किया गया.
लेफ्टिनेंट जनरल शाहिद अजीज- जनरल परवेज मुशर्रफ के कटु आलोचक के रूप में और कारगिल हमले के बाद अल-कायदा में शामिल होने के लिए जाने जाते थे, जिनकी अंततः 2018 में मृत्यु हो गई. विद्वान हुसैन हक्कानी ने लिखा है कि जनरल अजीज का लेखन आसन्न वैश्विक युद्ध में होने वाले सर्वनाश की कल्पनाओं से भरा पड़ा था.
जांचकर्ताओं ने पाया कि 2009 के आतंकवादी हमले का नेतृत्व जिहादी सरदार मुहम्मद इलियास कश्मीरी कर रहे थे, जो एक समय में स्पेशल फोर्स में अधिकारी थे. सैन्य पृष्ठभूमि वाले दो अन्य लोगों ने भी हमले में भाग लिया, जिन्होंने कॉम्प्लेक्स की सिक्युरिटी को तोड़ने के लिए अपनी ट्रेनिंग का उपयोग किया.
लीक हुए राजनयिक केबल में पाकिस्तानी वायु सेना के वाइस-मार्शल खालिद चौधरी को शिकायत करते हुए पाया गया कि संगठन सूचीबद्ध पुरुषों को अपनी दाढ़ी छोटी करने के लिए संघर्ष कर रहा था. हर हफ्ते, चौधरी ने अमेरिकी अधिकारियों को 2006 में बताया कि पीएएफ को निम्न स्तर की तोड़फोड़ की घटनाओं का सामना करना पड़ा, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि इसके लड़ाकू जेट देश के उत्तर-पश्चिम में आतंकवादियों के खिलाफ काम नहीं कर सके.
इससे पहले, 1995 में, लेफ्टिनेंट-जनरल ज़हीर-उल-इस्लाम अब्बासी ने प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की सरकार को उखाड़ फेंकने और कश्मीर के अंदर बंद पड़े जिहाद को पूरी तरह से युद्ध में बदलने की साजिश का नेतृत्व किया.
एक आतंकी खतरा
यहां तक कि अगर सेना सत्ता से अयोग्य ठहराए जाने के लिए लंबित पड़े सैकड़ों मामलों का उपयोग करके इमरान को राजनीतिक मंच से दूर धकेलने में सफल हो जाती है तो भी इससे उनकी समस्याओं का अंत नहीं हो सकता है. तहरीक-ए-तालिबान द्वारा उत्तर-पश्चिम के बड़े इलाकों में सैनिकों को सफलतापूर्वक निशाना बनाने के साथ जिहादी हिंसा के स्तर में साल भर तेजी से वृद्धि हुई है. पोलिटिकल स्पेस की कमी के कारण, कम से कम इमरान के कुछ और कट्टर समर्थक हाथों में बंदूक उठाने की ओर मुड़ सकते हैं.
वास्तविक जोखिम यह है कि पीटीआई को निशाना बनाने को लेकर बड़े पैमाने पर दमन में शामिल होने के लिए मजबूर किए जाने पर सैनिक आदेशों को अस्वीकार कर सकते हैं. लेफ्टिनेंट-जनरल अस्म गफूर, लेफ्टिनेंट-जनरल सादिक महमूद, और ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ चेयर साहिर समशाद मिर्जा एक प्रदर्शन के तहत नरमी दिखाने वाले अधिकारियों में शामिल हैं.
अंत में, सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था का अक्षम तरीके से प्रबंधन तेजी से इसकी व्यापक वैधता को कम कर रहा है. विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि देश जून तक अपनी विदेशी मुद्रा प्रतिबद्धताओं पर चूक कर सकता है, जिससे चुनाव से पहले रोजमर्रा की जिंदगी अस्त-व्यस्त हो सकती है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद शुरू हुए इस खौफनाक नाटक ने पाकिस्तान की उस बेस को तोड़ दिया है, जिसने पीढ़ियों से पाकिस्तान की राजनीति को जकड़ रखा है. आग में झोंककर संकट को खत्म करना निश्चित रूप से भयावह है.
(लेखक दिप्रिंट के राष्ट्रीय सुरक्षा संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @praveenswami है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः पुंछ में भारतीय सैनिकों की हत्या से पता चलता है कि जिहाद भारत-पाकिस्तान युद्ध के जोखिम को बढ़ा देगा