भारत में सबसे ज्यादा अहम और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी मानी जाने वाली दो प्रवेश परीक्षाएं—राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) और संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई)—इस सप्ताह विवाद के कारण सुर्खियों में रही हैं. मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश इन्हीं परीक्षाओं के माध्यम से मिलता है.
जेईई में कथित हेरफेर मामले की आपराधिक जांच और तमिलनाडु में अपने मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए नीट खत्म करने के संबंध में एक विधेयक पेश किए जाने से इन परीक्षाओं की प्रासंगिकता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं.
हर साल लाखों छात्र महीनों कड़ी मेहनत से तैयारी करने के बाद इन परीक्षाओं में शामिल होते हैं. 2021 में 9.4 लाख छात्रों ने जेईई मेन्स की परीक्षा दी और 16.14 लाख पंजीकृत उम्मीदवारों में से 95 प्रतिशत से अधिक नीट में शामिल हुए. इन परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों की एक बड़ी संख्या और बहुत कुछ दांव पर लगे होने के मद्देनजर इस साल की नीट और जेईई परीक्षा दिप्रिंट की न्यूजमेकर ऑफ द वीक है.
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नीट के साथ क्या है समस्या
तमिलनाडु ने सोमवार को अपने मेडिकल कॉलेजों को नीट से छूट देने के लिए एक विधेयक पेश किया. राज्य अपने मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए नीट को एक मानदंड नहीं बनाए रखना चाहता है और इसके बजाये बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं में प्राप्त अंकों के आधार पर प्रवेश की व्यवस्था चाहता है. भले ही राज्य का विरोध करना कोई नई बात न हो, लेकिन चिंता इससे जुड़े सामाजिक और आर्थिक असमानता के पहलू को लेकर उत्पन्न होती है.
राज्य की तरफ से नियुक्त एक समिति ने पाया कि नीट के कारण एमबीबीएस और अन्य स्तरों की उच्च चिकित्सा शिक्षा में विविध सामाजिक प्रतिनिधित्व कमजोर हो गया है, जो मुख्य रूप से समाज के सम्पन्न तबकों के पक्ष में जा रहा है. इसमें कहा गया है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले तमिल माध्यम के सरकारी स्कूलों के छात्र, जिनके माता-पिता की आय 2.5 लाख रुपये प्रति वर्ष से कम है, और सामाजिक रूप से दमित और वंचित समूह—ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदि—नीट के कारण सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं.
सरकार का तर्क है कि नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए साधन सम्पन्न लोगों को ही अंततः मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिल पाता है, और आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी पृष्ठभूमि वाले छात्र पीछे रह जाते हैं.
2012 में भी तमिलनाडु ने कुछ राज्यों के साथ नीट का विरोध किया था, जब इसे पहली बार पेश किया गया था. उस समय 2013 में इसे एक साल के लिए टाल दिया गया था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी. हालांकि, अदालत ने अपने पुराने फैसले में संशोधन किया और 2016 के एक आदेश के बाद से नीट देश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में लिए एकल परीक्षा बन गई. इसे शैक्षणिक वर्ष 201-18 से प्रभावी बनाया गया. तबसे, तमिलनाडु खुद को इस परीक्षा व्यवस्था से बाहर रखने की कोशिश कर रहा है.
नीट का आयोजन मौजूदा समय में अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी, असमिया, बंगाली, उड़िया, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और उर्दू सहित 13 भाषाओं में होता है. इसे पहले केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा कराया जाता था और 2018 में शिक्षा मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) ने यह जिम्मेदारी संभाल ली.
परीक्षा में पूछे जाने वाले सवाल दसवीं और बारहवीं कक्षा में शामिल भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान विषयों से संबंधित होते हैं.
और जेईई में क्या हो रही है समस्या
जेईई (मेन्स) भी एक प्रवेश परीक्षा है जिसमें छात्र देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के लिए शामिल होते हैं. परीक्षा पास करने वाले शीर्ष 2.5 लाख उम्मीदवार जेईई एडवांस में हिस्सा लेने के योग्य हो जाते हैं, जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) का प्रवेश का रास्ता है. यही हर साल होने वाली परीक्षाओं में इसे सबसे अहम बनाता है, इसी वजह से मोदी सरकार ने फैसला किया कि इस साल परीक्षा चार चरणों में आयोजित की जाएगी.
परीक्षा के चौथे चरण, जो कि कंप्यूटर आधारित टेस्ट (सीबीटी) है, में ही सेंध लगी है. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने धोखाधड़ी का रैकेट चलाने के आरोप में अब तक 11 लोगों को गिरफ्तार किया है, जबकि एनटीए भी इसकी समानांतर जांच कर रहा है. अपराधियों ने कुछ लोगों से करीब 10-15 लाख रुपये वसूले और ‘सॉल्वर’ नियुक्त किए, जो अभ्यर्थियों की जगह प्रश्नपत्र को हल कर दे. इन सॉल्वर ने दूसरी जगह पर बैठकर परीक्षा केंद्र में बैठे छात्र का सिस्टम हैक कर लिया और उनके लिए प्रश्नपत्र हल किया.
ऐसी घटनाओं ने न केवल इन परीक्षाओं और एनटीए की विश्वसनीयता को संदेह के घेरे में ला दिया बल्कि इस पर भी सवाल उठने लगे कि क्या परीक्षाएं फिर से आयोजित होनी चाहिए. हालांकि, शिक्षा मंत्रालय ने फिलहाल इस पर चुप्पी बनाए रखी है, एनटीए ने जरूर काफी हद तक स्पष्ट कर दिया है कि परीक्षा फिर से आयोजित नहीं की जाएगी, क्योंकि उसने 15 सितंबर को सभी चार चरणों की संयुक्त मेरिट सूची घोषित कर दी थी. इसने 20 छात्रों के तीन साल तक परीक्षा देने पर प्रतिबंध लगा दिया और ‘अनुचित साधनों’ का उपयोग करने के लिए उनके परिणामों को रोक दिया है.
एजेंसी के अधिकारियों ने दिप्रिंट से बातचीत में स्वीकारा कि उन्होंने एक चरण से दूसरे चरण के बीच कुछ छात्रों के पर्सेंटाइल में अचानक वृद्धि देखी, और उन पर कदाचार का संदेह था. ऐसे उम्मीदवारों को एजेंसी की जांच के दायरे में रखा गया था और ऐसे 20 छात्रों को जांच के दौरान प्रतिबंधित कर दिया गया था. हालांकि, इससे अन्य जेईई अभ्यर्थियों को ऐसा लगने लगा है कि ऐसे और भी छात्र हो सकते हैं जिन्होंने ‘अनुचित साधनों’ का इस्तेमाल किया, लेकिन अब तक एजेंसी की पकड़ में न आए हों. यूट्यूब और ट्विटर पर विभिन्न सोशल मीडिया मंच कथित हेरफेर पर चर्चाओं से भरे पड़े हैं.
नीट और जेईई के लिए आगे की राह
तमिलनाडु में नीट एक संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में इसके कारण अत्यधिक तनाव और चिंता झेलने पाने में असमर्थ कई छात्र आत्महत्या कर चुके हैं. अकेले इसी सप्ताह राज्य में नीट से संबंधित तीन आत्महत्याओं की सूचना मिली है.
परीक्षा पर पूरी तरह पाबंदी लगाना और बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षाओं के अंकों के आधार पर छात्रों को प्रवेश देना कोई अच्छा विचार नहीं हो सकता, केंद्र और राज्य सरकारों को निश्चित तौर पर मौजूदा स्थिति पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाने और उसके आधार पर ही कोई कदम उठाने की जरूरत है. आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए रेमेडिएल कोचिंग क्लासेज की व्यवस्था करके या राज्य सरकार द्वारा संचालित कॉलेजों में सीटों के आरक्षण के जरिये इसका समाधान खोजा जा सकता है. बारहवीं कक्षा के अंकों को आधार बनाए जाने से ये परीक्षा फिर कट-ऑफ के उसी जंजाल में फंस जाएगी. यह अलग-अलग बोर्डों के मार्किंग सिस्टम से प्रभावित होगी—जो कुछ ऐसा है जिससे अपनी हाई कट-ऑफ लिस्ट के लिए ख्यात दिल्ली यूनिवर्सिटी भी अब बचना चाहती है. यूनिवर्सिटी अगले साल से अपने स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की योजना बना रही है.
जहां तक जेईई (मेन्स) का सवाल है, एनटीए और शिक्षा मंत्रालय को अपना सिस्टम एक बार बारीकी से परखने की जरूरत है. आयोजकों को इस पर अहम सवाल पूछने की जरूरत है कि खामी कहां रह गई है और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है. परीक्षा एजेंसी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज की रणनीतिक इकाई टीसीएस आईओएन की मदद लेती है, जो इसे तकनीकी सहायता और परीक्षाओं का प्रबंधन संभालने वाले कर्मी मुहैया कराती है. जेईई परीक्षा के लिए इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर का पुनर्मूल्यांकन और यह पता लगाने के लिए कि भविष्य में हैकिंग को कैसे रोका जा सकता है, एथिकल हैकर्स की मदद लेना भी एक अच्छा विचार है.
2018 तक जेईई परीक्षा सीबीटी और पेन और पेपर मोड दोनों में आयोजित की जाती थी लेकिन 2019 से एनटीए ने परीक्षा को केवल ऑनलाइन मोड में करने का निर्णय लिया.
केवल ऑनलाइन परीक्षा के पीछे इरादा इसमें पारदर्शिता सुनिश्चित करना था लेकिन नए फर्जीवाड़े ने पूरी परीक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है और नरेंद्र मोदी सरकार की ‘डिजिटल इंडिया’ पहल को भी झटका दिया है.
व्यक्त विचार निजी हैं. (इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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