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Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतजीएसटी पर फिर से सोचे सरकार, कोई अर्थव्यवस्था एक असफल कर प्रयोग को ढोने का जोखिम नहीं उठा सकती

जीएसटी पर फिर से सोचे सरकार, कोई अर्थव्यवस्था एक असफल कर प्रयोग को ढोने का जोखिम नहीं उठा सकती

जीएसटी को लागू करने में दिक्कतों के अलावा सरकार ने चार गलतियां कीं, अब इस पर जीएसटी परिषद में माथा-पच्ची करनी होगी और नए स्लैब व दरों पर काम करना होगा.

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मोदी सरकार ने परिवहन क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने और आम नागरिकों के लिए मूल्य वाले विभिन्न सामानों का प्रावधान करने के लिए खर्चों का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम तैयार किया है. समस्या इन सबके लिए पैसे जुटाने की रही है. एक प्रमुख मान्यता यह रही है कि ‘गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स’ (जीएसटी) लागू करने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा बढ़ेगा और साधन हासिल होंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

जीएसटी से केंद्र को इस साल लक्ष्य से 40 प्रतिशत कम आय हुई, और राज्यों की शिकायत है कि जीएसटी में से उन्हें उनका हिस्सा नहीं मिला है. अब सकते में पड़ी सरकार अपने खर्चों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से भुगतान करने या बिलकुल भुगतान न करने के रास्ते ढूंढ रही है. ‘सीएजी’ ने बताया है कि उपरोक्त कमी का जो सरकारी आंकड़ा दिया जा रहा उससे वास्तविक आंकड़ा 2 प्रतिशत-अंक ज्यादा है.

जीएसटी के मामले में चार गलतियां की गईं. पहली यह कि राजनीतिक नेतृत्व ने काफी समय तक यह नहीं समझा कि जीएसटी एक ‘फ्लैट’ यानी स्थिर सीमांत वाला कर है, जिसके कई स्तर हैं. इसलिए गरीबों के उपभोग की सभी चीजों पर अब तक जो रियायती कर लगता था उससे ज्यादा कर लगेगा. इसी तरह, अमीरों के उपभोग की चीजों पर कमतर कर लग सकता है. यानी, अगर जीएसटी की दरें राजस्व-निरपेक्ष होंगी तो गरीबों के खर्चे बढ़ेंगे और अमीरों के कम होंगे.

इसके चलते पहली गलती यह की गई कि राजनीतिक लाभ के मद्देनजर जीएसटी की दरों में प्रगतिशीलता की अति कर दी गई (शून्य से लेकर 28 प्रतिशत तक की दरें तय कर दी गईं). इसे जीएसटी की तार्किकता के बगैर जीएसटी लागू करना कहा जाएगा.


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दूसरी गलती राज्यों से यह वादा करना रही कि उन्हें जीएसटी से आय में सालाना 14 प्रतिशत की गारंटी वृद्धि दी जाएगी. यह वादा तब किया गया जबकि रिजर्व बैंक के लिए एक नयी मौद्रिक नीति बनाई जा रही थी और मुद्रास्फीति दर का लक्ष्य 4 प्रतिशत रखा जा रहा था (इसमें इधर या उधर 2 प्रतिशत-अंक की ऊंच-नीच संभव बताई जा रही थी). इसका अर्थ यह था कि 7 प्रतिशत की वृद्धि दर वाली अर्थव्यवस्था आम तौर पर नाममात्र की, 11 प्रतिशत की वृद्धि दर (मुद्रास्फीति समेत) देगी, जो कि राज्यों से राजस्व में 14 प्रतिशत की उछाल के वादे से काफी नीची है. कमी की भरपाई के लिए मुआवजा अधिशेष उपलब्ध होगा मगर केवल पांच साल तक.

तीसरी गलती प्रमुख सामान (पेट्रोलियम उत्पाद, तंबाकू, शराब) को जीएसटी के दायरे से बाहर रखना थी. चूँकि इनसे उत्पाद शुल्क का बड़ा हिस्सा हासिल होता है, इसने राजस्व-निरपेक्ष जीएसटी दर के निर्धारण को प्रभावित किया. चौथी गलती यह थी कि मोदी सरकार ने आम चुनाव के मद्देनजर माल की कीमत को कम करने की मुहिम चलाई. इसके कारण कई उपभोक्ता वस्तुओं पर टैक्स रेट उनके कच्चे माल पर लगी टैक्स रेट से भी कम कर दी गई. इसलिए कंपनियां अब कच्चे माल पर लगे टैक्स का रिफ़ंड मांग रही हैं जो कि तैयार माल पर उनके द्वारा दिए गए जीएसटी से ज्यादा है.

इस बीच, लागू करने के क्रम में वही सब दोहराया गया, जो तीन साल पहले नोटबंदी के दौर में हुआ था— लोगों ने काले को सफ़ेद करने के तमाम तरीके ईज़ाद किए. जीएसटी के मामले में ऐसा लगता है हमने फर्जी बिल का पूरा उद्योग फैला दिया है, जो उत्पादकों को सुविधाजनक बिल उपलब्ध कराता है, और कई उत्पादकों ने जीएसटी के जाल से निकालने का रास्ता ढूंढ लिया है. अब अप्रैल में इस शुरुआती वादे का इम्तिहान होगा कि इस तरह की जालसाज़ी को रोकने के लिए अंततः बिलों का मिलान हुआ कि नहीं. अब देखने वाली बात यह होगी कि यह करना मुमकिन होता है या नहीं, या यह भी एक अफरातफरी में तब्दील हो जाएगी. अगर यह नहीं हो पाता तो जीएसटी के लेकर किए गए इस अहम वादे को पूरा नहीं किया जाएगा कि इससे टैक्स चोरी रुकेगी और जीडीपी में टैक्स की हिस्सेदारी बढ़ेगी.

इन्वायस मिलान सफल भी साबित होता है, तो इस सिस्टम के दूसरे अंग टूटे हुए हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था आज विकास के जिस मुकाम पर है उसके लिए जीएसटी शायद काफी जटिल सिस्टम है. जो भी हो, केंद्र सरकार को जीएसटी काउंसिल में मगजपच्ची करनी होगी, नए स्लैब और नयी दरें बनानी होंगी (ये जितने कम हों उतने बेहतर) और नयी शुरुआत करनी होगी. करों के मामले में विफल हो चुके प्रयोग के साथ कोई अर्थव्यवस्था आगे नहीं चल सकती.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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